कैब से उतर कर निया और ध्रुव दोनों एक पुराने से अपार्टमेंट के सामने जाकर खड़े हुए।
पुराने सी लगती हुई, नीली–सफ़ेद रंग की उस बिल्डिंग तरफ़ बढ़ कर निया बोली।
"यहां है तुम्हारा घर?"
"हां.. क्यों क्या हुआ?"
"कुछ नहीं, बहुत पुराना सा लग रहा है।", उस अपार्टमेंट में लिफ्ट से चौथे फ्लोर पे जाते हुए निया बोली।
"हां.. जब हमने लिया था, तब तो सही था, अब समय के साथ ऐसा हो गया।"
"बचपन से यहां रहते थे हो?"
"नहीं.. जब शुभम कॉलेज जाने लगा था, तो लिया था ये फ्लैट।"
"शुभम?"
"ओह.. मेरा बड़ा भाई।"
"अच्छा।", निया बोल ही रही थी की ध्रुव ने अपने बैग से चाबी निकालते हुए अपने घर को खोला।
दरवाज़े के साथ सटा कर रखी लकड़ी की टेबल पे जमी धूल से आभास हो रहा था, की वो घर बहुत दिनो से बंद पड़ा हुआ था।
"तू तुम्हरा भाई अब कहीं और रहता है?"
"हां.. जर्मनी।"
"अच्छा.. और ये ऑफिस से दूर है, तो इसलिए तुम भी यहा नहीं रहते।"
"हां.. बस कभी कभी आ जाता हूं।", हाथ में चाबी दिखाते हुए ध्रुव बोला।
वहीं पड़े दराज़ो को खोल खोल कर कुछ ढूंढते हुए ध्रुव बोला।
"तो कैसा है हमारा घर फिर।"
"अच्छा.. है स्वीट सा।"
"हाहा.. मिल गई।", पैन ड्राइव दिखाते हुए वो बोला।
"ये है??", निया उसकी तरफ़ पहुंचते हुए बोली।
"हां.. बस देखे चल भी रही है या नहीं।", ध्रुव फटाफट से अपने फोन में लगा कर देखता है। "चल रही है.. इसमें है सारा डाटा.. चले अब?", ध्रुव निया को बोलता है।
"हां.. चलो।", निया कह कर आगे की ओर बढ़ती है।
दोनों जब बाहर जा रहे होते है, तो एक कैब ढूंढते हुए ध्रुव को निया बोली।
"सुनो ना.. जब हम यहां तक आ गए है, तो यहां पास ही एक शॉप है, जहां के रसगुले बहुत अच्छे है, और पता है रबड़ी जलेबी उससे भी अच्छे है... चले क्या खाने? हमने बहुत बार प्लान बनाया था, जाने का.. पर कभी जा ही नहीं पाए।"
"हा!!", ध्रुव ज्यादा कुछ बोला तो नहीं पर उसके मुंह में आया पानी सब बोल गया।
वहां पहुंच कर ध्रुव और निया ने जहां अपनी मनपसंद की मिठाई खाई और साथ ही रिया और कुनाल से भी पूछा की उन्हें कुछ चाहिए हो तो।
"ओह.. मेरे बिना ही डेट पे चला गया तू!!", कुनाल ने चिड़ाते हुए, अपने लिए भी रबड़ी जलेबी मांगी।
वो दोनो खा कर और खाना पैक करा कर निकले ही थे की देखा की तेज़ बारिश हो रही थी।
"यार कैब नहीं मिल रही कोई.. जो आती है, फटाफट से बुक हो जा रही है।", ध्रुव अपनी एप में देखता हुआ बोला।
"हां.. मैं भी वहीं देख रही हूं।", निया भी अपने फोन में देखते हुए बोली। "यार.. कल मेरी प्रेजेंटेशन भी है, मुझे जल्दी सोना था आज।"
"अब क्या करे फिर?", ध्रुव निया की तरफ़ देखते हुए बोला।
"तुम्हारा पुराना घर यही पास ही है, वहां ही चले क्या। क्या पता वहां से कैब भी जल्दी मिल जाए।"
"हां.. वहां चल सकते है। जब तक कैब नहीं मिलेगी, तब तक वहां आराम कर सकते है", ध्रुव ने बोला।
अपने बैग से लाल रंग का छाता निकाल कर आगे बढ़ कर निया बोली।
"चले फिर।"
"ओए.. कहां जा रही हो.. मेरे पास छाता नहीं है।" ध्रुव अपने माथे पे हाथ रखते हुए निया के पास भागते हुए छाते के अंदर जाता है।
"तुम्हारे उस पीले छाते का क्या हुआ.."
"नहीं है यार.. थोड़ा इधर करो ना.."।
वो दोनो हंसते हंसते आगे बढ़ते है।
"तुमने अपनी पीपीटी बना ली थी क्या?", घर के अंदर जाते हुए ध्रुव ने निया से पूछा।
"कुछ.. कुछ।"
"एक काम कर सकती हो.. वो देना", निया को उसके फोन देने का इशारा करते हुए ध्रुव बोला।
उसका फोन लेकर, उसमें कुछ खोल कर वो बोला।
"ये लो.. इसमें पीपीटी बन जाएगी, अगर करनी हो तो।", अंदर पड़े सोफे को साफ करके बैठी निया को फोन देते हुए बोला।
"मैं भी अभी ऐसा ही कुछ सोच रही थी।", फोन देख कर निया बोली।
ध्रुव ने अंदर अलमारी से दो चादर निकाली। एक सोफे पे बैठी निया को दी और एक खुद लेकर वही सोफे के साइड में रखे हुए गलीचे पे बैठ गया।
कानों में इयरफोन लगाई निया जहां काम करते करते वही सोफे पे बैठे बैठे सो गई।
वहीं साइड में बैठा ध्रुव भी टेबल पे अपना फोन रख के जो मैच देख रहा था, उसी मैच को देखते देखते सो गया।
जैसे ही सुबह सुबह का पहला अलार्म बजने का अहसास हुआ, वैसे ही निया ने अपने पैर सीधे किए और नींद में ही स्नूज़ का बटन दबा दिया।
और लगभग तीन चार बार ऐसे अलार्म बजने के बाद ही, उसकी नींद खुली, और उसे याद आया की वो कहां है।
"ध्रुव.. ध्रुव..", उठते ही अपने साइड में सोफे पे सर रख के सो रहे ध्रुव को उठाते हुए निया बोली।
"क्या है??", चिड़चिड़े लहज़े में ध्रुव ने जवाब दिया।
"देखो तुम्हें नहीं चलना है तो रहने दो, मैं तो भाग रही।", निया ने भी सामने से उससे कहा।
निया ने मुंह धोया, अपना सामना देखा और बैग उठा कर बाहर चल दी।
इस सब में हुई खिटपिट से ध्रुव की भी नींद खुली, और उसे आज के दिन की याद आई।
बिना मुंह धोए ही, अपना बैग उठाते हुए वो निया के पीछे भागा।
"कैब करा ली क्या तुमने।", नीचे उतर कर सामने खड़ी निया ने उसने पूछा।
"हां.. बस आ रही है।"
सारा रास्ता अपना सिर पकड़े बैठी निया, बस ये ही सोची जा रही थी, की उसकी प्रेसनेटेशन का क्या होगा। कल वो लोग 8 बजे घर से निकल गए थे, जबकि ध्रुव की मीटिंग 12 बजे की थी। और आज उसकी 10 बजे की मीटिंग के लिए, उन्हें निकलते निकलते सवा आठ से ऊपर का टाइम हो गया था, जो की आज रास्ता दूर का भी था, और निया के लिए तैयार होना जरूरी भी था।
"भैया कोई शॉर्टकट पता हो, तो वहां से ले चलो.. कुछ भी करके मुझे जल्दी से जल्दी पहुंचना है।"
"फिक्र मत करो हम पहुंच जाएंगे.. कुछ गड़बड़ नहीं होगी।", ध्रुव जिसका मन था की वो वहीं रखे निया के हाथ पे हल्के से अपना हाथ रख के उसे ये समझाये, कुछ हिचकिचा कर अपना हाथ पीछे कर, उसकी मुट्ठी बनाते हुए हुए बोला।