प्यार ऐसा भी - 5 सीमा बी. द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार ऐसा भी - 5



मैं उसको यूँ खुश देख कर अच्छा महसूस कर रहा था। अपनी असहजता को किनारे कर उसने भरपूर सहयोग किया। वहाँ से आने के बाद हमारा भावनात्मक लगाव और बढ़ गया।

मुझे लगने लगा कि मुझसे हर काम पूछ कर करे या बता कर करे। "तुम आम पतियों की तरह बिहेव मत किया करो"। कई बार हँसते हुए वो कहती तो मैं उसको कहता," पति हूँ बेशक अनऑफिशियल हूँ, तो पति जैसे बोलूँगा भी"।

मैं हमेशा उसको कहता, "जो कमाती हो उसमे से कुछ अलग रखा करो, आगे तुम्हारे ही काम आएँगे"। उसका कहना" हमारा परिवार हमेशा मेरे साथ रहा है और रहेगा, तुम देखना मैं काम करूँ या ना करूँ किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा"।

मैं भी इन दिनों में यह जान गया था कि ज्योति के भाई- बहन और भाभी सब काफी प्यार और सम्मान करते हैं। फिर भी मुझे उसकी चिंता होती । ऐसे ही एक दिन मेरे दोबारा बचत की बात पर जोर देने पर मान गई और कुछ रकम अलग से बैंक में रखने लगी। मुझे सिर्फ इतने कह भर देने में कहाँ सुकून था !! हर महीने जमा कराने के सबूत के तौर पर उसकी रसीद देखता जो मैसेज के रूप में बैंक की तरफ से उसके फोन पर आता।

"वैसे तुम्हे नहीं लगता की चाहे मैं तुम्हारी ऑफिशीयल बीवी नहीं पर इससे मेरे प्रति तुम्हारी जिम्मेदारी कम नहीं होती" ? "हाँ, तो मैंने कब मना किया ना ही कभी पीछे हटूँगा"।
मेरा ऐसा कहने भर से खुश हो गई, कभी कुछ माँगती ही नहीं ना कोई जिद पर मैंने तो अपने आप से वादा करा हुआ है कि मरते दम तक मैं उसका साथ निभाउँगा।

मेरा भांजा पैदा हुआ तो वो बहुत खुश हुई और एक मामी की तरह बहुत कुछ दिया। मेरे घर में सब उसको मेरा दोस्त समझ कर सम्मान देते हैं। "तुम बहुत पैसा बर्बाद करती हो "। जब कोरियर से वो सब गिफ्ट घर पर डिलीवर हुए तो मैंने उसे फोन पर डाँटा।

"तुम बीच में मत बोलो मैं मामी हूँ उसकी इतना तो मेरा हक बनता है", सुन मैं कुछ नहीं बोला। उन्हीं दिनो मुझे डैंगू हुआ। घर के पास ही एक हाॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा। बहन की डिलीवरी भी यहीं हुई थी तो स्टॉफ से पहचान हो गई थी। वहाँ उनमें से एक मेरी फेसबुक मित्र थी। जिससे बस पोस्ट पर लाइक या कमेंट तक का नाता था। उसने काफी मदद की।

इस दौरान मैं ज्योति को बता ही नहीं पाया अपनी तबियत के बारे में। 2 दिन फोन बंद रहा। तीसरे दिन थोड़ा संभला तो वो परेशान होगी सोच कर उसको फोन किया । उसने फोन एक घंटी पर ही उठाया तो उसकी बैचेनी को महसूस कर गया। उस दिन उसकी आवाज में दर्द, प्यार, इंतजार और फिक्र की तड़प ने मुझे समझा दिया कि मैं उसके लिए क्या मायने रखता हूँ।


प्यार ऐसा भी--- (भाग - 10)

मैं जितने दिन बीमार रहा उतने दिन वो परेशान रही। जैसे ही ठीक हुआ, उसको मिलने चल दिया। मुझे ठीक देख कर उसको चैन आया।

वहाँ से आने बाद मैंने दूसरी कंपनी को ज्वाइन कर लिया । पहली कंपनी से हर लिहाज से अच्छी है और आगे बढ़ने के मौके भी मिलते रहेंगे वैसा हुआ भी। उन दिनों संयोग कुछ ऐसा था कि हॉस्पिटल कई बार जाना पड़ गया तो उस फेसबुक फ्रैंड से मुलाकात हो ही जाती थी।

उसका नाम नफीसा है। वो सुपरवाइजर थी उस टाइम बाद में तो तरक्की करके H.R बन गई। इस बार हमने एक दूसरे का नं भी ले लिया था। भांजे की 1-2 बार रात को तबियत खरीब हुई तो भी उसने बिना टाइम देखे जो उससे हो पाया उसने किया। मेरी इससे दोस्ती हो रही थी।

बातों ही बातों में पता चला कि उस पर काफी
जिम्मेदारियाँ हैं। यहाँ उसके और मेरे हालात एक से थे तो मैं समझ पा रहा था उसकी हालत।

मैंने ये पूरी बात ज्योति से छुपा ली। मुझे लगा कि उसको यह बात पसंद नहीं आएगी। या फिर मेरे ही दिल में चोर था!!! ज्योति को नज़रअंदाज मैंने कभी नही किया। नयी कंपनी जॉइन करने के बाद हम दोनो बाहर बाहर घूमने गए तो मैंने ज्योति को डायमंड की अँगूठी पहनाई तो वो बहुत खुश हो गई।

इस बार घूमने आया तो नफीसा के फोन और मैसेज आ रहे थे। मैंने नफीसा को ज्योति के बारे में बताना ठीक नही समझा और नफीसा से बात कर रहा था ज्योति से थोड़ा आगे पीछे हो कर। उन दिनों नफीसा के घर कुछ परेशानी थी तो मैं एक अच्छे दोस्त की तरह मदद करने की कोशिश कर रहा था।

ज्योति ने मुझसे पूछा भी कि कोई परेशानी है तो ऐसे ही एक लडके की नाम ले कर कहा कि "उसके घर में परेशानी हो गई है, इसलिए बार बार फोन कर रहा है"। यह बात मैं उसकी ऑखो में देखते हुए नहीं कह पाया। उसने "ठीक है", बोल कर आगे कुछ नहीं कहा तो मैं अपनी होशियारी पर अपनी ही पीठ थपथपा रहा था।

हम घूम कर वापिस आ गए। आने के बाद भी हमारी हमेशा की तरह बातें होती। मेरे घर के हालात तो पहले से काफी सही हो ही चुके थे। "प्रकाश 35 का हो गए हो अब तुम एक अच्छी सी लड़की देख शादी कर लो"। ज्योति ने एक दिन कहा तो मैंने कही कि अभी नही तो वो मेरे पीछे ही पड़ गई तो मैंने कहा," ठीक है कर लूँगा "। "ये हुई ना बात" !!! कह उसने अपनी खुशी जाहिर की।

"अच्छा एक काम और करना जब तुम शादी करो तो मुझे पहले बताना", उसका ऐसा कहना मुझे अंदर तक भेद गया। "क्यों"?
"अरे ये भी कहने की बात है !!! उस दिन से हमारा अनऑफिशीयल रिश्ता खत्म करना होगा, तभी तो किसी और का साथ ईमानदारी से निभाओगे पर हम दोस्त रह सकते हैं अगर तुम्हारी वाइफ को पसंद होगा" !! उसने ये सब सीरियस हो कर कहा तो मैं मजाक में नहीं उड़ा पाया।
क्रमश: