पल पल दिल के पास - 3 Neerja Pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पल पल दिल के पास - 3

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अभी तक आप सभी ने पढ़ा, नियति और मयंक की बेटी मिनी की बर्थ डे पार्टी हो रही है। जिसमे केक अभी तक नही आ पाया है। नियति की सास नीना देवी इस बात से नाराज है। वो उससे कहती है की जाओ और पता करो की केक अभी तक क्यों नहीं आया..? नियति ये पता करने के बदले खुद ही दुकान जा कर केक ले आने का फैसला करती है। बाहर उसे ड्राइवर कहीं दिखाई नहीं देता तो वो परेशान हो जाती है। मां को नियति पर नाराज होते हुए मयंक देख लेता है। वो भी उसके पीछे पीछे आ जाता है। मयंक ड्राइवर के ना रहने से परेशान नियति को देख खुद ही साथ चलने को कहता है। नियति के मना करने के बाद भी वो खुद ही गाड़ी ड्राइव कर केक लेने के लिए नियति के साथ चल पड़ता है। अब आगे पढ़े–

तेजी से गाड़ी चलाता हुआ मयंक केक की दुकान की ओर बढ़ चला। रास्ते में मयंक गाड़ी चलाते हुए बार बार नियति की ओर देखता और मुस्कुरा देता। ब्लू कलर की साड़ी में नियति का दूधिया रंग और भी निखर आया था। लाख चाहने पर भी मयंक अपनी निगाहें नियति के चेहरे से नही हटा पा रहा था। मयंक खुद को बेहद सौभाग्यशाली समझ रहा था जो उसे नियति जैसी अनिंद्य सुंदर जीवन साथी मिली थी, जो सिर्फ सुंदर ही नही थी बल्कि पढ़ाई में भी अव्वल थी। इसी एहसास से गर्वांवित होता हुआ वो बार बार नियति को निहार रहा था। उसे निहारते देख बार बार खिलखिलाते हुए नियति कह रही थी, "मयंक इधर मत देखो , ध्यान से गाड़ी चलाओ।"

पर मयंक ने बेपरवाही से हंसते हुए कहा, "जब इतनी सुंदर बीवी बगल में बैठी हो तो कोई कम्बखत कैसे आगे देख सकता है!"

नियति बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बार बार आगे देखने को बोल रही थी। कुछ ही मिनट में वो दुकान पर पहुंच गए।

मयंक और नियति दुकान में गए तो पता चला जो लड़का केक पहुंचाने जाने वाला था वो अभी तक आया ही नहीं था। नियति ने नाराजगी दिखाते हुए शिकायत करते हुए कहा, "जब आप लोगों को समय से ऑर्डर डिलीवर नहीं करना था तो आपने केक का ऑर्डर ही क्यों लिया…? " इतना कह कर केक लेकर नियति ने केक का पेमेंट किया और दोनो दुकान से बाहर आ गए। नियति केक पीछे की सीट पर रख गाड़ी में बैठ गई और मयंक ने गाड़ी का रुख घर की ओर कर दिया। घर पहुंचने की जल्दी थी। जितनी उन्हे जल्दी थी, उतनी आज सड़क पर ट्रैफिक थी। उन्हे पता था की मेहमान इंतजार कर रहे होंगे, पर मजबूर थे। और घर पे हर सेकंड की देरी के साथ मां का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचता होगा इसका पूरा यकीन नियति को था।

मयंक फुल स्पीड पर गाड़ी चलाता हुआ सामने की बजाय बार बार नियति की और देख रहा था। वो ट्रैफिक की देरी से घबराती नियति को देख कर माहौल को हल्का फुल्का बनाने के लिए नियति को छेड़ रहा था। वो मजा लेते हुए नियति से बोला, "नियति तुम मुझे बार बार खुद को देखने से मना क्यों कर रही हो..? अरे..! भाई मैं क्यों न देखूं…..? है किसी की मेरी जैसी सुंदर बीवी….? आज मैं हूं तुम्हे निहारने को तो जी भर कर निहार लेने दो। कल क्या पता मै रहूं ना रहूं तुम्हे देखने को?" मयंक के शब्दो मे गर्व का पुट था।

मयंक की ये दिल्लगी नियति को जरा भी नहीं सुहाई। वो मयंक की इस बात से तड़प उठी।

नियति ने नाराजगी जाहिर करते हुए आगे हाथ बड़ा कर अपनी उंगली मयंक के होठों पर रख कर आंखो से ना का इशारा करते हुए रिक्वेस्ट किया और बोली, "आज इतनी खुशी के दिन ये क्या बकवास कर रहे हो मयंक तुम? तुम और हम जनम जनम तक साथ रहेंगे। क्या मेरा हाथ इसी लिए थामा था सबके विरोध के बावजूद। की मेरा साथ बीच रास्ते में छोड़ दो।"

मयंक ने गाड़ी की स्पीड काफी तेज रक्खी थी। वो निश्चिंतता से गाड़ी चलाता हुआ जा रहा था। उन रास्तों पर वो रोज ही आता जाता था तो उसे गाड़ी की स्पीड तेज रखने में कोई डर नहीं था। "मेरे सिर्फ कहने भर से तुम इतना घबरा गई! किसी दिन वाकई चला गया तो कैसे रहोगी…..?" इतना कहते हुए मयंक की गाड़ी मेन रोड से घर वाले लिंक रोड पर मुड़ने लगी। मयंक की निगाहे नियति की ओर थी। वो बेपरवाह था कि इस रास्ते पर तो उसका रोज का आना जाना है। ट्रैफिक तो नाम मात्र ही रहती है;इस कारण वो निश्चिंत था। जैसे ही गाड़ी ने टर्न लिया अचानक से एक ट्रक सामने तेजी से आ गया। उस रास्ते पर ट्रक कभी नहीं चलता था। पर उस दिन कोई मुहल्ले का ही दूसरी जगह शिफ्ट हो रहा था। उसी का सामान उस ट्रक से जा रहा था।

उससे बचने को मयंक ने गाड़ी तेजी से मोड़ा इस तरह अचानक गाड़ी मोड़ने से मयंक का अपनी गाड़ी पर संतुलन बिगड़ गया। वो ट्रक से तो बच गया। पर रोड के साइड में लगा पेड़ वो नहीं देख पाया। गाड़ी ट्रक से तो बच गई पर सामने के पेड़ से जा टकराई। टक्कर इतनी जबरदस्त थी, उसकी आवाज दूर तक सुनाई दी। टक्कर की आवाज जिस जिस ने भी सुना दौड़ा आया। टक्कर होने से गाड़ी का दरवाजा खुल गया । दरवाजा खुलने से नियति बाहर जा गिरी। मयंक ने सीट बेल्ट बांध रक्खा था। इस लिए वो गिरा तो नही पर उसका सर स्टियरिंग व्हील से जा टकराया। मयंक का सर टकराते ही फट गया और पूरा स्टीयरिंग व्हील खून से लथपथ हो गया। फिर तुरंत ही वो अपना होश खो बैठा।

नियति गिरते ही मयंक ..… मयंक…... चिल्लाने लगी। पर उसे भी गंभीर चोटें आई थी, पर उसे सिर्फ और सिर्फ मयंक का ख़्याल था। चोट के कारण नियति भी अपना होश खो बैठी। वो भी तुरंत ही अचेत हो गई।

एक्सीडेंट होते देख आस पास मौजूद लोग मदद के लिए दौड़ पड़े। सभी लोग उसी मुहल्ले में ही रहने वाले थे। पास आकर देखा तो वो पहचान गए अनायास ही उनके मुंह से निकला कि , ’अरे…! ये तो हमारे मुहल्ले में रहने वाले मयंक और नियति है । तभी किसी ने कहा, इनके घर तो आज बर्थडे पार्टी भी है।’ जल्दी से उनमें से कोई भाग कर मयंक के घर ये खबर पहुंचाने दौड़ा गया तो कोई बिना उनके घर वालों का इंतजार किए ही एमबुलेंस को फोन करने लगा। दोनो ही बेहोश थे। हल्की हल्की सांसे चल रही थी। आस पास खून ही खून फैला हुआ था। जो माहौल को दर्दनाक बना रहा था।

जैसे ही घर पर ये खबर पहुंची की नियति और मयंक का एक्सीडेंट हो गया है। कोहराम मच गया। हंसी– खुशी का माहौल मातम में बदलते पल भर भी देर ना लगी। जो गीत संगीत का कार्यक्रम चल रहा था। उसे बंद कर दिया गया।

नीना देवी खबर सुनते ही घबरा गई।

तुरंत ही बदहवास सी मयंक की मां मिनी को गोद में लेकर घटना स्थल की ओर दौड़ पड़ी। पूरा घर घबरा गया। मेहमान अफसोस जाहिर करते हुए वापस जाने लगे। जो कुछ ज्यादा खास थे वो साथ हो लिए।

नीना देवी के साथ उनके बहन बहनोई भी हो लिए।

जब तक वो लोग घटना स्थल तक पहुंचे एंबुलेंस भी आ गई। मयंक को बेहोश देख नीना देवी खुद पर काबू न रख सकी। चीख चीख कर रोने लगीं , उनका खुद पर काबू ना रहा, बेसाख्ता ही वो चिलाते हुए कहने लगी, "मयंक तुझे कुछ नहीं हो सकता..! अपने पिता की तरह तू भी मुझे धोखा नहीं दे सकता।" इसी प्रकार कहती हुई फूट फूट कर रोने लगीं । बहन नीता चुप कराने लगी "दीदी मत रोओ मयंक बिल्कुल ठीक हो जायेगा। आप हिम्मत रक्खो।" नीता दीदी के आंसू पोंछे जा रही था साथ ही समझाती भी जा रही थी।

एंबुलेंस में मयंक को रक्खा गया। मयंक के साथ के नीना देवी भी बैठ गईं । जब लोग नियति को भी ले जाने लगे तो उन्होंने विरोध किया और बिफरते हुए बोली की, "इसे घर की गाड़ी से लेकर आओ। इसमें लाने की जरूरत नहीं है। उनका रुख और माहौल देख कर किसी ने भी कुछ कहा तो नही ।

पर किसी ने उनकी नहीं सुनी। नियति की हालत भी गंभीर थी । देर होने पर कुछ भी हो सकता था। वो पुत्र का सर अपनी हाथ से बार बार सहला रही थी। "बेटा तू ठीक हो जायेगा। बेटा ..! तू बिल्कुल ठीक हो जायेगा, घबराना मत।" नियति को छू कर देखना तो दूर उसकी ओर नज़र भी नहीं डाली थी।

नीता बहन की कमी को पूरा कर रही थी। नीता बेशक नियति को भी देख रही थी। मयंक की मां बार बार जल्दी हॉस्पिटल पहुंचाने को बोल रही थीं।

शहर के सबसे बड़े लाइफ लाइन हॉस्पिटल में एडमिट किया गया नियति और मयंक को। डॉक्टर ने इलाज शुरू कर दिया। मयंक का पूरी तरह से चेक अप करने के बाद डॉक्टर ने बताया, "स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर है। मयंक की पूरी बॉडी तो सुरक्षित थी, पर सर के अंदर बहुत गहरी चोट आई थी। और इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी जिसे रोकना बहुत जरूरी था। डॉक्टरों की एक टीम इसी कोशिश में जुटी थी।

नियति को चोट तो बहुत ज्यादा लगी थी, पर उसकी चोट बाहरी थी। वो चोट की अपेक्षा डर से बेहोश हो गई थी। डॉक्टरों के थोड़े से प्रयास के बाद उसे होश आ गया, पर दर्द और मयंक की स्थिति छुपाने के लिए उसे नींद का इंजेक्शन दे कर सुला दिया गया।

इधर मयंक की हालत हर बीतते पल के साथ बिगड़ती चली गई। लाख कोशिश के बाद भी ब्लीडिंग नहीं रुक रही थी। ऑपरेशन में जान का खतरा था, पर और कोई विकल्प ना देख नीना देवी ने ऑपरेशन की इजाजत दे दी। ऑपरेशन स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की टीम ने की। वो सफल भी रहा। अब आगे के चौबीस घंटे भारी थे। नीना देवी एक पल को भी वहां से हटने को तैयार नहीं थी। बेटे से दूर बैठी आईसीयू में निहार रही थी। अनजानी आशंका से उनका दिल बैठा जा रहा था। जैसे उन्हे किसी अनहोनी की आहट पता चल गई हो। मिनी को उन्होंने अपनी बहन के साथ घर भेज दिया था। अब तक नियति के मायके में भी ये खबर पहुंच चुकी थी। उसके मामा और नाना जी मां के साथ आए थे, कुछ देर रुक कर नीना देवी के व्यवहार से आहत हो वापस घर चले गए।

मयंक को तो जैसे जाने का एक बहाना भर चाहिए था। सब कुछ ठीक होने के बाद अचानक सुबह चार बजे उसकी सांसे तेज तेज चलने लगी। नर्स ने अपनी पूरी कोशिश की ना कंट्रोल होने पर"डॉक्टर.. डॉक्टर…" चिल्लाती हुई बाहर की ओर भागी।

बाहर दरवाजे के समीप ही बेंच पर बैठी ऊंघती नीना देवी नर्स की आवाज से उठ कर खड़ी हो गईं और पूछने लगी, "क्या हुआ… नर्स क्या हुआ.. नर्स…."

साथ में रुकी मयंक की मामी चंचल ने नीना को संभालते हुए कहा, "जिज्जी घबराओ नहीं सब ठीक हो जायेगा।"

उनकी बात का बिना कोई जवाब दिए नर्स भागती हुई डॉक्टर के केबिन में चली गई। थोड़ी ही देर बाद डॉक्टर और नर्स दोनो तेज तेज कदमों से आईसीयू में चले गए।

बेड पर मयंक का शरीर निश्चल सा पड़ा हुआ था। तेज चलती सांसे रुक चुकी थी। डॉक्टर ने फिर से चेक किया। कोई हरकत नही थी। डॉक्टर ने पीसीआर दिया, पर कोई फायदा नही हुआ। अब आखिरी विकल्प के रूप में करेंट के शॉक भी दिए। पर इन सब से कभी गई हुई जान भी लौटती है! मायूस से डॉक्टर ने एक लंबी सांस ली और नर्स की ओर देखा। नर्स ने चादर सर तक खींच कर मयंक को ढक दिया। बोझिल कदमों से डॉक्टर बाहर निकले। उनमें मयंक की मां का सामना करने की हिम्मत नही थी। वो काफी समय से इस परिवार के करीब थे।

डॉक्टर के बाहर निकलते ही नीना देवी ने उन्हे घेर लिया, "डॉक्टर ... कैसा है मेरा बेटा? वो ठीक तो है ना...।"

उनके सवालों का कोई जवाब न दे उन्होंने निगाहें झुका ली।

अनजाने डर से नीना देवी कांप उठी, डॉक्टर को झकझोरते हुए बदहवास सी हो गई।

"आई एम सॉरी " कह खुद को छुड़ा डॉक्टर थके कदमों से चले गए। उनके जाने पर नर्स ने दिलासा दिया, "खुद पर काबू रक्खे मैडम अभी आपकी बहू को भी आपको संभालना है। वो भी घायल है।"

इतना सुनते ही वो बिफर उठी, "नाम मत लो उस मनहूस का, ये सब उसकी वजह से हीं हुआ है।