फूल बना हथियार - 15 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फूल बना हथियार - 15

अध्याय 15

उस सुबह के समय अपने घर के बैठक में बैठे नकुल को देखकर उसका चेहरा थोड़ा बदला फिर स्थिर हो गया।

"क्या बात है नकुल इतनी सुबह आए हो?"

नकुल एक दीर्घ श्वास छोड़ते हुए गर्दन को ऊंचा किया।

"तुम्हारी अम्मा अब कैसी है?"

"नो प्रॉब्लम... शी इज कंफर्टेबल....! पर तू क्यों कुछ लुटा दिया जैसे लग रहा है?"

"सचमुच में लुटा के ही आ रहा हूं।"

"क्या बोल रहा है रे?"

"मेरे लिए एक ही खुशी थी। वह भी अभी नहीं है ऐसा हो गया...." कहकर नकुल अपने दोनों हाथों से चेहरे को ढक लिया। रोने से उसके पीठ बुरी तरह से ऊपर नीचे हो रही थी।

अक्षय उसके पास में जाकर बैठा। उसके कंधे को धीरे से पकड़ा बोला "नकुल ! तुम क्या कह रहे हो मेरे समझ में नहीं आया। गांव में किसी के... कुछ हो गया...."

नकुल अपने रोने को आंसुओं को रोक कर बोला।

"अक्षय.....! तुम और मैं अच्छे दोस्त होने पर भी मैंने एक बात तुमको नहीं बताई.... अभी मैं बताता हूं।"

"बोलो... क्या है?"

"पिछले एक साल से मैं और एक लड़की एक दूसरे को चाहते हैं।"

"अरे... लव ...! बोलो... बोलो..."

"मुझे एक नौकरी मिलने पर शादी करने वाले थे.... कल ही मुझे एक नौकरी मिली..."

"ठीक... अब क्या समस्या...?"

"वह लड़की कल दोपहर से नहीं मिल रही है"

"अक्षय जल्दी से अपने मन के अंदर डूबा। क्या लड़की नहीं मिल रही?"

"हां...." सिर हिला कर नकुल के आंखों से आंसू झांकते हुए चमक रहे थे।

"कैसे.. कैसे...?"

"पता नहीं... कल दोपहर को बाहर गई। अभी तक उसका कुछ पता नहीं।"

"लड़की का नाम क्या है?"

"यामिनी..."

अक्षय का पूरा शरीर एक क्षण में पसीने से नहा गया। जीभ सूखकर गला भी सूख गया। बड़ी मुश्किल से थूक निकल पाया।

"यामिनी....?"

अक्षय के आघात को देखकर नकुल ने पूछा "अक्षय.... तुम यामिनी को जानते हो?"

"ना... नहीं जानता.... कोई सुने नाम जैसे है क्या सोचने लगा!"

"यामिनी एक महिलाओं की मासिक पत्रिका में फ्रीलांसर का काम करती है। बहुत ही साहसिक लड़की है। कोई भी समाज की बुराइयां उसकी आंखों पर नहीं दिखना चाहिए ‌। पता चले तो एक तूफान जैसे उसका सामना करेगी...."

"अक्षय के हृदय में व्यंग्य मुस्कान दिखाई दी।" ओह.... अब समझ में आया.... रास्ते में आ रहे समस्या को बुलाकर अपने ऊपर लेने वाली महिला.... है ना नकुल?"

"एक तरफ से देखो तो ऐसे ही!"

"एक लड़की के गुम जाने के लिए यह एक कारण ही बहुत है ठीक... आखिर में यामिनी को कब देखा?"

"कल दोपहर को मैं और यामिनी अडैयार में जो अपनापन संस्था है वहाँ  लंच लिया। थोड़ी देर में मैं काम के विषय में चला गया। उसके बाद यामिनी गिंण्डी में जो 'इदम्' नामक ट्रस्ट पर गई...."

अक्षय के दिमाग में एक तरफ अलार्म बजा। परंतु आघात को बिल्कुल दिखाया नहीं और साधारण आवाज में पूछा।

"इदम् ट्रस्ट को.... वहां उसका क्या काम?"

"इदम् ट्रस्ट से महीने-महीने 'अपनापन' संस्था को एक अमाउंट देते थे । वह अमाउंट तीन महीने से नहीं आया ऐसा अपनापन के संस्था के प्रधान ने बोली। इदम् संस्था के चेयरमैन परशुराम को मैं जानती हूं यामिनी ने बोला था। अतः वह परशुराम से मिलने के लिए गई थी। मैं कल रात 8:00 बजे के करीब मालूम करने परशुराम जी के पास गया।

"वे क्या बोले?"

"यामिनी आई ही नहीं कह दिया।"

"फिर?"

"उनकी बात को मैंने भी मान लिया। परंतु उस ट्रस्ट के सामने फल बेचने वाली एक लड़की ने यामिनी को स्कूटर से अंदर जाते देखा था... फिर परशुराम जी पर मुझे शक हुआ। अपनापन संस्था की प्रधान मंगैय अर्शी को बताया। वे तुरंत पुलिस कमिश्नर के पास गई। कल रात को पुलिस ने तुरंत सर्च वारंट देकर ट्रस्ट के बिल्डिंग में जाकर परशुराम के सामने ही तलाशी ली। बट... वहां यामिनी नहीं थी...."

"फिर उस फल वाली ने जो बोला...?"

"वह किसी और लड़की को देखा होगा ऐसा पुलिस कमिश्नर कह रहे हैं....."

अक्षय के मस्तिष्क में डर के कबूतर उड़ने लगे। 'कल रात कितनी सारी बातें ट्रस्ट के बिल्डिंग के अंदर हुई है। परशुराम अंकल ने इसके बारे में एक शब्द भी हमसे नहीं बोला...! कोई रेड करके बोला। बस इतना ही....!’

"अक्षय, नहीं अभी तुम्हारे पास क्यों आया हूं पता है?"

"बोलो..."

"तुमसे मुझे एक सहायता चाहिए।"

"बोलो.. मुझे क्या करना है?"

"पुलिस कमिश्नर से बात करते समय मुझे एक बात बिल्कुल क्रिस्टल जैसे साफ समझ में आ गई।"

"क्या?"

"उस ट्रस्ट का चेयरमैन परशुराम अच्छा आदमी नहीं है। बिल्डिंग के ट्रस्ट के अंदर कुछ कानून विरोधी कार्य हो रहे हैं इसीलिए पुलिस के हस्तक्षेप के बाद कोर्ट ने आदेश देकर उनके कार्यों को रोक रखा है...."

"कानून के विरोध का काम का मतलब.... वह कैसा काम है मालूम है नकुल....?"

"नहीं मालूम.... कमिश्नर ने ऐसी कोई बात नहीं बोली।"

"ठीक! अब मुझसे किस तरह की मदद चाहते हो.... नकुल?"

"तुम्हारे अप्पा तमिल नाडु में रहने वाले अधिकारियों को और दिल्ली में रहने वाले बड़े अधिकारियों तक सब लोगों को जानते हैं। उसका फायदा उठा कर मेरी यामिनी को ढूंढने में कोई हेल्प ले सकते हो क्या....?"

"क्यों नकुल ऐसे कह रहे हो.....? तुम्हारी कोई समस्या है वह मेरी भी समस्या जैसे की है। मेरे अप्पा आज दोपहर को दिल्ली से आ जाएंगे। मैं इसके बारे में उनसे बात करूंगा.... बाय.. द.. वे.. पुलिस कमिश्नर रामामृथम ने कहा था कि परशुराम के ऊपर एक एक्शन लेना हैं?"

"परशुराम के विषय में मैं और कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। 'आई एम हेल्प लेस' उन्होंने कह दिया।

"फिकर मत करो नकुल.... तुम जिसे चाहते हो वह यामिनी उसे कोई परेशानी नहीं हुई होगी। हिम्मत रखो.... पुलिस कमिश्नर चाहे तो इस समस्या को दूर कर सकते हैं। सी.पी.जी.टी. पुलिस है... इस अधिकार को रखकर मुव कर सकते हैं। यामिनी तुम्हें जरूर मिल जाएगी। डोंट वरी।"

"तुम जरूर मेरी मदद करोगे मुझे पता है अक्षय। अतः बिना किसी संकोच के तुम्हारे पास आ गया।"

"यामिनी कैसे होगी मुझे पता नहीं। तुम्हारे पास कोई फोटो वगैरा है... नकुल?"

"है... देता हूं" कहकर अपने पर्स से निकाल कर जतन से रखी हुई फोटो को नकुल ने दे दिया। फोटो को लेकर देखकर अक्षय नकुल को देखकर एक मुस्कुराया और आंख मारी। नकुल, यू आर वेरी लकी! यामिनी बहुत सुंदर है.....! लड़कियां इतनी सुंदर हो तो आफत ही है.....!"

नकुल उठकर अक्षय के हाथों को पकड़ा। "अक्षय तुम्हें ही अप्पा से कहकर यामिनी को ढूंढने का प्रयत्न करना पड़ेगा!"

"बिना फिक्र के जाओ.... सब कुछ मैं देख लूंगा।"

नकुल आंसुओं के साथ वहां से गया, तो उसी को फटी आंखों से अक्षय देखता रहा, नकुल के जाते ही यामिनी के फोटो को टुकड़े-टुकड़े कर पास में पड़े डस्टबिन में डाल दिया।

अक्षय नहा कर सुबह का नाश्ता कर उमैयाल हॉस्पिटल जा पहुंचा तो उस समय डॉक्टर उमैयाल ऑपरेशन थिएटर से बाहर बरामदे में आ रही थी।

"गुड मॉर्निंग आंटी।”

"गुड मॉर्निंग... अक्षय! अम्मा को देखने आये हो क्या?"

"हां.... अभी अम्मा कैसी हैं आंटी?"

"कल की अपेक्षा आज काफी ठीक है। बी.पी. और पल्स नॉर्मल हो गए..... आज शाम तक होश में आ जाएंगी...! हां... तुम्हारी आंखें लाल हो रही हैं और तुम बहुत डल लग रहे हो?"

"रात में ठीक से सोया नहीं आंटी..... अम्मा की तबीयत के बारे में फिक्र मन के अंदर बहुत बुरी तरह से बैठ गया था।"

"क्यों झूठ बोल रहे हो?"

"झूठ...?"

"फिर..… तुम्हें अम्मा की फिक्र से ज्यादा यामिनी के ऊपर गुस्सा ज्यादा है? पूरी की पूरी रात उससे कैसे बदला लेना है यही तुम्हारे ध्यान में दौड़ रहा था। मैं जो कह रही हूं वह ठीक है ना अक्षय?"

"उस अहंकारी के बारे में बात मत करो आंटी?"

"देखा कैसे उबल पड़े....!"

"कोई लड़की है... वह....!"

"अभी यामिनी बोलते ही... याद आ रही है।"

"क्या?"

"कल रात उस नीलकमल पत्रिका वाली एडिटर पर्वत वर्धिनी ने मुझे फोन किया था?"

"क्यों...?”

"सुबह बाहर गई वह यामिनी रात 9:00 बजे तक ऑफिस में नहीं पहुंची ।"

"अक्षय एकदम से सतर्क होकर उमैयाल को देखा। उसके लिए आपने क्या कहा ?"

"वह लड़की सुबह ही मुझसे इंटरव्यू ले कर चली गई मैंने बोला।"

"उसके बारे में बात मत करो आंटी.... मुझे आग के ऊपर खड़े जैसा लगता है..... मैं अम्मा को देखने जा रहा हूं। कहकर अक्षय आईसीयू की तरफ तेज-तेज चलने लगा। लंबे ग्रेनाइट के बरामदे में आधा रास्ता ही चला। पीछे से आवाज आई।

"अक्षय"

मुड़कर देखा।

परशुराम खड़े थे। पसीने से लथपथ चेहरा। उनकी निगाहें परेशानियों से भरी थी |

अक्षय सदमे के साथ उनके पास गया।

"क्या अंकल.... इस समय....?"

"तुम्हें देखने घर गया। तुम अम्मा को देखने हॉस्पिटल गए हो नौकर ने बताया। मैं तुरंत रवाना होकर यहाँ आया।"

"क्या बात है अंकल.... आप मुझे फोन पर कोंटेक्ट कर लेते?"

"यह फोन में बात करने की बात नहीं है।"

"क्या अंकल.... कोई समस्या है?"

"हां समस्या है"

"क्या?"

"कल रात पड़पई पन्नई घर में हुए सभी विपरीत बातों के बारे में डॉक्टर उत्तम रामन ने आज सुबह मुझे बताया।"

"मैं ही आपको फोन करके बोलने वाला था अंकल। अपना कुत्ता रोजर्स सांप के काटने से मर गया...."

परशुराम घबराहट भरी आवाज में धीमी आवाज से बोले "समस्या अभी वह नहीं है अक्षय।"

"फिर...?"

"पड़पई पन्नैई के घर में उन दोनों लड़कियों को यामिनी के साथ बंद रखा था ना?"

"हां..."

"वह तीनों लड़कियां गायब हैं।"

अक्षय सदमे में आ गया।

"क्या कह रहे हो अंकल.... वह वॉचमैन ईश्वर क्या कर रहा था?"

"उसका भी पता नहीं।"