पोने दस बजे के आस पास ऑफिस पहुँची निया, अपने लैपटॉप में पिपीटी ढूंढ कर उसपे काम कर रही होती है, की तभी कॉफी का एक कप लेकर ध्रुव उसके पास आता है।
इससे पहले की वो कुछ बोलता, चंचल भी वहाँ आ जाती है।
“निया, सब तैयारी हो गई ?” कंप्युटर में कुछ कुछ करती निया से चंचल ने पूछा ।
“येस मै"म.. लगभग सब हो गया है।"
“मुझे कोई गड़बड़ नहीं चाहिए आज।"
वेसे तो निया से कोई गड़बड़ नहीं होती है , पर आज चंचल की ये बात सुनकर वो अलग ही परेशान हो गई।
समय होते ही नीतू और बाकी सारे लोग भी वहां आ गए, और बिना ज्यादा कुछ कहते हुए, निया ने अपनी प्रेज़न्टैशन शुरू की।
“हमने इस प्रोजेक्ट को बनाते हुए ये पूरी तरह से ध्यान रखा है, की आपको क्या क्या चाहिए.. और हमारा आइडिया ये है की..”, निया ये बोल कर आगे पेज करती है तो देखती है, की उसकी ऑफिस में बनाई पीपीटी की जगह, उसके शाम में लिए हुए रफ नोट्स खुल गए है।
“एक मिनट..” , ये कह कर वो फटाफट से अपनी बनाई पहले वाली पीपीटी ढूंढती है, पर अभी शायद आखिरी में जब वो अपनी मेल वाली पीपीटी सेव कर रही थी तो उसने पुरानी वाली को हटा कर नई वाली रख ली, और अब जितनी भी जगह ढूंढ रही थी ये ही मिल रही थी।
“अगर कोई दिक्कत है, तो हम मीटिंग बाद में कर सकते है।", नीतू ने बोला ।
“हाँ निया.. बता दो अगर कोई दिक्कत है, तो थोड़ी देर में मिल लेते है।" चंचल ने हल्के गुस्से वाले लहज़े में बोला
“अ.. अ.. नहीं नीतू.. बस 5 मिनट दीजिए।", कुछ याद करके निया बोली। और अपने लैपटॉप पे जाकर फटाफट जो पीपीटी चंचल को कल मेल करी थी वो ओपन करी और समझना शुरू किया।
“.. मेरी पीपीटी की साथ कुछ गड़बड़ हो गई थी, तो जो बदलाव मैने आज सुबह किए, वो उड़ गए। उनके बारे में मैं आपको ऐसे ही बताना चाहती हूँ।", ये बोलते हुए निया अपने कुछ नए सुझावों के बारे में बताती है, और प्रेज़न्टैशन समाप्त करती है।
“बहुत अच्छे, कहना पड़ेगा, दोनों ही टीम बहुत मेहनत कर रही है। अब अगर आप लोग मुझे अपने कामों में कमियाँ निकालने का मौका नहीं दोगे.. तो मुझे और चीजों पे ध्यान देना पड़ेगा। तो इसलिए मैं उम्मीद करती हूं, जो आज हुआ है वो दोबारा नहीं होगा।", निया और उसकी टीम की तारीफ़ करते हुए नीतू ने कहा, और वो वहाँ से चल दी।
“और मुझे उम्मीद है, तुमने अच्छे से सुना की नीतू ने क्या कहा। मुझे बता दो, अगर तुमसे ये काम सही से नहीं होता है, तो मैं किसी और दे दूँगी", निया के सामने हाथ पे हाथ मोड़ कर खड़ी चंचल बोली।
“नहीं मै"म.. मैं ध्यान रखूंगी की आगे से कोई गड़बड़ नहीं होगी।", मुँह लटका कर खड़ी निया बोली।
“होगी तो वो तुम्हारा इस प्रोजेक्ट में आखिरी दिन समझना.. मुझे बोला गया था की तुम गलतियाँ नहीं करती हो और सिर्फ इसलिए मैंने तुम्हें यहाँ आने दिया.. याद रखना वो टाइम जब तुम मुझे मैसेज कर कर के बोला करती थी, की यहाँ बुला लू तुम्हें", चंचल ने आगे बोला।
“वहीं तो नहीं करना याद...”
“ह..ह??”, चंचल ने निया को हैरानी से देखा।
“कुछ नहीं.. मैं ध्यान रखूंगी.. की आगे से कोई गलती ना हो।"
“ठीक है।", निया के ये बोलते ही चंचल वहाँ से चली गई।
और कमरे में अकेली बैठी निया टेबल पे सिर रख के बोली, “कोई गलती ना हो.. भला ऐसा भी कोई होता है..”
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“मुझे पता है की शायद तुम मुझे मारना चाहती होगी.. पर फिर आज शाम देखना है क्या, पहली बारिश का डेटा??”, ध्रुव मैसेज करके निया से पूछता है।
“हाँ.. जब उसके पीछे इतना सब हो गया, तो अब तो देखना बनाता ही है।", निया ने फट से जवाब देते हुए कहा।
“ठीक है.. मिलते है फिर"
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तय समय के अनुसार शाम को निया ध्रुव के घर की घंटी बजाती है, तो कुनाल दरवाज़ा खोलता है।
“हाय निया.. कैसी हो?”
“अच्छी हूँ।", ये बोल कर निया अंदर आती है तो देखती है, की शिपी भी वहीं बैठी होती है।
“मुझे ध्रुव ने बताया जो आज हुआ।"
“अच्छा.. हाँ, वो तो काम के चक्कर में होता रहता है।", कुनाल से ज़्यादा खुद को ये समझाते हुए निया बोली।
“ये क्या? मुझे तो लगा था की तुम्हें ये सब पीना बिल्कुल पसंद नहीं है।", वहाँ पड़ी खाली शराब की बोतल को देखते हुए निया बोली।
“हा.. किसने बोला, तुम्हें ये सब..” कुनाल फट से सफाई देते हुए बोला। "मुझे इन सब से कोई दिक्कत नहीं है।"
“आ गई तुम.. देखे फिर।", अपने कमरे से बाहर आता हुआ ध्रुव बोला।
“क्या देखने वाले हो तुम दोनों?”, इतनी देर से शांत बैठी शिपी बोली।
शिपी के बोलने पे निया का ध्यान उसे जवाब देने से ज्यादा उसकी गोल्डन ड्रेस पे था या फिर वहाँ पड़े गिलास पे।
“काम का कुछ है.. तुम मदद करोगी?”, ध्रुव ने शिपी को जवाब देते हुए कहा।
“हाय..”, निया ने बस ये बोल के बात को समाप्त किया।
“काम.. काम.. फिर से काम, यार ध्रुव तू निया को भी अपनी तरह बनाते जा रहा है। कोई काम नहीं करेगा.. हम बाहर जा रहे है।"
“क्यों?”, ध्रुव और निया कुनाल को देखते हुए बोले।
“नलायक.. एक तो तूने मुझे बताया नहीं.. और ऊपर से अब क्यों बोल रहा है।"
“कहाँ भाई?”, ध्रुव ने पूछा।
“डांस करने..” कुनाल ने खुश होकर बोला।
“क्या.. पागल हो गया है क्या? आज तो वेसे भी वीक ड़े है।"
“हाँ.. तभी तो कह रहे है.. वीक ड़े में पैसे कम खर्च होते है। निया.. अब मना नहीं करना।", निया के पास जाते हुए कुनाल ने कहा।
“छोड़ो कुनाल.. हम चलते है.. तुम्हारे दोस्त बहुत बोरिंग है।", शिपी कुनाल से बोली।
“हाँ.. कुनाल, सही कह रही है ये।", ध्रुव ने सामने से जवाब दिया।
“ओए.. ऐसे खयाल रखोगे तुम अपने दोस्त का?”, ध्रुव के पास खिसकते हुए निया धीरे से बोली।
“तो तुम साथ जाना चाहती हो?”, ध्रुव ने धीरे से पर हल्के गुस्से से निया से पूछा।
“चाहती तो नहीं हूँ.. पर इसकी हरकते देख कर तो ये ही लग रहा है की जाना ही सही रहेगा।"
“हहम्म..”, ध्रुव भी हाँ में गर्दन हिलाता हुआ बोला।
“चल कुनाल... आते है हम भी कपड़े बदल के।