फूल बना हथियार - 2 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फूल बना हथियार - 2

अध्याय 2

यामिनी की निगाहें स्लो मोशन में अजीब सा भय फैल गया। फोटो में जो है वह मैं ही हूं क्या.... नहीं... मेरी जैसी कोई और लड़की की फोटो है?

"ए...एक... इसमें.. फोटो में जो है...?"

"तुम ही हो..."

"मैं..? मैं कैसे...! कोई जयपुर में रहने वाली लड़की की फोटो है बोला....?"

"अक्षय मुस्कुराते हुए बीच में बोला। मेरे मन को पसंद आई लड़की। जिस शहर में रहती है वही मेरे लिए जयपुर है।"

"सॉरी...! आप जो बोल रहे हैं मैं नहीं समझी... "

"समझने लायक बोलता हूं.. मैं शादी करने के लिए जिस लड़की को चाहता हूं वह तुम हो...! पिछले हफ्ते डॉक्टर आंटी से अपॉइंटमेंट लेने उनके घर आई थी तब मैंने पहली बार आपको देखा। देखते ही मेरे अंदर एक रासायनिक परिवर्तन हुआ। बार-बार आपको देखने की एक तीव्र इच्छा। आपको बिना बताए मैंने अपने मोबाइल से आपकी एक फोटो खींच ली।

आपके जाने के बाद डॉक्टर आंटी से आपके बारे में विवरणों को मैंने मालूम कर लिया। मेरी शादी की इच्छा को भी उन्हें बता दिया। आंटी को भी आपके जैसे पहले आश्चर्य और सदमा लगा। आज आप आंटी का इंटरव्यू लेने आ रही हो मुझे पता था। इसीलिए प्रत्यक्ष आमने-सामने बात करके आपकी इच्छा को भी जान ले इसलिए मैं यहाँ आया...।"

यामिनी धीरे से उठकर खड़ी हुई और उमैयाल को देखने लगी।

"डॉक्टर ! अगले पत्रिका के अंक में आपका साक्षात्कार पब्लिश होगा। कंप्लीमेंट्री कॉपी आपको भेजूंगी। पढ़ कर देख कर आप अपनी बात को मुझे एस.एम.एस. कर दें तो मैं बहुत खुश होंगी। फिर मैं चलूं?" बात करते हुए वह जाने की कोशिश करने लगी।

"यह देखो यामिनी ! अक्षय अपने आप आकर अपनी इच्छा को बताया इसलिए तुम उसे हीन मत समझो। वह कोई प्लेबॉय नहीं है। एक सम्मानजनक परिवार से संबंधित लड़का है। अक्षय के अप्पा भारत में रहने वाले समृद्ध व्यवसायियों में से एक हैं। प्रेसिडेंट के हाथों उन्हें तीन बार सम्मानित किया गया है...."

"वाह.!"

"यामिनी ! इस बात को तुमने सीरियसली नहीं लिया ऐसा सोचती हूं।"

"यू आर करेक्ट डॉक्टर। मैं साक्षात्कार लेने आई हूँ उस जगह मेरी शादी की बात करना उसे मैं सीरियसली कैसे ले सकती हूं?"

"अक्षय के स्टेटस और गौरव के अनुसार एक लड़की को ढूंढ के लाना बहुत आसान है। परंतु उसके पसंद के अनुसार एक लड़की का मिलना मुश्किल है। अब कोई परेशानी भी नहीं है। अक्षय ने जब तुम्हें देखा उसी क्षण से अपनी..."

"अपने हृदय के सिंहासन में मुझे बैठा दिया क्या?"

"ऐसा ही समझ लो!"

"उस सिंहासन से मुझे उतारने के लिए कह दीजिएगा डॉक्टर..!"

"क्यों?"

"यह मेरा पर्सनल मैटर है। पिछले हफ्ते आपसे जान-पहचान हुई उन्हें या थोड़ी देर पहले आपने जिससे मेरा परिचय कराया उससे कहने की मुझे कोई जरूरत नहीं है डॉक्टर...."

"यामिनी तुम्हारे बात करने का तरीका ठीक नहीं!"

"अक्षय जैसे पैसे वाले लोगों को ऐसी बात ही समझ में आती है डॉक्टर..... अक्षय, एक सम्मानीय और गौरवशाली परिवार का लड़का है आपने बताया। यदि गौरवशाली परिवार का लड़का एक लड़की को उसकी अनुमति के बिना मोबाइल से फोटो नहीं खींचेगा....!"

अक्षय परेशान होकर घबराकर बीच में बोला।

"सॉरी...! एक तीव्र इच्छा..."

"उसका मतलब तीव्र इच्छा नहीं। मैं पुरुष हूं इसका अहंकार! कोई मेरा क्या बिगाड़ लेगा...."

उमैयाल, गुस्से से उठी आंखों में गुस्सा लिए हुए उसे हाथ के इशारे से बैठाया। जल्दबाजी में कोई गलत बात मत बोल देना.... फिर कभी किसी दिन ऐसा क्यों बोला आंसू बहाने का स्थिति आ सकती है...."

"सॉरी डॉक्टर.... मेरी ऐसी परिस्थिति नहीं आएगी। उसका कारण मुझे जिसके लिए रोना था उन सबके लिए मैंने रोकर खत्म कर दिया। अब मेरे पास आंसू बचे नहीं हैं.... मैं आती हूं....!"

यामिनी अपने हैंडबैग को लेकर कंधे पर टांग कर फटाफट चल दी।

"अक्षय....!"

"आंटी...!"

"यह लड़की तुम्हें नहीं चाहिए। मैं सुंदर हूं ऐसा इसे घमंड है कैसी बात करके जा रही है देखा?"

"मुझे यामिनी का वह घमंड पसंद है आंटी! मेरे हिसाब से वह घमंड नहीं है वह भी एक सुंदरता है। 'आंसू मेरे पास बचे नहीं हैं।' कितने साहस के साथ बोलकर जा रही है। कितनी लड़कियों में इस तरह का एक साहस होता है...?"

"अक्षय तुम्हारे स्टेटस के लिए और तुम्हारी अपनी खूबियों के रहते यह ठीक नहीं है। तुम दूसरी लड़की को देखो...."

"नहीं आंटी! यामिनी मेरे माइंड में फिक्स हो गई।"

"मैं तो शादी ही नहीं करना चाहती बोल रही है ना?"

"ऐसे बोलने वाली लड़की को शादी तक ले जाने में ही एक रोमांच है...!"

"यह लड़की तुमसे मंगलसूत्र पहनेगी ऐसा मुझे एक परसेंट भी विश्वास नहीं है."

"मुझे तो हंड्रेड परसेंट विश्वास है आंटी। मुझे तीन महीने का समय दीजिए मैं उसे मिसेज यामिनी अक्षय मैं बदल कर दिखा दूंगा..."

"चंद्र मंडल में जाने के लिए साइकिल की सवारी? तुम्हारे प्रयत्न में मेरा आशीर्वाद है! कहने वाली उमैयाल अपने होठों पर एक हल्का सा मुस्कान दिखा जो तुरंत गायब हुआ।

वह चेन्नई में दोपहर के 1:00 बजे भीषण गर्मी में पसीने से तरबतर होकर, सिर पर एक रुमाल डाल मैलापुर के कचहरी रोड पर एक किनारे से चल रहा था। फुटपाथ पर दुकानों पर टूरिस्ट बस आने की वजह से बहुत भीड़ थी लोग झुंड बना-बना कर अलग होकर सामानों को खरीद रहे थे अतः इतनी भीड़ थी की चलना मुश्किल था।

30 साल के करीब वह आदमी लोगों के टकराने से बचते हुए ब्राउन कलर के लिफाफे को लिए दिमाग में बहुत सारे फिक्र के साथ चल रहा था। लोन लेने के लिए उसे बड़ी फिक्र और चिंता सता रही थी।

'आज कैसे भी बैंक लोन सेंक्शन हो जाएगा। दो हफ्ते के अंदर पहले बैंक मैनेजर कृपा शंकर से मिलकर बात करते समय बहुत ही एनकरेजिंग ढंग से बोल रहे थे। उसके पीठ को थपथपा कर दो हफ्ते बाद आ जाओ। आते समय मैंने जो डिटेल्स मांगा है उन सब कागजों को लेकर आओ। कुछ कर दूंगा। तुम्हारे जैसे युवाओं की मदद के लिए ही तो बैंक है!' ऐसा उन्होंने साफ-साफ कहा। वे जरूर करेंगे।

पाँच मिनट तेज-तेज चलकर पसीने के साथ राजकीय बैंक के पास पहुंचा।

सेंट्रलाइज ए.सी. के कारण पूरा बैंक एक छोटे ऊटी में तब्दील हो गया था। सभी काउंटर पर छोटे-छोटे क्यू थे।

नकुल उस बैंक को पिछले एक वर्ष से जनता था। अतः वह बिना संकोच के चलकर हॉल में दाएं तरफ कोने में जो मैनेजर के कमरे के दरवाजे को खटखटाया। तुरंत अंदर से आवाज आई। वह एक लड़की की आवाज थी।

"प्लीज कम इन" आश्चर्य करते हुए अंदर गया। हमेशा की तरह गंजे कृपाशंकर नहीं थे। उसके बदले सुंदर साफ-सुथरी प्रेस की हुई काटन की साड़ी पहने एक बीच की आयु की लड़की दिखाई दी। उसका ध्यान कंप्यूटर पर था।

"गुड मॉर्निंग मैडम!"

"यस! क्या चाहिए?"

"मैडम! मैनेजर कृपाशंकर ने मुझे आज आने के लिए कहा था।"

"ऐसा.... वह तो पिछले हफ्ते ट्रांसफर होकर इलाहाबाद चले गए?"

"ट्रांसफर ?" नकुल के आश्चर्य पर उसने ध्यान नहीं दिया।

"मैडम! मैं एक बी.ई. मैकेनिक ग्रेजुएट हूं। पढ़ाई को खत्म करके 5 साल हो गए! एक छोटा इंडस्ट्री शुरू करने के लिए लोन के पेपर सबमिट किये थे..... और कुछ डिटेलस् के साथ आज आकर मिलने के लिए उन्होंने कहा था।"

"लोन का अमाउंट कितना है?"

"दस लाख मैडम।"

"किस तरह की इंडस्ट्री है? प्रोडक्ट की नेचर क्या है...?"

"आयोनाइसड विल्स।"

"इस प्रोडक्ट का मार्केटिंग है क्या?"

"सैंपल देकर अब ही मार्केटिंग करना है।"

"नए तैयार कर रहे प्रोडक्ट के लिए लोन नहीं देना है ऐसा बैंक का रूल है?"

नकुल टूट गया।

"मैडम! ऐसा कुछ रूल है ऐसा पुराने मैनेजर ने नहीं कहा था?"

"उसके लिए मैं क्या करूं?"

"मैडम ! उन्होंने मुझे पक्का लोन देने के लिए कहा था ना?"

"उन्होंने ऐसा क्यों कहा मुझे नहीं पता। हो सकता है ऐसा एक रूल हो उन्हें मालूम नहीं होगा।"

नकुल की आवाज टूटने लगी।

"मैडम! तो मेरा लोन....?"

"सॉरी...! आई एम हेल्पलेस।"

"किसी भी तरह लोन मिल जाएगा मैं बहुत विश्वास कर रहा था मैडम।"

"आपका नाम क्या है?"

"नकुल।"

"यह देखो नकुल! मैं तुम्हें डिसकरेज करने के लिए या अंडर एस्टीमेट कर रही हूं ऐसा मत सोचो। किसी भी बेरोजगार को लोन देना यह सब तो आंख पोंछने की बातें हैं।"

"आजकल के सिचुएशन में बैंक रूल्स बहुत ही स्ट्रिक्ट है। आपके कैटेगरी के लोगों को इस बैंक में लोन नहीं मिलेगा। सिर्फ इस बैंक में ही नहीं दूसरे बैंक में भी मिलने का कोई चांस नहीं। आप इस लोन के प्रयत्न को गुड बाय कह दो और दूसरे कोई काम के लिए प्रयत्न करो।"

"मैडम!"

"सॉरी... आप चलिए...! कमरे के बाहर एक प्रेस्टीजियस कस्टमर मेरे लिए वेट कर रहे हैं।"

टूटे हुए दिल के साथ कमरे से नकुल बाहर आया। शरीर में दौड़ने वाले खून के नसों में आग दौड़ रहा है उसे ऐसा लगा।

'यह कैसा देश है?'

'कल का भारत आज के युवा हाथ में है ऐसी बातें करके जाने वाले नेताओं के रहने तक युवाओं को बीच सड़क में ही खड़ा रहना पड़ेगा।'

नकुल अपने हाथ में जो ब्राउन लिफाफा था उसके टुकड़े टुकड़े चिंदी करके बैंक के डस्टबिन में डालकर बाहर आया। उसका मन सुन्न पड़ गया जिसके कारण उसे गर्मी का पता नहीं चला। जो लोग चल रहे थे उनके साथ-साथ चलता रहा।

शर्ट के जेब में रखे हुए मोबाइल की आवाज आई।

"बोलो यामिनी?"

"क्या बात है नकुल! सुबह से ही फोन ही नहीं किया। सर बहुत बिजी हैं?"

"फोन करने वाला था। पता नहीं कैसे भूल गया। सॉरी।"

"तेरे सॉरी को उठाकर कचरे में डाल!"

"बहुत गुस्से में हो लग रहा है।"

"फिर? आज कौन सी तारीख है याद है?"

"हाँ, याद है 23।"

"यह कौन सा महीना है?"

"मई।"

"कुछ याद आ रहा है क्या?"

"आ रहा है।"

"क्या?"

"तुम और मैं पिछले साल मई के 23 तारीख को हमने आपस में 'आई लव यू' कहा था। आज ही हमारे प्रेम के पौधे पर फूल खिलने वाला दिन था।"

"उसे मनाना नहीं है क्या?"