ग्यारह अमावस - 50 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 50



(50)

शिवराम हेगड़े पुलिस टीम के साथ बसरपुर आ गया था। यहाँ आने पर जब वह शांत हुआ तो उसने ठंडे दिमाग से जो कुछ घटा उस पर विचार करना शुरू किया। उसके मन में कई सारे सवाल उभरे। वह उनके जवाब खोजने के लिए आतुर हो गया‌। एसीपी मंदार पात्रा ने उससे कहा था कि अब वह वापस जा सकता है। पर अपने सवालों के जवाब जाने बिना वह वापस नहीं जाना चाहता था। वह एसीपी मंदार पात्रा से मिला और निवेदन किया कि कुछ दिन उसके बसरपुर में ठहरने की व्यवस्था कर दी जाए। एसीपी मंदार पात्रा ने उसकी बात मान ली। इस समय वह अपने सवालों पर विचार करने के लिए ही सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के सामने मौजूद था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को गंभीर देखकर उसने कहा,
"सोचने वाली बात है आकाश कि इतने बड़े केस में अहम जानकारी देने वाला आखिर सामने क्यों नहीं आया। कौन था वो जो इतनी महत्वपूर्ण सूचना देने के बाद पर्दे के पीछे चला गया। इतनी महत्वपूर्ण जानकारी का श्रेय लेने नहीं आया।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे अब शिवराम हेगड़े द्वारा उठाए गए सवाल में उलझ गया था। उसने कहा,
"तुम्हारे आने से पहले मेरे मन में भी यही आया था।"
"आकाश अगर ध्यान दो तो सारा घटनाक्रम इतना आसान और सीधा था। मैं एक खंडहर में जागता हूँ। दीपांकर दास सरकटी लाश के पास खून में सना उस विचित्र स्थिति में मेरे सामने आ जाता है। फिर तुम अपनी टीम के साथ वहाँ पहुँचते हो क्योंकी किसी व्यक्ति ने पर्दे के पीछे रहते हुए तुम्हारी मदद की। तुम्हें उस जगह का पता दिया। इतना बड़ा केस कितनी आसानी से हल हो गया।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे शिवराम हेगड़े की बात पर बड़े ध्यान से विचार कर रहा था। वह सोच रहा था कि सचमुच यह सब पहले से तय मालूम पड़ता है। उसने कहा,
"मैं तुम्हारी बात का मतलब समझ रहा हूंँ। जो घटित हुआ वह अचानक नहीं था। सब उस तरह हुआ जैसे किसी फिल्म में लिखी गई स्क्रिप्ट के हिसाब से होता है।"
"सही समझा तुमने आकाश। असली शैतान तो कहीं बैठा हमें अपने हिसाब से नचा रहा है। वह चाहता है कि पुलिस निश्चिंत हो जाए और वह आगे भी अपना काम करता रहे। इसलिए उसने ही मुझे और दीपांकर दास को उस जगह पर पहुंँचाया। फिर पुलिस को वहाँ पहुंँचने में मदद की। उस शैतान ने मुझे और दीपांकर दास को अपना मोहरा बनाने के लिए कैद कर रखा था।"
इस बातचीत में सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे का ध्यान अपनी चाय से हट गया था। शिवराम हेगड़े ने कहा,
"चाय पिओ आकाश ताकि दिमाग सोचने के लिए तैयार हो। अभी बहुत सी अनसुलझी पहेलियां सुलझानी हैं। जिन सवालों पर हम यहाँ विचार कर रहे हैं उन पर जल्द ही मीडिया भी बात करेगी। शुरुआत बसरपुर के लोकल अखबार से हो गई है। उसमें छपी एक रिपोर्ट में यह सवाल भी उठाया गया है कि एसपी गुरुनूर कौर आखिर कहाँ गायब हो गई। पुलिस ने दीपांकर दास से इस विषय में कोई पूछताछ क्यों नहीं की।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अपनी चाय का घूंट भरकर कहा,
"दीपांकर दास से कुछ समय पहले ही मैंने पूछताछ की थी। वह बहुत उलझन में था। पर मैं उससे एसपी मैडम के बारे में नहीं पूछ पाया।"
"उससे पूछने का कोई लाभ नहीं होता। उसने ना तो मुझे कैद किया था और ना ही एसपी गुरुनूर कौर को। वह तो खुद एक शिकार है। हमें खुद एसपी गुरुनूर कौर का पता करना होगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कुछ सोचकर कहा,
"सही कह रहे हो तुम। हमें एसपी मैडम का पता तो करना ही है। पर एक अहम शख्स और है जो इस केस की महत्वपूर्ण कड़ी है। वह है शुबेंदु। उसका कोई पता नहीं है। तुम्हारे साथ सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह भी था। वह ना जाने कहाँ है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की बात सुनकर शिवराम हेगड़े ने उसे उस रात की सारी घटनाएं बताईं जब वह दीपांकर दास का पीछा करते हुए शांति कुटीर से निकला था। सब बताने के बाद उसने कहा,
"ऐसा हो सकता है कि शैतान ने उसे मार दिया हो।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"पर अगर शैतान ने तुम्हें इस दिन के लिए जीवित रखा था तो उसे क्यों मार दिया।"
उसका सवाल सुनकर शिवराम हेगड़े ने कहा,
"सही बताऊंँ तो कैद में रहने के दौरान यह बात कई बार मेरे मन में आई थी कि अगर मैं जीवित हूँ तो शायद सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को भी किसी और जगह कैद करके रखा गया होगा। पर अब लगता है कि ऐसा नहीं हुआ होगा। नहीं तो वह भी उस जगह मिलता जहाँ मैं मिला था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के मन में एक बात आ रही थी। पर वह उसे कहने में संकोच कर रहा था। फिर उसे लगा कि केस की हर छोटी बात पर विचार करना ज़रूरी है। उसने कहा,
"तुम्हारा कहना है कि उस रात भी जो घटा वह सोचा समझा था। जिस तरह से सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह अचानक गायब हुआ उससे तुम्हें नहीं लगता है कि वह उनके प्लान में शामिल हो।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने एकदम नई आशंका जताई थी। शिवराम हेगड़े ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। कुछ देर सोचने के बाद बोला,
"अब तो लगता है कि इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह उन लोगों का मददगार हो सकता है। उस पर शक ना हो इसलिए पहले उसे मेरे साथ पकड़ा गया। उसके बाद मुझे बेहोश करके उसे मुझसे दूर कर दिया गया।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को एक नया बिंदु मिला था। वह उस पर गौर करने लगा। उसके मन में एक सवाल उठ रहा था। दक्षिणी पहाड़ पर स्थित खंडहर तक एसपी गुरुनूर कौर को सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ही लेकर गया था। अगर वह उन लोगों के साथ मिला हुआ था तो वह एसपी गुरुनूर कौर को उस जगह तक क्यों ले गया था। अपने मन में आई बात उसने शिवराम हेगड़े से कही। शिवराम हेगड़े ने कहा,
"आकाश तुमने भी अच्छी बात उठाई है। पर कुछ तो है। अब मुझे लगता है कि सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह की भूमिका संदिग्ध है। अब हमारे लिए इस केस की असलियत तक पहुँचना आवश्यक है। एसपी गुरुनूर कौर का पता लगाना एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे पहले कि हम पर दोबारा उंगलियां उठनी शुरू हों हमें अब इस केस को सही मायनों में सॉल्व करना होगा।"
वह चलने के लिए खड़ा हुआ। फिर कुछ सोचकर बोला,
"जैसा मैंने तुम्हें बताया था कि शांति कुटीर में रहने के दौरान मैंने ऐसा महसूस किया था कि शुबेंदु का दीपांकर दास पर प्रभाव है। तुम दीपांकर दास से इस बारे में पूछताछ करना।"
यह कहकर शिवराम हेगड़े चला गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे केस के बारे में विचार करने लगा। वह एक बार और दीपांकर दास से शुबेंदु के बारे में बात करना चाहता था। वह एक बार फिर दीपांकर दास के लॉतअप में गया। दीपांकर दास अपने लॉकअप की फर्श पर बैठा था। उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे कुछ देर उसके चेहरे को देखता रहा। दीपांकर दास की आँखें बंद थीं। लेकिन चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"ध्यान लगाकर बैठे हो। मन बहुत अशांत है। होगा भी क्यों नहीं ? जिसने इतने निर्दोष बच्चों की बलि चढ़ाई हो उसके मन में शांति कैसे रह सकती है।"
उसकी बात सुनकर दीपांकर दास ने अपनी आँखें खोलीं। कुछ देर तक वह सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को देखता रहा। उसकी बात सुनकर वह और अधिक परेशान हो गया था। उसने कहा,
"उन पाँच लड़कों को मारने का गुनाह मैं कबूल करता हूंँ। उन्हें मैंने मारा क्योंकी उन्होंने मेरी हंसती खेलती बेटी की ज़िंदगी छीन ली थी। लेकिन मैंने किसी की बलि नहीं चढ़ाई। मेरा दिल इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"तुम्हारे ना मानने से सच्चाई नहीं बदल जाएगी। तुम उस जगह पर खून से सने मिले थे। तुमने खुद माना है कि पहले भी एक दो बार और तुमने खुद को उस हालत में पाया था।"
"सच्चाई वह नहीं है जो पुलिस समझ रही है। उन पाँच लड़कों को मारने की मुझे याद है। मैं बिना किसी पछतावे के स्वीकार करता हूँ कि मैंने उन्हें मारा। लेकिन मुझे बलि चढ़ाने की बिल्कुल भी याद नहीं है। मैं कैसे उस जगह होता था कह नहीं सकता। पर मैंने उन बच्चों की बलि नहीं चढ़ाई है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को उसकी आवाज़ में सच्चाई महसूस हो रही थी। उसने कहा,
"तुमने बसरपुर में सरकटी लाशों के बारे में सुना। खुद को विचित्र सी स्थिति में पाया। तुमने कभी भी सच जानने की कोशिश नहीं की।"
"मैंने शुबेंदु से पूछा था। उसने कहा कि मुझे अचानक दौरा पड़ता है। मुझ पर शैतान सवार हो जाता है। तब मुझे संभालन मुश्किल होता है।"
"तुमने कभी उससे पूछा नहीं कि अचानक दौरा पड़ता है तो बलि का सारा इंतज़ाम कैसे हो जाता है ? बलि चढ़ाए गए बच्चे की सरकटी लाश को कौन पहाड़ी जंगलों में फेंकता है ? शुबेंदु तुम्हें रोकने की कोशिश क्यों नहीं करता था ?
इन सवालों को सुनकर दीपांकर दास और परेशान हो गया। ऐसा लग रहा था कि उसके पास कोई जवाब नहीं है। वह विभ्रम की स्थिति में लग रहा था। ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वह कोई नाटक कर रहा है। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने पूछा,
"तुम्हें शुबेंदु पर पूरा भरोसा है ?"
दीपांकर दास एक बार फिर सोच में पड़ गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"तुम्हें ऐसा नहीं लगता है कि शुबेंदु तुम्हारे साथ कोई खेल खेल रहा था।"
एक बार फिर दीपांकर दास के चेहरे पर विभ्रम की स्थिति दिखाई पड़ने लगी। कुछ देर सोचने के बाद उसने अपना चेहरा अपने दोनों हाथों में छुपा लिया। वह चिल्ला रहा था कि उसे कुछ नहीं मालूम है।