हमनशीं । - 4 Shwet Kumar Sinha द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हमनशीं । - 4

...हालांकि चिंटू के साथ हुई दुर्घटना से वह काफी डर और सहम सा गया था। पर, अपनो के बीच रहकर और सबका प्यार पाकर धीरे-धीरे वह इस सदमे से बाहर निकल आया। अब, चिंटू सुहाना के पास ट्यूशन पढ़ने न जाता। रफीक़ और ख़ुशनूदा के अनुरोध पर सुहाना ही उसके पास पढाने आ जाया करती। जिस दिन सुहाना न आ पाती, चिंटू को लेकर रफीक़ ही सुहाना के घर पर पहुंच जाया करता।

एक दिन। सुहाना के दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई । सुहाना की अम्मी ने दरवाजा खोला । सामने रफ़ीक़ खड़ा था । रफीक के चेहरे पर खुशी झलक रही थी।

“आदाब, चचिजान। सुहाना कहाँ है? जल्दी से उसे बुलाइये, आज उसके लिए एक खुशखबरी है।” – रफीक़ बोला। मुस्कुराती हुई सुहाना की अम्मी भीतर कमरे में चली गई और रफीक़ सोफे पर बैठ गया।

“क्या बात है रफ़ीक जी? आज बड़े खुश नज़र आ रहे हैं आप तो!” – भीतर के कमरे से निकलते हुए सुहाना ने रफीक़ से पुछा।

“पहले तो तुम मेरा मुँह मीठा कराओ। ये खुशखबरी तुम्हारे लिए ही है। कम्पनी की तरफ से तुम्हें नौकरी के लिए बुलावा आया है। तुमने जो इइंटरव्यू दिया था, उसी के आधार पर सेलेक्शन हो गया है।” - रफ़ीक़ ने सुहाना को अपनी कंपनी में नौकरी की खुशखबरी देते हुए बताया।

“पर..... इंटरव्यू में तो मुझसे कहा गया था कि मैं सेलेक्ट नहीं हो पाई।” – सुहाना बोली।

“सीट खत्म हो जाने के वजह से उस समय तुम्हारा सेलेक्शन नहीं हुआ था। पर, जिस बंदे को चुना गया था उसने जॉइन ही नहीं किया तो अगला नाम तुम्हारा था, सो यह रहा नौकरी के लिए बुलावा पत्र। कल से ही जॉइन करना है, तुम्हें। चचिजान, इसी बात पर अब एक अच्छी सी कॉफी हो जाए।” – रफीक़ बोला।

“कल सुबह नौ बजे, तुम तैयार रहना। मैं तुम्हे यहाँ से पिक कर लूँगा, फिर साथ ही ऑफिस चलेंगे।” – रफीक़ ने सुहाना से कहा।

अगले दिन से सुहाना कम्पनी जॉइन कर लेती है। अब, सुबह में ऑफिस जाते समय रफ़ीक़ सुहाना को उसके घर से ले लेता है और दोनों साथ ही ऑफिस जाते। शाम को रफ़ीक़ उसे रास्ते में घर छोड़ता हुआ अपने घर की तरफ बढ़ता। अब यही उनकी दिनचर्या हो गयी ।

सुहाना की नौकरी लगाने की खबर जब चिंटू की अम्मी ख़ुशनूदा को लगी तो बड़ी ख़ुश हुईं । लेकिन, चिंटू की पढ़ाई गड़बड़ाने की चिंता भी उन्हे सताने लगी।

एक दिन, ऑफिस से वापसी के वक़्त सुहाना ने रफीक को चाय पीकर जाने को कहा । रफ़ीक़ को देख सुहाना की अम्मी बहुत खुश हुई और उसे अंदर बुलाकर बिठाया।

“तुम तो इस अम्मी को बिलकुल भूल ही गए, रफ़ीक़ बेटा। रोज इसी रास्ते से गुजरते हो। लेकिन इस चचिजान की खैरियत पुछने नहीं आते। आते रहा करो, मुझे अच्छा लगता है। अच्छा बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूँ।” – यह कहती हुई सुहाना की अम्मी बावर्चीखाने में चली जाती हैं। सुहाना भी अपने कमरे में कपड़े बदलने चली जाती है। दिनभर का थका रफ़ीक़ भी सोफ़े पर बैठ सुस्ताता रहता है।

“और बताइए, रफीक साहब। घर पर सब कैसे हैं? हमारे चिंटू मियां का क्या हालचाल है? उसकी पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है?” – अपने कमरे से बाहर आकर सुहाना सोफ़े पर बैठते हुए रफ़ीक़ से पुछती है।

“क्या बताऊँ! जब से आपने चिंटू को पढ़ाना छोड़ा है, उसकी पढ़ाई फिर से गड़बड़ा गयी है । भैया और भाभीजान भी उसकी पढ़ाई को लेकर बहुत फिक्रमंद रहते हैं। भाभी आपको हमेशा याद किया करती हैं।“ - रफ़ीक़ ने सुहाना से कहा।

“आपका कहना तो बिलकुल सही है, रफ़ीक़ साहब । मैं भी मन ही मन हमेशा चिंटू की पढ़ाई के बारे में सोचती रहती हूँ। पर, कुछ समझ नहीं आ रहा कि इसका इलाज़ कैसे निकालें।”- सुहाना ने चिंटू की पढ़ाई पर चिंता जताते हुए कहा ।

रफीक ने एक तरीका सुझाया ।

“अगर आपको तकलीफ न हो तो मेरे पास एक उपाय है। क्यूँ न, हर एक दिन बीचकर मैं ऑफिस से लौटने के बाद चिंटू को लेकर आपके घर पर आ जाया करूंगा। आप उसे पढ़ा दिया करना। इसी बहाने चचिजान के हाथ की चाय भी पी लूँगा। फिर, ट्यूशन खत्म होते ही मैं उसे लेकर चला जाऊंगा।” – रफ़ीक़ ने सुहाना से कहा।

“कैसा लगा मेरा आइडिया या फिर......जैसा आप कहें।” – यह कहते हुए रफ़ीक़ बोलते-बोलते रुक गया । इससे पहले कि सुहाना कुछ कह पाती, सामने बैठी उसकी अम्मी ने इसके लिए अपनी रजामंदी ज़ाहिर कर दी।

“आपने तो मेरी मन की बात कह डाली अम्मीजान। ठीक हैं रफ़ीक़ साहब। आपने जैसे कहा, कल से वैसा ही करिएगा। और हाँ, ख़ुशनुदा भाभी से कहिएगा कि वह चिंटू को लेकर बिलकुल भी फिक्रमंद न हो। उनसे यह जरूर कहिएगा कि उनकी यह छोटी बहन उनसे बहुत खफ़ा है। एक बार भी याद करती हुई इस गरीबखाने पर अपना कदम नहीं रखा उन्होने।” – सुहाना बोली।

अब, प्रतिदिन रफीक और सुहाना साथ में ही ऑफिस आते-जाते । फिर, एक दिन छोड़कर रफ़ीक़ चिंटू को लेकर सुहाना के घर जाया करता। ऐसे ही दोनो के मिलने का सिलसिला चलता रहा ।

ऑफिस में भी सुहाना को कभी भी कोई परेशानी होती तो वह झट से रफीक के पास आ जाया करती।

यूं ही साथ-साथ रहते हुए दोनो के मन में कब एक-दूसरे के लिए प्यार पनप उठा, उन्हे भी इस बात की भनक न लगी। ऐसा शायद ही कोई दिन होता कि दोनो एक-दूसरे से न मिलें हो। और अगर कभी ऐसा होता भी तो रफ़ीक़ सुहाना का हाल जानने उसके घर पहुंच जाता।

दोनों के परिवार में भी नजदीकियां बढ़ने लगीं। कभी-कभार शाम में चिंटू को लेकर उसकी अम्मी खुद से ही सुहाना के पास ट्यूशन के लिए के आ जाया करती, जिससे वे सबसे मिल भी लेती। तो कभी, सुहाना की अम्मी भी रफीक के घर पर उसकी अम्मी और सबका हाल जानने पहुंच जाती।

सुहाना और रफीक एक-दूसरे को पसंद करते थे – यह बात भी अब सब पर ज़ाहिर हो चुकी थी और दोनों परिवार को इस रिश्ते से कोई परेशानी न थी ।

एक दिन, जब सुहाना की अम्मी रफ़ीक़ के घर आयी हुई थीं। तब रफ़ीक़ की भाभी ख़ुशनूदा ने रफ़ीक़ और सुहाना की निकाह की बात छेड़ दी।

“चचिजान, हमसभी सुहाना और रफ़ीक़ का निकाह कराना चाहते हैं। वे दोनों भी एक-दूसरे को बहुत पसंद करते हैं। अगर आप अपनी रजामंदी दे तो क़ाज़ी से कह उन दोनों की निकाह पढ़ा दी जाए।

सुहाना की अम्मी को भी अपनी बेटी के शौहर के रूप में रफ़ीक़ पसंद था। इसलिए उन्होने भी हामी देते हुए कहा – “कुछ ही दिनों में मेरा बड़ा बेटा अरमान और बहू अमेरिका से आने वाले हैं, क्यूँ न तब हमलोग उनदोनों की सगाई कर दें।”

कुछ ही दिनों में, सुहाना के बड़े भाई और भाभी अमेरिका से आते हैं और रफीक से मिलकर बहुत खुश होते हैं। रफ़ीक़ उन्हे बहुत पसंद आता है। फिर, रफीक और सुहाना की सगाई कर दी जाती है। दोनों परिवारवाले उनदोनों की सगाई पर बहुत ख़ुश थे।

सगाई के बाद अब उनकी निकाह की बारी थी। इसपर, अरमान अपनी अम्मी को बताता है कि उसे अगली छुट्टी छह माह बाद ही मिल पाएगी। इसलिए, शायद सुहाना की निकाह में वह शरीक न हो पाए। लेकिन, सुहाना को यह कैसे मंजूर होता। एक ही तो भाईजान थें उसके और उतनी ही प्यारी भाभी। ऊपर से वह उसकी भाभीजान कम और दोस्त ज्यादा थी।

"ठीक है भाईजान। मैं निकाह भी तब ही करूंगी, जब आप अगली बार हिंदुस्तान आओगे। आपके बिना मैं तो निकाह नहीं करने वाली। मैं साफ-साफ कहे दे रही हूँ!" - सुहाना ने अपने बड़े भाई साहब को अपना दो टूक फैसला सुनाते हुए कहा।

"पर, इतने दिन बाद निकाह ! क्या रफीक के परिवार वाले तैयार होंगे ? अम्मी जान, आप ही समझाओ अपनी लाडली को।"- सुहाना के भाई ने अपनी अम्मी की तरफ देखते हुए कहा।

"सुहाना सही कह रही है, बेटा। मेरी भी यही ख्वाइश है कि इसके रुख़सत के वक़्त तुम और बहू यहाँ मौजूद रहो। मैं रफ़ीक़ की अम्मी से बात करूंगी।" - सुहाना की अम्मी ने कहा।

"ठीक है, जैसे ही रफीक के परिवारवाले तैयार हो जाएँ, मुझे बता देना। मैं छुट्टी के लिए आवेदन डाल दूंगा। अब मुझे चलना चाहिए। खुदा हाफ़िज़!"- यह कहते हुए सुहाना के भाई अरमान और भाभी वापस अमेरिका लौट गए।

अगले ही दिन, सुहाना की अम्मी रफीक के घर पहुंची और सारी बात बता निकाह का दिन छह माह बाद का रखने का अनुरोध किया ।

"अरमान भी तो हमारे ही बच्चों जैसा है। मैं भी चाहूंगी कि रफीक और सुहाना के निकाह के वक्त दोनो परिवार के सभी सदस्य मौजूद हो। ठीक है, आप निकाह की तारीख छह महीने बाद की ही रखें।" - रफीक की अम्मी और उसकी भाभी ने उधेड़बुन में पड़ी सुहाना की अम्मी की परेशानी को खत्म करते हुए कहा। चेहरे पर मुस्कुराहट लिए सुहाना की अम्मी वापस घर पहुंची ।

मौलवी साहब से बात करके छह महीने बाद की तारीख तय कराई और अरमान को फोन कर बता दिया। अब दोनों घर में खुशियाँ फैली थी। चिंटू तो बहुत खुश था क्यूंकि उसकी सुहाना के साथ बहुत अच्छी जमती थी और रफीक तो उसके चाचू कम और दोस्त ज्यादा थे।

तभी एक दिन। ऑफिस के कुछ चुनिन्दा स्टाफ की भारत के भिन्न- भिन्न शहरों में ट्रेनिंग लगाई जाती है। इनमें सुहाना और रफीक का नाम भी था। अगले ही दिन, दोनों को एक महीने की ट्रेनिंग के लिए जयपुर निकलना था।

दोनों ने अपने-अपने घर में यह बताई। चूंकि दोनों की सगाई हो चुकी थी, इसलिए घरवालों को इससे कोई आपत्ति भी न थी। आखिरकार चंद महीनों में ही दोनों एक-दूसरे के शरीक-ए-हयात बनने वाले थे ।

“हाँ, छोटे मियां! जाइए घूमिए-फिरिए! बड़े किस्मत वाले हैं आप – जिससे इश्क़ किया, चंद दिनों में उसके साथ निकाह भी पढ़ी जाएगी। अब निकाह से पहले एक साथ, वो भी अंजान शहर में। अल्लाह, क्या नसीब पाया है आपदोनों ने। .....और एक आपके भाईजान हैं। अपने कामों में इतने मशगूल रहते हैं कि अपनी बीवी को घुमाना तो क्या एक बार नज़र उठाकर देख लें, वहीं काफी है।” – रफीक को छेड़ते हुए उसकी भाभी बोली।

“अरे नहीं, भाभीजान। आप गलत समझ रहीं हैं । हमलोग ऑफिस की तरफ से ट्रेनिंग पर जा रहे हैं। घूमने-फिरने का थोड़े ही न फुर्सत मिल पाएगा हमें।”- शरमा कर अपनी भाभी को समझाते हुए रफीक बोला।

“अरे क्यूँ छेड़ रही हो बेचारे को। यही तो घूमने-फिरने का उम्र है इन दोनों का । और फिर, ये तो ट्रेनिंग पर जा रहे हैं। अल्लाह की दुआ से बहुत ही समझदार और सुशील लड़की मिली है इसे। याद है न, हमारे चिंटू की जान बचाने के लिए उसने अपनी जान तक दांव पर लगा दी थी।” – वहीं पास बैठे आमिर ने कहा। अपनी खिंचाई होते देख रफीक उन सब के बीच से निकल जाना ही बेहतर समझा और वहाँ से खिसक लिया।

वहीं, दूसरी तरफ सुहाना ने भी अपनी अम्मी को ट्रेनिंग की बात बताई। उन्हे भी इसमे कोई आपत्ति न थी।

दो ही दिनों के बाद जयपुर में उनकी ट्रेनिंग शुरू होने वाली थी । फ्लाइट पकड़ दोनों जयपुर पहुँचते हैं जहां कंपनी के द्वारा पहले से ही उनके लिए होटल में दो कमरा बूक किया हुआ था। दोनों अपने-अपने कमरे में आ जाते हैं।

जयपुर में शाम चार बजे तक ट्रेनिंग करना और ट्रेनिंग खत्म होते ही घूमने निकल जाना – अगले कुछ दिनों तक सुहाना और रफ़ीक की दिनचर्या का अंग हो चुका था।

इसी दौरान, एक सप्ताहंत में दोनों अजमेर शरीफ के लिए निकल पड़ें। जयपुर से तकरीबन तीन घंटे का सफर तय कर अजमेर के प्रसिध्ध ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह पहुंचे। ख्वाजा के दरबार में दोनों ने फूल और चादर चढ़ाकर अपना मत्था टेका और जन्म-जन्मांतर तक एक-दूसरे का साथ पाने की मुराद मांगी। वहीं मज़ार के पास बैठे एक फकीर द्वारा की जा रही इबादत कानों में मिठास घोल रही थी ।

ओ ख्वाजा ग़रीब नवाज़,
अपनी नेमत हमपे सदा बनाए रखना।
कर कुछ ऐसा करिश्मा
दास्तान-ए-इश्क़ बनकर,
अपनी फैज़-ओ-क़रम
यूँ ही सदा हमपर बरसाए रखना।
तेरी इनायत की नज़र मौला
हर फरियादी पे पड़ी,
चाहे हिंदु हो या मुस्लिम
लगाईं अर्जियाँ जिस घड़ी।
पत्थर से भी फूल उग आएँ,
जो भी पड़ा तेरी नज़र पे,
ओ ख्वाजा ग़रीब नवाज़,
खड़ा हूँ बनके सवाली तेरे दर पे।...