माता कुमाता न भवति Indresh Kumar Uniyal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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माता कुमाता न भवति

“पापा जल्दी बाहर आओ” छोटी पुत्री क्षिप्रा की पुकार सुनकर किसी अनिष्ट की आशंका से चिंतित गोपाल तेजी से घर के मुख्यद्वार पर पहुँचा. देखा तो उसकी दोनों पुत्रियाँ एक अपरिचित वृद्ध महिला को सहारा देकर कार से उतार रही थी. वृद्ध महिला घायल थी और अर्धमूर्छित अवस्था में कराह रही थी. सिर से कुछ रक्तस्राव हुआ था. गोपाल के पूछने पर उसकी पुत्रियों ने बताया कि घर से 200 गज की दूरी पर मकानों के बीच में एक झोंपड़ी है, जो एक खाली प्लॉट पर बनी है. उसी के सामने वाली सड़क पर यह माता जी गिरी हुई थी. यह कुछ बोल नहीं पा रही है, इसलिये हम इसे घर ले आये. गोपाल ने अपनी पुत्रियों से कहा “यह तुमने बहुत अच्छा काम किया. सभी मिलकर उस वृद्ध महिला को घर के अंदर लाये. उसे सोफे पर लिटा दिया. अब वह वृद्धा होश में आ रही थी. तभी गोपाल की पत्नी पानी ले आयी. वृद्धा के वस्त्र ही बता रहे थे कि वह एक गरीब झुग्गी झोंपड़ी में रहने वाली है और इसकी सम्भावना अधिक थी कि यह उसी झोंपड़ी में रहती हो जिसके सामने की सड़क पर वह घायल अवस्था में मिली थी. वृद्धा को पानी पिलाया गया. गोपाल की ज्येष्ठ पुत्री कुमुद जो डाक्टर थी उसने तुरंत वृद्धा को प्राथमिक उपचार दिया. उसका रक्त चाप नापा और घावों का उपचार कर दिया. गोपाल ने अपनी ज्येष्ठ पुत्री से पूछा ”अस्पताल ले जाने की आवश्यकता है?” पुत्री ने कहा “नहीं, अब यह ठीक है”. यह सुनकर गोपाल के विचलित हृदय को शांति प्राप्त हुई. तभी गोपाल की पत्नी एक गिलास में दूध ले आयी. वृद्धा के इनकार करने पर भी बहुत जोर देने पर वृद्धा ने दूध पिया. फिर गोपाल ने पूछा “माताजी भोजन कर लीजिये” पर उन्होंने पुन: मना कर दिया.

अब गोपाल ने पूछा “क्या हुआ है आपके साथ?” फिर वृद्धा ने जो कहा वह बहुत ही विचलित करने वाला था. उसके पुत्र व बहु ने ही उसे पीटा था और घर से बाहर सड़क (गली) पर फेंक दिया था. आस पास के मकानों से लोग तमाशा देख रहे थे. पर किसी ने सहायता नहीं की. किसी का दिल न पसीजा. उन्होंने उसे घर से निकाल दिया. पर वृद्धा कह रही थी कि वह जमीन उसी के नाम पर है. जो उसका बेटा व बहु बेचना चाहते हैं क्योंकि अच्छे पैसे मिल रहे हैं. पर वृद्धा अपने पति की बनाई हुई झोंपड़ी छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहती थी. पति का देहांत हो चुका था. बेटा आटो रिक्शा चलाता था जो उसने जमीन का एक भाग बेचकर ही खरीदा था. उसने बताया कि पहले उसके पास एक बीघा के लगभग जमीन थी. फिर जब शहर इस ओर भी आ गया तो उसके आस पास के अनेक लोगों ने अपनी खेती की जमीन बेच दी जिस पर यह सब मकान बने हुए हैं. चारों ओर मकान बनने से अब मैं बचे हुए प्लॉट पर भी कुछ नहीं उगा पाती हूँ क्योंकी धूप तो आती नहीं है. ऊँचे-ऊँचे मकान बन गये हैं. यह 400 गज का प्लॉट बंजर हो गया है. बेटा ही घर खर्च चलाता है. उसके पति मजदूरी करते थे. वह अपनी जमीन पर कुछ सब्जियाँ उगा लेती थी और उन्हें बेचकर कुछ पैसे कमा लेती थी. अब वह कुछ नहीं कर सकती इसलिये बेटे बहू के लिये वह बोझ बन गयी है.

गोपाल ने कहा “माता जी आप चाहें तो मेरे घर पर रह सकती हैं. मेरी माता जी का स्वर्गवास हो गया है. आप घर में रहेंगी तो आपकी सेवा करके मुझे लगेगा कि आज भी मैं अपनी माँ की सेवा कर रहा हूँ.” इतना कहकर गोपाल ने अपनी पत्नी व पुत्रियों की ओर देखा. उसे यह देखकर प्रसन्नता हुई कि सभी के सर सहमति में हिल रहे थे. पर वृद्धा ने मना कर दिया और अपने घर ही जाऊँगी कहने लगी. गोपाल ने कहा “ठीक है, पर अगर आप चाहो तो पुलिस में भी रिपोर्ट कर सकते हैं, पुलिस से कह देंगे कि आपके पुत्र को गिरफ्तार न करे मात्र आपके साथ सही व्यवहार करे, इसकी चेतावनी दिला देंगे”. क्योंकि गोपाल यह भी सोच रहा था अगर बेटा गिरफ्तार हो गया तो घर कैसे चलेगा?. वही तो एक मात्र कमाने वाला है घर में. अजीब दुविधा थी. लेकिन वृद्धा ने पुन: कहा “बेटा, पुलिस को बीच में नहीं लाना चाहती, वह उसे पीटेंगे, है तो मेरे ही शरीर का अंग, वह माने या न माने”.

प्राय: शांत रहने वाला गोपाल आज की इस घटना से क्रोधित था. वह उस कुपुत्र को सबक सिखाना चाहता था. पर माता की ममता का भी उसे ज्ञान था. अब गोपाल ने पूछा “आपने खाना खा लिया था क्या?” वृद्धा ने कहा “नही, पर इच्छा नहीं है खाना खाने की”. गोपाल समझ रहा था कि एक माँ का दिल भी टूटा है वह व्यथित है. पर गोपाल के बहुत कहने पर वृद्धा ने दो–चार कौर बेमन से खाये व फिर घर जाने के लिये कहने लगी. गोपाल ने कहा ”ठीक है, आपने मेरा घर देख लिया है, किसी भी समय इस घर में आ सकती हो, यह भी आपका ही घर है और आपका एक दूसरा बेटा भी है. जब भी वह आपको कुछ कहेगा, आप मेरे पास आ जाना. मै उसे ऐसी सजा दूंगा कि वह कभी आपको भविष्य में कुछ न कहेगा. मैं उसे अभी भी चेतावनी दूंगा.

गोपाल वृद्धा को उनके घर अपनी कार में ले गया. कार की आवाज सुनकर बेटा बहू झोंपड़ी से बाहर आये. अपनी माँ को कार से उतरते देख वह हैरान था व उसकी पत्नी भी. अब गोपाल ने वृद्धा के पुत्र से कहा “यह चाहें तो तुझे जेल में बंद करा सकती थी, पर माँ ने मना कर दिया, माँ के अंदर की ममता कभी नहीं मरती, पर तू अपना बेटे का धर्म व कर्तव्य भूल गया. याद रख लेना इस माँ का एक तू ही बेटा नहीं है अब एक बेटा और है”. इसके बाद गोपाल ने बहुत शांत पर कहर भरे स्वर में कहा “मैं बीच-बीच में आता रहूँगा, माँ के हालचाल पूछने अगर तूने इनके साथ कभी भी भूलकर भी बुरा व्यवहार किया तो तेरे साथ मैं क्या करूंगा, वो तू सपने में भी नहीं सोच सकता”. माता जी को घर में सुरक्षित भेजकर गोपाल घर वापस आ गया.

घर आकर गोपाल सोच रहा था कि किस प्रकार से उसकी माँ उसकी बीमारी में रात भर जागती थी, इस माँ ने भी ऐसा ही किया होगा. पर यह कुपुत्र सब भूल गया पैसों के लिये. कितने दिन जियेगी यह माँ, जमीन बाद में भी बिक सकती है, कहीं भागी नहीं जा रही और बाद में और अधिक महँगी ही बिकेगी. एक वृद्ध व विधवा माँ अपने पति के बनाये हुए घर से एक संवेदना से जुड़ी रहती है. वह किसी महल के बदले पति की बनाई झोंपड़ी में रहने में अधिक आनंद प्राप्त करती है. क्योंकि यह झोंपड़ी उसके पति ने बनाई थी इसलिये उसका झोंपड़ी के प्रति भावनात्मक लगाव रहता है. लेकिन पुत्र है कि माँ को उस झोंपड़ी से दूर करके कष्ट देना चाहता है. पर माँ को अब भी अपने बेटे के कष्ट से कष्ट होता है. अब उसे पाठ्य पुस्तक में पढ़ा श्लोक याद आ रहा था.

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया

विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।

तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि

शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥२॥

अर्थात : – हे माँ ! सबका उद्धार करनेवाली कल्याणमयी माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जनता | मेरे पास धन का भी अभाव है | मैं स्वभाव से भी आलसी हूँ तथा मुझसे ठीक-ठीक पूजा का संपादन भी नहीं हो सकता | इन सब कारणों से तुम्हारे चरणों की सेवा में जो त्रुटी हो गई है उसे क्षमा कर देना- क्योंकि पुत्र का कुपुत्र होना तो संभव है किन्तु माता कभी कुमाता नहीं हो सकती |
(एक सत्य घटना पर आधारित) - इंद्रेश उनियाल