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उड़ान - 1

आज वह बहुत परेशान थी
आँखे रुहासी जल मग्न थी बहुत अकेला महसूस कर रही थी खुद को। जिंदगी ऐसे मोड़ पर खड़ी थी जहा से मुड़ कर देखना उसके लिए मुश्किल सा हो रहा था । अपने छोटे से कमरे में अकेले बैठे आँसू बहा रही थी। जब कुछ निष्कर्ष न निकाल पायी तो रसोई की तरफ चल दी।
कूकिंग उसका शौक था। जब भी उदास होती तो खाना न बना कर मन हलका कर लेती। पर आज वह इतनी दुखी थी की उसका मन कहीं नहीं लग रहा था। थक हार कर बिस्तर पर सिमट गयी। आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे। जाने कोनसा पल उसके लिए आखरी हो। ऐसा नही था की उसे कोई जानलेवा बीमारी थी पर हा उसका आज जी कर रहा था की वो मर जाए। पर ये मौत भी कितनी निष्ठुर होती है ना। जिसको जरूरत हो उसे नहीं आती और जिसे जरूरत न हो उसे ले जाती है। अपने सबसे अजीज को खो कर वह अब जिंदगी से भी हार गयी थी। बस इतनी चाहत थी उसे की उसे मौत गले लगा ले। पर इतना भी आसान कहाँ था। माँ अक्सर कहा करती थी की भगवान जी सिर्फ अच्छे लोगों को अपने पास बुलाते है... इसलिए ही तो... ये सोच ही रही थी की उसके रूम में उसकी अजीज दोस्त विहानि आ गई। बहुत ख्याल रखती थी विहानि उसका। उसे जब भी किसी की जरूरत होती तो बिना कहे वो हाजिर हो जाती। जाने कैसे जान लेती उसके दिल की बात। क्या पता कौनसे जन्म का पुण्य था की उसे विहानि जैसी दोस्त मिली।
आते ही रोज़ की तरह उसने काव्या काव्या चिलाना शुरू कर दिया। ये उसकी आदत थी या फिर उसे सचेत करने को दी गयी आवाज़। ये तो वही जाने। पर जो भी हो उसकी इस चेतावनी भरी आवाज़ से काव्या हमेशा ख़ुद को संभाल लेती और फिर से खुद को सहज कर लेती। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर विहानि थी की हमेशा उसकी आँखों से ही उसकी उदासी को जान लेती।
आज भी वो कमरे मे गयी तो काव्या एक दम शांत बैठी थी। हँस के उसे अपने पास बैठने को कहा। पर विहानि ने उसकी आँखों में झांक लिया था।
"कुछ हुआ है क्या ? "विहानि ने पूछा
"नही तो मुझे क्या होगा भला"काव्या ने बताया
"उदास लग रही... रो रही थी? "

"हा तेरे जैसी सिर पकाऊ दोस्त रोज़ घर आजाए तो बन्दी रोये भी ना"
हँसते हुए काव्या ने कहा
वो चाहती थी की जोर से उसे गले लग के रो ले पर वो उसे कुछ न कह पायी।
वो बहुत अंतर्मुखी थी। अपने दिल की बात किसी से नहीं कह पाती। पर एक कमी थी उसकी जिसकी वजह से उसे ज्यादा लोग नापसंद करते थे।
हालांकि ऐसा नहीं था की इस बात से वह अनजान थी। पर लाख क़ोशिसो के बाद भी वह खुद को काबू में नही कर पाती
उसे लगता जैसे गुस्से में वह किसी को मार डालेगी।
उसे कभी कभी अपने आप से डर लगने लगता था।
पर खुद को संभाल भी लेती थी।
वह सोच रही थी की भले वह लाख बुरी हो पर इतनी भी नहीं की कोई उसे सम्भाल भी ना पाये। तभी विहानि ने उसका ध्यान तोडा।
"कहा खोयी हो मैडम"
काव्या ने अपने अंदर उमड़ रहे सारे भावो को छिपाते हुए कहा
" आपके मधुर ख्यालों में "
ऐसा सुन के विनी खिल खीला के हँस दी।
काव्या ने उसे देखा
कितनी प्यारी लग रही थी विनी हस्ते हुए । किसी मासूम बच्ची की तरह।
वो उसे निहार ही रही थी की विनी ने फिर से उसे छेडा
"हा बेटा घूर ले आराम से प्यार हो जाए तो शादी भी कर लेना"
" छी छी कहाँ से सीख आती है ऐसी गंदी बाते... अब अपनी सखी को जी भर के देख भी नहीं सकती ।
दोनों इस बात पर खिल खिला के हँस दी पर दोनों अंदर से खामोश थी
विनी जानती थी की कोई बात तो है जो उसे इतना उदास किये है
पर क्या?

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