उड़ान Manisha Agarwal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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उड़ान

मेरा नाम‌ मिनी है। मैं राजस्थान के एक छोटे से गांव की रहने वाली हूं। मैं बचपन से ही कम बोलने वाली शांत रहने वाली लड़की हूं। मेरी एक आदत थी कि मैं अपनी बातें दूसरों से नहीं कह पाती थी। मैं हमेशा सोचती और सोच कर बस अपने मन में ही रख लेती। मेरी एक और खासियत थी कि मैं कम बातों में ही अपनी सारी बातें दूसरों को समझा दिया करते थी। पढ़ाई में मैं एक एवरेज सी स्टूडेंट थी। 10th क्लास तक पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी बस मेरा मकसद सिर्फ पास होना था। मेरी कुछ खूबियों में एक खूबी यह थी कि मुझे डांस गाना बहुत पसंद था । कैरियर जैसी चीजों में अपना समय बर्बाद करना पता नहीं करती थी मुझे लगता था कि जिंदगी जीने का नाम है सीखने का नाम है जिसके लिए किताबों की जरूरत नहीं है तो हम वैसे भी सीख सकते हैं। मैं अक्सर फिलॉसफी भरी बातें क्या करती थी। मैं कुछ ज्यादा ही गहराई मैं सोचते थी। कब मुझे अकेले रहना पसंद आने लगा मुझे समझ में नहीं आया और कब मैं डिप्रेशन में चली गई कुछ पता ही नहीं चला पर कहते हैं ना कि जो होता है अच्छे के लिए होता है जब मैं डिप्रेशन मैं गई तब मुझे किताबों से दोस्ती करने का मौका मिला और यह किताबें कब मेरी बेस्ट फ्रेंड बन गई मुझे पता ही नहीं चला मैं कब इन किताबों से नजदीकियां बढ़ाने लगी और अपना करियर अपना फ्यूचर इनमें देखने लगी मुझे पता ही नहीं चला । यही से मेरे सपनों की उड़ान शुरू होती है।
यह तो आप जान चुके कि किस तरीके से पढ़ाई में मेरी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी सीखना और उन्हें अपने जीवन में उतारना हि मेरा सपना बन गया।
जब मैंने 12वीं के एग्जाम दिए तब रिजल्ट आने से पहले मैंने अचानक यूं ही अपने भविष्य के बारे में सोचना शुरू किया और उसी दिन मेरा फोन आया था जिसमें मैंने पहली बार यूट्यूब खोलो और उसमें जो पहला वीडियो मैंने देखा वह था आईएएस ऑफिसर टीना डाबी का मुझे नहीं पता था तब तक की आईएस का मतलब क्या होता है पर दिमाग में दिल से आवाज आई की चाहे यह जो भी नौकरी हूं चाहे छोटी हो या बड़ी मुझे तो यही करनी है और जाने अनजाने उसे दिन से मैंने आईएस के सपने को अपना बना लिया
था।
और उसी दिन पर मैंने पूरी तरह इस सफर को यह मान लिया था कि चाहे जितना भी मुश्किल क्यों ना हो मुझे इसे करना ही है उसी दिन से मैंने इसके बारे में जानना शुरू किया 2 साल तक मेरे फर्स्ट ईयर और सेकंड ईयर तक मैंने इसके बारे में खूब जाना खूब समझा और यह पाया की चाहिए सफर कितना भी मुश्किल हो मुझे करना ही है।
अपने कॉलेज के फाइनल ईयर से मैंने इस सफर की और अपना पहला कदम बढ़ाए तारीख 13 मार्च 2020 जब मैंने इस सफर की शुरुआत की मुझे आज भी याद है यह सफर मेरे लिए इतना आसान नहीं था।
मैंने अपने से सफर की शुरुआत की थी। तब मेरे सामने बहुत से चैलेंज थे। मुझे नहीं पता था कि मैं कहां से शुरुआत करूं क्या करूं क्या करूं क्या ना करूं क्या पढ़ो क्या ना पड़े बस इतना पता था कि जहां से जो समझ आ रहा है वह करती जान जो सफर शुरू किया है बस उस पर चलती जान मंजिल अपने आप मिल जाएगी पर मैं गलत थे यह शायद कुछ हद तक सही थी मैंने सफर पर चलना तो शुरू कर दिया था पर मुझे नहीं पता था किन कठिनाइयों से कैसे पार पाउ । मैं जिस गांव से थी वहां नार्मल किताबे की मिल पाना मुश्किल था ऊपर से क्या क्या पढ़ो क्या ना करूं कुछ समझ नहीं आ रहा था मैंने जो किताबें मिली उनसे पढ़ना शुरू किया जितना समझ आया अपना समझा यूट्यूब से सीखने की कोशिश की पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाई। 1 साल तक मैंने अपने दम पर कितना पढ़ सकती थी जितना समझ सकती थी उतना समझे मुझे पता था एक समय के बाद मुझे गाइडेंस की जरूरत पड़ेगी ही। चाहे फिर वह किसी कोचिंग इंस्टिट्यूट से हो या किसी बड़े से मेरे पूरे संघर्ष में मैंने कभी भी कोचिंग के बारे में नहीं सोचा था ईसलिए ईस कोचिंग का ख्याल मेरे लिए नया सा था जिसने मुझे एक नई कशमकश मैं डाल दिया था मैं जानती थी मेरे परिवार की फाइनल कंडीशन इतनी अच्छी नहीं है कि मुझे सपने को पूरा करने के लिए वह मदद कर सके दूसरी दिक्कत सामाजिक स्तर पर थी की एक लड़की को कैसे किसी दूसरे शहर में पढ़ने के लिए अकेले भेजे यह सच था कि मेरे हौसले बहुत बड़े थे मुझे लगता था कि मैं कुछ भी कर सकती हूं अकेले रह कर सकती हूं । पर सच्चाई तो यह थी कि मैं कभी भी अपने इस छोटे से गांव के बाहर गई नहीं थी मुझे नहीं पता था कि शहरों का चलन कैसा है । मैं शायद वास्तविकता से कोसों दूर थे इसीलिए मैं कोचिंग ज्वाइन करने जोकि आईपीएस आईएएस जैसे सपने पूरे करने का एक बड़ा हब था वहां जा पाने मे सक्षम नहीं थी । 1 साल की पढ़ाई तो ठीक थी मैंने बहुत कुछ सीखा बहुत कुछ पाया और अभी भी मेरी मंजिल मुझसे बहुत दूर थी मुझे अब समय गवाही अपने लिए एक बेहतर मेंटर ढूंढना था। मेरी सबसे बड़ी दिक्कत यह थे की मेरे आस-पास या मेरे परिवार में थे ऐसा कोई नहीं था जिससे मैं के बारे में राय ले सकूं इस सफर को तय करने में हमें बाकी कोई परेशानी मेरे एक ऐसी परेशानी से भी तो जाना पड़ता है जहां हमें मेंटल सपोर्ट की जरूरत पड़ती है जहां हमें पैसों या किसी और चीज के बाजार के बजाय टेबल दिमागी मानसिक तौर पर हमारा हौसला बनाने वाले चाहिए होते हैं मैं यह तो नहीं बता सकते कि मेरे पास ऐसा कोई था या नहीं इतना जरूर कह सकते हो कि इस सफर को पूरा करने में मेरे परिवार वाले जितना सहयोग कर सकते उन्होंने किया मुझे मम्मी पापा ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे पर फिर भी उन्होंने मेरे लिए जितना करने की कोशिश की वह सराहनीय है मुझे बहन भाई जितना सपोर्ट कर सकते थे उन्होंने किया । जैसा कि मैंने बताया कि इस सफर में हमें मानसिक पराव से गुजारना पड़ता है उस वक्त हमारे लिए एक बेहतर मेंटर की जरूरत तो पड़ती ही है। पर मेरे पास मेंटर की बहुत ज्यादा कमी थी मुझे नही पता था कि अब मुझे क्या करना चाहिए।
धीरे धीरे मैं अपने बनाई हुई दीवारों में ही कहीं खो गई थी मुझे नहीं पता था कि मैं यूं अवसाद में चली जाऊंगी 1 साल तक तो सब ठीक था उसके बाद लगभग 4 से 5 महीने मैंने अपनी पढ़ाई में देने की कोशिश थी कि पर मैं किस दलदल में फंसती चली गई मुझे पता ही नहीं चला सही गाइडेंस के अभाव में मैं ढेरों किताबों के बोज तले दबती चली गई। और कब अवसाद में चली गई पता ही नहीं चला न जाने क्यों मुझे लगने लगा कि मैं एक असफल विद्यार्थी हूं। कहते हैं कि जितने कदम अपनी मंजिल की ओर बढ़ाने पड़ते हैं उतने ही वापस आने के लिए भी बनाने पड़ते हैं मेरा भी हाल ही था मैंने जितने कदम इस सफर में चले थे उसने कि मुझे वापस लौटने के लिए भी उठाने पड़े इस सफर में मुझे पढ़ने लिखने की दिनचर्या के हिसाब से चलने की जो आदत पड़ चुकी थी इस कदम को वापस लेते जाते वक्त मुझे अकेले ही तय करनी पड़ रही थी क्योंकि इस सफर में अब केवल अकेलापन और सूनापन था डिप्रेशन की वजह से भी मुझे हर वक्त अकेलापन लगता था मैं नहीं जानती थी कि मैं कैसे इस सफर में वापस आए। आज लगभग 8 महीने बाद पूरी तरीके से मैं वापस अपनी पुरानी जिंदगी में नहीं लौट पाई हूं।
मेरा यह सफर मुझे बहुत कुछ सिखा कर दिखाकर गया है कितने सबसे बड़ी सीख यह है कि मंजिल तक पहुंचने की बजाए सफर का मजा लेना चाहिए क्योंकि मंजिल तो हर बार बदलती रहती है पर यह रास्ते हर बार हर मंजिल में हर सफर में कुछ ना कुछ सिखाकर ही जाते हैं।
यह सच है कि मैं अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाए पर एक यह भी है कि भले ही मुझे मंजिल ना मिली हो मेरे पास सुनाने के लिए मेरा अपना अनुभव है मेरी अपनी एक कहानी है जिसे मैं आप सभी के साथ बांट रही हूं
मैं जानती हूं कि आप यही सोच रहे होंगे एक फेलियर तुम क्या सीख सकते हैं सच तो यह है एक सफल व्यक्ति असफलता का कारण बता सकता है उतना एक सफल व्यक्ति अपनी सफलता के बारे में उतना नहीं बता सकता।
अपने लक्ष्य को निर्धारित करने से लेकर लक्ष्य तक पहुंचने तक हम सब के पास एक चीज कामन होती है वह है हमारे अनुभव हमारी कहानियां मैं भी उन्हीं में से एक हूं आपके साथ दिल से साझा करने की कोशिश की है।
उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी।

By Manisha Agarwal
Manishaagarwal850@gmail.com