पल पल दिल के पास - 8 Neerja Pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पल पल दिल के पास - 8

भाग 8

फैसला

पिछले भाग में आपने पढ़ा की मयंक की तेरहवीं के बाद नियति की मां वापस अपने घर जाने लगती है। वो चाह कर भी नियति को कुछ दिन अपने साथ ले जाने की बात नीना देवी से नही कर पाती है। वो नीना देवी से वापस जाने की इजाजत ले कर जाने लगती है। तभी नीना देवी उन्हें रोक कर नियति को भी साथ ले जाने को कहती है। नीना देवी ने भले ही नियति को दिल से nhi अपनाया हो, पर नियति ने नीना देवी को सिर्फ मयंक की मां या अपनी सास नही समझा था। वो में दिल से अपनी मां सामान ही मन लिया था इस घर में आते ही। अब उसी मां द्वारा इन परिस्थितियों में भी इतनी कड़वी बातें सुन कर नियति बेहद दुखी हुई। उसे दुख इस बात का नहींi था की वो उसे घर से निकल रही रही है। उसे दुख था तो इस बात का को अब वो अकेले कैसे रहेंगी..? कौन उनकी देख भाल करेगा? 

अब आगे पढ़े।

सब कुछ नीना के मुंह से सुनने के बाद नियति टूट गई। अब उसके पास यहां रुकने की कोई वजह नहीं बची थी। जहां इतनी नफरत हो वहां रुक कर भी वो क्या कर पाएगी…? नियति की मां उसके पास पहुंची और बिना उससे कुछ कहे उसे ले कर उसके कमरे की ओर जाने लगीं।

नीना देवी, जो नियति की मां को उसके साथ कमरे में अंदर जाते देख रही थीं। नियति की मां से तेज आवाज में बोली, "मैने आपसे सिर्फ आपकी बेटी को ले जाने को कहा है। अपनी पोती को नहीं। उसे तो अपने साथ ले जाने की सोचिएगा भी मत।"

अंदर जाती नियति सास के शब्द सुनते ही भागती हुई वापस लौटी और नीना के कदमों पर गिर पड़ी, घुटने के बाल बैठ, दोनो हाथ जोड़ फफक पड़ी, "मम्मी जी मुझसे मेरे कलेजे के टुकड़े को अलग मत कीजिए.. । आपको जो भी सजा देनी है वो मुझे दीजिए। मैं उफ तक नही करूंगी। पर मिनी को साथ ले जाने दीजिए। वही तो अब मेरे जीने का सहारा है। उसे मुझसे अलग मत कीजिए। प्लीज… मम्मी जी… प्लीज … मम्मी जी...।" कहते हुए नियति ने नीना देवी के पांव पकड़ लिए।

नियति को अपने पैरो से अलग कर नीना देवी तल्ख स्वर में बोली, "मैं तेरी मनहूस परछाई अपनी पोती पर पड़ने दूंगी..! ऐसा तुमने सोच भी कैसे लिया! वो मेरे बेटे की अमानत है। उसे मैं अपनी नजरों से एक पल के लिए भी ओझल नहीं कर सकती...! तुम्हारा अब मेरी पोती से कोई वास्ता नहीं है। जिससे वास्ता था, जो तुम्हें लेकर आया था जब वही चला गया तब तुम से क्या वास्ता…? " गुस्से से कह नीना लंबे लंबे डग भरती हुई ऊपर के कमरे में चली गई। वहां शांता मिनी को लेकर सुबह से हीं थी।

नियति और उसकी मां को भली भांति पता था कि नीना देवी कितनी जिद्दी है। जो फैसला वो कर लेती है, उसे फिर कोई नहीं बदल सकता। नियति को वो इस घर में रहने नहीं देंगी, और मिनी को उसके साथ जाने नहीं देंगी। रोती नियति को उसकी मां और नीता ने उठा कर चुप कराया। नीता उसे समझाते हुए बोली, "नियति बेटा तुम दिल छोटा मत करो। दीदी के पास रहे मिनी या तुम्हारे पास बात एक ही है। दोनो का मकसद तो एक ही है उसे अच्छी परवरिश देना। मैं वादा करती हूं जब भी तुम कहोगी मैं उससे तुम्हे मिलवा दूंगी। मैं खुद तुम्हारे पास उसे लेकर आऊंगी, जीजी को पता भी नही चलेगा।" नीता ने अपने प्रयत्न भर नियति को समझाने की कोशिश की।

फिर उसे समझाते हुए बोली, "कोई भी ताकत एक मां को उसके बच्चे से अलग नही कर सकती। फिर मिनी तो इतनी छोटी है। बच्चे पर पहला हक मां का होता है। तुम कोर्ट का सहारा लेना, वहा जीजी का साम्राज्य नही चलता । जीजी कुछ भी नही कर पाएंगी।"

नियति की मां ने भी नीता की बात का समर्थन किया।

नीता के सहयोग से कुछ जरूरी सामान और नियति के कपड़े आदि नियति की मां ने पैक कर लिया। नियति ने सिर्फ एक ही समान रक्खा खुद से, वो था उसका मयंक और मिनी की तस्वीर। नियति मां के साथ चल दी। सुनी मांग, सूनी गोद, अब उसके बचा ही क्या था …? पर दग्ध हृदय उसे एक निश्चय करने पर मजबूर कर रहा था। उसने मन में निश्चय कर लिया था की वो अब इस घर में नहीं आएगी। ना ही किसी पर बोझ बनेगी। वो खुद अपने पैरों पर खड़ी होगी फिर मिनी को हासिल करेगी। नीना देवी द्वारा किया गया अपमान उसे खुद को साबित करने के लिए और भी दृढ़ कर रहा था।

नियति को छोड़ने नीता सड़क तक आई। उसे और उसकी मां को टैक्सी पर बिठा कर आश्वस्त किया किया वो सदैव उनके साथ खड़ी रहेंगी। नियति नीता मौसी के चरण स्पर्श कर मां के साथ चली गई।

इधर नीना ऊपर कमरे में पहुंच मिनी को शांता की गोद से ले लिया और बोली, "जाओ तुम दूसरे काम देख लो अब मैं आ गई हूं मिनी का ख्याल रखूंगी। नीना के इतना कहने पर शांता चली गई। नीना को ऊपर आते देख चंचल भी पीछे पीछे चली आई। जैसे ही शांता गई वो आकर नीना के पास बैठ गई, कहने लगी, "अरे!! जिज्जी आपने बहुत अच्छा किया जो उस अपशकुनी को घर में टिकने नहीं दिया। जिज्जी आप मानो ना मानो पर मुझे तो पहले से ही इसके कदम शुभ नही लग रहे थे। जिस तरह ये अपने मयंक को अपने आगे पीछे घुमाती थी। कोई अच्छा लक्षण थोड़े ही था।"

नीना ने चुपचाप सर हिला कर भाभी चंचल से सहमति जाहिर की।

चंचल ननद का समर्थन पा आगे बोलने लगी, "और नही तो क्या जिज्जी ना उस दिन मयंक को अपने साथ ले गई होती, ना ये हादसा होता। जीज्जी ये लड़की तो जादूगरनी है जादूगरनी। अपने आगे पीछे ही मयंक को घुमाती थी। मयंक के सर इसका ऐसा जादू चढ़ा की उसने आपकी एक ना सुनी। ले आया ब्याह कर अब आप देख ही रही हो जिज्जी क्या ….? क्या….? हो गया। "

बोलते बोलते चंचल थोड़ा सा ठहरी फिर बोली, "उसी का नतीजा है ये जिज्जी जो हम सब भोग रहे है। अब आपने तो उसे जाने को कहा था। क्या जरूरत थी मेहमानों से भरे घर में सब कुछ छोड़ छाड़ कर उसे साथ ले जाने की? पर ना रानी साहिबा को जब तक पति पीछे पीछे न आए चैन ही नहीं आता था।"

फिर जोर जोर से रोने लगी चंचल ये कहते हुए, "हाय! रे… मयंक ये तूने किसे चुन लिया था। देख तू ही चला गया। अब तेरे इस महारानी का हम क्या करेंगे?"

नीना ने चंचल को बोला, "शांत हो जाओ भाभी अब क्या हो सकता है? जो होना था वो तो हो गया। एक से एक लड़कियों के रिश्ते आए थे। पर मयंक की जिद्द की वजह से इसे अपनाना पड़ा था।"

दोनो बैठी मयंक की पसंद को कोस रही थी। शायद इसी से उनके दिल को ठंडक पड़ जाए। तभी मिनी रोने लगी। शायद उसे भूख लगी थी। नीना ने चंचल को मिनी के लिए दूध लाने भेज दिया । इस कारण चंचल को वहां से उठ कर जाना पड़ा। बात यही समाप्त हो गई। वो बेहद चापलूस स्वभाव की थी। नीना की हां में हां मिलाना उसका परम धर्म था। उसे पता था की अपनी इस रईस ननद कि जी हजूरी करने में ही उसका भला है। नीना अपने अपने बेरोजगार भाई और भाभी का पूरा ख्याल रखती थी। पति के गुजर जाने पर उसे भाई के साथ की बहुत आवश्यकता थी। इस कारण उन्हें अपने साथ ही रखती थी।

नियति का घर ज्यादा दूर नही था मयंक के घर से। लगभग आधे घंटे का फासला था। नियति मां के साथ घर पहुंच गई। उसके घर पहुंचते ही नानी ने उसे सीने से लगा लिया । नाना जी ने सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा तू दुखी न हो हम सब तेरे साथ है। और तू मिनी की बिलकुल भी चिंता मत कर उसे तो नीना को तुझे देना ही पड़ेगा। सीधे से नहीं देंगी तो कोर्ट में हम जायेगे।"

तभी बड़ी मामी ने नियति का हाथ अपने हाथ में ले बोली, "बाबूजी ये सब फैसला हम सब बाद में मिल कर कर लेंगे। अभी तो उसे आराम की जरूरत है।"इतना कह कर अंदर कमरे में ले कर चली गई। नियति को बिस्तर पर बिठा दिया। छोटी मामी पानी का ग्लास ले कर आई। नियति ने दो घूट लिया और तकिए के सहारे लेट गई। उसे आराम करने को सब ने अकेला छोड़ दिया और बाहर आ गए।

भले ही नियति के मायके में बहुत पैसा नहीं था उसके मामा और नाना के पास। पर अब वो जी जान से नियति का साथ देना चाहते थे। चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े उन्हें। बड़े मामा के एक बेटा जय और छोटे मामा की बेटी श्रेया ही थी। वो दोनो भी दीदी को इस हाल में देख अपनी शैतानी भुला कर गुमसुम से बैठे थे। दोनों मामा ने अपनी पत्नियों को हिदायत दी की नियति बिटिया का वो खयाल रक्खे। उसे कोई परेशानी न होने पाए। उन्होंने भी अपनी सहमति दी की वो पूरा खयाल रखेगी नियति का। उसे कोई भी परेशानी नहीं होने पाएगी।

समय धीरे धीरे बीत रहा था। नीता मिनी की आवाज नियति को सुना देती थी। अब नियति ने खुद को संभाल लिया था। उसे अभी बहुत संघर्ष का सामना करना था। उसे किसी पर बोझ नही बनना था। अपने पैरो पर खड़ा होना था। वो अपनी जिंदगी बिना किसी सहारे के आत्मनिर्भर होकर गुजरना चाहती थी। फिर उसे मिनी को भी वापस लेना था । नियति जानती थी की ये बहुत कठिन लड़ाई है। नीना देवी हार नहीं मानेगी। उसे कानूनन मिनी को हासिल करना था।

नियति अब अपने आसूं पोंछ कर संघर्ष के लिए तैयार थी। नियति के जीवन सफर में आगे कौन कौन से मोड़ आए …? क्या नियति अपनी नई शुरुआत कर पाई…? क्या नीता ने अपना वादा निभाया। जानने के लिए पढ़े अगला भाग।