उड़ान - 16 ArUu द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उड़ान - 16

"काव्या अब घर चले"
रुद्र ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर पूछा।
"थोड़ी देर और रुकते है ना प्लीज़"
"अच्छा बाबा पर उस पेड़ के नीचे चलते है अब बारिश में भीगना बहुत हुआ"
"ठीक है चलो"
दोनों पेड़ के नीचे जा बैठे। बारिश लगभग रुक सी गयी थी। हल्की सी बुँदे गिर रही थी।
रुद्र ने काव्या का हाथ थाम कर बोला
"काव्या... समझ नहीं आता किस तरह से तुम्हें थैंक्स बोलू। मैने कितना गलत किया तुम्हारे साथ। उसके लिए माफी भी कैसे माँगू और तुम जाने कितनी बार मेरी वजह से जलील हुई। तुम्हें पता है काव्या अगर तुम ना होती तो मैं कभी खुद को नॉर्मल नहीं समझ पाता और ना ही अपने माँ बाबा के कातिल को सजा दिला पाता। "उसने नम आँखों से काव्या से कहा।
काव्या ने मुस्कुराहट के साथ उसे देखा और बोला
" मैं भी तो तुम्हें कितना गलत समझती रही। और वो तो भगवान की मर्ज़ी से उस रात तुम्हारी बातें सुन ली वरना कैसे समझ पाती की जो लड़का बाहर से इतना खडूस बनता है वो अंदर से कितना नाज़ुक है...।"

"अच्छा एक बात बताऊ... तुम जब उस रात मेरे साथ थी न राज के घर... उस रात नींद बड़ी सुकून भरी आयी और जब मै सुबह उठा तो जानती हो तुम वहाँ चेयर पर ही इतनी मासूमियत से सो रही थी की अगर मुझे तुमसे प्यार ना होता ना तो भी उस मासुमियत को देख मैं पिघल गया होता। उस दिन तुम न किसी मासूम परी सी लग रही थी। बहुत खूबसूरत" ।
रुद्र ने काव्या से कहा तो वो शर्म से लाल हो गयी।
उसने कहा
"रात बहुत हो गयी है रुद्र... हमे घर चलना चाहिए"
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सीमा आज सोहन से मिलने जेल गयी।
सोहन उसे देख थोड़ा डर गया।
पर सीमा ने उससे कहा
"डरो मत... जो होना था सो हुआ... पर मुझे बस एक सवाल परेशान कर रहा मै बस उसका जवाब जानने आयी हु"

"पूछो सीमा" सोहन ने लगभग रुआसे हो कर बोला ।
"जब आपको मै पसंद नहीं थी तो अब तक बताया क्यों नहीं... क्यों मेरी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी... मेरी तो कोई गलती नहीं थी। "

"सीमा! आज बस सच कहूँगा और झुठ बोलने की हिम्मत नहीं रही मुझमें।
हाँ ये सच है की मै प्रिया से आज भी बहुत प्यार करता हु... पर रुद्र से उतनी ही नफ़रत।
जब तुम मेरी जिंदगी में आयी तब सब बदल गया था। मेरी प्रिया मुझसे दूर चली गयी।
मै रातों मे अकेला रोता था उसके लिए... वो कच्ची उम्र का प्यार था पर उसका असर मुझ पर रह गया। पर धीरे धीरे तुम्हारे साथ रह कर मुझे तुम अच्छी लगने लगी। पर मै तुम्हें कभी अपनी पत्नी का दर्जा नहीं दे सका। मुझे लगता था जैसे प्रिया मुझे कभी माफ नहीं करेगी। वो मुझे देख रही है। इसलिए मैने तुमसे दूर रहना ही ठीक समझा। पर मुझे तुम्हारी खुशी की परवाह थी। बस इसलिए तो छोटी को तुम्हारी गोद में ला कर दिया। मैने हमेशा कोशिश की तुम्हें हर खुशी दु पर प्रिया का दिल कभी नहीं दुःखा सकता था इसलिए तुमसे दूर रहने लगा और प्रिया के पुराने घर में प्रिया के साथ रहने लगा। मुझे माफ कर दो सीमा।
प्यार और नफ़रत में अंधा हो गया था में। अब मुझे अहसास हुआ कि मैंने कितना बड़ा गुनाह किया है। "
सोहन ने गिड़गिड़ाते हुए सीमा से कहा।
"मैं माफ कर भी दु सोहन पर तुम मुझसे ज्यादा गुनाहगार तो रुद्र के हो... अपने पागलपन में उसे अपने माँ बाप से दूर कर दिया। "
सोहन को जेल में रह अपनी गलती का अहसास हो गया था। जेल में ही चल रहे उसके दिमागी इलाज का भी असर हुआ की उसे अपनी गलतियों का अहसास होने लगा था।
सीमा खुश थी की शायद अब जेल से रिहा हो सोहन उसके साथ प्यार से रहेगा।
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कॉलेज खुल गए थे।
रुद्र और काव्या साथ कॉलेज गए।
उनको साथ देख हर कोई खुशी से मुस्कुरा रहा था।
वो दोनों हाथ पकड़ कर कॉलेज गेट के सामने खड़े थे।

समाप्त।

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प्रिय पाठकों
उड़ान का एक भाग समाप्त हो चुका है
काव्या और रुद्र की दोस्ती के साथ।
पर वक़्त की कमी के कारण मै ये कहानी आगे नहीं बढ़ा सकती।

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निशि की वजह से काव्या कैसे मुसीबत मे फसी?
आगे की जीवन यात्रा काव्या ने कैसे अकेले तय की और कैसे आखिरकार 12 सालों बाद काव्या और रुद्र मिले?
किस तरह बिना किसी सहारे के काव्या ने उड़ान भरी?
और कैसे काव्या की मम्मी उसकी जिंदगी में वापस आयी?
कैसी रही उनकी कॉलेज ट्रिप?
कैसे काव्या और रुद्र की गलत फहमी दूर हुई?
और दोनों शादी के बंधन में बंध गए?
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इन सब सवालों के जवाब आपको उड़ान-2 में मिलेंगे...।
अभी वक़्त की कमी और अपनी जिंदगी को उड़ान देने के लिए ये कहानी बस यही समाप्त करती हुँ।

धन्यवाद।