सजा--अनोखी कथा (पार्ट 3) Kishanlal Sharma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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सजा--अनोखी कथा (पार्ट 3)

राधा चली गयी। पर राधव के दिल से नही।वह उसे नही भुला पाया।राधा ने उसकी दूसरी शादी करा तो दी थी।पर वह दूसरी पत्नी सुधा से खुश नही था।कहाँ राधा का निश्चल प्यार।उसका मधुर स्वभाय।कहां सुधा का इर्ष्यालुपन और चिड़चिड़ा स्वभाव।राधा और सुधा में ज़मीन आसमान का अंतर था।यही कारण था कि राघव अपनी दूसरी पत्नी सुधा के साथ सामंजस्य नही बैठा पाया।जैसे प्यार की उसने सुधा से अपेक्षा की थी।वैसा प्यार उसे नही मिला।एक घर मे एक छत के नीचे रहते हुए भी वे खिंचे खिंचे से रहते।
और अब राघव समय निकाल कर जब तब राधा के पास जाने लगा था।महीने डेढ़ महीने बाद वह राधा के पास जा पहुंचता।पहले तो सुधा कुछ नही कहती थी।लेकिन बाद में वह दबी जबान में विरोध करने लगी।और फिर जब भी राघव राधा के पास जाता वह उसका खुल्लम खुल्ला विरोध करने लगी।और यह विरोध धीरे धीरे उग्र रूप धारण करने लगा।राघव ने इसे ईर्ष्या और जलन समझा और इस और ध्यान नही दिया।
और दो वर्ष बाद सुधा गर्भवती हुई।राघव उसका पूरा ख्याल रखने लगा।उसकी देखभाल के लिए एक औरत भी रख ली।और नौ महीने बाद सुधा ने एक बच्चे को जन्म दिया।राधा को जब यह समाचार मिला तो उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा और वह दौड़ी चली आयी।सुधा को अपनी सौतन राधा का वापस आना बिल्कुल रास नहीं आया।सुधा ने अपने मुह से तो कुछ नही कहा?पर नारी के मन के विचार,भावना को औरत खूब अच्छी तरह समझ सकती है राधा ने सुधा के मन के भाव और आंखों की भाषा को पढ़ा और कुछ दिन बाद वापस चली गयी।
राघव ने सोचा था।मां बनने के बाद सुधा के स्वभाव,बोलचाल और व्याहर में परिवर्तन आएगा।लेकिन राघव ने जैसा सोचा था ठीक उसका उल्टा हुआ।उसका विरोध बढ़ता चला गया।दोनो के दाम्पत्य सम्बन्धो में दरार पड़ गयी।जो दिन प्रतिदिन चौड़ी होती चली गयी।धीरे धीरे दाम्पत्य सम्बंधो में पड़ी दरार ने खाई का रूप धारण कर लिया।सुधा लाख रोकती।पर राघव ने राधा के पास जाना नही छोड़ा।
कैसे छोड़ सकता था।राधा उसकी धर्मपत्नी थी।राधा का त्याग बेमिसाल था।कोन औरत ऐसा त्याग कर सकती है।पति की वंशबेल को आगे बढ़ाने के लिए उसने अपना दर्जा सुधा को दे दिया था।कितनी महान थी राधा।पति के लिए दूसरी पत्नी तलाशी और शादी भी कराई थी।ऐसी त्यागमयी नारी और उसकी पत्नी को सौतिया डाह में कैसे त्याग सकता था।
राघव जब भी राधा से मिलने के लिये जाता।सुधा उससे लड़ने झगड़ने लगी।विरोध करने लगी।औरत का सबसे बड़ा हथियार होता है,उसका त्रिया चरित्र।सुधा ने त्रिया चरित्र दिखाकर भी राघव को रोकना चाहा।लेकिन राघव पर उसके त्रिया चरित्र का असर नही पड़ा तो उसने खूंखार शेरनी का रूप धारण कर लिया।और जब राघव नही माना तो उसने धमकी दी,"अगर तुम गए तो अंजाम बुरा होगा।"
राघव ने सुधा की बात को गीदड़ भभकी समझा।औरते ऐसे ही धमकी देती रहती है।यह सोचकर वह चला गया।पति के चले जाने पर सुधा के क्रोध का पारावार न रहा।औरत अपनी जिद्द पर आ जाये तो विवेक शून्य हो जाती है।जिद्द पर आने पर वह कुछ भी कर सकती है।अच्छे बुरे का ज्ञान उसे नही रहता।पति बात न माने तो अपने को अपमानित महसूस करती है।और पति को सबक सिखाने के चक्कर मे उसने अपने तीन वर्ष के बच्चे की हत्या कर दी।औरत जो सृजन करती है,हत्यारिन बन गयी।
लोगो को पता चला तब राघव को बुलाया गया।उन दिनों थाने जगह जगह नही होते थे।लोगो ने पुलिस बुलाने की सलाह दी।
राघव ने सोचा।कानून फांसी की सजा देगा।वह उसे अपराध बोध कराना चाहता था।उसने एक कमरा बनवाया।जाली नुमा जिसमे सुधा को कैद कर दिया।
सुधा गर्भवती थी।बच्चा होते ही उसे राधा को दे दिया।सुधा देखती रहती राधा और राघव प्यार से हंस बोल रहे है।कभी कभी उसका बच्चा खेलते हुए जंगले के पास पहुंच जाता और तोतली जुबान में कहता,"पागल
सुधा अपनी लगाई आग में ही जल रही थी।उसकी कोख से जन्मा बच्चा उसे माँ नही मानता था।फांसी में कुछ क्षण का दुख मिलता लेकिन अब हर पल दुख