अनजान रीश्ता - 97 Heena katariya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनजान रीश्ता - 97

मैं और अविनाश प्ले हाउस से साथ थे... लेकिन जब हम दोनो पहली बार मिले तो.... हमारी इतनी बनती नहीं थी... वह हमेशा मुझे चिढ़ाता रहता था, मैं हमेशा उससे गुस्सा रहती थी। हम दोनो तीसरी कक्षा तक इसे ही रहे....। फिर एक दिन एक लड़का जो की प्यारा था उसने मुझ से कहां की क्या मैं उसकी दोस्त बनूगी...!। तभी अविनाश वह दूर खड़े... हुए सब देख रहा था... फिर.. उसने उस लड़के को एक पत्थर फेंक के मार दिया और चला गया.....। उस दिन से मेरी नफरत अविनाश के लिए और भी बढ़ गई.... हम घर पर हमारे परिवार के सामन तो एक दोस्त की तरह व्यवहार करते.. लेकिन.... दोनों को परेशान करने का कोई... मौका नहीं छोड़ते.... । बस उसके बाद किसी भी लड़के ने मुझे दोस्ती के लिए कहां ही नहीं.... हाहाहाहा। बस फिर हम दोनो पांचवीं कक्षा तक एक दूसरे को परेशान करते और कुछ भी नहीं....। फिर एक.... दिन ( थोड़ी देर रुकते हुए ) पैरेंट्स मीटिंग थी.... और अविनाश नहीं आया था..... मैं देखती रही लेकिन वह आया नहीं.... । जब दूसरे दिन वह आया तो.... बिलकुल ही आवारा लड़के की तरह दिख रहा था। बाल बिखरे हुए.... आंख पर चौंट का निशान... शायद वह किसी से झगड़ा कर के आया था... । जब मिस ने उससे पूछा कि कल अपने मोम डेड को लेकर पैरेंट्स मीटिंग में क्यों नहीं आया तो.... वह कहने लगा की वे। लॉग शहर से बाहर गए है... । इतना कहते ही वह अपनी सीट पर बैठ गया था।


मैने एक-दो बार उसकी बार देखा था... लेकिन शायद वह किसी गहरी सोच में डूबा था... आज पहली बार मैंने उसे ऐसी हालत में देखा था... । तो उस वक्त मेरे मन में भी बहुत सारे सवाल उठ रहे थे... । जब उस दिन ब्रेक की घंटी बजी तो मैं सीधा अविनाश के पीछे पीछे...जा ही रही थी.. की तभी तीन चार लड़के अविनाश के सामने आ गए... । दिखने में वे लोग काफी बड़े थे... शायद वह हमारे सीनियर थे.... वे लोग अविनाश के कंधे पर धक्का देते हुए उसे दुत्कार रहे थे.... । जब मैंने ध्यान से सुना... तो .... हाहाहाहाहा.... देखो! ये हमारी स्कूल का सबसे बड़ा रोमियो.... कल पेरेंट्स मीटिंग में नहीं आया... जानते हो क्यों...!? क्योंकि इसका तो बाप ही नहीं है... इसकी मां को छोड़ कर चला गया.... । यह सुनकर मानो उस वक्त मुझे समझ नहीं आ रहा था कैसे महसूस करु... लेकिन जब वह सब मिलकर अविनाश को मारने लगे... तो... मुझसे रहा नहीं गया ... और में चिल्लाते हुए उन लोगो को सामने चली गई...। अविनाश मुझे आंखो के इशारे से जाने के लिए कह रहा था लेकिन... मेरा मन मना कर रहा था.... मैं शायद ही अपनी जिंदगी में इतनी बहादुर थी... क्योंकि ज्यादातर कोई ऊंची आवाज में बात करता तब भी मेरी आंखों से आंसू छलकने लगते ... ।

मैं वहीं खड़ी थी... तभी वे चारो लड़के हंसने लगे.... अविनाश को यह देखकर और भी गुस्सा आ रहा था.... । वह जमीन पर से खड़े होते हुए मेरी बाई ओर खड़ा होते हुए कहता है... यह बात हम लोगों के बीच की है तो इस लड़की से मेरा कोई लेना देना नहीं है... मैने तुम्हारे दोस्त को मारा क्योंकि वो किसी के बारे में अनाप शनाप बोल रहा था... । अगर वह फिर से बोलेगा तो मैं फिर से मारूंगा... । यह सुनकर उस वक्त मेरे चेहरे पर खौफ साफ साफ दिख रहा था... लेकिन अविनाश वह तो मुस्कुरा रहा था। तब मुझे समझ आया की मुझे इस इंसान के किसी भी मसले में नहीं पड़ना चाहिए था... । लेकिन अब मैं पड़ चुकी थी तो वापस हटने के दरवाजे भी बंद हो चुके थे। अब मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करु... जिससे वह लोग चले जाए... क्योंकि मुझे किसी के हाथ के थप्पड़ नहीं खाने थे... । तुम्हे पता है... ( सेम की ओर देखकर हंसते हुए ) एक पल के लिए अविनाश की इस नादानी पर मुझे इतना गुस्सा आया की मैने सोचा मैं भी उस लडको के साथ मिलकर उस गधे को दो चार थप्पड़ लगा दू! लेकिन फिर उस दिन पहली बार मैंने उसकी ओर सही से देखा था.... । उसकी ओर देखते ही मानो ऐसा लगा की.... उसे गले से लगा लूं... इतना अकेला लग रहा था... । यहीं मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी शायद... क्योंकि मैं अगर ऐसा ना करती तो आज भी हम अनजान होते एक दूसरे से। ( सेम की दूसरी ओर फर्श पर बैठते हुए ) उस दिन उसकी किस्मत अच्छी थी की प्रिंसिपल आ गए थे... । लेकिन वह उन लोगों की कंप्लेंट करने के बजाय मेरा हाथ पकड़ कर स्कूल के पीछे वाले रास्ते की ओर जा रहा था... ।

जब उसे लगा कि हम लोग कुछ दूरी पर है... तो मुझसे पता है उस इडियट ने क्या कहां...की मैं वापस क्लासरुम में जाने के लिए कह रहा था... पहले तो मुझे लगा वह मजाक कर रहा था लेकिन जब मैने उसकी ओर देखा... तो पहली बार मुझे ऐसा लगा कि वह हमारा हम उम्र ना होकर... कोई बड़ा इंसान हो... उसके चेहरे पर बच्चो वाली मासूमियत ना होकर..... बड़ो जैसी गंभीरता,चिंता थी। जब मैंने देखा तो उसके गाल से खून बह रहा था, जिसे वह बार बार उंगली से साफ कर रहा था। मानो उसके लिए यह बिलकुल सामान्य सी बात थी। मैंने उस दिन दूसरी गलती की उसे बैंडेज देकर... । पहले तो वह हिचकिचिया लेकिन फिर लेकर अपने गाल पर लगा ली। मुझे शुक्रिया कहने की बजाय, उसने कहां की यहां जो भी  हुआ यह बात घर नहीं पहुंचनी चाहिए... । इतना कहते ही स्कूल की दीवार कूद कर चला गया। जैसे ही वह दीवाल पर चढ़ा मैं तो डर ही गई थी की.. उसके हाथ पैर टूट जाएंगे... लेकिन शायद यह भी उसके रोज मराज के कामों में से एक था ।

उस दिन के बाद हम एक दूसरे से दूर ही रहने लगे! अगर कभी हम एक दूसरे से कभी... मिलते तो भी ध्यान नहीं देते थे। लेकिन दोस्ती की शुरुआत तब हुई जब एक माह बाद मुझे पता चला... जब मैं वॉशरूम जा रही थी... मेरा ध्यान... उन चार लड़कों पर फिर से जाता है.... और उनके सामने एक लड़का खड़ा था लेकिन उसकी पीठ.. मेरी और थी तो मैं उसे देख नहीं... पाई... थी... लेकिन जब वह लड़के ने कहां... देखो ये रोमियो.... खुद लड़ तो सकता नहीं.... और उस लड़की को बचाएगा... । जब मैने सुना तो मुझे लगा कि शायद किसी लड़की का मामला है... लेकिन जब मैने अपना नाम सुना तो पांव वही थम गए... । हमे बस अपनी शर्त से मतलब था! फिर कौन सा हम उस पारुल को मारने वाले थे सिर्फ प्रैंक तो कर रहे थे  । अबे! यार जब उस दिन मैं उसे दोस्ती के लिए कहने गया था तब भी इसने मुझ पर पत्थर फेंक कर मारा था। तब मुझे याद आया की यह वहीं लड़का है जिसने एक बार मुझ से दोस्ती के लिए कहां था...मैने सोचा यह इन लोगों के साथ क्या कर रहा है! । लेकिन जब उन लोगों ने कहां तब मेरे सारे सवाल के जवाब मिल गए... । अरे! यार अगर ये ब****द बीच में ना आता तो आज मैं शर्त जीत भी चूका होता और पैसे भी मेरे होते। तभी इस लड़के को एक मुक्का पड़ता है ... और जब मैने आवाज सुनी तो मुझे समझ आ गया... फिर से अविनाश है। नाम भी मत लेना तुम उसका.... और हां मुझे बात बढ़ानी नहीं है... इसलिए मैं ये तुम लोगों की मार सहन कर रहा हूं.... अगर मुझे तुम लोगों को मारना ही होता तो उस दिन ही हड्डी पसली एक कर चुका होता.... । तो अब ये बच्चो की तरह खेल खेलना बंद करो... और मर्द की तरह बात करो! । क्या चाहते हो! । जब मैने सुना तो मुझे सब से बड़ी बेवकूफी लगी.... क्योंकि वह लोग अविनाश से कद काठी में बड़े थे और... काफी ताकतवर भी थे। दूसरी और उस वक्त अविनाश इतना... ताकतवर नहीं था। सिर्फ दिखने में अच्छा था । वह लड़के... कुछ कहकर चले जाते हैं ।

उन लोगों के जाने के बाद मैं अविनाश से कई सवाल पूछना चाहती थी... की उसने मुझे क्यों बचाया!? अब एक छोटा सा प्रैंक ही तो था... । इसमें कौन सी बड़ी बात थी। हां ठीक है थोड़ी समय तक मैं रोती लेकिन फिर भी संभाल लेती खुद को..! । मैं जब आगे ही बढ़ रही थी की तभी अविनाश ने कहां " तुम मेरे मामलो से दूर क्यों नहीं रहती! , हर बार टांग अडानी जरूरी है क्या!? " यह सुनकर मैं पहले तो चौंक गई की उसे कैसे पता चला कि मैं ही हूं... और मैंने क्या किया!? उल्टा ये मेरी बात है तो मेरा जानने का पूरा अधिकार बनता है। और मैने गुस्से में उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया... मैं कितना भी चिल्लाती... ना तो वह कोई जवाब दे रहा था और ना ही उसके चेहरे पर भाव बदल रहे थे....। जब मैं थक गई तो वह अपने इस बुत वाले भाव को बदलते हुए सिर्फ दो शब्द ही कहे... की मैं उससे दूर रहूं! । यह सुनकर... मेरा पारा और भी चढ़ गया... मैं गुस्से में उसका हाथ थामने गई तो मेरे नाखून की वजह से उसके हाथ खरोच आ गई... । अविनाश यह देखकर मुस्कुरा रहा था... और मुझे जंगली बिल्ली कह कर जाने ही वाला था ।

तभी मैं उसे चिल्लाकर कहां की अगर उसने मुझे सब कुछ सच सच नहीं बताया तो मैं उसकी मॉम को ये सारी बाते बता दूंगी... । यह सुनकर वह मानो जैसे गुस्से में आ गया था। मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार... किसी की एक नजर से खौफजदा हुई थी। पहली बार मुझे अविनाश से डर लगा था... । मानो जैसे वह मुझे आंखो से ही मार डालेगा.... । हम दोनों गार्डन की ओर आगे बढ़े... । उसने एक बेंच पर बैठते हुए.. कहां पूछो क्या पूछना चाहती हो... । " वैसे तो मुझे डर लग रहा था... ऐसा नहीं था की वह मेरे साथ कभी कोई गलत तरीके से पेश आया हो... पर उसका स्वभाव ही ऐसा था। की ना चाहते हुए भी मुझे एक डर लगा रहता था । फिर भी मैंने हिम्मत करके उसे पूछ ही लिया की वह लड़के क्या बात कर रहे थे । "

अविनाश ने पहले एक बार मेरी और नजर डाली और फिर से नजर सामने की ओर करते हुए कहां... सच सुनना चाहोगी या जूठ...!? । पहले मुझे लगा कि इंसान को सच ही सुनना पसंद करेगा! भला जूठ कौन जानना चाहेगा... । लेकिन मैं यह बाते उसके मुंह पर नहीं कह सकी तो सिर्फ सच इतना ही बोल पाई। उसने सिर को हां में हिलाते हुए.... सारी की सारी कड़वी सच्चाई... मेरे मुंह पे थोप दी ..... मैं जानती थी कि में बड़ी हो गई हूं... मुझे... ऐसे बच्चो की तरह रोना नहीं चाहिए था लेकिन... मुझ इस बात पे गुस्सा आ रहा था की कोई इतनी घटिया सोच वाला भी कैसा हो सकता है। वे लोग किसी की भी भावना के साथ खेलने के बारे में कैसे सोच सकते है। और ऊपर से अविनाश भी मुझे शांत करने की कोशिश नहीं कर रहा था... उस बात पे मुझे और भी गुस्सा आ रहा था। मैंने आंसू पोंछते हुए... उसकी ओर देखकर कहां...... तुम सच में हार्ट लेस हो... । " मेरी यह बात सुनकर वह हंस पड़ा... मैंने इतने साल में पहली बार उसे हंसते हुए देखा था। क्योंकि वह मुस्कुराता जरूर था पर कभी हंसता नहीं था... । जब सारा क्लास भी हंस रहा होता था... तब भी वह बिना किसी भाव के चुपचाप अपने काम में व्यस्त रहता था। तो यह पहली बार था जब मैने उसे हंसते हुए देखा था.... शायद इसीलिए मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था... । पर मुझे क्या पता था कि मैं... मैं.... उसे... पसंद करने लगी हूं... । जब मैने देखा तो  फिर से गंभीर भाव उसके चेहरे पर लौट आए थे। उसने सिर्फ एक ही बात कही मुझ से... मेरे अपने कुछ रुल्स है... और मैं जब दर्द देता हूं तो मरहम नहीं लगाता और जब मरहम लगता हूं तब किसी भी तरह का दर्द पहुंचने नहीं देता किसी भी कीमत पर नहीं। वह जाने ही वाला था की मैने उससे रोकते हुए कहां... दोस्ती करोगे मुझ से....!? और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया... । उसने एक बार पीछे मुड़कर पहले थोड़ी देर के लिए मेरे चेहरे की ओर देखा और फिर मेरे हाथ की और... । फिर मेरे हाथ पर ताली मारते हुए कहां की... उसे खेल खेलना पसंद नहीं! । जिसे मैं अभी तक समझ नहीं पाई की क्या मतलब था उस बात का। पर खैर! उस दिन के बाद मैं हर दिन उसके आगे पीछे घूमकर उसे परेशान करने लगी ।

एक दिन जब वह मेरी हरकतों से परेशान हो गया तो वह गुस्से में आकर मुझ से कहने लगा की मेरी प्रोब्लम क्या है... क्यों मैं उसे परेशान कर रहीं हूं... । अब मुझ पर कोई इतनी  जोर से चिल्लाया नहीं था तो मेरे लिए यह बहुत ही बड़ी बात थी। और आंसू बहने लगे! । यह देखकर वह और भी गुस्सा हो रहा था लेकिन जब आसपास सभी स्टूडेंट हमारी और देखने लगे तो... अब वह मुझे चुप कराने की कोशिश कर रहा था। मैं फिर भी नहीं मानी तो थक हार कर उसने कहां " तुम चुप होने का क्या लोगी! आसपास सभी देख रहे है, प्लीज चुप हो जाओ इससे पहले उल्टी सीधी बाते फैल जाए। " बस मै इसी मौके के फिराक में थी... मैने आंसू पोंछते हुए कहां दोस्ती कर लो मुझ से... !? ।" मैं जानती थी की मैं आग से खेल रही थी... लेकिन सीधे तरीके से तो ये मानने से रहा...एक यहीं उपाय मुझे सही लगा... । उसका चेहरा गुस्से से लाल हुए जा रहा था... पर जो की मैं रॉ रही थी शायद इसी वजह से वह कुछ बॉल नहीं रहा था। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो... मैने रोने का ड्रामा फिर से शुरु कर दिया... । जब उसके बर्दास्त के बाहर हो गया तब उसने चिल्लाते हुए कहां की... ठीक है! आज से मैं तुम्हारा दोस्त अब प्लीज ये रोना धोना बंद करो ।

यह सुनकर तो मानो मैं खुशी से झूम उठी थी... मैने सटाक से उसे कसकर गले लगा लिया... । हा उसने अभी तक मुझे गले नहीं लगाया था। उसके हाथ साइड में ही थे। पर मुझे अभी कहां फर्क पड़ रहा था। उसने दोस्ती के लिए हां कह दी यहीं मेरे लिए बड़ी बात थी... । बस फिर क्या था... रोज में उसे जबरदस्ती अपने साथ ब्रेक में नाश्ता करने के लिए के जाती... खेलने के लिए भी,। हां यह बात अलग है की उसका व्यवहार हमेशा रूखा रूखा सा ही रहता था। पर फिर भी कभी कभी वो हंस देता था। तो थोड़ा थोड़ा उसमे बदलाव आ रहा था।

हम छ्ठ्ठी कक्षा में आ गए थे... अब तक अविनाश भी थोड़ी बहुत बाते करने लगा था.. । लेकिन फिर भी उसने कभी भी अपनी बातें मुझे नहीं बताई थी.. । जैसे की अगर मैं दुखी होती या गुस्सा होती तो मैं उसे बता दिया करती...इस बार फिर से पेरेंट्स मीटिंग के थोड़े दिन पहले ही नोटिस आ गई थी... । और में यह तो जानती थी कि अविनाश के डेड नहीं है... लेकिन फिर भी वह अपनी मॉम को लेकर तो आ ही सकता है... । पर ना जाने क्यों! मैं जब भी इस बारे में बात करती वह मेरी बात टाल देता। फिर पैरेंट्स मीटिंग का दिन आया! मै उसका इंतजार कर रही थी। वैसे तो उसने कहां था की वह नहीं आने वाला.. लेकिन फिर भी मुझे लगा कि शायद आ जाए! । मैं दरवाजे की ओर देख ही रही थी... पर फिर मेरा नाम आया तो मैं अपने मॉम डैड के साथ मिस के पास चली गई...  । मेरे सारे रिपोर्ट्स और सारी बाते हो ही रही थी की तभी दरवाजा खुलने की आवाज आती है। ऐसा नहीं था की किसी हॉरर मूवी की तरह आवाज आई हो। पर मेरा ध्यान दरवाजे पर ही था तो मुझे सुनाई दिया। अविनाश दरवाजे पर खड़ा था... उसकी एक तरफ उसकी मॉम खड़ी थी... जिसे मैं एक दो दफा मिल चुकी हूं... और दूसरी ओर कोई आदमी खड़ा था.... सूट बूट में... । उन्हें मैं नहीं जानती थी... । तो मैने एक बार फिर से अविनाश की ओर देखा... वह मुझे ऐसा लगा जैसे खुद को रोके रखा था।  मानो जैसे वह यहां आना नहीं चाहता था... ।

मैं फिर से अपनी जगह पर आ गई.. तो फिर मिसने मिस्टर और मिसेज रायचंद कहां तो मैंने देखा अविनाश की मॉम और वो आदमी खड़े हो गए... । अविनाश अभी भी वहीं बैठा हुआ था... उसकी मॉम उसे मुस्कुराते हुए कान में कुछ कह रही थी..... । अविनाश फिर धीरे धीरे उनके साथ मिस के पास गया... थोड़ी देर बाद वे लोग जाने के लिए निकल ही रहे थे की तभी मुझे ऐसा लगा कि जैसे जो आदमी आया था वह थोड़ा गुस्से में था... । अविनाश के चेहरे पर अभी भी कोई भाव नहीं थे। तभी मेरे मॉम डैड ने भी कहां की चलो... अब चलते है... तो मैने भी हामी भर दी... । मैने आखिरी बार अविनाश की ओर देखा पर शायद आज उसका ध्यान मेरी ओर था ही नहीं... । मैं घर पहुंच कर कार से उतरकर सीधा अविनाश के घर की ओर जा रहीं थी... मॉम को खेलने जा रही हूं यह कहकर... मैं भागते हुए अविनाश के घर चली गई...। मैं जब दरवाजे पर पहुंची तो दरवाजा आधा खुला था। वे लोग हॉल में से कुछ बाते कर रहे थे। या बहस कर रहे थे। वो आदमी जो की अविनाश के डेड थे... वह काफी गुस्से में लग रहे थे... । जानवी आंटी उन्हे शांत करने की कोशिश कर रही थी। और जब अविनाश... मैने उसकी ओर देखा तो मानो उसे कोई डर नहीं था... । कभी कभी तो मुझे लगता था कि उसे कैसे किसी का भी डर नहीं है। आखिर कार है तो वह भी छोटा बच्चा ही... । अविनाश मुस्कुराते हुए कहता है... ना मैं आपका बैटा हूं और ना ही आप मेरे बाप... तो आप ये जबरदस्ती के रिश्ते मुझ पर थोपना बंद कर दीजिए... मिस्टर अश्विन रायचंद अपनी वाइफ के पास जाईए और हां, मैं सिर्फ और सिर्फ अविनाश खन्ना हूं... अविनाश जानवी खन्ना... । तभी एक तमाचे की आवाज आती है। अविनाश के डेड ने उन्हें एक थप्पड़ मारा था। उसकी आवाज इतनी जोर की थी की मेरे कान गूंजने लगे थे। अविनाश का मुंह दूसरी तरफ हो गया था... जब उसकी नजर दरवाजे की ओर पड़ी... जहां मैं खड़ी थी... तो मानो मुझे एक डर सा लगने लगा था....। उसकी आंख में साफ साफ... गुस्सा झलक रहा था.... । मानो जैसे उसका गुस्सा किसी को मार कर ही शांत हो पाएगा।

अविनाश अपने चेहरे पर हाथ रखकर बिना कुछ कहें भाग कर घर से बाहर जा रहा था। जब उसकी मां उसे रोकने की कोशिश करती है तो उसके डेड उसे रोक लेते है। मैं अभी भी अपनी जगह पर खड़ी थी । मैं वहां से जाना तो चाहती थी पर मेरे पांव हील ही नहीं रहे थे! । तभी अविनाश मेरे हाथ थामकर मुझे वहां से लेकर गार्डन में आ गया था। दोपहर का टाइम था तो ज्यादातर कोई था नहीं। अविनाश मेरे हाथ छोड़ते ही एक झूले पर बैठ गया था। उसके गाल पर अभी भी उंगलियों के निशान साफ - साफ दिख रहे थे। मैंने भी गहरी सांस ली और उसके पास वाले झूले पर बैठ गई... । मैं उसे पूछना चाहती थी... की वह ठीक तो है... लेकिन मेरी जबान में से कोई लफ्ज़ निकल ही नहीं रहे थे...। हम दोनों ऐसे ही खामोशी से बैठे रहे! जब मुझ से रहा नहीं गया तो मैंने हिम्मत कर के पूछ लिया... । " तुम ठीक हो!? " मैने इंतजार किया लेकिन जब कोई जवाब नहीं आया तो फिर से मैने अपनी नज़र उसकी ओर घुमाई... वह अभी भी किसी सोच में डूबा था। काफी इंतजार के बाद उसने कहां " तुम्हे मुझे इस हालत में नहीं देखना चाहिए था। " यह सुनकर मेरे पांव सुन्न पड़ गए थे... पहली बार मैने अविनाश के लहजे में एक भाव का अनुभव किया था। मानो जैसे आज जो बात कर रहा है वह असली वाला अविनाश हो!। मुझे दोहरे भाव का अनुभव हो रहा था... एक पल के लिए मुझे खुशी भी मिल रही थी और दूसरे पल के लिए... मुझे उसके लिए बुरा भी लग रहा था...  । फिर थोड़ी देर ठहर कर मैने उससे कहां " जानती हूं! पर अवि! अगर तुम्हे किसी के साथ की जरूरत हो तो मैं यही हूं! । खुद पर इतना जुल्म करने की जरूरत नहीं है। कभी कभी रॉ लेने से दिल हल्का हो जाता है।" ये शब्द काफी बड़े थे लेकिन पता नहीं मेरी जुबान से निकल गए... शायद मेरा दिल कहना चाह रहा था । इसलिए... । उसने फिर कोई जवाब नहीं दिया... मैं फिर से उसके जवाब के इंतजार में रही... थोड़ी देर बाद रोने की आवाज मेरे कान में पड़ी... जब मैने नजर उठाई तो... अविनाश रो! रहा था.... । बिना किसी आवाज के वह चुपचाप रो रहा था। यह मंजर देख कर उस पल मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल मच रही थी। मानो जैसे वह रोते हुए बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था... इससे अच्छा तो वह जब बिना किसी भाव के चेहरा बनाए रखता वही बेहतर था। पर फिर वह तो ढोंग ही हुआ... ।

मैं अपने झूले में से खड़ी हुई और जमीन पर घुटनों के बल उसके पास बैठते हुए कहां... " कोई नहीं यार इसमें क्या है!? सबके डेड गुस्से में ऐसी गलती करते है... देखना जब तुम घर जाओगे ना तो तुम्हे मनाने के लिए क्या क्या करेंगे! । " वह रोते हुए, ना में सिर हिलाकर मेरी बात से असहमति जता रहा था। मैने फिर आगे कुछ ना कहां और उसके शांत होने के इंतजार में थी। मैं जमीन से खड़ी हुई और अपनी जींस पर से धूल साफ करने लगी... अब पता नहीं इस में ऐसी कौन सी मजेदार बात थी..... वह खुद को हंसने से रोक नहीं पाया... भले ही कुछ क्षण के लिए सही! लेकिन उसे हंसता देखकर मुझे अच्छा लगा । उसकी हंसी... सबसे अलग थी... मानो जैसे दरिया में हीरा ढूंढने जैसा... कभी कभी ही हंसता लेकिन... ऐसा लगता की उसकी हंसी ना होकर कोई कीमती चीज हो जिसे बेवजह बिगाड़ नहीं सकते । शायद इसीलिए वह कम हंसता था... ।

वह झूले पर से उठकर मेरे पास आया..... मेरे बाल बिगाड़ते हुए उसने कहां... " शुक्रिया " । मैने अपने कान में उंगली करते हुए उसकी ओर देखा की कहीं मेरे कान तो नहीं बज रहे... । मेरी इस हरकत से फिर से वह मुस्कुराने लगा... कभी कभी तो मुझे लगता था की वह कोई जोकर हूं... क्योंकि मैंने इस इंसान को अभी तक ना ही किसी के सामने मुस्कुराते हुए देखा तो हंसते हुए देखना तो दूर की बात थी । तब भी जब क्लास में कोई जोक मारता चाहे कितना भी हसने लायक हो उसके चेहरे पर रती भर बदलाव नहीं आते थे। मैने ख्यालो को दूर करते हुए... उससे पूछा... तुमने अभी अभी क्या कहां!?।
उसने आगे बढ़ते हुए कहां... तुमने सुना राइट... । मैने आश्चर्य में उसकी ओर देखा की वह मुस्कुराते हुए बात कर रहा है! मानो जैसे यह अविनाश... है ही नहीं कोई और है।


बस उसी के बाद हम दोनो एक दुसरे के नजदीक आ गए थे। अविनाश दिन ब दिन मुझे इतना परेशान करने लगा था की मानो कभी कभी तो मुझे खुद के ऊपर ही गुस्सा आने लगता की मैने उससे दोस्ती का हाथ क्यों बढ़ाया। पर मैं खुश थी... वह बाकियों की तरह नहीं था। मतलब के रिश्ते रखने वाला.... और अब तो वह मुझ से कुछ छुपाता भी नहीं था... उसके घर की बात हो या कोई और.... वह सीधा मेरे पास आता था। मैने कभी नहीं सोचा था कि जो लड़का बिना किसी भाव के चुपचाप बैठे रहता था वह लड़का... इतना शरारती, नटखट, समझदार भी हो सकता था। हम दसवीं कक्षा में आए! और अभी तक उसने मेरे आसपास एक भी लड़के को भटकने भी नहीं दिया जो भी आता उसे भगा देता... । अब तक अविनाश भी हड्डी पसली में से गोलू मोलू बन गया था। जो की वह बहुत ही क्यूट लग रहा था। और सच कहूं तो दिन ब दिन लड़कियां उस पर दौरे भी डाल ने लगी थी... जो की मुझे बिल्कुल भी पसंद नही था पर अविनाश उनकी ओर आंख उठा कर भी नहीं देखता था तो कोई चिंता की बात भी नहीं थी। हम दोनों का रिश्ता अभी सिर्फ बेस्ट फ्रेंड तक ही सीमित था। हा लेकिन हम दोनों इस बात से वाकिफ थे की हम दोनों की बीच कुछ तो खास है।

जब हम ग्यारहवीं कक्षा में आए तो... एक लड़के ने मुझे प्रपोज किया... मैं जैसे ही गुलाब लेने वाली थी... अविनाश ने उस लड़के को मार मार के टमाटर जैसा बना दिया... हमारा पहला झगड़ा हुआ था। मेरे मॉम डैड और जानवी आंटी के बीच भी अब गहरा रिश्ता बन चुका था। अविनाश का घर उसके घर से ज्यादा मेरा था। तो मेरे घर पर भी यहीं हालत थी... । तो हम दोनो के पेरेंट्स हमारी सुलह करवाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन ना वो मानने को तैयार था और ना मैं!। फिर उन लोगों ने भी कोशिश छोड़ दी... । हम दोनो साथ स्कूल जाते, एक दूसरे के घर भी जाते लेकिन एक दूसरे से बात नहीं करते....। करीब दो तीन महीने बीत गए... मेरे जन्मदिन कल था... हर साल अविनाश मुझे रात के बारह बजे पहली बधाई देता... । लेकिन शायद आज ऐसा नहीं होने वाला था... । मैं बालकनी में खड़े खड़े ऐसे सोच रही थी...। की तभी गमले के गिरने की आवाज आती है। सामने देखा तो अविनाश खड़ा था... । मैने आश्चर्य में उसकी ओर देखा... मैं जानती थी वह किस लिए यहां आया था लेकिन मैं भी ठहरी जिद्दी... उससे बात करने की उत्सुकता के बावजूद मैने उससे बात नहीं की ओर चुपचाप आसमान की ओर देखने लगी... । आज चांद पूरा खिला हुआ था... और आसपास तारे टिमटिमा रहे थे.... । बिलकुल जैसे मुझे पसंद है। वह भी आसमान की ओर देखने लगता है। बारह बजने में सिर्फ चार मिनिट ही बाकी थे....। मैं जानती थी इस बार तो अविनाश खन्ना हारेगा ही क्योंकि बुरी तरह फंसा हुआ है। मेरा बर्थ डे विश तो वो करेगा ही... लेकिन अगर बोलेगा तो भी प्रोब्लम नहीं बोलेगा तो भी प्रॉब्लम... मुझे काफी मजा आ रहा था... उससे ऐसे धर्मसंकट में देख कर । वर्ना ये लोमड़ी के दिमाग वाला किसी भी तरह से रास्ता निकाल लेता है। अब देखती हूं, कैसे...निकालेगा... रास्ता... । मैं बस ऐसा सोच ही रही थी की कब वह बिलकुल मेरे सामने आ गया मुझे पता ही नहीं चला।

मैं बालकनी में रेलिंग के सहारे खड़ी थी और वो बिल्कुल मेरे सामने... मुझे डराने की कोशिश कर रहा था... की शायद में चिल्लाकर कुछ बोल दूं तो उसे हारना ना पड़े। मैं भी सीधा होते हुए..... उसकी आंखों में आंखे डाल कर घूरे जा रही थी। हां ये बात अलग थी की मेरे पेट के अंदर कुछ अजीब सी गुदगुदी हो रही थी... । पर मैं उसे इग्नोर करते हुए घूरे जा रही थी... । तभी उसने एक और कदम आगे बढ़ाया... उसके पैर मेरे पैरो को छू रहे थे... । अब मुझे थोड़ा असहज लग रहा था... पर मैं ठहरी गधी मैने फिर से अपनी जिद्द नहीं छोड़ी...। अब उसे थोड़ा झुकना पड़ा मेरे सिर की ओर देखकर बात करने के लिए... । और ये बात मुझे आज भी समझ नहीं आई की बचपन से हम दोनों का कद एक समान था ये पता नहीं कौन सी दवाई इसने खाई है या ऐसी कौन सा काम करने लगा जो खंभे जितना लंबा हो गया। मैने कई दफा उससे पूछा भी की कम से कम तू जितने पैसे मांगेगा उतना मैं दूंगी पर कम से कम मुझे जो भी दवाई खाता है वो लाकर दे दे ताकि में ५"४ से थोड़ी और लंबी हो जाऊ! । ऐसा नहीं है की मुझे मेरी हाईट से कोई तकलीफ है लेकिन यह इंसान हर बार ही मेरी हाईट का मजाक उड़ाता रहता था.. । खैर! उसने एक बार फिर मेरी आंख में गहराई से देखा...  मानों जैसे कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहा था। थोड़ा और करीब हुआ तो हमारी नाक एक दूसरे से छू रही थी। और अब मेरे दिल धड़कने की बजाए! मंदिर में जैसे घंटी बज रही थी... वैसा लग रहा था। मेरा गला तो सुख ही गया था.... क्योंकि पहली बार था जब हम इस तरह से करीब... थे। मेरे पांव मानो कमजोर पड़ गए थे... मुझे ऐसा लग रहा था की अगर मैं थोड़ी देर और भी खड़ी रही तो... गिर ही जाऊंगी... । मैं अपनी सारी जिद्द... सारी बाते जैसे भूल ही गई थी... ।

तभी मेरे रुम में घड़ी में घंटी की आवाज आती है। और यहां मेरे दिल में जो हो रहा था उस के सामने घड़ी की घंटी की आवाज भी कम थी...। मानो जैसे अविनाश उस घड़ी की घंटी का इंतजार कर रहा था... जैसे वह घंटी ना होके रजामंदी का पैगाम हो। जैसे ही वह बजी.. उसने रेलिंग पर दोनो हाथ रखकर अपने होठ मेरे होठ पर रख दिए...। और मानो यह किस ना होके कोई जादू हो... मेरे पेट में अजीब अजीब सी गुदगुदी हो रही थी... और पांव तो थे ही नहीं। शायद पहला किस था इसलिए... । अब मेरी उम्र  बहकने वाली भी थी... और अविनाश पहला लड़का था जिसने मुझे किस किया था... तो मैं भी उस वक्त भावनाओ में बह गई... और उसे किस करने लगी... । अब मुझे अभी तक नहीं पता क्या... क्यों... कैसे... बस हो गया... । जब मुझे लगा कि मेरा दम घुटने लगा है... तब मैने सोचा की कहीं ये मुझे मारने का प्लान तो नहीं कर रहा... तभी वह थोड़ी दूर हुआ... और जब मैं उस पर चिल्लाने ही वाली थी की... उसने मुस्कुराते हुए कहां... हैप्पी बर्थ डे.... ।  अब मेरी हालत उस वक्त बिलकुल भीगी बिल्ली जैसी थी.…. वह तो पूरा बेशर्म था... माना वह लड़कियों के साथ कभी रिलेशन में नहीं था लेकिन फ्लर्टिंग के मामले में उससे बेशर्म इंसान आज तक मैंने नहीं देखा था... ।

पारुल: तुम्हे याद हैं! मैने तुमने मुझे किस किया था तुम्हारे बर्थ डे पे.... और मैं गुस्सा हो गई थी... ।
सेम: ( सिर को हां में हिलाते हुए जवाब देता है। ) ।
पारुल: उस वक्त मुझे यहीं घटना धुंधली धुंधली नजर आ रही थी... और इसी वजह से मैं! कार में चली गई थी। खैर! । ( गहरी सांस लेते हुए )।

मैं वहीं शर्म के मारे लाल हो रही थी यह बात मुझे महसूस हो रही थी... क्योंकि ऐसा लग रहा था... जैसे मेरे गाल,कान में खून ना दौड़कर कोई गर्म प्रवाही बह रहा था। अविनाश वहीं खड़े! खड़े... बस मुझे देखे जा रहा था... । मानो जैसे वह मुझे पहली बार देख रहा हो...! । जब वो नजर नहीं घुमाता तो मैने गुस्से में उसे कह दिया..." बेशर्म, घटिया, निहायती लिच्चड इंसान घूर क्यों रहे हो.!? ।" हर बार की तरह वह मेरे बाल बिगाड़ते हुए हंसने लगा... । मेरा गुस्सा और बढ़ाने के लिए... । उसके बाद उसने ऐसी हरकत कभी नहीं की, ना ही मुझे कभी याद दिलाने की कोशिश की... जब भी हम मिलते तो वह वैसे ही व्यवहार करता जैसे कुछ हुआ ही नहीं... यह भी ठीक था... वर्ना मैं तो उससे बात करने से रही... । मैं भी अब उस हादसे को भूल ही चुकी थी.. । हम दोनो को आखिरी दिन था आज स्कूल में...हमारी बारहवीं... क्लास भी पूरी होने वाली थी... वह आज सुबह से मुझे कॉल पे कॉल कर रहा था की उसे जरुरी बात करनी है... तो मैंने उसे गार्डन में मिलने के लिए कहां था... । दोपहर का वक्त था जब मैं निकलने ही वाली थी की..... मेरी एक दोस्त का कॉल आता है की... उसका एक्सीडेंट हो गया था... । और उसके घर पर अभी कोई नहीं है तो.. मुझे वहां जाना पड़ा... । मैने अविनाश को कॉल करने की कोशिश की तो उसका फ़ोन बंद आ रहा था । उसे हॉस्पिटल ले जाने के बाद... जब मैं वापस गार्डन की ओर जा रही थी तो..... मैने....मैने..... देखा..….. की.... मेरे घर के..... सामने..... लोगों..... की भीड़ ..... खड़ी थी..... । ( पारुल खुद को रोते हुए रॉक नहीं पाती। ) । मैं जब कांपते हुए हाथ पैर से जब अंदर गई... तो मैने.... जो देखा मानो.... जैसे मेरी सारी दुनिया एक ही दिन... में तबाह हो गई.... थी.... । वह इंसान जिससे मैं अपना दोस्त मानती थी... जिससे जाने अनजाने मैं प्यार कर बैठी थी.... उस इंसान के हाथ में चाकू था.... उसका पूरा शर्ट... मेरे मां पापा के खून से भरा हुआ था... । मैने शायद अपने सोचने समझने की शक्ति वहीं पर खो दी थी... । बस इतना देखते ही मैं वहीं पर बेहोश हो गई थी... ।

फिर किरीट अंकल मुझे अपने साथ ले गए! अविनाश ने मुझे कई दफा मिलने की कोशिश की ... कॉल किए... मेसेज किए... लेकिन.... मैं अब उससे बात नहीं करना चाहती थी... अगर मैं चाहती भी तो किस मुंह से बात करती... वह मेरे मॉम डैड का कातिल था... आखिर कार.... । एक दिन जब में कमरे में बैठी थी तो... मैने बिना देखे... फॉन उठा लिया.... जब आवाज सुनी तो मैं फॉन काटने ही वाली थी... लेकिन जब उसे गिड़गिड़ाते हुए सुना... तो दिल कमजोर पड़ गया..... । ( "मैं भी कितनी बेशर्म हूं ना सेम... मेरे मां बाप को मरे हुए तेरह दिन ही दिन हुए थे और मैं फिर भी उस इंसान के गिड़गिड़ाने पर कमजोर पड़ गई। " ) । वह एक आखिरी बार मिलने के लिए मिन्नते कर रहा था... । मैं उसकी बात सुन ही रही थी की..... मेरी नजर एफ.आई.आर. के कागज पर पढ़ी... आखिर मुझे उसकी शक्ल भी देखनी थी जब केस के बारे में पता चलेगा... । मैने हां कर दी.... । मैं तेरहवी के बाद .... शाम को उसे मिलने गई.... । मुझे उसे मिलने का बिल्कुल भी मन नहीं था लेकिन यह एफ.आई.आर. भी तो उसके मुंह पर मारनी है.... ।

भारी कदमों से मैं गार्डन में पहुंची... मानो इतने सालो की सारी यादें.... मेरी आंखों के सामने.... किसी फिल्म की तरह चल रही थी... । मैने जब देखा तो अविनाश दूर.... जमीन पर बैठे बैठे घांस तोड रहा था। उसकी पीठ मेरी और थी लेकिन मानो... मैं कमजोर पड़ गई थी... जो भी हिम्मत मैने खुद को दे रखी थी.... वह एक क्षण में गायब हो गई थी। मैं जैसे तैसे कर के.... उससे थोड़ी दूर जमीन पर बैठ गई! । उसकी ओर देखने की हिम्मत नहीं थी मुझ में क्योंकि जानती थी ... अगर एक बार भी देखूंगी... तो मेरा दिल मुझसे ही बगावत कर बैठेगा.... । मैने जितनी दूर उससे जाने की कोशिश की उतनी ही मैं उसके ख्यालों में उलझने लगती थी। उसने मेरी और एक नजर उठाकर देखा... मैने जानबूझ कर उसकी ओर देखने के बजाय आसमान की ओर देखने लगी.... । वह मुझे एकटक देखे ही जा रहा था... मानो... जैसे वह मुझे सालो बाद  देख रहा हो.... । मैने फिर भी कुछ नहीं कहां... । थक हार कर उसने मुझ से कहां... तुम बदल गई हो.... । यह बात सुनकर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाई क्योंकि वह मुझ से कह रहा था जिसने अपने मां बाप को खोया हो.....। वह मुझे फिर से देखने लगता है मानो जैसे इतनी देर घूरने के बाद भी उसका जी नहीं भरा था... । तुम्हे सच में लगता है कि मैंने तुम्हारे मॉम डैड को मारा है... तुम क्या इस बात को सच मानती हो.... । बस इसी वजह से मैं उससे दूर भाग रही थी... क्योंकि लाख दफा समझाने के बावजूद भी मेरा दिल उसी की तरफदारी कर रहा था। मैंने एक गहरी सांस लेते हुए उसे कहां... मेरे मानने या ना मान ने से क्या फर्क पड़ता है... सच तो सारी दुनिया जानती है..... । इसके आगे मैं एक लफ्ज नहीं बोल पाई शायद... हिम्मत ही नहीं थी मुझ में।


उसने मेरे हाथ थामा और अपने सीने पर रख दिया.... । तुम जानती हो... मुझे किसी से कोई मतलब नहीं... है.... तुम्हे सुनाई दे रहा है... ना... मैं इस दिल की बात कर रहा हूं.... जो अभी तुम्हारे दिल में भी धड़क रहा है... और चाहे कुछ भी करो.... हमेशा धड़केगा.... बस एक बार अपनी नजर उठाकर मेरी और देख लो..... कसम खा कर कहता हूं..... तुम्हे मेरी शक्ल तक नहीं दिखाऊंगा.... । बस एक बार कह दो की तुम मुझ पर भरोसा करती हो...बस एक बार मेरी बात सुन लो... एक बार बस एक बार अपनी नज़र उठा लो .... । उसकी बातें मुझ पर असर कर रही थी... मानो जैसे वह बातो का कोई जादूगर हो....। मैं अपनी नजर उठाने ही वाली थी की मेरी नजर पेपर पर पड़ती है.…..और सारी भावनाएं हवा के झोंके की तरह गायब हो गई थी। मैंने अपना हाथ जटकते हुए खींच लिया... और पेपर को एक मुट्ठी में पकड़ लिया...। उसे कांपते हुए... हाथों से... मैने पेपर उसकी ओर किए... अविनाश का ध्यान अभी भी मेरी ओर ही था लेकिन... मैने उसकी ओर नहीं देखा था... । ये लो.... !?।
अविनाश पेपर की ओर एक बार देखता... फिर मेरे हाथ में से लेकर वह पढ़ रहा था.... मैने बस तिरछी नजरों से उसकी ओर देखा था.... उसके चेहरे पर दर्द के भाव थे...। मानो उसे एक झटका लगा था.... । मैने जल्दी से अपनी नजर घूमा ली....क्योंकि थोड़ी देर ओर देखती तो मैं पूरी तरह से टूट जाती उसके सामने.... उसे पूछना तो बहुत कुछ था, लेकिन कुछ हिम्मत हीं नही थी... और वैसे भी पूछने के लिए बाकी था ही क्या!? ।

मैं बस उठकर जाने के लिए मुड़ने वाली थी.... । की उसने मेरा हाथ थाम लिया.….. अब मेरा सब्र का बाण टूट रहा था... टिप... टिप आंसू बहना चालू हो गए थे... । उसके आवाज पर से लग रहा था की वह खुद को रोना पड़े इसलिए खुद को रोके रखा था। इस दुनिया में आना और तुम्हे पाना यहीं एक मुकाम के लिए आया हूं में जाना । चाहे दुनिया साथ दे ना दे, तुम साथ निभाओ या ना निभाओ...। मैं परछाई की तरह साथ रहूंगा । ये हवाएं मेरी यादों का पैगाम लाएगी...। तुम्हे हर पल हर घड़ी सताएगी.... की तुमने जितना तड़पा रही हो मुझे अपनी इस नफरत भरी आंखों से जाना... अब मेरे प्यार भरी एक नजर के लिए तरसोगी... अगर फिर दुनिया में आऊंगा मैं फिर से तुमसे ही मोहब्बत करुंगा ........ पर....जाना तुम पास होकर भी दूर हो गई हो... साथ होकर भी कहीं खो गई हो..... इस जंग ए मोहब्बत में जीत कर भी मै हार गया... जब मेरे महबूब को ही मेरी मोहब्बत पर एतमाद ही नहीं तो आज ये महबूब तुम्हे अपनी इस मोहब्बत के बंधन से आजाद करता है.... अब मैं तुम्हे कभी नहीं मिलूंगा.... चाहकर भी नहीं....! । बस और मुझ में सुनने के हिम्मत नहीं थी मैने उसके हाथ में से अपना हाथ छुड़वाया... और मैं भागते हुए... गार्डन में से बाहर चली आई ....। जब मैं जा रही थी तब जानवी आंटी... मुझे मिली मैं उनसे... मिलना नहीं चाहती थी लेकिन.... वह मेरा हाथ थामकर मुझे अपने घर ले गए..... और वहां पर वह अविनाश के कमरे में जाकर मुझे कुछ दिखाने की बात कर रहे थे....  । मेरा इतना मुड़ नहीं था की मैं कुछ भी सुनूं या देखना चाहूं..... मैं जैसे ही खड़ी होकर निकलने वाली थी वह हड़बड़ी में सीढ़ी से पिसलकर गिर गई..... ।

मैने जब देखा तो... वह जमीन पर गिरी पड़ी थी..... । मैं उन्हे बचाना चाहती थी लेकिन मेरा दिमाग काम हीं नहीं कर रहा था..... मैं उस वक्त पागल जैसी हो गई थी.... । मैने अपना फोन उठाया और एंब्यूलेंस को फॉन किया.... और एड्रेस बता दिया... । मुझ में अविनाश को कॉल करने की हिम्मत नहीं थी... इसलिए मैने उसे मेसेज कर दिया..... । मैं फिर अंकल के घर चली गई..... । मैं घर पहुंची तो रात हो चुकी थी.... मैं दरवाजे के सामने खड़ी थी...... लेकिन मेरा मन मुझे खा ए जा रहा था..... और में फिर से भागते हुए एंप्यूलेनस वालो को कॉल करके .. ..... हॉस्पिटल का पता मांगा ......। जब मैं वहां पहुंची। तो अविनाश के डेड उसे सबके सामने थप्पड़ मार रहे थे... । वह गुस्से में लाल आंखो से उसे देख रहा था....। मैने अविनाश का सबसे भयावह रुप उस दिन देखा था.... । वह मेरी मां थी तो अगर उसकी मौत मेरे हाथों से हुई है तो यह हम दोनों के बीच का मामला है.... मिस्टर... रायचंद अब तक मैं आपकी बदतमीजी सहन करता था तो वह मेरी मां की वजह से.... अब एक और बार आपने उंगली से भी मुझे छू ने की कोशिश की तो कसम से.... अच्छा नहीं होगा... । अब जाईए.... और अपने परिवार के साथ जश्न मनाएं! क्योंकि आपको परेशान करने वाली तो चली गई.... और ये मगर मच्छ के आंसू से आप मेरी मां को पिगला सकते है मुझे नहीं.... अविनाश के डेड रोते हुए चले गए  । मैने उस दिन देखा अविनाश चाहने पर कितना पत्थर दिल बन सकता है... । उसकी आंखों में आंसू की एक बूंद भी नहीं थी। मैं जब उसके सामने गई तो उसने अपनी नजर उठाकर भी नहीं देखा...  मेरे दिल पर मानो कोई खंजर चला रहा हो....। उसने बस एक लफ्ज़ हीं कहां..... तुमने अपनी ओर से नाता तोड दिया... अब में आज से अपनी ओर से नाता तोड़ता हूं... हमारे बीच कुछ भी होगा तो सिर्फ अनजान रीश्ता.... । बस एक नजर उसने मेरी ओर उठाई और मुझे उसमे कोई भी भाव नहीं दिख रहे थे... । वह फिर से पुराना अविनाश बन चुका था.... । ना वह मुझ से नफरत करता था ना ही प्यार...... किसी भी तरह का भाव नहीं था...। वह मुझे वैसे ही छोड़ कर चला गया.... और फिर मैं वहां सोचते सोचते कब गीर गई पता ही नहीं चला! और मेरी यादाश्त चली गई।

पारुल:  उसके बाद की कहानी तो तुम जानते ही हो। में अविनाश से इवेंट में मिली... फिर हमारा एक्सीडेंट... फिर मेरी यादाश्त वापस आना... । और ....
सेम: ( पारुल को पानी देते हुए ) लेकिन इतने सालो बाद फिर भाई ने शादी क्यों की! तुमसे!? ।
पारुल: वो...वो...।
सेम: ( पारुल के हाथ पर हाथ रखते हुए ) बताओ पारो! प्लीज.... ।
पारुल: वो..... मैं उससे रेस्टोरेंट में मिलने गई थी... । वहां.. पर किसीने तस्वीर खींच ली... और फिर ब्लैकमेइलिंग.... मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी की तुम्हे बता सकूं... और तुम क्यों मेरी बात पर भरोसा करते... भाई है... वो तुम्हारा... ।
सेम: और तुम मेरा प्यार.... तुमने एक बार मुझे पहले बता दिया होता.... शायद परिस्थिति कुछ और होती... ।
पारुल: मैं किस मुंह से बताती... तुम्हे... मुझे डर था कि मैं तुम्हे खो दूंगी... मैं पहले ही बहुत लोगों को खो चुकी थी... बड़ी मुश्किल से एक दोस्त मिला था मैं उसे नहीं खोना चाहती थी ।
सेम: तुमने इसी चक्कर में मुझे और भी दूर कर दिया पारो! पता नहीं मैं ये बाते भूल पाऊंगा या नहीं लेकिन... मैं तुमसे दूर नहीं रह सकता... हां ये बात सच है कि मैं तुम्हे इतनी आसानी से माफ भी नहीं कर पाऊंगा... ।
पारुल: से... म... ।
सेम: ( आंसू रोकते हुए ) ठीक है फिर.... अब पता नहीं क्या होगा.... कैसे होगा.... कुछ ना कुछ तो सोचना पड़ेगा..।
पारुल: सेम.... तुम..... । तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है... जिससे पारुल और सेम दोनों घबरा जाते हैं.... । पारुल सेम और कमरे की ओर देखती है तो उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे!?। तभी पारुल सेम को बालकनी के पर्दे के पीछे छिपाते हुए जल्दी से दरवाजा खोलती है।

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