Circular and emotional features of Malati Madhav books and stories free download online pdf in Hindi

मालती माधव का वृत्तगत एवं भावगत वैशिष्टय

महाकवि भवभूति की उज्जवल काव्य कीर्ति के आधार स्तंभ के रूप में केवल उनकी 3 नाट्य कृतियां ही प्राप्त होती है। इतनी महान प्रतिभा का धनी कवि, केवल तीन नाटकों का प्रणयन करें यह साहित्यिक आश्चर्य का विषय भले ही हो,परंतु इन 3 कृतियों में अपनी काव्यानुभूति की संपूर्ण गहराई ,प्रतिभा की समग्र ऊर्जस्विता प्रदान कर महाकवि भवभूति ने संस्कृत साहित्य में जिस नवीन क्रांति का सूत्रपात किया ,--वह संस्कृत वांग्मय की अमूल्य व अक्षय निधि है। महावीर चरितम्` मालती माधवम् एवं उत्तररामचरितम् ---यह तीऐनों ही कृतियां उनकी जीवन भर की कठिन काव्य साधना की प्रतीक हैं एवं संस्कृत नाटय सृष्टि की अप्रतिम कृतियां है।


महाकवि भवभूति का मालती माधव वस्तुतः संस्कृत नाटक की उस परंपरा को पुनर्जीवित करने का एक ऐतिहासिक प्रयत्न है, जो शूद्रक के मृच्छकटिकम् के बाद मृतप्राय सी होने लगी थी। संस्कृत रूपक की दूसरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधा "प्रकरण" की जो उर्वर परंपरा मृच्छकटिकम् से प्रारंभ हुई उस पर भारतीय नाटककारो ने कदाचित अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। शूद्रक के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रकरण कार के रूप में भवभूति का ही नाम आता है । भवभूति ने अपने प्रकरण मालती माधव को अपनी युगीन परिस्थितियों के अनुकूल ढालने में एक नई कलात्मक चेतना का प्रदर्शन किया है और इसी कारण परिणाम स्वरूप इस प्रकरण को प्रायः वही सम्मान प्राप्त हुआ जो अब तक नाटकों को ही मिलता रहा था।

वृत्त गत वैशिष्टय ----
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मालती माधव के नाट्य वैशिष्ट्य के परीक्षण के क्रम में सर्वप्रथम हमारा ध्यान इसके कथानक वृत्त की अपूर्व योजना पर केंद्रित हो जाता है। कवि के सामने एक निर्दिष्ट लक्ष्य है----


भूम्ना रसानाम् गहना: प्रयोगा:
सौहार्द्रहृदयानि विचेष्टातानि।
औद्धत्यमायोजित कामसूत्र चित्र :
कथा वाचि विधग्ता च ।।( मालती माधव 1/4)

और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह अनुकूल मार्ग बनाने की चेष्टा करता है। उसे एक ही जगह इन समग्र तत्वों को तो निबद्ध करना ही है ,साथ ही उन के माध्यम से वह अपनी वाणी की प्रोढता ,उदारता एवं अर्थ गौरव को भी व्यक्त करने की प्रतिज्ञा करता है।( मालती माधव 17 )कवि इस कठिन कार्य हेतु ऐसे अपूर्व कलात्मक साहस की चुनौती को स्वीकार करता है और अपने विचित्र एवं विविध भावों की सम्यक् अभिव्यक्ति के लिए नाटकीय वृत्त का एक शक्तिशाली प्रासाद खड़ा कर देता है। कवि की यह प्रबल धारणा है कि उसके वृत्त का यह विराट प्रासाद तथा उसके भीतर रमण करने वाली काव्यात्मा मात्र रसिको या विदग्धो के निमित्त संस्थापित है। (मालती माधव 1/6 )इस प्रकार कवि अपनी नाटकीय दक्षता के प्रायः प्रत्येक मूल्य को तो इस कृति में संपुष्ट करना ही चाहता है, ,साथ ही इस प्रयास को वह अपने समकालीन तथा परवर्ती विदग्ध समाज के निकष पर भी खरा उतारना चाहता है। एक साथ इतनी प्रतिज्ञाएं, कला रूपों की इतनी साहस पूर्ण आकांक्षाएं ,इस बात की प्रबल साक्षी हैं कि कवि अपनी वस्तु एवं भाव की अप्रतिम भित्ति के निर्माण में कितना जागरूक है। इन प्रतिक्रियाओं के प्रकाश में मालती माधव को देखने पर वास्तव में हमें उसके विलक्षण वृत्त पर मुग्ध होना पड़ता है।


सामान्यतः संस्कृत नाटकों में" "कहानी कहने "पर उतना बल नहीं दिया जाता जितना किसी "भाव विशेष "के संपोषण पर। किंतु इसके अपवाद स्वरूप मृच्छकटिकम् तथा मालती माधव के कथानको मैं ना केवल नाटकीय भावों की संपुष्टि दिखती है वरन उन भावों को धारण करने वाली कहानी भी अधिक आकर्षक है। अतः इस दृष्टि से मालती माधव की वस्तु योजना भवभूति के अन्य दो नाटकों से विलक्षण ,
वैविध्य पूर्ण तथा अधिक शक्तिशाली है।

मालती माधव के वृत्त भाग पर मृच्छकटिकम् की वस्तु योजना का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होने पर भी दोनों की वस्तुओं की प्रकृति में बहुत भेद है । प्रथम भेद तो नायक एवं नायिकाओं के सामाजिक एवं मानसिक स्तर मैं ही परिलक्षित होता है । माधव और मालती दोनों ही चारुदत्त एवं वसंतसेना की अपेक्षा अधिक गंभीर शीलवान तथा चरित्रनिष्ठ व्यक्ति हैं । निश्चय ही उनके प्रणय -जीवन का धरातल ,बहु पत्नी वादी चारुदत्त तथा उसकी वेश्या प्रणयनी वसंतसेना के अनुराग से बहुत ऊंचा है। भवभूति प्रणय के उद्दाम क्षणों में भी प्रेम का आदर्श नहीं त्यागते । राम और सीता की तो बात ही क्या मालती और माधव जैसे रोमांस प्रिय पात्र भी प्रणय के उच्च आदर्शों पर चलते हैं।

उक्त प्रकरणों में दूसरा बड़ा भेद उनके उप कथानक में लक्षित होता है। वस्तुतः यही वह वस्तु है जो शूद्रक तथा भवभूति को नाट्य रीति के दो अलग-अलग किनारों पर खड़ा कर देती है।
शूद्रक अपनी कृति में समाज के निम्नतम वर्ग को भी प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं परंतु भवभूति प्रकरण के लोक संश्रय होने का अभिप्राय अधिक से अधिक समाज की मध्यम श्रेणी तक जाना ही समझते हैं। अतः इस अर्थ में शूद्रक का लोक जहां अधिक व्यापक एवं संवेदनशील है वही भवभूति का लोक अधिक संकीर्ण एवं आत्म निष्ठ है । इसके पीछे उनका निजी जीवन-दर्शन तथा तत्कालीन साहित्यक प्रवृत्तियां सहायक मानी जा सकती है। वे स्वभाव से ही अधिक गंभीर आत्म निष्ठ एवं आचार वान व्यक्ति थे हास्य विनोद के प्रति जो उनकी स्वाभाविक उदासीनता है उसका प्रतिफलन रौद्र भयानक एवं वीर रस के रूप में हुआ है । विदूषक का अभाव भी इसी का प्रतिफल कहा जा सकता है । प्रायः व्यक्ति के अभ्यांतर भाव अपने अनुरूप ही मानव व्यक्तित्व को ढाल लेते हैं । कला या साहित्य के क्षेत्र में भी यही सत्य दृष्टिगोचर होता है। वृत्त,शैली ,आदि साहित्य के पार्थिव तत्व है और उन्हें देख कर ही हमें साहित्यकार के विशिष्ट भावानुबंधों की गंध प्राप्त हो जाती है। इस दृष्टि से भवभूति की उक्त भाव गत प्रवृत्तियों की प्रबलतम अभिव्यक्ति मालती माधव के ही वृत्त आदि मैं हुई है। भवभूति के दोनों नाटकों की कथावस्तु प्रख्यात होने के कारण वहां उन्हें मनचाहा करने की पूरी छूट नहीं मिल पाई है अतः उसकी पूर्ति उन्होंने मालती माधव के अपूर्व वस्तु-निर्माण में कर दी है जहां वे स्वतंत्रता पूर्वक अपने "स्व "को आकार देने में समर्थ हो सके हैं ,इसीलिए भवभूति तथा उनके काव्य- दर्शन को समझने के लिए मालती माधव सर्वाधिक सहायक सिद्ध होता है।


प्रस्तुत प्रकरण में दो भिन्न वृत्तो को एक अन्विति में लाने तथा गौण वृत की विरोधी एवं समानांतर स्थितियों के द्वारा प्रधान वस्तु के संपोषण की कला से भवभूति भली भाॅति परिचित हैं। प्रकरण के नाटकीय बीज का संबंध देवराज और भूरिवसु के वचन दान से है किंतु आगे चलकर उनका यह निश्चय विकट धर्म संकट में पड़ जाता है । कामंदकी के नाटकीय भूमिका का महत्व इसी में है कि वह अपनी कुशल नीति से अपने दोनों पुराने मित्रों की प्रतिज्ञा को सफल कर देती है तथा बीच में राज बाधा के आ टपकने से एक असंभव सी स्थिति को संभव बना देती है। मालती माधव का गौण वृत्त माधव के परम स्नेही मित्र मकरंद तथा नंदन की बहन मद्यन्तिका के प्रणय- संबंध का आधार लेकर चलता है। इन दोनों वृत्त के तत्वों को जोड़ने तथा उन्हें एकात्म भाव में परिणत करने के उद्देश्य से ही कवि ने कामन्दकी को अवतरित किया है जो प्रारंभ से अंत तक नाटकीय वृत्त एवं भाव पर छाई रहती है उसकी नीतियां बड़ी प्रवीणता एवं शक्ति के साथ घटना चक्र के प्रायः प्रत्येक संदभॅ में गतिशील रहती है। कामंदिकी जैसी बौद्ध पात्र को यहां जिस महत्वपूर्ण भूमिका में उतारा गया है वह सर्वथा अपूर्व है। संस्कृत के संपूर्ण नाटक साहित्य में किसी नारी चरित्र को इतनी महत्व की भूमिका नहीं दी गई है इस दृष्टि से भी कामन्दकी की सृष्टि भवभूति की अनुपम उपलब्धि है।


वृत्त के अंतरंग एवं बहिरंग के परीक्षण से स्पष्ट होता है कि नाटककार ने अपने वस्तु तत्व के अपेक्षाकृत सरल रूप को अधिकाधिक जटिल बना कर नाटकीय संवेग प्रदान करने में बड़ी सफलता प्राप्त की है। संपूर्ण प्रकरण में तीन बड़े नाटकीय मोड आए हैं जो घटना चक्र की दिशा मोड़ कर दर्शकों के औत्सुक्य भाव की सृष्टि में परम सहायक सिद्ध हुए हैं । इनमें पहला मोड़ वहां दिखाई देता है जहां चतुर्थ अंक में माधव एवं मालती के परस्पर अनुरक्त हृदय को नंदन के साथ मालती के भावी विवाह की सूचना से गहरी ठेस पहुंचती है। (मालती माधव 4/3) दूसरा मोड़ वहां आता है जहां छठवें अंक मैं कामन्दकी मालती और माधव को परिणय सूत्र में बांधने में समर्थ होती है और मकरंद को मालती का वेश धारण करके नंदन के घर जाने का आदेश देती है। (मालती माधव प्रश्ठ15 8 --1 60 )तीसरा मोड़ वहां दृष्टव्य है जहां अष्टम अंक में अघोर घंट की शिष्या कपालकुंडला मालती को अकेली पाकर उसका अपहरण करती है। (मालती माधव 8/8 )यह तीनों ही नाटकीय कार्य व्यापार के विकास की दृष्टि से बड़े महत्व के मोड़ सिद्ध होते हैं।
मालती माधव में वस्तुतः कोई सुदृढ़ पुरानी परंपरा पर आधारित व्यवस्था न होने के कारण कवि ने अपने कार्य को अधिक मुक्तता के साथ ग्रहण किया है । कला गत इस खुली दृष्टि का स्वस्थ प्रभाव मालती माधव के वृत्त ,चरित्र ,भाव आदि सब में एक नवीन आस्वादनीयता एवं स्फूर्ति उत्पन्न करता है ।
मालती माधव की विशिष्ट नाटकीय विधा का महत्व इसलिए भी विशेष हो जाता है कि वह प्रकरण के क्षेत्र में शूद्रक के मृच्छकटिकम् के बाद एक नई क्रांति है, कुछ नए नाटकीय मूल्यों को स्थापित करने का एक नया साहस है।

भाव गत वैशिष्टय
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जहां तक मालती माधव के भावात्मक सौंदर्य का संबंध है वहां भी भवभूति का नया दृष्टिकोण सामने आता है। इस प्रकरण के दोनों समानांतर वृत्त मै मूल भाव "रति "ही है । प्रेम के आवेगो तथा उसके मनोविज्ञान को प्रकट करने में भी भवभूति की भाषा उतनी ही समर्थ दिखाई देती है ,जितनी उनकी पैनी जीवन दृष्टि। प्रेम के आदर्शों तथा गाहॅस्थ सुख के रहस्यों की जितनी पकड़ भवभूति को है ,उतनी कदाचित संस्कृत के किसी दूसरे कवि को नहीं। उनका श्रंगार -भाव प्रणय की मर्यादा तथा सामाजिक आदर्शों से कतरा कर कभी नहीं चलता। वे श्रंगार के चरम रूपों की पृष्ठभूमि में भी पुरुषों एवं नारी के सामाजिक दायित्वों को नहीं भूलाते। कामंदकी ने भी प्रेम का यथार्थ उत्कर्ष-- दांपत्य में ही माना है (मालती माधव 6 /18 )किंतु सामाजिक नियमों का भी वहीं तक महत्व है जहां तक वह मानव ह्रदय की स्वाभाविक वृत्तियो के संयमक बने रहे, विरोधी न हो। प्रेम का पवित्र भाव जीवन की स्वस्थ परंपरा को गतिशील रखने तथा दो ह्रदयो के मर्म तंतुओं को एकीभूत बनाने के लिए एक स्वर्गीय वरदान की तरह होता है ,किंतु यही प्रेम यदि सामाजिक आदर्शों की अवहेलना करता है तो वह मर्यादा विहीन हो जाता है। इन दोनों छोरों के बीच प्रेम की संतुलन पूर्ण स्थिति मैं ही भवभूति विश्वास करते हैं। भवभूति के पावन प्रेम -भाव की एक दूसरी विशेषता है अनन्य एवं एकनिष्ठ अनुराग । इस दृष्टि से माधव एवं मालती का प्रणय- जीवन ,वस्तु एवं अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टि से कवि की मौलिक एवं भव्य सृष्टि है। भवभूति से पूर्व शूद्रक एवं कालिदास ने अपने पात्रों की बहु -पत्नी वादी प्रेम -दृष्टि को भी दांपत्य की पवित्रता, मर्यादा एवं शालीनता देनी चाही है, परंतु माधव एवं मालती के माध्यम से भवभूति ने उक्त सभी चरित्रों की प्रेम दृष्टि पर गहरा व्यंग किया है सच्चे प्रेम के भाव विकेंद्रित नहीं हो सकते ,वे एक ही केंद्र की रागात्मक सत्ता के प्रति समर्पित होते हैं ।उनकी सच्चाई एवं औदात्य का निकष ,समर्पण की यही एकनिष्ठ संचेतना होती है। भवभूति अपनी कलाकृतियों में आद्यंत इसी भाव को निरूपण करते हैं मालती माधव के परस्पर अनुराग का एक वैशिष्टय तो उनका यह भावत्मक संयम है, जो उनके प्रेम भाव को एक निष्ठता प्रदान करता है और दूसरा वैशिष्ठय उसकी सामाजिक एवं पारिवारिक चेतना है। यही उनके प्रेम -दर्शन का मंगलमय रूप है ,तथा प्रेम- संबंध का कमनीय परिमार्जन है । भवभूति अपने पात्रों के परस्पर रागात्मक आकर्षण को इतना ऊंचा भी नहीं उठाना चाहते कि वह अलौकिक सा दिखने लगे । उनकी कलात्मक विशेषता इसमें है कि उनके प्रेम के सभी आदर्श मानवीय संस्पर्श से सहेजें हुए हैं। धर्म, परिवार एवं समाज इन सबके साथ अपने सहज संतुलन की रक्षा करते हुए उनके प्रेम का स्वरूप इतना मॅज जाता है कि वह लोक -जीवन की सीमाओं में आबद्ध हो कर भी निखर उठता है।

भवभूति ने मालती माधव के प्रेम जगत में संयम को भी विशेष प्रधानता दी है। माधव के प्रति प्रबल आकर्षण होते हुए भी मालती अंत तक अपने को संयमित किए रहती है ,यही उनके ऋजु नारीत्व की उदात्त मोहिनी है, जिसकी सृष्टि में भवभूति अधिक जागरूक दिखाई देते हैं। मालती के इस भावात्मक संयम के ठीक विपरीत मद्यन्तिका का चरित्र निरूपित हुआ है। वह प्रणय प्रस्ताव को बिना कुछ सोचे सहर्ष स्वीकार कर लेती है ,यहां तक कि वह अपने कौटुंबिक जीवन की मर्यादा को लांघ कर उसके साथ चोरी-छिपे भाग निकलती है। ऐसे पात्रों तथा जीवन की विषम परिस्थितियों के ऐसे तीव्र विरोधो के बीच खड़ी मालती और भी अधिक उन्नत दिखने लगती है। प्रेम के उद्दाम आवेगो से आविष्ट रहने पर भी उसके सलज्ज, धर्मभीरू एवं संयम परायण नारी व्यक्तित्व का जादू प्रकरण के दूसरेसभी भावों पर हावी हो जाता है। इस प्रकार उत्तररामचरित में भवभूति जहां करुणा जैसे भावों के चित्रण में सिद्धहस्त हैं उसी प्रकार मालती माधव को प्रेम भाव की गहनता से भारतीय नारी चित्रण की प्रभविष्णुता एवं महिमा से मंडित कर दिया है। यही आचार्य भवभूति की अपनी अनोखी विशेषता है। वस्तुतः उनका नाट्य साहित्य कुछ ऐसा ही है मानो सुकुमार भावों के साथ सुशीलता जुड़ी हो, मानसिक मृदुता के साथ चारित्रिक दृढ़ता सजी हो , गहन अंतर वेदना के साथ प्रेम संजोया गया हो, अपार वैभव के संग विपुल वैराग्य गुॅथा हो। संभवतः विश्व -साहित्य ऐसा पुनः न सॅजो सके।



प्रस्तुतकर्ता
डॉ श्रीमती ललित किशोरी शर्मा
सेवानिवृत्त प्राध्यापक
शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महाविद्यालय
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)


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