ज़िंदगी के इंद्रधनुषी रंग kirti chaturvedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ज़िंदगी के इंद्रधनुषी रंग

कहते हैं कि होई वही जो रब रची राखा। कभी—कभी ज़िंदगी में ऐसे लम्हे गुजरतें हैं कि पता ही नहीं होता कि ज़िंदगी किस ओर करवट लेगी। हम सोचते हैं कि हमारी ज़िंदगी के फैसले हम ले रहे होते हैं। मगर विधाता ने तो कुछ और ही करिशमा कर दिखाना होता है और यकीन करिए कि विधाता के फैसले हमारे फैसलों से बेहतर होते है और इंसान की तकदीर बदल देते है।
मानसी की मोबाइल की बेल से नींद खुली तो देखा सुबह के आठ बज रहे है। सुबह का समय यूं भी पंख लगाकर उड़ जाता है। वह जल्दी से तैयार होकर दफ्तर के लिए निकल गई। मानसी एमबीए करने के बाद बैंगलोर की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब कर रही थी। उसकी फैमिली दिल्ली में रह रही थी। पापा रिटायर्ड आईएएस और मां हाउसवाइफ थी। बड़ा भाई संदल इंडियन एयरलाइंस में पायलेट था। जॉब की वजह से मानसी पापा के दोस्त कर्नल रणपीर सिंह के यहा रह रही थी। मानसी दफ्तर पहुंचकर काम में व्यस्त हो गई। थोड़ी देर बाद उसके एमडी सागर वर्मा का इंटरकाम पर कॉल आया। वे बोले मानसी प्लीज कम इन मॉय चैंबर, आई वांट डिस्कस समथिंग विथ यू। मानसी बोली ओके सर आई एम कमिंग।
उसके एमडी बहुत ही भले व्यक्ति थे। जो मानसी से पुत्रीवत स्नेह भी करते थे। जब वह सर के पास गई तो वे रोज की अपेक्षा आज ज्यादा ही खुश नज़र आए। वे मुस्कुराते हुए बोले कम मानसी कम प्लीज हैव ए सीट, यू नो आई एम वैरी हैपी टुडे, बिकॉज टुमारो इज माय सन पलाश इज कमिंग टू इंडिया बाई यूएसए। मानसी ने जवाब दिया कि सर ये तो बहुत खुशी की बात है। सागर वर्मा ने कहा हां मानसी जब पलाश दस साल का ही था जब उसकी मां कैंसर से चल बसी। उसके नाना—नानी उसे अपने साथ अमेरिका ले गए। स्कूल की छुट्टियों में कभी पलाश यहां आता रहा और कभी में वहां जाता रहा। पलाश की मां नताशा को में कभी भुला नहीं सका इसलिए सबके बहुत कहने के बाद भी मैंने दूसरी शादी का ख्याल भी अपने मन में नहीं लाया। बस मैंने कामकाज में अपने को भुला दिया। उसके नाना—नानी भी गुज़र गए। अब मेरी यही ख्वाहिश है कि पलाश भारत की किसी योग्य कन्या से विवाह कर ले तो मेरी जिम्मेदारी पूरी हो जाए। कहकर सर चुप हो गए। मानसी उन्हें बड़े गौर से सुन रही थी और सोच रही थी कि इस सौम्य चेहरे के पीछे कितना दर्द छिपा हुआ है। वह बोली सर डोंट परी सब ठीक हो जाएगा। भगवान आपकी सब खुशियां लौटाएंगे। पलाश जी के आने ओर आपके काम में हाथ बंटाने से सब ठीक रहेगा। आपका अकेलापन भी दूर होगा आपको अच्छा लगेगा।
उसके बाद मानसी का मन उस दिन काम में नहीं लगा उसे बार—बार सर की बातें याद आती रही। शाम को घर पर कर्नल अंकल की बेटी प्राची उसका इंतजार कर रही थी। प्राची मेडिकल फाइनल इयर में थी। दोनों ही हमउम्र थी और प्राची का विवाह संदल के साथ उसके एक्जाम के बाद होना तय हुआ था। दोनों सहेलियां जब तक अपनी दिन भर की सारी बातें शेयर ना करें उन्हें चैन नहीं मिलता था।
दूसरे दिन आफिस में सर ने उसका परिचय एक आकर्षक युवक से करवाया। जो सर की तरह ही सौम्य और सरल था। वर्माजी ने हसंते हुए कहा बस मानसी अब में टेंशन फ्री हूं मेरा काम मेरा बेटा संभालेगा। इस पर पलाश ने स्माइल देते हुए कहा कि आफकोर्स पापा बस मेरे फ्रेंड्स का ग्रुप नेक्स्ट वीक इंडिया घूमने आ रहा है। इंडिया टूर कंप्लीट करते ही आई विल ज्वाइन यू। सर ने कहा कि ओके—ओके जब मर्जी हो। पर अब सब देखना तुम्हीं को है। दो दिन बाद सर ने उसे बुलाया और कहा कि जापान से जो डेलीगेशन आया है। उनके साथ प्रोजेक्ट की मीटिंग मैसूर में है। मुझे हरारत महसूस हो रही है। आई वांट टेक सम रेस्ट, पलाश विल गोइंग विथ यू। तुम प्रोजेक्ट फाइल्स और मीटिंग पेपर्स कलेक्ट कर लेना। मीटिंग के बाद डेलीगेशन और पलाश को एक दिन साइट सीन करा देना और वापिस आ जाना। बल्कि आफिस कार कल तुम्हें घर से पिक कर लेगी। मानसी ने कहा ठीक है सर जैसा आप कह रहे हैं हो जाएगा।
अगले दिन मानसी रेडी होकर सर के घर गई। वहां पलाश को रेडी होने में टाइम था। एमडी सर ने उसके लिए कॉफी बुलवाई और उससे मीटिंग के बारे में बात करने लगे। अचानक ही वे बहुत सर्द लहजे में बोले कि जो इंसान चाहता है वो पूरा क्यों नहीं हो सकता। कल रात मेरी बात पलाश से हुई वो मेरी बात मानने को राजी नहीं है और कनाडा की एक सिटीजन मार्गरेट से शादी करना चाहता है। इतने में ही पलाश आ गए और सर की बात अधूरी ही रह गई।
पूरे रास्ते में पलाश अपने मोबाइल पर ही बिजी रहे। उनके बीच सिटी और मौसम के अलावा कोई बात नहीं हुई। मानसी पलाश के बारे में सोचती रही कि ये कितने लापरवाह इंसान हैं। जिन्हें अपने पापा की भावनाओं से मतलब ही नहीं है। शायद पलाश को नहीं पता कि विवाह दो संस्कारों के मेल का वह पवित्र बंधन है जिसे जिंदगी भर विश्वास की डोर के साथ स्नेहपूर्वक निभाना होता है। मगर इसमें इनकी भी गलती नहीं है क्योंकि विदेशी सभ्यता और परिवेश है ही ऐसा कि यदि कोई वहां रच बस गया तो वह यहां के रीति—रिवाज के बंधनों में जकड़न महसूस करता है। वहां के स्वतंत्र जीवन जीने का आदी बन जाता है। इतने में मैसूर गेस्टहाउस आ गया था तो फिर मानसी के विचारों की श्रंखला टूट गई।
उन दोनों के लिए कंपनी गेस्टहाउस में रूम रिर्जव थे। शाम को डेलीगेशन के साथ मीटिंग और डिनर था। मीटिंग में मानसी ने पलाश को सबसे मिलवाया। फिर कंपनी पॉलिसी, इन्वेस्टमेंट बिजनेस प्लान और सेल्स और प्रमोशन की बात होती रही। डेलीगेशन कंपनी की प्रोग्रेस से बहुत खुश था। नए एमओयू और एग्रीमेंट साइन किए गए। डिनर के बाद सब सोने चले गए। अगले दिन सबका घूमने का प्रोग्राम था।
अगले दिन वाडियार पैलेस, आर्ट गैलरी और टीपू सुल्तान का समर पैलेस घूमने में समय व्यतीत हो गया। वृंदावन गॉर्डन जाने में समय लगता इसलिए उसे अगली बार के लिए छोड़ दिया गया। इस बार बैंगलोर लौटते समय तक पलाश मानसी से खुल गया था। वह उसे यूएसए और मार्गरेट के बारे में बताता रहा। मोबाइल में दोस्तों की पिक्स भी दिखाई। जिनमें मार्गरेट भी अत्याधुनिक पोशाकों में नज़र आ रही थी। खैर मानसी ने सर को लौटकर मीटिंग की सक्सेज रिपोर्ट दी। उसके बाद आफिस में दो दिनों का वीकएंड था। उसे एंजाय करने के लिए मानसी ओर प्राची के पास बहुत सारे प्लान आलरेडी बने हुए थे।
शाम को सर का मोबाइल आया बोले तुम और प्राची दोनों इनवाइटेड हो डिनर के लिए। आज पलाश के दोस्तों के आने की खुशी में होटल अशोका में सेलिब्रेशन पार्टी रखी है। शाम को मानसी ने नेव्यू ब्लू कलर की मैसूर सिल्क की साड़ी सफेद पर्ल सेट के साथ पहनी जो उस पर खूब फब रही थी। प्राची उसे खूब परेशान कर रही थी कि उफ्फ ये हुस्न और नज़ाकत आज बिजली कहां पर गिरने जा रही है। मानसी ने कहा कहीं नहीं हुजूर, देखो तुम मुझे परेशान करोगी तो में अकेली ही चली जाउंगी। मानसी और प्राची जब वहां गई तो पार्टी शुरू हो चुकी थी। सर और पलाश पार्टी में मेहमान नवाज़ी में व्यस्त थे। पलाश ने प्रशंसाात्मक नज़रों से मानसी को निहारा जरूर, मगर कहा कुछ नहीं। मानसी ने वहां मार्गरेट को देखा जो कि एक हाथ में वाइन थामे हुए और दूसरे हाथ में सिगरेट पकड़े हुए, वहां चल रहे म्यूजिक पर थिरक रही थी। कुछ समय बाद पार्टी में डांस शुरू हो गया। तब मार्गरेट पलाश को लेकर डांस फ्लोर पर चली गई। फिर मानसी और प्राची दोनों डिनर कर लौट आई।
अगले कुछ दिन तक मानसी को पलाश आफिस में नज़र नहीं आया शायद अपने दोस्तों के साथ बिजी होगा। पर अगले ही दिन सर को आफिस में ही अटैक आया। उन्हें लेकर मानसी और उनका पीए हॉस्पिटल लेकर गए। डॉक्टर ने उन्हें तुरंत एडमिट कर एंजियोग्राफी कराने की सलाह दी। मानसी ने पलाश को फोन कर खबर दी तब तक घर से दीनू काका भी अस्पताल आ गए थे। वहीं काका ने मानसी को बताया कि कल रात सर और पलाश भैया की जोरदार बहस हुई। फिर भैया ने कह किया कि मार्गरेट मैडम यहां नहीं रहना चाहती तो भैया भी शादी कर वापिस चले जाएंगे। उसके बाद सर चुप हो गए। शायद ज्यादा सोचने से उनकी तबियत बिगड़ गई होगी। इतना कहकर दीनू काका खामोश हो गए। मानसी जानती थी कि सर काॅर्डियक के मरीज पहले ही थे। कुछ समय बाद घबराया हुआ पलाश मार्गरेट और दोस्तों के साथ हॉस्पिटल आ गया। आते ही मानसी से बोला कि ओ गाॅड ये क्या हो गया। सर अभी सो रहे थे। इतने में मार्गरेट पलाश से बोली अब हमारे टूर का क्या होगा, एयर टिकट्स बुक है। पलाश ने मार्गरेट को जवाब दिया कि में अपना टूर कैंसिल कर रहा हूं। तुम भी मेरे साथ रूको बाकी सबका प्लान खराब न हो इसलिए दोस्तों को टूर पर जाने का कह देता हूं। मार्गरेट गुस्से में बोली इम्पाॅसिबल वाॅट रबिश आर यू टाॅकिंग, आई एम नाॅट गोइंग टू कैंसिल माॅय टूर। इन यूएसए पेशेंट लिव्स अलोन इन द हाॅस्पिटल दे टेक केयर आफ पेशेंट्स नाॅट द फैमिली मैंबर्स। वाॅट आर यू डूइंग हियर। यू केन बी इन टच विथ डाॅक्टर्स एंड टेक अपडेटस आन फोन। एंड आई काॅन्ट बियर दिस डर्टी स्मैल आफ हाॅस्पिटल, एंड टुमारो आई वांट टू गो आन माॅय टूर। इतना कहकर वह पैर पटकती नाराज होती हुई वहां से बाहर चली गई। विवश होकर पलाश और उसके दोस्त भी उसे समझाने बाहर चले गए।
थोड़ी देर बाद पलाश अकेला अंदर आकर मानसी से बोला थैंक्यू सो मच। अब आप जाए में पापा के पास स्टे करूंगा। मानसी ने कहा आप चिंता न करें, यहां एक व्यक्ति को ही रूकने की परमिशन है। इसलिए मैं सर के पास हूं। मुझे कोई प्राॅब्लम नहीं है। आप अगर कर सके तो आफिस मैनेज कर लीजिएगा। पलाश आश्चर्य से मानसी को देखता रहा। इसका क्या रिश्ता है हमारे परिवार के साथ मगर यह यहां रूकने को तैयार है। अगले दिन सर की एंजियोग्राफी होना थी। मानसी पूरे समय वही रही। पलाश भी सुबह-शाम वहां आता और दिन में आफिस संभालता रहा। एंजियोग्राफी के एक दिन बाद रेस्ट लेने की हिदायत के साथ उन्हें डिस्चार्ज मिल गया। तब मानसी जाकर अपने घर गई। अब मानसी ने आफिस ज्वाइन कर लिया था। मगर रोज शाम आफिस के बाद वह सर के पास जाकर उन्हें वहां की भी रिपोर्ट देती और उनके खाने और समय पर दवा लेने का भी ख्याल करती थी।
पलाश मन ही मन मानसी के लिए कृतज्ञ था। उसने जिस तरह से उसके पापा की केयर की उससे वह जल्दी अच्छे हो गए। अब पलाश मानसी के साथ हंसी मज़ाक करता रहता था। ऐसे ही एक दिन शाम में वर्मा जी मानसी से बोले कि आज हम तुम्हारे साथ ही डिनर करेंगे। तुम रशियन सलाद और फ्रेंच वेजीटेबिल सूप अपने हाथ से तैयार करना दीनू मदद कर देगा।
मानसी हंसते हुए बोली श्योर सर अभी हो जाएगा। मानसी किचिन में गई तो वहां पीछे से पलाश भी आ गया। मानसी को देखकर चहकते हुए दीनू काका से बोला कि काका अपनी बिटिया से कह दो कि हमारी आदतें न खराब करें। नहीं तो फिर ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक इन्हें ही मैनेज करना होगा। एक बात जरूर कहनी पड़ेगी मैडम है तो जैक आफ आल ट्रेड तभी तो पापा के आफिस से लेकर हर जगह छाई रहती है। यह सुनकर मानसी मुस्कुरा दी पलाश उसे कनखियों से मुग्ध भाव से निहारता रहा। डिनर के समय बहुत खुशनुमा माहौल था। डायनिंग हाॅल में तीनों के कहकहे गूंज रहे थे। इतने में ही पलाश के मोबाइल की रिंग बजी। मार्गरेट का फोन था। वह और उसके सारे दोस्त आगरा घूम रहे थे। उससे बात करते हुए पलाश सहज नहीं था। वह बात करने के लिए जरा दूर काॅरीडोर में गया मगर वहां से उसके नाराज होने का स्वर मानसी को साफ सुनाई दे रहा था- वह बोला कि मार्गरेट पापा की चिंता न करो। वे ठीक है और हां में अभी आफिस संभाल रहा हूं इसलिए तुम्हे जयपुर में ज्वाइन नहीं कर सकता। अब तुम भी मुझे बोर न करो और ट्रिप खत्म कर के ही मिलना। मगर उसके फोन के बाद पलाश जैसे बुझ गया और अपने कमरे में चला गया। मानसी लौटकर आई तो उसे सरप्राइज मिला कर्नल अंकल के घर पर पापा और मम्मी आए हुए थे।
मानसी खुशी से झूम उठी और कहा आप दोनों को मैं बहुत मिस कर रही थी। उसकी मम्मी ने कहा कि बहुत हो गई नौकरी मानसी अब दिल्ली आ जाओ। जो भी करना हो शादी के बाद करना। कुछ समय हमारे साथ भी तो गुज़ारों। क्या मां आप भी न बस जब देखो मेरे जॉब के पीछे पड़ी रहती हो। इस पर उसके पापा बोले हो गया न मां बेटी का हंगामा शुरू। वहां दिन भर इसे याद करती रहती हो। अब रहो न इसके साथ सुकून से। इसके बाद दो दिन मानसी ने आफिस से लीव ली परिवार के साथ समय बिताया। तीसरे दिन सर का फोन आया उन्हें जैसे ही पता चला कि मानसी के पापा और मम्मी आए हुए हैं, उन्होंने फौरन ही उसी शाम घर एक छोटी सी डिनर पार्टी प्लान कर ली। शाम को जब मानसी और परिवार के साथ वहां गई। तो वर्मा सर ने मानसी के पापा से बुके लेते हुए उन्हें थैंक्स कहा और बोले कि में तो खुद ही आपसे मिलने का प्लान कर रहा था। ये अच्छा हुआ कि आप स्वयं यहां आ गए। खुश होकर कहा कि किस्मत वाले हैं आप दोनों जो मानसी जैसा पुत्री रत्न आपके पास है। मानसी को आज बंगले में खूब हलचल नज़र आ रही थी। पता चला कि मार्गरेट और उनके दोस्त भी डिनर पर आए हुए है। आज मार्गरेट बहुत चहक रही थी। खूब सारे तोहफे लेकर वहां पहंची थी। एक कोने में खड़ा पलाश अपने दोस्तों से बात कर रहा था। इतने में मानसी को देखकर पलाश खिल गया। उसे नहीं मालूम था कि मानसी भी वहां बुलाया गया है। पलाश उसके पास गया तो मार्गरेट भी उसके साथ आ गई। मानसी ने दोनों को हैलो कहा इतने में मार्गरेट चिढ़कर बोली अरे तुम भी यहां हो क्या आफिस के बाद ओवरटाइम चल रहा है क्या। मानसी का चेहरा तो तमतमा गया मगर वो कुछ बोली नहीं चुप ही रही। पलाश ने ही उसे टोकते हुए कहा कि मार्गरेट बिहेव योरसेल्फ मानसी इज माॅय गेस्ट। यह सुनकर मार्गरेट का तो मुंह बन गया पर इतने में ही डिनर के लिए लाॅन में बुलावा आ गया। वहां उस दिन वर्मा जी के कुछ पारिवारिक मित्र भी आमंत्रित थे। पार्टी के बाद मानसी के परिवार ने घर जाने की इजाज़त मांगी लेकिन वर्मा जी ने उनसे कुछ देर ओर रूकने का आग्रह किया। काॅफी और आइसक्रीम के दौर के बाद लोग जाने लगे। बस पलाश के दोस्त और मानसी का परिवार ही वहां रह गया था। इतने में मार्गरेट आकर वर्मा जी से लिपट गई और बोली कि- डियर पापा आई मिस्ड यू लाॅट, एंड आई एम आलसो वरीड एबाउट योर हैल्थ। दैट्स व्हाय आई ब्रोक माॅय जर्नी एंड केम बेक टू बैंगलोर बेक। वर्मा जी ने कसमसाते हुए उसे खुद से दूर किया और कहा यस—यस आई नो वैरीवेल, यू आर माॅय वेलविशर। इसके बाद मानसी के पापा की ओर मुखतिब होते बोला- मैं मानसी को अपनी बेटी बनाना चाहता हूं। आप इसका हाथ मुझे पलाश के लिए दे दीजिए। जात-पात में मेरा यकीन नहीं है। मेरी बीमारी में जिस तरह इसने मेरी देखभाल की। वह कोई ओर नहीं कर सकता था मेरे लिए। इस पर मल्होत्रा साहब आश्चर्यचकित होकर बोले कि आप क्या कह रहे हैं मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा। आपने इस बारे में मानसी या पलाश से बात की है क्या। अब वर्मा जी मानसी की ओर मुखातिब हुए कि बोलो बेटा तुम्हारी क्या मर्जी है क्या तुम इस ओल्डमैन और इसके बिगड़े बेटे को संभाल सकती हो। मानसी को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। उसे सब जैसे किसी फिल्म की तरह नज़र आ रहा था। फिर पलाश से बोले तुम अपनी पसंद बताओ। पलाश मुस्कुराते हुए बोला पापा आपकी पसंद ही मेरी पसंद है। इतनी देर से मार्गरेट सबको वाॅच कर रही थी कि ये माज़रा क्या है। जब वर्मा जी ने मानसी के सिर पर हाथ रखा तो वह किसी एटमबम की तरह पलाश पर फट पड़ी-व्हाट्स द मैटर, यू कांट डू दिस टू मी, आई नेवर एवर ड्रीम एबाउट दिस, आई डोंट बिलीव इन सच नाॅनसेंस। वाॅट आन अर्थ इज गोइंग आन, यू कांट डिच मी पलाश।
पलाश बहुत शांत स्वर में मार्गरेट से बोला कि चाहता तो में भी यही था कि तुम इस घर की बहू बनो। पर मैं तुम्हारी डबल पर्सनालिटी को समझ नहीं सका। मेरे सामने तो तुम मेरे कसीदे गाती रहीं। मगर जब पापा एडमिट हुए तो बजाय मेरा साथ देने के तुमने इंडिया ट्रिप को महत्व दिया और मुझे अकेला छोड़कर चली गई। अब फिर यहां आकर मुझे डॉमिनेट करने लगी। जब तुम इतना सा साथ नहीं निभा सकी तो में कैसे सोच लू कि लाइफ पार्टनर बनने के बाद तुम मेरा जीवन के उतार-चढ़ाव में कैसे साथ निभा पाओगी। बस यही सोचकर मैंने अपना इरादा बदल दिया और पापा का फैसला मान लिया। साॅरी यू कांट अडंरस्टैंड मी। वर्मा जी स्नेह के साथ मार्गरेट से बोले बेटा आधुनिक आदमी को अपने विचारों से होना चाहिए। यदि आधुनिकता का दंभ उसके जीवन मूल्यों को खंडित करने लगेे तो वह किस काम की। कोई ऐसा भी प्रैक्टीकल परसन न हो कि केवल सुख का साथी बनना मंजूर करे और दुख में दूर छिटक जाए। मार्गरेट पलाश पर भड़कते हुए बोली आई विल सी यू और अपने दोस्तों के साथ वहां से नाराजगी दिखाते हुए बाहर निकल गई।
वर्मा जी ने मल्होत्रा साहब से कहा आज से दस दिन बाद बसंतपंचमी है। अगर आपकी अनुमति हो तो में अपनी बहू को लेने बारात के साथ आ रहा हूं। मल्होत्रा साहब उनके गले लग गए। उधर मानसी हया के साथ अपनी मां के पास सिमटी जा रही थी।
जिस दिन मानसी और पलाश की शादी थी उस दिन समीर और प्राची उन दोनों को खूब तंग कर रहे थे। बड़ी जल्दी थी न अपनी शादी की। बड़े भाई की शादी से पहले खुद की शादी रचा डाली। मानसी शर्म से सिमटी जा रही थी और पलाश मंत्रमुग्ध होकर उसे निहार रहा था। शादी के बाद दोनों एक वीक के लिए घूमने माॅरीशस चले गए। वहां से लौटकर पलाश ने वर्मा जी के सामने कहा कि मैडम अब आप भी वर्किंग मोड में आ जाए और आफिस ज्वाइन कर लें। बहुत सा काम पैडिंग हो गया होगा।

मानसी ने वर्मा जी से कहा पापा अभी में अपनी पोस्ट से रिजाइन दे रही हूं। आप मेरी जगह नई नियुक्ति कर लीजिएगा। बाद में अगर कुछ विचार बना तब देखूंगी कि क्या करना है। वर्मा जी ने स्नेह से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा कि बेटा अब तुम इस कंपनी की मालकिन हो। क्या और कैसे करना है तुम फैसला करो। तुम्हारा हर फैसला हमें मंजूर है। मानसी के आत्मविश्वास से भरे हुए चेहरे को देखते हुए पलाश सोच रहा था कि यदि मार्गरेट से उसका विवाह हो गया होता तब वह उसे अमेरिका में ही बसने को मजबूर कर देती। पापा वहां आने को राजी नहीं होते और यहां अकेले रह जाते। यानी मेरी ओर मार्गरेट की राहें जुदा होना ही थी और यह बदलाव ज्यादा बेहतर है क्योंकि इसमें रब की मर्जी भी शामिल हो गई। पलाश को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी ज़िंदगी में मानसी के आने से चारों तरफ इंद्रधनुषी रंग बिखर गए थे।

कीर्ति चतुर्वेदी