...चिंटू के सुहाना के पास न पहुंचने की खबर सुन उसके अब्बा आमिर और छोटे चाचू रफ़ीक़ कार लेकर तुरंत उसे ढूँढने के लिए निकल पड़ें। अपने घर से सुहाना के घर तक के रास्ते को पूरी तरह छान मारा। पर न तो चिंटू व उसका ड्राइवर मिला और न ही उनके कार का कुछ अता-पता चला। सुहाना के घर पहुँच उससे पता किया तो वह भी चिंटू के गुम होने की वजह से बहुत ही परेशान थी। उसने बिना देर किए पुलिस से मदद लेने की बात कही। फिर सभी कोतवाली की तरफ निकल पड़ें।
“गाड़ी रोको, गाड़ी रोको” – चलती हुई कार की खिड़की से झाँकती हुई सुहाना ज़ोर से चिल्लाई। रफ़ीक़ ने ब्रेक मारा। गाड़ी से उतर कर सुहाना पीछे की तरफ भागी। सुहाना को वह कार दिख गया था, जिससे चिंटू रोज उसके पास ट्यूशन के लिए आया करता था। सुहाना के पीछे आमिर और रफ़ीक़ भी भागते हुए आए। कार के पास आकर देखा तो ड्राइवर लहूलूहान गिरा पड़ा था। पानी की छींटे मारकर रफ़ीक़ ने उसे होश में लाने की कोशिश की। होश में आते ही ड्राइवर ने बताया कि – “रास्ते में चिंटू को ज़ोर की शुशु लगने पर उसने गाड़ी साइड करके रोकी। चिंटू अभी गाड़ी से उतरा ही था। तभी अचानक से कुछ लोगों ने हमपर हमला कर दिया और चिंटू को जबर्दस्ती उठाकर अपने कार में लेकर चले गएँ। मैंने उनलोगों का पीछा करने की कोशिश किया तो उनलोगों की तरफ से फायरिंग होने लगी। गोली सीधे कार के टायर में लगी और कार का ऐक्सीडेंट हो गया। तबसे बेहोश होकर मैं यहाँ पड़ा हूँ।”
ड्राइवर के मिलने के बाद उसे लेकर सभी कोतवाली पहुंचे और पूरी घटना से पुलिस को अवगत कराया। पुलिस वाले भी तुरंत हरकत में आ गएँ और शहर के सारे चेकपोस्ट, रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर खबर कर दिया। साथ ही, चिंटू के ड्राइवर को शहर छोडकर जाने से मना किया। पुलिस इंस्पेक्टर ने चिंटू के बारे में कुछ भी जानकारी मिलते ही खबर करने की बात कर कह सभी को तसल्ली देते हुए घर जाने को कहा।
इधर, घर पर चिंटू की अम्मी खुशनूदा का रो-रोकर हाल बुरा था। चिंटू की छोटी बुआ ज़ीनत और दादी उसे ढाढस देते हुए शांत करने की कोशिश कर रही थी। पुलिस में शिकायत कर सब सीधे घर पहुंचे और सारी बात बतायी।
“मुझे तो इस ड्राइवर पर भी शक होता है। कहीं यह सब उसी का किया-धरा तो नहीं।” – चिंटू की दादी अपना अंदेशा ज़ाहिर करते हुए बोली।
“पर...वह ड्राइवर तो घायल अवस्था में मिला था, चचिजान! अगर उसने कुछ किया होता, तो अबतक गायब हो चुका होता। देखना आपसब, चिंटू जल्द ही मिल जाएगा।” – सुहाना बोली।
“तुम्हारी अम्मी घर पर अकेली होंगी। फिर, रात भी काफी हो गई है। अब तुम्हें घर जाना चाहिए, सुहाना।” – रफ़ीक़ ने सुहाना से कहा और कार लेकर खुद से ही उसे घर पहुंचाने के लिए निकल गया।
रास्ते में सुहाना बोली – “मुझे ऐसा लग रहा है मानो इन सबके लिए मैं ही गुनाहगार हूँ। मेरे पास आने के क्रम में चिंटू के साथ ऐसा हुआ। या खुदा, चिंटू जहां भी हो सही-सलामत हो। उसपर अपनी नेमत बनाए रखना !”
“तुम खुद को कसूरवार न समझो। हमसब ढूंढ रहे हैं न! देखना, चिंटू जल्द ही मिल जाएगा।” – रफ़ीक़ ने सुहाना को शांत करते उसे ढाढ़स बँधाया। उसे उसके घर पहुंचाकर रफ़ीक़ वापस लौट गया। वापसी में इधर-उधर सारे रास्तों पर चिंटू को तलाशते हुए घर आया।
घर के सदस्यों ने सारी रात आंखो में ही गुजारी। सबकी नींद उड़ चुकी थी। शहर में रहने वाले सभी नाते-रिश्तेदारों, दोस्तों और जाननेवालों को फोन कर चिंटू के गुम होने की इत्तला कर दी और उससे जुड़ी कोई भी जानकारी मिलते ही खबर करने का आग्रह किया।
सबको इस बात का भी अंदेशा था कि कहीं न पैसों के खातिर चिंटू का अपहरण किया गया हो तो पैसे के लिए कोई फोन जरूर आएगा। पुलिसवालों ने भी यह अंदेशा ज़ाहिर किया था। इसीलिए, सभी घर के लैंडलाइन और मोबाइल पर आने वाले हर कॉल पर चौकन्ने हो जा रहे थे।
सुबह हो गई, पर कोई कॉल न आया। तड़के ही पुलिस वाले भी घर पर पहुँचे। फिर से चिंटू से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बातों की गहराई से पूछताछ की और उसके कमरे की भी जांच-पड़ताल की। उन्होने चिंटू को छोड़ने के बदले पैसे के लिए आए किसी कॉल के बारे में पूछा। फिर, सबको चौकन्ना रहने और अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास का दिलासा देकर पुलिसवाले चले गएँ।
चिंटू को ढूँढ निकालने के लिए जहां एक तरफ पुलिस अपने स्तर से लगी थी, वहीं दूसरी तरफ चिंटू का पूरा परिवार और सुहाना भी उसका पता लगाने में एड़ी-चोटी कर रखे थे। पर, कहीं से भी कोई सुराग न मिल पाया था।
करीब एक महीने होने को आएं। लेकिन, चिंटू अभी का अभी तक कुछ भी पता न चला। चिंटू की अम्मी खुशनूदा ने तो अपने लख्ते-जिगर के गम में खाना-पीना तक त्याग दिया था।
एक दिन। सुहाना ने रफ़ीक़ को यह उपाय सुझाया कि क्यूँ न चिंटू को ढूंढकर लाने वाले को ईनाम देने की घोषणा करा दी जाए। ईनाम के लालच में लोगों का ध्यान उसकी तरफ आकृष्ट होगा और शायद कहीं से चिंटू के बारे में कोई सुराग मिले। रफ़ीक़ को यह सुझाव सही लगा। अपने बड़े भाईजान यानि चिंटू के अब्बू को बताया तो उन्होने चिंटू को ढूंढकर लाने वाले को पाँच लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा आसपास के सभी अखबारों और TV चैनल में करवा दी।
थोड़े ही दिनों में ईनाम की उद्घोषणा रंग लाई। एक दिन चिंटू के अब्बा आमिर के मोबाइल पर एक अंजान नंबर से कॉल आया। फोन करने वाले ने बताया कि - “उसने छह-सात वर्ष की उम्र के एक बच्चे को रेलवे स्टेशन के आसपास भीख मांगते हुए देखा है, जिसकी शक्ल अखबार में छपे बच्चे की तस्वीर से हूबहू मिलती है। जब उसका पीछा किया तो पता नहीं कहाँ गायब हो गया।”
आमिर अपने छोटे भाई रफ़ीक़ को लेकर तुरंत रेलवे स्टेशन पहुंचा और उस फोन करने वाले आदमी से मिला। फिर सभी, रेलवे स्टेशन परिसर के पुलिस स्टेशन में पहुंचे और पुलिस को सारी बातों से अवगत कराया। पुलिस ने तुरंत आसपास के सीसीटीवी फूटेज खंगाले। उसमे एक छोटा सा बच्चा भीख मांगता हुआ दिख गया – यह चिंटू ही था। पूरे स्टेशन परिसर व आसपास के इलाके में पुलिस ने गहन छानबीन की, लेकिन चिंटू कहीं न मिला। आमिर और रफ़ीक़ ने भी बहुत ढूंढा, पर कोई फायदा न हुआ।
थक-हार कर दोनों भाई घर लौटें। उनके थके और लटके हुए चेहरे देख ख़ुशनूदा बिलख पड़ी – “कहीं से भी मेरे नूर-ए-नज़र चिंटू मियां को ले आओ। एक बार मुझे उसकी आवाज़ सुना दो।” वहीं पास बैठी ज़ीनत फोन पर सुहाना से बात कर रही थी। रफ़ीक़ ने ज़ीनत से फोन लेकर सुहाना को घर आने को कहा।
थोड़ी ही देर में, सुहाना अपनी अम्मी के साथ पहुँची। रफ़ीक़ ने उसे सारी बतायी और हताश होते हुए बोला कि पता नहीं हम चिंटू को ढूंढ पाएंगे भी या नहीं! उसे हिम्मत देते हुए सुहाना बोली – “अगर हमसब ही इतनी हिम्मत हार जाएंगे तो चिंटू को कैसे ढूँढेंगे। मैं एक NGO को जानती हूँ, जो बेघर और बेसहारा बच्चों की मदद करता है। शायद वह हमारी कुछ मदद कर पाए।” यह कह उसने अपने मोबाइल से किसी को फोन लगाया तथा रफ़ीक़ और आमिर के साथ निकल पड़ी।
सभी एक NGO ऑफिस पहुंचे। सुहाना की सहेली नुसरत उसकी इंचार्ज थी। सुहाना ने उसे सारी बातों से अवगत कराते हुए आमिर और रफ़ीक़ का परिचय दिया।
सारी बातों को सुनने एवं समझने के पश्चात नुसरत बोली – “स्टेशन और उसके आसपास के इलाकों में कई ऐसे गैंग काम करते हैं, जो बच्चों को जबर्दस्ती अपने कब्जे में कर उनसे जबरन भीख मँगवाते हैं या फिर उनके अंगों के लिए मोटी रकम लेकर उन्हे अस्पतालों को बेच देते हैं। हमलोगों के लिए यह बहुत ही राहत देने वाली खबर है कि चिंटू अब भी सही-सलामत देखा गया है। हमें बिना समय गँवाए उसकी तलाश शुरू करनी पड़ेगी। क्यूंकि जिन्होने उसे पकड़ रखा है, अगर उन्हे इस बात की भनक लग गई कि चिंटू की छानबीन ने ज़ोर पकड़ लिया है तो कहीं उसे किसी अस्पताल को न बेच दें। अगर ऐसा हुआ तो उसे ढूंढ पाना असंभव हो जाएगा।”
“प्लीज़, चिंटू को ढूँढने में हमसब की मदद करो। चिंटू की अम्मी का उसके बिना रो-रो कर बुरा हाल है।”- नुसरत से मदद का अनुरोध करती हुई सुहाना बोली।
नुसरत ने फोन लगा किसी को ऑफिस में बुलाया। थोड़ी ही देर में ज़ाकिर नाम का एक आदमी वहाँ पहुंचा। नुसरत ने बताया कि किसी समय यह उन्ही में से एक गैंग के लिए काम करता था। लेकिन, दो गैंग की लडाई में अपने परिवार के सभी सदस्यो को खोने के बाद इसने वह धंधा छोड़ दिया। अब यह हमारे लिए खबरी का काम करता है। नुसरत ने चिंटू की एक तस्वीर ज़ाकिर की तरफ बढ़ाते हुए उसका पता लगाने के लिए कहा। पर ज़ाकिर ने बताया कि अगर बच्चा खरीदने के बहाने किसी महिला के साथ उस गैंग के इलाके में जाए तो किसी को उनपर शक नहीं होगा। सुहाना आगे बढ़ते हुए इसके लिए तुरंत तैयार हो गई और बिना समय गंवाए दोनो निकल पड़े।
रेलवे स्टेशन से थोड़ी ही दूरी पर बने छोटे-छोटे झुगी-झोपड़ियों के बीच बच्चो का व्यापार करने वाले ऐसे अनेक गैंग थें, जिनके पास सुहाना को लेकर ज़ाकिर गया। वहां छोटे-छोटे बच्चों के मासूम चेहरे देख सुहाना का दिल दहल रहा था। तभी ज़ाकिर एक गैंग के पास पहुंचा, जहाँ सुहाना को चिंटू दिख गया। मैले-कुचैले कपड़े पहने वह एक कोने में गुमशुम बैठा था। सुहाना ने ज़ाकिर को इशारा किया तो उसके लिए दाम तय कर अगले दिन आने की बात कह दोनो वहाँ से निकल पड़ें।
वापस लौटकर दोनों नुसरत के पास पहुंचे। सुहाना ने रफ़ीक़ और उसके बड़े भाईजान आमिर को भी फोन कर बुला लिया।
“मैने चिंटू को एक टोली मे देखा है। लेकिन, वहाँ और भी बहुत सारे छोटे-छोटे बच्चे हैं। हमें चिंटू के साथ उन सभी बच्चो को उन बदमाशों के चंगुल से छुड़ाना चाहिए। उन सबकी मासूम सूरतें अब भी मेरी आँखों के सामने घुम रहीं हैं।” – सुहाना ने नुसरत से अनुरोध करते हुए कहा।
नुसरत ने शहर के DSP सिटी को फोन लगाया। उन्हे पूरी बात से अवगत करा मदद के लिए अनुरोध किया। बात खत्म होते ही सभी रेलवे स्टेशन परिसर के पुलिस स्टेशन पहुंचे, जहाँ DSP सिटी पहले से ही मौज़ुद थें।
“मैँ आपका ही इंतज़ार कर रहा था, नुसरत जी।"- DSP सिटी ने कहा। फिर, नुसरत ने आमिर, रफ़ीक़ और सुहाना का परिचय दिया । “सर, ये लोग अपने बच्चे के लिए पिछले एक महीने से बहुत परेशान है। प्लीज़, इन सब की मदद करिए।”- सुहाना अनुरोध करती हुई बोली।
“आप बिल्कुल फिक़्र न करें। अब बात केवल एक बच्चे की नहीं रही। कितने मासूम उन बदमाशो के चंगूल में फंसे हैं। हम उन सभी को छुडवाएंगे। इसीलिए मैने अतिरिक्त पुलिसबल भी तैयार कर रखा है।” – यह कह DSP सिटी, सुहाना और ज़ाकिर को लेकर बच्चों को छुड़ाने के लिए कूच कर गए।
प्लान के मुताबिक ज़ाकिर और सुहाना उस गैंग के अड्डे पर पहुंच गए। सुहाना के हाथ में नोटो से भरा एक सुटकेस था, ताकि ऐसा प्रतीत हो कि वह बच्चा खरीदने आयी है। पुलिस चारो तरफ फैल चुकी थी। बस, सुहाना और ज़ाकिर के इशारे की इंतज़ार में थें। सुटकेस हाथ में लटकाए सुहाना उस गैंग लीडर के पास पहुंची। ज़ाकिर ने सुटकेस सुहाना के हाथों से लेकर सामने टेबल पर रख दिया। गैंग लीडर उन दोनो को लेकर भीतर के कमरे में गया।
भीतर कमरे में अन्य बच्चों के बीच में चिंटू दिख गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उन बच्चों को बहुत डराया-धमकाया और मारा-पीटा गया था। बिना हिले-डुले वे सब एक जगह अपना सिर झुंकाये बैठे थे। सुहाना ने उन बच्चों के बीच बैठे चिंटू के लिए इशारा किया। तभी अचानक एक नुकीले हथियार से सुहाना के पेट में प्रहार हुआ। एक कमरे से बिजली-सी फुर्ती सी निकल करीब पचास साल की एक महिला अपने हाथों में चाकू लिए खड़ी थी। उसकी चाकू की धारदार नोक सुहाना के पेट को छु कर निकल गई थी। दरवाजे को भी भीतर से बंद कर दिया गया था। ज़ाकिर को भी पकड़ कर कुछ लोगों ने पीटना शुरु कर दिया। सुहाना के पेट से खून निकल रहा था। किसी तरह अपने पेट को पकड़ें वह अपने स्थान पर डंटी रही। वहाँ मौजूद बच्चे भी अचानक से हुई इस घटनाक्रम से सहमे हुए थें।
वह महिला उस गैंग की सरदार थी। वह बोली –“इस ज़ाकिर को देखते ही मैं समझ गई थी कि दाल में जरूर कुछ काला है। अब मैं तुमदोनो को मारकर यही ज़िंदा दफन कर दुंगी। तुम्हे यह बच्चा चाहिए न! मैं देती हूँ – तुम्हे यह बच्चा। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।” – यह कहकर अपने हाथों में चाकू लिए चिंटू को जान से मारने के लिए आगे बढ़ी। अभी चार कदम भी आगे न बढ़ पायी थी कि दरवाजा एक जोरदार धक्के से खुला और पुलिसवालों ने धावा बोल दिया। उस महिला सरदार के साथ पूरे गैंग को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बच्चों को भी उनके चंगुल से छुड़ा लिया गया। चिंटू को अपने साथ लिए और एक हाथ से अपने पेट को दबाए सुहाना बाहर निकली।
बाहर का पूरा नज़ारा ही बदला हुआ था। चारो तरफ पुलिसवाले और सैंकड़ों की संख्या में बच्चे मौजुद थे, जिन्हे छुड़ाया जा चुका था। DSP सिटी ने घायल सुहाना को उसकी दिलेरी के लिए शाबाशी दिया। तबतक नुसरत और उसके साथ रफीक़ और आमिर भी वहाँ पहुंच गएँ। सुहाना को खून से लथपथ देख रफ़ीक घबरा गया। पर, सुहाना ने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं, वह ठीक है।
चिंटू को उसके अब्बा आमिर के साथ घर रवाना कर रफीक़ सुहाना को लेकर ऐम्बुलेंस से अस्पताल की तरफ भागा। डॉक्टर ने बताया कि पेट में चाकू की पहुंच ज्यादा भीतर तक नहीं थी और वह केवल सुहाना को छूकर निकली है। कूछ टांके लगा सुहाना को घर जाकर आराम करने की हिदायत दी।
“किस मुँह से तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ, सुहाना। तुम्हारी बहादुरी से आज चिंटू हमसब के बीच वापस आ सका है।” – घर लौटने के क्रम में रफीक़ ने टैक्सी में अपने बगल में बैठी सुहाना से कहा।
“शुक्रिया अदा करने जैसी कोई बात नहीं, रफ़ीक़। बस...मुझे अपने घर ले चलो। मुझे चिंटू से मिलना है।” – सुहाना बोली।
दोनो घर पहुंचे। सभी के चेहरे पर चिंटू के सही-सलामत लौट आने की खुशी थी। सुहाना को घायल अवस्था में देख सभी दुखी हुए। सुहाना ने बताया कि चिंटू के लौट आने की खुशी के आगे ये छोटा सा घाव कुछ भी नहीं।
इतने दिनो तक उन बदमाशों के बीच रहने के कारण चिंटू सहम-सा गया था। सुहाना को देखते ही वह उससे जा लिपटा। चिंटू को सुहाना से लिपटा देख रफ़ीक़ को एक साल पहले का वह दिन याद आ गया, जब वह सुहाना से पहली बार मिला था।...