Pal Pal Dil ke Paas - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 12

भाग 12

तुमसे मिलने की तमन्ना है..

पिछले भाग में आपने पढ़ा की मैने नियति से कोर्ट में अचानक हुई मुलाकात में वादा किया किया था की उसकी हेल्प करूंगा मिनी की कस्टडी दिलाने में। रस्तोगी मेरा दोस्त था तो मैंने उससे केस का पूरा डिटेल लेने के लिए उसे कॉल किया। मेरा अंदेशा सही निकला। जैसा की मैं जानता था की रस्तोगी अपने हर केस में कुछ न कुछ झोल जरूर करता था। नियति के केस में भी वो नीना देवी की साइड हो गया था। वो सिर्फ केस को लंबा खींचना चाहता था। जब उसे मेरी नियति से निकटता का पता चला तो काफी शर्मिंदा हुआ, और आगे पूरी मदद करने का वादा किया। अब आगे पढ़े।

आज की सुबह मेरे लिए कुछ अलग ही रंग ले कर आई थी। मैं खुद को एक अलग ही ऊर्जा से भरा हुआ महसूस कर रहा था। वैसे मैं आम तौर पर पूजा पाठ पर विश्वास नहीं किया करता था। हां पर मेरे मन में श्रद्धा अवश्य थी। आज मेरे कदम अपने आप ही पूजा रूम की तरफ उठ गए। मैने भगवान के आगे हाथ जोड़ कर बैठ गया। आज मेरा विश्वास और श्रद्धा दोनो ही इन पर अटूट हो गया था। आज जो चीज असंभव सी थी उनकी कृपा दृष्टि से ही संभव हो गई थी। मैं आज नियति से मिलने का रहा था।

जिस पल की उम्मीद में मैने इतना समय बिता दिया था। आज वो दिन आ गया था। मैं आज नियति से मिलने जाने वाला था। सुबह से ही जाग कर तैयारी करने लगा। कभी कोई शर्ट निकलता कभी कोई। पर कोई भी पसंद नहीं आ रही थी। तभी मां आ गई। पूरे बेड पर फैले कपड़े देख कर मां हंसने लगी बोली, "समझ नही आ रहा क्या पहन कर नियति से मिलने जाओ? है ना!!"

मैने मां की ओर देखा और बालों में हाथ फिराते हुए उलझन पूर्ण मुस्कान से "हां" कहते हुए सिर हिलाया।

मां पास आई और फैले हुए बेड पर बैठ गई। सभी शर्ट को गौर से देखने लगीं। फिर उनमें से एक निकाल कर मेरी ओर बढ़ाया और बोली, "तू तो कुछ भी पहन ले… तेरे ऊपर तो सब जंचता है। पर ये तुझ पर खूब जमेगी।"

मैने मां से शर्ट ले ली। और संतुष्ट हो कर पहनने लगा। नियति को मैसेज कर दिया था सुबह ही की वो अपने घर के पास के किसी अच्छे रेस्टोरेंट का एड्रेस भेज दे। जहां आराम से बैठा कर बात चीत हो सके। जवाब में नियति ने एक रेस्टोरेंट का एड्रेस भेज दिया था। जो मेरे घर से मात्र तीन किलोमीटर था। समय 11 बजे का दिया था उसने। मैं तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर आ गया। कविता दीदी ने मेरी पसंद का नाश्ता बनाया था।

जिसे देख कर मेरा अच्छा मूड और भी अच्छा हो गया।

मैने आग्रह कर उन्हें भी साथ नाश्ते के लिए बिठा लिया।

मैं, मां और कविता दीदी ने साथ में बैठ कर नाश्ता किया। अब तक साढ़े दस बज चुके थे। मैं बिल्कुल भी देर नहीं करना चाहता था। मुझे ये कतई मंजूर नहीं था कि नियति मेरा इंतजार करे। नाश्ता खत्म कर मैं चलने को हुआ। अनायास ही मैं मां के कदमों में झुक गया। मां ने सर पे हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। कविता दीदी जो खड़ी ये देख रही थी। मुस्कुरा उठी, वो बोली, "जाइए भैया अब तो मां जी का आशीर्वाद आपके साथ है। जिस काम के लिए जा रहे है। जरूर सफलता मिलेगी।"

बाय करने के लिए कविता दीदी को हाथ हिलाया और चल पड़ा एक नए सफर को शुरू करने को कोशिश में।

संडे का दिन था। उम्मीद के मुताबिक ही दिल्ली का ट्रैफिक भी था। पर उनसे न उलझते हुए मैं थोड़ा लम्बा पर कम ट्रैफिक वाला रास्ता ले कर रेस्टोरेंट पहुंच गया। अंदर आकर देखा तो नियति नहीं दिखी। कुछ देर इधर उधर देखने के बाद मैं प्रवेश द्वार के पास की टेबल पर बैठ गया। जिससे जो भी अंदर आए मुझे दिखाई पड़े।

मेरे बैठते ही वेटर आ गया ऑर्डर लेने। पानी का ग्लास रख कर उसने ऑर्डर के लिए पूछा। मैने उसे बताया की कोई आने वाला है। ऑर्डर मैं उसके आने के बाद ही दूंगा। "ओके सर" कह कर वो चला गया। मैने नियति को कॉल लगाई। रिंग जाती रही पर कॉल रिसीव नही हुआ। मैं अभी परेशान हो ही रहा था की कॉल वो उठा क्यों नहीं रही, तब तक सामने निगाह गई तो देखा तो अपने चिर परिचित अंदाज में नियति चली आ रही है। कंधे पर बैग टांगे तेज तेज कदम बढ़ाते हुए चली आ रही। अंदर आकर ठहरी और चारो ओर निगाह दौड़ाई।

मैने हाथ उठा कर इशारा किया तो मेरी ओर देख तेजी से आगे बढ़ी। उसे लगा की मैं उसका इंतजार कर रहा हूं। काम भी उसी का है, और खुद लेट आई है। हड़बड़ी में वो मेरी ओर आई । जैसे ही पास पहुंची ग्लासी फर्श और तेज चलने के कारण फिसल गई। उसे गिरते देख मैं फुर्ती से अपना हाथ बढ़ा उसे पकड़ने की कोशिश की। मेरे हाथों को उसने अपना हाथ बढ़ा कर पकड़ लिया और गिरते गिरते बच गई। वो "सॉरी... सॉरी ….

बोल कर अपना हाथ छुड़ाया और सामने की कुर्सी पर बैठ गई। स्टाफ ने आकर पूछा, "आर यू ओके मेम"

मैने उसे सब ठीक होने का बोल कर वापस भेज दिया।

नियति का हाथ मेरे हाथों में मेरा हाथ नियति के हाथों में। दोनों के दिल में पहली मुलाकात की याद ताजा कर गया।

मैने मुस्कुरा कर नियति की और देखा और मजाकिया अंदाज में बोला, "शायद ईश्वर ने लिख रक्खा है की जब भी हम मिलेंगे… बिना शेक हैंड किए नही। हमारे हाथ वो ऊपर बैठा मिला देगा।"

मेरे इस बात पर नियति भी मुस्कुरा उठी। पर फिर उदास होती हुई बोली, "सब मेरा ही कर्म है। कोई भी काम समय पर और सही ढंग से नहीं कर पाती हूं ना!

हर काम में लेट ही हो जाती हूं फिर सब खराब हो जाता है।"

मैं तड़प उठा उसके इस तरह मायूसी पूर्ण बातों से। उसे धैर्य देते हुए बोला, "ऐसे दिल छोटा नहीं करते नियति। हो जाता है कभी कभी। सब ठीक हो जायेगा। तुम बिलकुल भी परेशान मत हो।"

नियति को देख फिर वेटर आ गया। बोला, "सर अब आप ऑर्डर देंगे?"

मैने नियति से जानना चाहा वो क्या लेना पसंद करेगी। पर उसने मना कर दिया। मैने दो कॉफी मंगवा ली।

इधर उधर की बातें कर मैं नियति पे ये जाहिर नहीं करना चाहता था की मेरा इंट्रेस्ट जरा भी उसके केस में काम है। मैं तुरंत ही काम की बातों पर आ गया। उससे सारी जानकारी शुरू से लेने लगा। नियति से मैने हर छोटी बड़ी बात बताने को कहा। नियति ने सब कुछ शुरू से अंत तक मुझे विस्तार से बता डाला। बीच में कई बार उसकी आंखें गीली हुई… आवाज रुंध गई। पर उसने फिर खुद को संभाल लिया।

नियति की बात खत्म होते होते तक मैं समझ चुका था की नियति की सास नीना देवी एक बेहद कठोर और स्वार्थी महिला है। जिन्हे सिर्फ और सिर्फ अपना नजरिया… और फैसला ही सही दिखता है। उनके फैसले से प्रभावित हो कर सामने वाले को कितना दुख पहुंचता है इस बात की उन्हें कोई परवाह नही होती। एक छोटी दूध पीती बच्ची को उसकी मां से अलग कर दिया। जबकि कानून और अदालत भी सोलह वर्ष तक परवरिश का हक मां को ही देता है। नीना देवी भी अपनी संतान से बिछड़ गई थी। उन्होंने इस दर्द को खुद महसूस किया था। एक मां की पीड़ा क्या होती है ये वो जानती थी। इसके बावजूद उन्होंने नियति को मिनी से अलग कर दिया। मैने नियति से कहा, " नियति तुम मेरा यकीन करो। मैं बस चार पांच तारीख में ही तुम्हें मिनी की कस्टडी दिला दूंगा। मैं तो उस अभागी नीना देवी के बारे में सोच रहा हूं कि जिससे बेटा तो भगवान ने छीन लिया जिसमे वो कुछ नहीं कर सकती थी। पर बहू भी उनकी बेटे की ही अमानत थी जिसे उन्होंने अपने जिद्द और क्रोध में खो दिया।"

मेरी बातों का असर नियति पर हो रहा था। वो अब कुछ निश्चिंत दिख रही थी।

मैने रस्तोगी को कॉल किया था उसे कुछ देर हो रही थी आने में। उसके आते ही मैंने बारीकी से सब कुछ देखा। रस्तोगी भी काबिल वकील था। पर थोड़ा सा लालची था। नीना देवी के प्रपोजल से वो अपने क्लाइट को लटका कर रखना चाहता था। जब मैंने खुद को शामिल कर लिया तो अब वो ईमानदारी से केस की पैरवी करने को तैयार था। नियति को मेरा प्रभाव साफ दिख रहा था। जो रस्तोगी उसकी बातें नही सुनता था। आज उसे पूरे तवज्जो से सुन रहा था। अपना काम खत्म कर रस्तोगी चला गया। उसने बहाना बनाया की उसकी और भी मीटिंग है।

इन सब में काफी वक्त बीत चुका था। मैने सोचा जब मुझे भूख महसूस हो रही है तो नियति भी जरूर ही भूखी होगी। मैने वेटर को बुलाया और दो कप कड़क चाय और पकौड़े ऑर्डर कर दिया।

नियति सचमुच ही भूखी थी। जल्दी ही हमने प्लेट खाली कर दिया। नियति अब जाना चाहती थी। मैं नहीं चाहता था कि नियति जाए। पर ये कहां संभव था? मैने अपने दिल को समझाया, जैसे सुबह के लिए पहले रात होना जरूरी है वैसे हीं मिलने के लिए पहले बिछड़ना जरूरी है। मैने नियति को उसके घर ड्रॉप करने का ऑफर दिया। जिसे पहले उसने मना किया पर मेरे रिक्वेस्ट पर तैयार हो गई। मै इस बहाने कुछ और देर उसके साथ रहना चाहता था। मैं गाड़ी ड्राइव कर रहा था और साथ की सीट पर नियति बैठी है। मुझे यकीन नहीं हो रहा था अपने भाग्य पर।

क्या हुआ रस्तोगी ने जो आश्वासन दिया था वो सच था या कोरा आश्वाशन ही था? क्या अपनी रिश्वत खाने की आदत को रस्तोगी छोड़ पाएगा..? नियति की जिंदगी आगे क्या रंग लाती है । पढ़े अगले भाग में।

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