पारुल जब देखती है तो सामने अविनाश खड़ा था.....। उसे देखती ही मानों पारुल का गला डर के मारे सुख रहा था। क्योंकि वह समझ नहीं पा रही थी... की क्या करे!? कैसे अविनाश को अंदर आने से रोके!?। पारुल दरवाजे पर ही बुत बने खड़ी थी.... । तभी अविनाश उसे हड़बड़ाते हुए कहता है..।
अविनाश: तुम ठीक हो!? माई ने मुझे अभी कहां की तुम दरवाजा नहीं खोल... रहीं और कुछ आवाज भी आ रही है.... कमरे से!? ।
पारुल: ( अविनाश को सिर को हां में हिलाते हुए जवाब देती है। )
अविनाश: ( तभी अविनाश का ध्यान पारुल के हाथ पर लगे खून पर पड़ता है और फिर पांव जो की खून से भरे हुए थे। ) ये कैसे !? तुम ठीक हो!? ( पारुल को गोद में उठाते हुए.... उसे बेड की ओर ले जाता है... लेकिन.... जब पूरे कमरे में खून खून देखकर अविनाश का दिमाग सुन्न पड़ गया था।) ।
पारुल: ( हड़बड़ाते हुए ) अविनाश में ठीक हूं... नीचे उतारो! मुझे... मुझे कुछ नहीं हुआ है.... ।
अविनाश: ( चिल्लाते हुए ) क्या खाक ठीक हो! जल्दी से सच सच बताओ! अगर मैने अपने तरीके से पता किया तो... सजा भी मैं ही डिसाइड करूंगा!! ।
पारुल: अवि! प्लीज लिस्टन.... ।
अविनाश: ( पारुल के मुंह पर उंगली रख कर.... पहले उसके चेहरे पर हाथ की ओर गौर से देखता है.... फिर उसकी गर्दन और उसके हाथो को छूते हुए.... फिर उसकी पूरी बॉडी की ओर एक नजर घुमाता है.... । फिर उसे बिठाते हुए.... उसके पांव अपने हाथ में लेकर देखता है.... की कहीं उसके पांव पर तो कोई चौंट नहीं लगी। जब उसे लगता है। कि सबकुछ ठीक है तो वह फिर से पारुल के चेहरे की ओर नजर करते हुए चिल्लाकर कहता है। ) राकेश.... ।
पारुल: ( आंखे बंद कर लेती है। )
अविनाश: ( अभी भी गुस्से में पारुल की ओर देख रहा था । ) राकेश.... ।
राकेश: ( भागते हुए कमरे के बाहर खड़े होते हुए ) यस सर!।
अविनाश: सामने चाकू... पड़ा है... उसे उठाओ और जिसके भी फिंगर प्रिंट है.... वह इंसान मुझे बारह बजे तक मेरे सामने चाहिए.... किसी भी हालत में.... ।
पारुल: ( बेड से खड़े होते हुए ) अवि!? तुम ऐसा नहीं कर सकते!? ।
अविनाश: ( श्यतानी मुस्कुराहट के साथ ) तुम चैलेंज कर रही हो मुझे!? ।
पारुल: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) अवि! ।
अविनाश: राकेश.... पूरे रूम को देखो... जरूरत पड़े तो पूरे घर के हर एक कोनो में ढूंढो.... और सीसीटीवी... केमेरा भी देखो अगर कुछ भी पता चले चाहे वह इंसान जो भी हो! मेरे सामने होना चाहिए! इस धेट क्लियर!? ।
राकेश: यस! सर।
पारुल: अवि! ( चिल्लाते हुए ) वह एक चोर था..... बस.।
अविनाश: ( पारुल की ओर एक नजर डालते हुए.... ) राकेश.... इस कमरे की अच्छे जांच पड़ताल करो.... और मुझे सारी डिटेल्स जल्द से जल्द चाहिए.... । और हां! सुबह तक ये कमरा मुझे एक दम क्लीन चिट चाहिए... जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
राकेश: हो जाएगा सर! ।
अविनाश: ( सिर को हां में हिलाते हुए... उसे गोद में उठाकर.... कमरे से बाहर ले जा रहा था। ) ।
पारुल: ( बौखलाते हुए ) अवि! मुझे....!? । ( लेकिन जब अविनाश की नजर उस पर पड़ती है तो वह समझ जाती है की अब कुछ भी बोलना सही नहीं है। पारुल को जिस बात का डर था वहीं हो रहा था। उसे अपने और सैम.... दौनों के लिए डर लग रहा था। वह इसलिए सेम को समझा रही थी की वह चला जाए.. । )
अविनाश: ( दरवाजा पटककर खोलता है ... जिस वजह से पारुल... उसका शर्ट पकड़ लेती है। पारुल को बेड पर फेंकते हुए वह दरवाजा बंद करने जा रहा था। ) ।
पारुल: अवि! ( डरते हुए ) ये! तुम क्या कर रहे हो!? ।
अविनाश: ( दरवाजा बंद करते हुए ) वहीं जो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था... ।
पारुल: ( बेड की दूसरी ओर खड़ी रहकर ) क्या... मतलब है तुम्हारा..!? ।
अविनाश: वही जो तुम समझ रही हो....!? ( पारुल की ओर आगे बढ़ते हुए ) ।
पारुल: ( डरते हुए अविनाश की ओर देखे जा रही थी...।) अवि! तुम अभी गुस्से में हो इसलिए प्लीज! पहले शांत हो जाओ! मुझ में अब और बहस करने की हिम्मत नहीं है.... ।
अविनाश: मैने अभी! शुरुआत भी नहीं की वाइफी! और तुम अभी से डर गई!? ।
पारुल: ( बाथरूम की ओर भागते हुए।) ।
अविनाश: ( बाथरूम का दरवाजे के सामने खड़े होते हुए ) इतनी जल्दी नहीं वाइफी.... इतनी जल्दी... ।
पारुल: अवि! ट्रस्ट मि.... मैने कुछ नहीं किया.... और मुझ में सच में हिम्मत नहीं है की मैं बहस कर सकूं.... मैं सच बोल रही हूं.... तुम्हे अगर... भरोसा है तो ठीक है.... अगर नहीं है तो करो जो करना है.... ।
अविनाश: अच्छा! फिर ठीक है! । ( पारुल को उठाते हुए बेड पर पटकते हुए..... वह एक पैर जमीन पर रखते हुए पारुल के सिर के पास एक हाथ रखते हुए... उसके नजदीक जाते हुए कहता है । ) चलो! फिर देखते है! कितना और सह सकती हो! तुम!? ।
पारुल: ( रोते हुए ) मेरी सहने की शक्ति का तो पता नहीं लेकिन... मैं इतना जानती हूं... तुम इतनी गिरी हुई हरकत कभी नहीं करोगे।
अविनाश: ( गुस्से में ) तुम... पुराने अविनाश की बात कर रही हो वाइफी.... ( पारुल का चेहरा अपनी ओर करते हुए ) ये मैं हूं... देखो! मुझे गौर से देखो! दूर-दूर तक उस अविनाश का नामो निशान नहीं मिलेगा... क्योंकि वह अविनाश कब का मर चुका...! ।
पारुल: ( सिर को ना में हिलाकर... अविनाश के सीने पर हाथ रखते हुए ) वह अभी भी जिंदा है! देखो!? ।
अविनाश: ( एक पल के लिए उसकी आंखो में भाव आए थे... फिर से नफरत का नकाब पहनते हुए... एक मुस्कुराहट के साथ ) यह बातें उस समय मायने रखती थी... अब ये सिवाय फिल्मी डायलॉग के कुछ नहीं है! ।
( पारुल से दूर जाते हुए ... । ) ।
पारुल: ( बेड से खड़े होते हुए: बार बार बच गई... पारुल। ) शायद पर ये बाते तुम भी जानते हो... और मैं भी... की वे बातें अभी भी तुम्हारी जिंदगी में अहमियत रखती है।
अविनाश: ( गुस्से में ) चलो! मान भी लो! यह बाते मेरी जिंदगी में अहमियत रखती है... तो तुम कौन सा... उस बातो को समझने वालों मैं से एक हो...!? । यू नो व्हाट.... तुम जैसे लोग ना सबसे खराब किस्म के होते है... जो अच्छे बनकर... सब तबाह कर देते है... और फिर भी यहीं र**रोना रोते है की हमने तो कुछ किया ही नहीं..
इससे अच्छा तो वे लोग है... जो... बुरे है... कम से कम वह अपने गलत काम स्वीकार करने की हिम्मत रखते है... और सबसे बड़ी बात... वह लोग भरोसे के काबिल है।
पारुल: ( अविनाश का ऐसा बरताव देखकर मानो.. उसे एक ठेंस पहुंची थी... । क्योंकि वह जानती थी अविनाश आज भी उसे माफ नहीं कर पाया है.... आज जब वह हर एक बात याद कर रही थी.... तो कहीं ना कहीं उसका दिल चाह रहा था की.... वह.... वापस उस समय में चली जाए... और एक बार बात सुन ले!? ।) अवि....।
अविनाश: हाहाहाहाहा..... ये देख लो जब तुम्हारे पास कहने के लिए कुछ भी ना हो! तो यह मासूम सी शक्ल बना लेती हो! कभी कभी तो मैं सोचता हूं तुम भी कितनी कमाल की अदाकारा हो!? तुम्हे तो फिल्मों में होना चाहिए... । सच में बहुत नाम होगा तुम्हारा....।
पारुल: ( अविनाश के हाथो को पकड़ते हुए ) प्लीज शांत हो जाओ! और मेरी बात सुनो! प्लीज... ।
अविनाश: ( पारुल के हाथ में अपने हाथ को देखता है।)
पारुल: प्लीज! मुझ में सच में बिलकुल भी बहस करने की हिम्मत नहीं है... मैं अलरेडी... रो धोकर सारी एनर्जी बिगाड़ चुकी हूं.... प्लीज शांत होकर भी तो बात कर सकते हो! । मैने तुम्हे माफ किया! ।
अविनाश: वाउ! क्या बात है!? पारुल.... खन्ना.... क्या बात है.... आपने मुझे माफ किया!? किस बात के लिए!?।
पारुल: अवि! तुम अच्छी तरह से जानते हो मैं किस बारे में बात कर रही हूं!? ।
अविनाश: ( हाथ दूर करते हुए ) नहीं! बिल्कुल भी नहीं! मैं नहीं जानता... की तुम किस बारे में बात कर रही हो.... !?।
पारुल: अवि! मैं हमारे अतीत के बारे में बात कर रही हूं!।
अविनाश: उस बारे में क्या!? ।
पारुल: ( गुस्से और आश्चर्य में अविनाश की ओर देखती है।) अवि! तुम जानते! मैं.... हमारी आखिरी मुलाकात की बात कर रही हूं! ।
अविनाश: कौन सी आखिरी मुलाकात....!? ।
पारुल: ( आश्चर्य में अविनाश की ओर देखती की कहीं ये पागल तो नहीं हो गया!? कैसी बहकी बहकी बातें कर रहा है!? । ) वहीं मुलाकात जब तुम मुझ से मिलने आए थे.... और..…।
अविनाश: ( बिना किसी भाव के ) और क्या...!? ।
पारुल: ( गुस्से में अविनाश का कॉलर पकड़ते हुए ) तुम अभी मेरी भावनाओं के साथ खेल रहे हो है ना!? ।
अविनाश: ( जोर जोर से हंसते हुए ) हाहाहाहाहा..... आहाहाहाहाहा.....काफी मजा आया यार.... वैसे तुम्हे क्या लगा.... की सिर्फ भावनाओ से सिर्फ तुम ही खेल सकती हो। और आई मस्ट से... काफी दमदार परफोमेश था। बिल्कुल ब्लॉक बास्टर... पर एक कमी रह गई.... जानती हो क्या....!? ।
पारुल: ( अविनाश की ओर ही देखे जा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की... अविनाश क्या कह रहा था। )।
अविनाश: अरे! पूछो तो सही! क्या!? । चलो छोड़ो! मैं ही बता देता हूं! । यहीं की जब सेम तुम्हारे कमरे में आया.... बालकनी कूद के वह सारी बात मुझे पता थी। मैं तो बस पानी चेक कर रहा था की कितना गहरा था.... । और मानना पड़ेगा... तुमने कितने ड्रामे किए... पता नहीं कहां कहां की बात और कितने गड़े हुए मुर्दे जिंदा किए.... पर आखिर तक अपने आशिक का नाम नहीं लिया....।
पारुल: ( खाखर निगलते हुए ) अवि! तुम गलत समझ रहे हो!? ।
अविनाश: आहा! अब तो ड्रामा छोड़ो यार, बोरिंग सा लग रहा है! ।
पारुल: अवि! मैं सच में सच बोल रही हूं.... भरोसा करो मेरा! ।
अविनाश: हां! हां! मान लिया मैने! और तुम निश्चिंत रहो! मैं उसको उंगली भी नहीं लगाऊंगा.... ये अविनाश खन्ना का वादा है...! और वैसे भी भाई हैं वो मेरा...उसकी भी फीलिंग समझ सकता हूं मैं...।
पारुल: अवि! अवि! मैं सच में सेम को बचाने के लिए यह नहीं कह रही... मैं सच में तुम्हे माफ कर रही हूं...! ।
अविनाश: ( उपहास करते हुए ) ऊप्स... सॉरी माफ करना मुझे हंसना नहीं चाहिए लेकिन तुम हो की बात समझ नहीं पा रही.... अच्छा अब सुनो.... और ध्यान से सुनो.... " मैं यानी अविनाश खन्ना.... ना तो तुम्हे ना ही.... सेम को कोई चौंट पहुंचाऊंगा। " समझ में आया ठीक है।
पारुल: ( पारुल गुस्से में अपने बाल भींचती है... ।) आआहह! तुम मुझे पागल कर रहे हो! तुम्हे एक सिंपल सी बात क्यों समझ में नहीं आ रही!? ।
अविनाश: ( हाथ को क्रॉस में करते हुए ) अच्छा! और तुम्हारा ये अचानक हृदय परिवर्तन होने की वजह मैं जान सकता हूं ..जो इतने साल में ना हुआ... जब मैं उस दिन गिड़गिड़ाया था.... तब नहीं... हुआ अब यूं ऐसे अचानक अपने प्रेमी के आने से हो गया... या फिर लेट मि गैस... तुम उसके साथ भागने का प्लान.... बना रहीं.... हो.... ।
पारुल: ( एक थप्पड़ मारते हुए ) तुम इतना गिरा हुआ सोच भी कैसे सकते हो, और मैं ही पागल थी जो भावनाओ में बह गई थी.... । जब मैंने सारी अतीत की बातें आज फिर से दोहराई तो मुझे लगा कि अब इतने साल हो गए है.... दिल में ये.... बोझ कब तक ... रखूंगी... लेकिन नहीं तुमने तो हर बार गलत नजरिए से देखने का थान ही लिया है। तो ठीक है! सोचो तुम्हे जो भी सोचना है.... और हां! ये मै सिर्फ अपने लिए नहीं कह रही थी.... कल रात जिस तरह से तुम्हारी हालत देखी.... उसके लिए भी कह रही थी... की शायद तुम्हारे दिल को सुकून मिल जाए... लेकिन .... तुमने तो दुनिया का हर काम गलत नजरिए से देखने की ठान ली है। तो देखो! ( चिल्लाते हुए ) तुम ना इस दुनिया के सबसे बड़े हार्टलेस इंसान बन चुके हो.... अविनाश खन्ना.... आई फ***ग..... हेट.... यू.... सुना तुमने..... मैं नफरत करती हूं तुमसे.... । ( अविनाश के सीने पर मुक्के मारते हुए ) तुम बिल्कुल बेगैरित....और पत्थर दिल हो गए हो! ।
अविनाश: ( पारुल के दोनो हाथ थामते हुए....) हाथ संभालो अपने वूमेन.... मुझे मारने का इरादा है... ताकि फिर दूसरी शादी कर सको....!? ।
पारुल: ( गुस्से में आग बबूला होते हुए ) तुम .... तुम .... पास.... में पड़े वास उठाते हुए....अविनाश की ओर फेंकती है.... ।
अविनाश: ( दरवाजा खोलकर बाहर की ओर भाग जाता है । ) गॉड.... ये आज विधवा होकर ही.... दम लेगी.... ।
अविनाश के चेहरे पर मुस्कुराहट.... रुकने का नाम नहीं ले रही थी..... । वह पागलों की तरह मुस्कुराए जा रहा था। वह जब हॉल में पहुंचा तो विशी.... ऊपर की ओर आ रहा था.... अविनाश का नीचे आता देखकर... वह अपनी जगह पर रुक जाता है।
विशी: अवि! क्या हुआ!? सबकुछ ठीक तो है ना!? । मुझे अभी अभी राकेश ने बताया कि तुम्हारे कमरे में चोर आए थे!?।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) हां आए थे ना!? ।
विशी: तो इसमें मुस्कुराने वाली कौन सी बात है....!? तुम पागल हो गए हो!? पारुल को चौंट तो नहीं आई... !? ।
अविनाश: ( बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ ) अरे! विशी! विशी! तुम... नहीं समझोगे.... ( कसकर गले लगाते हुए...) आई लव यूं मेरे यार...! ।
विशी: ( अविनाश को धक्का देते हुए: भगवान... ये पीकर तो मुझ पर डोरे डालता था अब खुले आम... ) दूर ही रहना वर्ना अच्छा नहीं होगा... मैने पहले ही कहां की मैं... सिर्फ मुझे सिर्फ लड़किया ही पसंद है बै! । दूर रहना मुझ से.... । इतना कहते ही विशी सीढियां चढ़ते हुए ऊपर चला जाता है।
अविनाश: अब! इसे क्या हुआ....!? खैर छोड़ो! ( मुस्कुराते हुए )।
विशी... जब अविनाश के कमरे में जाता है तो वहां सफाई का काम चल रहा था। वह फिर आसपास देखता है तो दरवाजा खटखटाने की आवाज आ रही थी.... । वह कुंडी खोलते हुए... जब अंदर देखता है.... तो उसके सिर पर एक वास आकर गिरता है.... । जिससे वह सिर पकड़कर चिल्लाने लगता है। चौर.... चोर..... । घर के गार्ड्स और नौकर सभी भाग कर ऊपर आ ही रहे थे की तभी... पारुल... मुंह पर हाथ रखकर विशी की ओर देखे जा रही थी.... । उसे यकीन नहीं हो रहा था की उसने विशी को वास मार दिया था।
पारुल: ओह! माय गॉड! आई एम! सो! सॉरी! विशी मुझे पता नहीं था तुम... अवि! हो...होगा... । ( विशी के सिर की ओर देखते हुए ) ।
विशी: पारुल... तुम पागल हो गई... हो क्या... तुम उसे ऐसे नहीं मार सकती... उसका चेहरा इंपोर्टेंट है... अगर लग जाएगी तो खामखा... प्रॉब्लम होगी...।
पारुल: सॉरी.... ।
गार्ड: सर कहां है चोर!?।
विशी: अरे! कुछ नहीं जाओ तुम.... और किसी के साथ आइस पैक भी भिजवाओ.....। ( इतना कहते ही गार्ड को भेज देता है। ) ।
पारुल: सॉरी! यार आई एम रियली... सॉरी... ।
विशी: चलो! अब गलती है तो क्या ही कर सकते है.... । पर तुम अविनाश को क्यों..... मारने पे तुली हुई थी।
पारुल: ( गुस्से में बेड पर बैठते हुए ) यार! वह मेरी बात समझ ने की कोशिश हीं नहीं कर रहा! मैं एक ही बात कितनी बार कही उससे लेकिन उसने तो मेरी बात पर ध्यान ना दिया वो तो छोड़ो... पर...वह मेरी बात का मजाक उड़ाने लगा..….मानो जैसे मैं उसके लिए कोई खास इंसान हूं हीं नहीं।
विशी: ( खखार निगलते हुए...मन: वो तुम्हारी बात पर कैसे ध्यान देगा... जब की अब किसी और में इंटरेस्ट आने लगा है.... । मुझे किसी भी तरह खुद को बचाना पड़ेगा...। गॉड मैने कभी नहीं सोचा था... मुझे ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा..... ।) वो... अरे! कोई बात नहीं छोटे मोटे जघड़े तो होते रहते है.... कोई बड़ी बात नहीं है... । सब ठीक हो जाएगा... । ( आइस पैक सिर पर लगाते हुए ) ।
पारुल: नहीं! वह बदल गया है, वह अब पहले जैसा नहीं रहा.... मानो जैसे मैं उसकी जिंदगी में अहमियत रखती हीं नहीं।
विशी: ( नाखून चबाते हुए: तुम अहमियत कैसे रखोगी जब उसने अपनी अहमियत किसी और को बना ली है। उसे अब शायद लड़कियां पसंद नहीं है। .... ) आई... एम सॉरी... ।
पारुल: ( विशी की ओर देखते हुए ) अरे! तुम क्यों सॉरी... बोल रहे हो...!? । इसमें तुम्हारी क्या गलती है...!? । वो इडियट तो ऐसा ही है.... इसमें कौन सी नई बात है... ।
विशी: ( मन में: तुम कितनी अच्छी हो, पारुल पर जब तुम्हे पता चलेगा कि.... तुम्हारा पति को अब मैं पसंद हूं... तब पता नहीं मेरा क्या हश्र होगा.... सिर को ना में हिलाते हुए।) चलो! फिर मैं तो यहां देखने आया था... सब कुछ ठीक है या... नहीं.... अगर कोई काम हो तो बुला लेना...।
पारुल: अम्म! विशी, ।
विशी: हन!? ।
पारुल: अ..अ... वो... मुझे कुछ काम था तुम्हारा.... क्या मैं इतना भरोसा कर सकती हूं.... ।
विशी: पता नहीं! लेकिन हां अगर कोई जरुरी बात हो तो... मैने पहले दिन ही कहां था... की जिस तरह से मैं अविनाश का दोस्त हूं... तुम मुझे भी अपना दोस्त... समझ सकती.... हो.... ।
पारुल: (हामी भरते हुए) शुक्रिया.... ।
विशी: बोलो! क्या बात है!? और ये बात हम दोनों के बीच में ही रहेगी! निश्चित रहो! तुम ।
पारुल: वो....वो..... हमारी शादी से पहले क्या ऐसा कुछ हुआ था... जिस वजह से अविनाश को मुझ पर गुस्सा आया हो....!? या फिर कोई ऐसी वजह जिस से अविनाश मुझ से नफरत करने लगा हो!? ।
विशी: क्..यों.... तुम्हे... ऐसा क्यों.. लग रहा है!? ।
पारुल: नहीं वो हम... इतने साल बाद मिले है.... लेकिन अचानक यू शादी मुझे... कुछ गडबड लग रही है..... ( मैं ऐसा तो नहीं कह सकती की उसने सोफिया को पाने के लिए मुझ से शादी की हैं.....! ) ।
विशी: नहीं... ऐसा तो कुछ नहीं था... बस.... ।
पारुल: बस... क्या..!? ।
विशी: आई डोंट थिंग सो! अब वो बात करना जरुरी है क्योंकि वो पास्ट की बाते है .. अब कुछ मायने नहीं रखती.. ।
पारुल: विशी! प्लीज वो इतनी इंपॉर्टेट ना हो फिर भी बता दो... शायद हम दोनों का झगड़ा सुलझ जाए! ।
विशी: ( तुम दोनों की झगड़े की वजह मैं हूं... वो बात नहीं... । ) नहीं... उस बात से तुम दोनो के झगड़े का कोई लेना देना नहीं है... ।
पारुल: विशी... प्लीज.... प्लीज... बता दो...! ।
विशी: ( थोड़ी देर सोचता है.... फिर ) फाइन..... लेकिन अविनाश को इस बात की भनक तक नहीं लगनी चाहिए....।
पारुल: ( सिर को हां में हिलाते हुए जवाब देती है। ) ।
विशी: ( वह सारी बात बता देता है.... पारुल की... बचपन की तस्वीर..... न्यूज वालों... को भेजना... अविनाश का गुस्सा होना.... वगेरह... वगेरह) ।
पारुल: लेकिन मैंने ऐसी तस्वीरें किसी को भेजी ही नहीं! तो ऐसा कैसे हो सकता है!? ।
विशी: क्या!? ( चौंकते हुए ) वो फाइल तुम्हारे मोबाइल से भेजी गई है... तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है।
पारुल: उस वक्त कोई आर नाम का इंसान था जो.... मुझे मेसेज कर रहा था... मैं गुस्से में भी थी तो उस इंसान ने कहां था कि यह.... फाइल मैं न्यूज वालो को भेज दु तो... अविनाश को चौंट पहुंचा सकती हूं .. तो मैने गुस्से में भेज दी... ।
विशी: ( गुस्से में पारुल की ओर देख रहा था। ) तुम... ऐसा कैसे कर सकती हो... बिना वो फाइल देखे... तुम्हारी उस गलती की वजह से अविनाश का पूरा करियर खत्म हो सकता था.... ।
पारुल: ( सिर जुकाकर ) सॉरी... मैं हर बार नादानी मैं ऐसी ही गलती करती हूं... ।
विशी: ( आंखे बंद करते हुए: कंट्रोल विशी! कंट्रोल वह भी मासूम है.... उसे पता नहीं था... तो गुस्सा निकालने का कोई फायदा नहीं...! गहरी सांस लेते हुए ) फाइन... अब तुम क्या चाहती हो..!? ।
पारुल: तुम क्या मेरे लिए सबूत ढूंढ सकते हो!? प्लीज... मैं कोई भी गलतफहमी नहीं चाहती... मैं एक बार गलती कर चुकी हूं... अब मैं नहीं चाहती की अविनाश मेरे वाली गलती करे.... ।
विशी: ठीक है... मैं कोशिश करुंगा... । और ये ( बेग पारुल को देते हुए ) तुम्हारा मोबाइल आ गया है तो... मैं वहीं देने आया था... ।
पारुल: मेरा मोबाईल...!? ।
विशी: हां वो माई ने फ़ोन करके मुझे सारी बात बताई थी तो..... अविनाश ने लेने को कहां!? । ( तुम्हे अगर पता होता कितनी मिन्नते मैने की है.... और आखिर में मुझे खुद को ही दांव पर लगाना पड़ा,। " सिर्फ तुम कह रहे हो इसलिए... " अविनाश की बात याद करते हुए....) ।
पारुल: थैंक्यू.... ( मोबाइल को ऑन करते हुए... ) ।
विशी: ठीक है... फिर अब मैं चलता हूं... ।
पारुल: विशी! एक और बात अगर तुम जब तक सबूत ना मिल जाए! ये बात अविनाश को मन बताना... ।
विशी: ( सिर को हां में हिलाते हुए... चला जाता है... । )।
पारुल ... बेड पर बैठे... बैठे.... मुझे नहीं पता अवि! मैं ऐसे अचानक क्यों कर कर रही हूं... तुम्हे माफ लेकिन एक बात बिल्कुल सच है... इस नफरत और प्यार की जंग अतीत की वजह से मैं जितना पीस रही हूं उतना... ही तुम भी पीस रहे हो.... भले... ही.... मैं.... उस वक्त माफ नहीं कर पाई क्योंकि उस वक्त मैं कौन सा "बुद्ध" थी ... जो बिना किसी नफरत..... दर्द के माफ कर देती.... । मैंने अपने परिवार को खोया था.... और साथ में मेरे बेस्ट फ्रेंड को भी.... जिसे मन ही मन मैं प्यार करने लगी थी... अब तुम ही बताओ..... कैसे माफ करती उस वक्त.... तुम्हे.... मैं सिर्फ.... अठारह साल की बच्ची थी.... जिसने.... एक ही दिन में.... सब कुछ खो दिया था..... मैं कैसे नॉर्मल इंसानों की तरह सोचती..... । और फिर ये गलतफहमी बढ़ती ही गई….. और कब हम एक दूसरे से दूर चले गए ये..... पता ही नहीं चला.....ना मैंने इस बारे में फिर से सोचने की कोशिश की.... ना तुमने.... लेकिन..... जब आज मैंने सेम को हमारी अतीत की बातें बताई तो मानो मुझे... अहसास हुआ... की... कहीं ना कहीं... हम दोनो ही किस्मत के इस घटिया खेल के मोहरे है..... और इसीलिए मैंने.... तुम्हे यह कहां की मैंने माफ किया.…. क्योंकि....तुम्हे याद है उस शाम तुमने मुझसे पूछा था कि मेरा दिल क्या कह रहा है...! मेरा दिल उस दिन भी और आज तक यहीं कह रहा था की तुम कभी ऐसा कर ही नहीं सकते.... पर मैं शायद... कभी बोल नहीं पाई... मेरी हिम्मत ही नहीं हुई... तुम्हे ये सारी बातें बताने की ... क्योंकि मेरे दिल और दिमाग में जो कश्मकश चल रही थी... मैं हमेशा दिमाग की ही सुनती थी। आज पहली बार मैं अपने दिल की सुन रही हूं... दिमाग तो अभी भी मुझे पागल कह रहा है... । लेकिन सच पूछो तो आज जब मैने तुमसे ये कहां की मैं तुम्हे माफ करती हूं... मानो दिल से एक बोझ सा उतर गया ... वो बोझ जो मैं सालो लेकर घूम रही थी.... । अवि! अगर कभी भी जाने अनजाने में....वैसे मैं जानती हू... मैने काफी चौंट पहुंचाई है... तुम्हे...क्या हम एक दूसरे को माफ नहीं कर सकते.... । उन सारी बातों को भूलकर एक नई शुरुआत नहीं कर सकते.... क्योंकी आज जब मैने सेम की वो हरकत देखी.... तो मुझे समझ नहीं आ रहा था की सेम का हाल इतने वक्त में ऐसा हो गया.... तो हम दोनो तो कब से ये नफरत में डूब रहे है... इसका अंजाम कभी भी अच्छा नहीं हो सकता.... इसीलिए... मैं इस नफरत के खेल से पीछे हटती हूं.... और फिर से एक बार दोस्ती का हाथ बढ़ा रही हूं...क्या तुम फिर से मेरे दोस्त बनोगे!? । पारुल यह मेसेज रेकोड़ कर रही थी....लेकिन अविनाश के नंबर पर भेजने की हिम्मत नहीं हुई.... तो वह मोबाइल को साइड में रखकर.... सो जाती है....।
अविनाश के चेहरे पर मुस्कुराहट समा ने का नाम नहीं ले रही थी.... लेकिन उसे सेम की चिंता और गुस्सा दोनों भी आ रहा था......अविनाश सेम को कॉल करते हुए..... मिलने बुलाता है। वह कार लेके उस जगह जाने के लिए निकल पड़ता है ........।
अविनाश: ( सिगरेट पीते हुए ) तुम मेरे घर पारुल से मिलने गए थे.... ।
सेम: ( सिर को हां में हिलाते हुए ) मुझे सच जानना था भाई! और आप तो मुझे बताने से रहे.... ।
अविनाश: क्या करते तुम जानकर कौन सा.... मैं....उसकी नजर में तो कातिल मैं ही रहता...।
सेम: नहीं... भाई आप ऐसा क्यों... कह रहे है, आप कभी ऐसा नहीं कर सकते.... ।
अविनाश: सेम अभी वो सारी बातें अतीत है... और अतीत को अतीत में ही रहने दो... ।
सेम: अगर मैं उस कातिल को ढूंढ निकालू तो क्या आप मुझे मेरी पारो लौटा देगे.... ।
अविनाश: ( सिगरेट फेकते हुए एकदम से सेम की ओर देखता है। ) ।
सेम: बोलिए भाई! अगर मैं पारुल के सामने आपको निर्दोष साबित कर दूं.... तो पारो को इस सारे झंझाल से आजाद कर दीजिए.... प्लीज.... ।
अविनाश: वो बीवी है मेरी.... ।
सेम: लेकिन आपने उसे बीवी का दर्जा दिया.... नहीं ना ... मैं प्यार करता हूं भाई उसे.... प्लीज.... मुझे मेरी पारो! लौटा दे... या फिर आप अभी भी उसे प्यार करते है!?।
अविनाश: ( वह हड़बड़ाहट में एक और सिगरेट जलाता है.... वह जानता था कि... वह खुद कि भावनाओ को नहीं दिखाना चाहता....। एक गहरी सांस लेते हुए ) नहीं! मैने सिर्फ उससे बदला लेने के लिए शादी की थी...!। और.... और कुछ नहीं... ( लेकिन उसका दिल कुछ अलग ही बात बयां कर रहा था.... । ) ।
सेम: भाई मैने आज तक आपसे जो कुछ भी मांगा... मुझे किसी भी कीमत पर लाकर दिया है.... । आज मैं आपसे मेरी पारो मांग रहा हूं.... प्लीज.... मुझे मेरी पारो.... दे.... दे.... मैं.... जी नहीं.... सकता उसके बगैर .....( गिड़गिड़ाते हुए ) ।
अविनाश: ( दांत भीसते हुए ) ठीक है.... अगर कल सुबह तक.... तुम उस.... कातिल... को ढूंढ कर ले आए.... तो... मैं पारुल को इस बंधन से आजाद कर दूंगा.....। ( मानो जैसे वह अपने हाथ से मौत को दावत दे रहा था। ) ।
सेम: ( खुशी मारे कार में एक धीरे से हाई फाई करता है लेकिन दर्द की वजह से उसकी कराह निकल जाती है। )
अविनाश: कितनी ज्यादा चौंट लगी है ....पागल तो नहीं हो गए थे......।
सेम: ये बात आप मुझे कह रहे है... जो खुद इतनी चौंट खा कर बैठे है।
अविनाश: हाहाहाहाहा..... ये भी ठीक है... लेकिन फिर भी मैं तुम्हे दोबारा ऐसी गलती करने की इज़ाजत नहीं देता ।
सेम: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) ये तो हिटलर गिरी हुई... ।
अविनाश: जैसा... तुम समझो..... ।
सेम: आपको आपका वादा याद है ना भाई.... ।
अविनाश: तुम मुझे अच्छी तरह से जानते हो सेम.... एक बार अगर मैं वादा कर दूं फिर किसी भी कीमत पर निभाता हूं!।
सेम: जानता हूं! भाई! मुझ से अच्छी तरह कौन जान सकता है!? ।
अविनाश: तुम इस बात से निश्चित रहो.... जल्द ही पारुल तुम्हारे साथ होगी... अगर तुम कातिल को ढूंढ पाए तो...।
सेम: आई होप सो.... भाई ऐसा ही हो... ।
अविनाश: ऐसा ही होगा.... ।
सेम अविनाश को गले लगाकर.... जल्दी से चला जाता है। अविनाश फिर से एक सिगरेट जलाकर आसमान की ओर देख रहा था.... काफी रात हो चुकी थी.... शायद ये रात भी काफी घनी थी आज क्योंकि आखिरी मुलाकात की रात थी.... । अविनाश राकेश को फ़ोन करते हुए.... ।" राकेश अभी जाओ.... और उस आदमी का पता ढूंढने मैं सेम की मदद करो.... ।" इतना कहते ही.... वह फॉन कांट देता है। अविनाश फिर से आसमान की ओर देखते हुए.... " मैं तो वैसे भी कौन सा जीता हुआ इंसान था.... परी..... मैं ही तुम्हे जबरदस्ती लाया था..... अब मैं ही.... तुम्हे तुम्हारी जिंदगी.... में वापस लौटाऊंगा...... । तुमने मुझ पर भरोसा कर लिया उतना.... काफी है..… साथ तो तुम्हारा कभी लिखा ही नहीं था। " इतना कहते ही वह कार लेकर निकल पड़ता है ।
पारुल काफी थक चुकी थी.... तो शायद इसलिए उसे नींद भी आ गई थी... । पिछले दो चार दिन से जो हो रहा है उसके बाद तो पारुल का इतना थकना जाहिर है। एक ही दिन में ना जाने कितने राज खुल रहे है... कितनी बड़ी बड़ी घटनाएं घट रही है... । मानो... जैसे सारे जहां के राज पारुल से ही जुड़े हुए थे....। पारुल ऐसे ही सो गई थी... शायद गहरी नींद में थी... इसलिए... उसे.... पता नहीं चला.... की.... कोई उसके कमरे में आया है... । अविनाश बेड के पास बैठकर... पारुल की ओर देखे जा रहा था। उसके चेहरे को हाथ से छू ना चाहता था लेकिन फिर... वह उसकी नींद खराब कर देगा... इस डर से हाथ पीछे कर लेता है। अविनाश पारुल के चेहरे को ही देखे जा रहा था.... । उसकी आंखों में आज एक अलग भाव थे.... मानो जैसे.... अविनाश पारुल के बाल को हल्के हाथ से दूर करते हुए.... फिर से उसे देखे जा रहा था.... ।
" शुक्रिया... परी.... मुझ पर भरोसा... करने के लिए.... काफी वक्त... ले लिया.... तुमने लेकिन मुझे यकीन था कि तुम जरुर वापस आओगी.... एक दिन मुझ पर यकीन करोगी.... मेरी दोस्ती पर मेरी मोहब्बत पर..... इस दिन का बरसो से इंतजार कर रहा था.... । तुम्हे पता है... जब तुमने मुझे कहां की तुमने मुझे माफ किया.... तब तुम सोच भी नहीं सकती थी.... की मैं कितना खुश था.... मैं तुम्हे कसकर बाहों में भर लेना चाहता था.... । लेकिन फिर... मेरी किस्मत तो तुम जानती हो.... कभी पूरी तरह से खुश होने नहीं देती... । उस शाम भी कुछ ऐसा ही हुआ था... मैं तुम्हे यहीं बताने आया था की मैं अपना सपना पूरा करने विशी के साथ जा रहा हूं... लेकिन...शायद मेरी किस्मत... उसने मुझसे तुम्हे छीन लिया फिर मेरी मां को... । लेकिन फिर भी मुझे यकीन था... की.... एक ना एक दिन तुम्हे अहसास होगा... की... तुम गलत थी.... मुझे अपनी मोहब्बत पर खासकर तुम पर पूरा यकीन था.... की तुम लौट कर जरूर आओगी.... और देखो मैं जीत गया आखिरकार.... तुम्हारा गोलू.... जीत गया... । तुम्हे पता है.... ( आंसू को पोछते हुए ) तुम अगर ना लौटती... तो मुझे अपने इस प्यार को खत्म करना पड़ता... क्योंकि परी उस प्यार का.... क्या मतलब जब भरोसा ही ना हो... । मैने तुम्हे एक बार कहां था की मुझे खेल खेलना पसंद नहीं.... याद है.... तुम्हे... वो मैं इसी के आधार पर कह रहा था.... । मुझे रिश्तों के साथ खिलवाड़ करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसीलिए मैं किसी को अपने करीब नहीं आने देता था... । ( पारुल के सिर पर किस करके जा ही रहा था की पारुल उसका हाथ पकड़ लेती है... । )
अविनाश की धड़कन मानो ट्रेन से भी ज्यादा तेज हो गई थी... उसे समझ नहीं आ रहा था की पीछे कैसे मुड़े... क्योंकि जो कुछ भी उसने कहां उसके बाद तो... तभी आवाज आती है... ।
पारुल: फिर से मुझसे दूर भाग रहे हो है ना... ।
अविनाश: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) नहीं... बस मैं भावुक हो गया था... और कुछ नहीं भूल जाओ और सो जाओ... तुम ।
पारुल: भावुक हो गए थे या फिर से अपनी भावनाओ को छिपाने लगे हो... ! तुम्हे लगा मैं सो रही हूं... जब इतनी बड़ी बाते सामने आई है तो मुझे नींद आती भी तो कैसे!?।
अविनाश: हम सुबह बात करेंगे! सुबह सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा! तो तुम सो जाओ! अब । ( अपना हाथ छुड़वाते हुए )।
पारुल: ( बेड पर से उठकर अविनाश के सामने आ जाती है। लेकिन जब उसकी शक्ल की ओर देखती है तो उसे समझ नहीं आ रहा था की ... अविनाश की शक्ल दोनो हाथो में लेते हुए) ये क्या हाल बना रखा है अपना!? ।
अविनाश: ( पारुल की ओर देखते हुए.... आंखे लाल... और सूझी हुई थी। मुस्कुराकर ) अब... इतने सालों का दर्द है.... अब एक साथ बाहर निकलेगा तो... कुछ ना कुछ तो असर होगी.... ।
पारुल: ( अविनाश की आंखों को उंगलियों से छूते हुए ) मैं.... जिम्मेदार हूं... ना तुम्हारी इस हालत की ।
अविनाश: ( एक मुस्कुराहट के साथ मना करता है। ) ।
पारुल: तुम मेरे सामने कब से जूठ बोलने लगे... ।
अविनाश: ( आंखे खोलते हुए... ) जाओ! आराम करो! अब । ( जाते हुए ) ।
पारुल: ( अविनाश का हाथ फिर से थामते हुए ) इस बार तुम कोई ऐसा काम कर रहे हो..... जिससे तुम्हारा दिल मना कर रहा है! है ना! ।
अविनाश: ( बिना मुड़े सिर हिलाकर जवाब देता है। ) मैंने वादा किया है.... ।
पारुल: ( फिर से अविनाश के सामने जाते हुए ... ) प्लीज! मत करो! क्योंकि मुझे लौटते हुए सालो लग गए! क्या पता इसके बाद हमें मौका मिले या ना मिले.. ।
अविनाश: मैं अतीत हूं... परी.... में तुम्हारे साथ कभी था ही नहीं.... ।
पारुल: क्या मतलब है! तुम्हारा!? ।
अविनाश: ( पारुल के चेहरे को दोनों हाथों में लेते हुए ) कल सुबह मुझे मेरी परी वापस मिल जाएगी... लेकिन ( खाखर निगलते हुए ) ।
पारुल: लेकिन क्या!? ।
अविनाश: लेकिन... तुम्हे यानी पारुल को वापस लौटना होगा... ।
पारुल: ( अविनाश के हाथो को खुद से दूर करते हुए ) तुम... जूठ बोल रहे हो... हैं... ना... ।
अविनाश: नहीं... ( उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। )।
पारुल: ( अविनाश सीने पर हाथों से मारते हुए....) तुम ऐसा कर भी कैसे सकते हो.... क्या मेरा तुम्हारी जिंदगी मैं कोई मायने नहीं है!? । जो तुम इतनी आसानी से फिर से दूर कर रहे हो!? तुम मेरी गलती दोहरा रहे हो.... अवि! ( रोते हुए ) ऐसे कैसे मुझ से बिना पूछे तुम ऐसा कर सकते हो... ।
अविनाश: ( पारुल के चेहरे को अपने करीब लाते हुए... दोनो की नाक एक दूसरे को छू रही थी.... । अविनाश के आंसू पारुल के चेहरे पर गीर रहे थे। ) हमारा साथ रहना कभी लिखा ही नहीं था परी!... तुम्हारे दिल में मेरे लिए नफरत नहीं होगी मेरे जिंदा रहने के लिए इतनी वजह काफी है.... । मैं दुआ करता हूं..... ( आंसू को रोकते हुए ) तुम..... तुम..... ( आगे बॉल नहीं पाता ) ।
पारुल: क्यों!? क्यों!? कर रहे हो! ऐसा.... क्या मिलेगा तुम्हे... देखो मेरी और खुद को देखो... तुम्हे कुछ याद नहीं आ रहा... उस वक्त भी ऐसी हालत थी... । मत करो प्लीज! इतनी आसानी से कैसे हार मान सकते हो तुम..!?।
अविनाश: हार नहीं मानी मैने परी! पर... मेरा वक्त बहुत पहले ही चला गया... मैं.... उसे वापस नहीं ला सकता...। तुम किसी और की अमानत हो... और मुझे उसे वापस लौटाना है।
पारुल: ( गुस्से में ) मैं कोई चीज नहीं हूं... जो तुम किसी को भी दे दो.... । मैं एक इंसान हूं अवि! इंसान और तुम्हे क्या लगता है... तुम मुझे दूर कर दोगे तो सारी... फीलिंग भी चली जाएगी... इनफेक्ट वो कभी गई ही नहीं थी... ।मैं बस स्वीकार नहीं कर पा रही थी.....। ( चिल्लाते हुए अविनाश का कॉलर पकड़ लेती है।) मैं पारुल खन्ना.... अविनाश खन्ना तुमसे प्यार करती हूं.... उस वक्त भी जब मुझे नफरत करनी चाहिए... थी। तो तुमने सोच भी कैसे लिया की तुम मेरे प्यार को... ऐसे किसी को भी दे दोगे हां! होते कौन हो तुम मेरे प्यार को बांटने वाले!? । मैने तुम्हे अभी तक हक नही दिया की तुम मेरे प्यार को ऐसे जुठलाओ... । समझे!? ।
अविनाश: ( आंखे बंद करके रोए जा रहा था । )
पारुल: क्यों!? ( अविनाश की शकल अपने हाथ में लेते हुए ) मेरी तरफ देखो!।
अविनाश: ( बंद आंखों से सिर हिलाकर मना करता हैं।)।
पारुल: प्लीज... एक बार मेरी तरफ देखो! प्लीज.... ।
अविनाश: ( फिर से मना करता है...! ) ।
पारुल: ठीक है फिर! ( पैरो की उंगलियों पर खड़े होते हुए अविनाश को किस करने लगती है। )।
अविनाश: ( आंखे खोलते हुए पारुल की ओर देख रहा था... वह आंखे बंद करते हुए, अविनाश को किस करने में व्यस्त थी... । अविनाश के लिए मानो यह सपने जैसा था की पारुल उसे अपने होशो हवास में किस कर रही है। लेकिन वह पारुल को... दूर करते हुए कहता है... ) परी! नो... ये गलत है... ।
पारुल: ( हंसते हुए ) तुम पति हो मेरे! और तुम कह रहे हो ये गलत है!? ।
अविनाश: ( अगर किसी ओर दिन अविनाश ये बात सुनता... तो शायद वह खुशी से झूम उठता लेकिन। ) परी... तुम जानती हो हमारी शादी... किस हालात में हुई थी।
पारुल: हाहाहा... तो... तुम कह रहे हो... की यह तुम्हारी गलती थी!? ।
अविनाश: परी! फॉर गॉड सेक! मेरा कहने का वो मतलब नहीं था.....।
पारुल: तो क्या मतलब समझूं! मैं.. मिस्टर अविनाश खन्ना...! या फिर तुमने ये शादी अपनी महबूबा... क्या नाम है उसका... हां सोफिया... को पाने लिए की है...और अब उसका ब्रेक अप हो गया है.... तो....तुम मुझ से छुटकारा पाना चाहते हो.! ।
अविनाश: ( अचानक पारुल के करीब जाते हुए....कसकर अपने करीब करता है। ) डोंट टेस्ट माय पेशंस परी! ( गुस्से में ) तुम अच्छी तरह जानती हो... की मैं इतनी नीच हरकत कभी नहीं करता... तो कुछ उल्टा सीधा हो उससे पहले... अपना ये मुंह बंद कर लो।
पारुल: ( अविनाश को इतना करीब पाकर उसकी धड़कन तेज होने लगी थी। ) तुम्हारा गुस्सा तो मुझे सही साबित कर रहा है... ।
अविनाश: ( गहरी सांस लेते हुए ) परी! मैं यहां सिर्फ आखिरी बार तुम्हे देखने के लिए आया था... बस... । तो प्लीज इस मुलाकात को एक अच्छी याद के तौर पर रहने दो! ।
पारुल: ( अविनाश के गले में हाथ रखते हुए ) वर्ना क्या!? ।
अविनाश: डोंट... बात को आगे मत बढ़ाओ... क्योंकि... ( पारुल के करीब चेहरा करते हुए....) एक बार अगर मैने कदम बढ़ाए तो तुम चाहोगी तब भी मैं तुम्हे पीछे हटने नहीं दूंगा.... चाहे फिर जबरदस्ती ही क्यों ना करनी पड़े.... ( पारुल के होंठ को अंगूठे से छूते हुए ) समझ में आई बात... तो मुझे उकसाना बंद करो! और जाकर आराम करो... । ( पारुल के हाथ गले से निकालकर उसे थोड़ी दूरी बनाकर ) गुड नाईट... ।
पारुल: तुम... सच में उससे इतना प्यार करते हो क्या!? ( चेहरे को हाथ से ढककर रोते हुए ) ।
अविनाश: ( अपनी जगह पर रुकते हुए ) परी! ये ड्रामा बंद करो! मैं खुद को बड़ी मुश्किल से रोके रखा हूं तुम क्यों मेरी मुसीबत और भी बड़ा रही हो!?।
पारुल: तो किसने रोका है.... तुम्हे..!? तुम्हारी उस गर्लफ्रेंड.... ।
पारुल बात पूरी करती उससे पहले ही अविनाश के होंठ उसके होंठ के ऊपर थे... । दोनो मानो पागलों की तरह एक दूसरे को किस कर रहे थे, जैसे रेगिस्तान में किसी प्यासे को पानी मिला हो और जिस तरह से वह पानी पीने लगे... बिल्कुल वैसा ही हाल अविनाश और पारुल का था...। दोनों एक दूसरे को ऐसे किस कर रहे थे जैसे इस किस पर उनकी जिंदगी निर्भर थी। जब थोड़ी देर बाद... पारुल किस करते हुए... अविनाश के शर्ट के बटन खोल रही थी... तो... अविनाश उसके हाथ थामते हुए कहता है.... । " एक बार और सोच लो परी! यहां से वापस जाने का कोई रास्ता नहीं है। " पारुल जवाब में अविनाश को किस करते हुए फिर से अविनाश के शर्ट के बटन खोलने लगती है,... दूसरी ओर अविनाश पारुल का दुप्पटा गले से उतारते हुए जमीन पर फेंक देता है। पारुल को गोद में उठाकर बेड पर रखकर फिर से किस करने लगता है। शायद आज की रात कुछ ज्यादा ही गहरी थी....आज बरसों के बाद वे लोग एक दूसरे के इतने करीब आए थे जहां से अब वह दो जिस्म एक जान तक का रिश्ता तय कर लिया था ...... चांद आज पूरी तरह से खिला हुआ था.... आज ना जाने उसकी रोशनी में कुछ एक अलग ही चमक थी...मानो जैसे यह कोई सामान्य रात नहीं थी। कोई खास रात थी। सहीं भी था..... आज वे दोनो एक हुए थे... जिन्होंने किस्मत के पन्ने पलट दिए थे। नियति के विरुद्ध लड़ कर हर एक मुश्किल से लड़कर एक दूसरे का साथ पाया था। वो साथ जिनके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। ...... और वैसे भी कहते है ना की... जिंदगी इसी का नाम है यहां कब,क्या, कैसे हो जाए और आपको पता भी नहीं चलता। आपने सोचा कुछ और होता है... और होता कुछ और है। इन दोनो के साथ भी ऐसा ही था... । उन दोनो शायद कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि... वह दोनो कभी साथ होंगे... खैर! शायद इसी लिए इसे जिंदगी कहते हैं... जो भी है इस पल मे जी लो.... क्या पता फिर मौका मिले या ना मिले..... ।