तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग - 27) - वाणी की अधुरी Priya Maurya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग - 27) - वाणी की अधुरी







राधिका की शादी बड़े धूम धाम से हो चुकी थी। शादी होते होते सुबह भी हो चुकी थी इसलिये विदाई की तैयारियाँ होने लगी। राधिका से लिपट कर वाणी और अस्मिता भी खूब रोयी उसके बाद कुम्हारों ने डोली में बिठा कर उसे कुछ दूर लाया और फिर गाड़ी मे बिढा विदाई हो गयी।
सबकी आँखे नम थी।
उत्कर्ष अभी तक आदित्य अस्मिता और वाणी के साथ था।
अस्मिता रोते रोते सुबके जा रही थी तभी आदित्य उसे कंधे से पकड कर -" अरे इतना कौन रोता है ।"
अभी अस्मिता कुछ बोलती की वाणी सुबकते हुये बोलती है -" इतना तो विदाई मे जबर्दस्ती रोना पड़ता है अगर हम रोयेंगे नही तो फिर हमारी विदाई की समय कोई नही रोयेगा फिर तो रोने वालों को बुलाया जायेगा ,,,, फिर अलग से खर्च आयेगा ,,।" इसके बाद वो और तेज तेज चिल्ला कर रोने लगती है।
सभी लोग उसे मुहं फाडे देख रहे थे बस। और उत्कर्ष तो किसी तरह बस अपनी हंसी छुपा रहा था । अभी तक वाणी के घर मे से किसीका ध्यान नही गया की ठाकुर साहब का लड़का भी है यहां।
अस्मिता वाणी से कुछ बोलने ही जा रही थी की वाणी फिर चिल्लाकर रोते हुये बोलती है -" राधिका दीदी तुम चली गयी अब मेरा क्या होगा ,,, काकी के घर मे घुस पर जब दूध की मलाई खाउँगी तो मुझे कौन बचायेगा और चोरी से घर के बाहर कौन निकलने देगा ,,,, हें हें हें।"
उसकी बात सुन सभी लोग जोर जोर से हंसने लगते हैं और इधर काकी जो अभी तक रो रही थी वो अपना चप्पल निकालते हुये -" रुकू जाऊ अभी तुको बताते है ,,, हमको भी लगता था की कऊन घर मे घुसता है ।"
इतना बोल वो वाणी के पीछे भाग जाती है और वाणी भागकर अस्मिता के पीछे भाग जाती है। फिर उसके बाद वाणी को दौड़ते दौड़ते काकी थक कर वहीं एक खाट (चारपाई) पर बैठ जाती है और हाफंने लगती है।
काकी -" कर्मजली अभी तुम्हरे बाबा से शिकायत करते हैं ।"
इधर वाणी के अम्मा और बाबा भी वही बस हँसे जा रहे थे। काकी की हाँफते हुये अचानक ध्यान उत्कर्ष पर जाता है जो की वहीं आदित्य के पीछे खड़ा था।
काकी अचानक से उठते हुये उत्कर्ष के सामने झुककर उसे प्रणाम करती है फिर बोलती हैं -" अरे ठाकुर साहब आप इंहा ,,, कौनौ गलती हो गयी का हम लोगो से।"
अब तो उत्कर्ष की सांसो के साथ साथ वाणी , अस्मिता और आदित्य की भी सांसे थम गयी ।
अस्मिता धीरे से आदित्य से बोलती है -" यह बुडबक लड्की अपने ही जैसे बुड़बक इन्सान से प्यार कर के आ गयी है ,,,, अब तक यह यही है।"
आदित्य एक बार उसकी तरफ देखता है फिर सबसे बोलने ही जा रहा था की उत्कर्ष उसका दोस्त है और उसे देख वो भी यहां आ गया लेकिन तभी उत्कर्ष उसका हाथ पीछे से जोर से पकडते हुये आगे आ जाता है और उसे बोलने से रोक देता है क्योकि फिर सबको यह शक हो जाता की आदित्य ठाकुरो से कैसे दोस्ती कर लिया।
उत्कर्ष आगे आकर बोलता है -" वो हम यहां से गुजर रहे ,,,,,,,।"
इसके आगे वो कुछ बोल पता की 9 - 10 जीप धुल उडाते हुये आई और राधिका के घर के सामने रुक गयी।
उसमे हर गाड़ी मे से पहले हाथो मे बन्दूके लिये हुये 20 - 25 बॉडीगार्ड निकले ।
सभी देख कर एकदम दंग थे की यह कौन आ गया।
फिर आखिरी जीप से तीन आदमी निकले जो बड़े रौब से आगे आ रहे थे तीनो ही 50 - 55 साल के लग रहे थे ।
लम्बी लम्बी मूछें गले मे मोटी मोटी सोने की चेन कुर्ते मे से थोडा थोड़ा दिखती रिवाल्वर उनको भयानक बना रही थी।
अस्मिता और आदित्य के अलावा सबके चेहरे की रंगत उड़ चुकी थी । अस्मिता - आदित्य को समझ नही आया की लोग इतना डर क्यूं गयें हैं।

उत्कर्ष के मुहं से अचानक निकला -" बाबा , चाचा , काका आप तीनों यहां क्या कर रहे है।"
तभी एक रौबदार आवाज गुंजी -" उत्कर्ष बाबा यह बात तो हमको आपसे पूछना चाहिये । "
उत्कर्ष सकपकाते हुये -" काका ,,,, व ,,,,व ,,,,,वो हम्म।"
तभी उस दुसरे आदमी तेज से गुर्राते हुये बोला -" चुप ,,, भैया ने सब बता दिया है हम सबको ,, की आप क्या गुल खिला रहे हैं । '
इसबार उत्कर्ष के बाबा दांत पीसते हुये बोलते हैं -" क्यूं आयें है ,,, जब बोला था की इन दो कौडी के लोगो के साथ हम कभी आपका रिश्ता नही जोड़न्गे।
सारे गावँ के लोग मुह फाडे बस देख रहे थे की क्या हुआ और कुछ कुछ तो सबको समझ भी आ रहा था की पक्का यहां लड्की का चक्कर है लेकिन वो लड्की कौन है अब सबका ध्यान इस तरफ था।
वाणी की हालत खराब हो रही थी डर के मारे हथेलियों मे पसीना आने लगा था। उसकी हालत देख काकी , उसकी अम्मा - बाबा को अंदेशा हो गया था ।
उत्कर्ष के काका ने अपने कर्कस आवाज मे बोला -" कौन है वो लड्की।"
उत्कर्ष इतना सुनते ही वाणी की तरफ देखने लगा और सबको जानते देर ना लगी की वाणी ही वो लड्की है जिसके लिये उत्कर्ष यहां आया था।
उत्कर्ष के चाचा वाणी के पास जाते हुये उसे अजीब नजरों से देख गालों को तेजी से दबाते हुये बोलें -" तो यह है ,,,, ऐसी चरित्रहीन लडकिया बड़े लोगो को बस फंसाती है फिर किसी और के साथ उड़ जाती है ,,,, और ऐसे निम्न वर्ग और चरित्रहीन को तुम हमारे ठाकुर खानदान की एकलौती बहू बनाना चाहते हो।"
इस बार तो ना केवल आदित्य , अस्मिता का दिमाग गर्म हो गया था बल्कि वाणी के अम्मा बाबा भी बहुत गुस्सा हो चुके थे। कोई अपनी सन्तान के बारे मे ऐसा सोच भी नही सकता ।
और उत्कर्ष भी भला कैसे सुन सकता था यह सब वो भी वाणी के बारे में जिसके लिये वो कुछ भी करने को तैयार था। उत्कर्ष गुस्से से चिल्लाया -" चुप हो जाईये अब बहुत हो गया चाचा ,,,।"
उत्कर्ष के चाचा को यह बिल्कुल भी अच्छा नही लगा उन्होने उत्कर्ष के बाबा से शिकायत करते बोलना शुरु किया -" देख रहे है भैया ,,, क्या संस्कार दिया है आपने अपने लड्ले को किसी लड्की के लिये लड़ रहा है हमशे।"
वाणी भी इस बार आपे से बाहर हो चुकी थी। वो चिल्लाते हुये सबके बीच आकर बोली - " आप ठाकुर साहब आप ,,, संस्कार की बात करते है जो इन्सान किसी लड्की के चारित्र को एक सैकेण्ड मे नाप तौल कर बता दे रहा है वो इन्सान संस्करो की बात कर रहा है ,,, इतना ही संस्कार आपको मिले होते ना ( फिर घिन भरी नजरों से देखते हुये ) तो रात मे कोठे पर नही मिलते आप।"
वाणी का इतना ही कहना था की उत्कर्ष के बाबा का गुस्सा फुट पडा -" तू दो कौडी की लड्की हमको संस्कार सिखाओगी ।" इतना बोल वो जैसे ही वाणी को मारने के लिये हाथ उठाते हैं उत्कर्ष उनका हाथ पकड लेता है।
उत्कर्ष के बाबा , चाचा और काका बस गुस्से से उत्कर्ष और वाणी को देखे जा रहे थे।
उत्कर्ष के काका -" यह क्या ,,,।"
तभी अचानक उत्कर्ष बोल पडा -" मेरी होने वाली पत्नी है वो ,,, उसके खिलाफ कोई आँख भी उठा कर देख ले फिर मै उसको बताऊंगा।"
उत्कर्ष के चाचा हँसते हुये -" वाह वाह उत्कर्ष बाबा ,,, शादी हुई नही और आप अभी से ,,,,,खैर ! होगी भी नही कभी।"
अस्मिता को इस समय सबसे ज्यादा गुस्सा उत्कर्ष के चाचा पर आ रहा था। अस्मिता आगे बढ कुछ बोलने ही जाती है की आदित्य उसका हाथ पकड लेता है और ना मे सिर हिला देता है।
अस्मिता उसकी तरफ देख कर -" क्यूँ।"
लेकिन आदित्य कुछ नही बोलता है बल्कि अस्मिता को आँखो से ही शान्त रहने का इशारा कर देता है।
आदित्य नही चाहता था की अस्मिता यहां बिच मे जाये क्योकि माहौल पहले ही खराब था और फिर कुछ भी हो सकता था।
उत्कर्ष के चाचा वाणी के पास जाते हुये -" क्यू लड्की अभी तुमने क्या बोला की मै चारित्रहीन हुं इसलिये कोठे पर जाता हुं ,,, ना।"
इतना बोल वो गुस्से से वाणी के दुपट्टे को खीच नीचे फेंक देते हैं।
इसके बाद तो अस्मिता के सब्र का बांध भी टूट गया । उत्कर्ष कुछ बोलता या करता उसके पहले ही अस्मिता गुस्से मे चलते हुये सीधे उत्कर्ष के चाचा के पास जाती है और धीरे से उन्हे अपने तरफ घुमा जोर का थप्पड गालों पर रसीद कर देती है। उसने इतना तेज मारा था की उनके गालों से खून आने लगा था।
इस बार उत्कर्ष के काका गुस्से में आते है और बोलते हुये अस्मिता को मारने के लिये अपना हाथ उठाते हैं -" तुम दो कौडी के लोगों का ज्यादा मन नहो बड गया है आजकल।"
इससे पहले वो मार पाते आदित्य उनका हाथ पकड जोर से झटक देता है।
इस बार पूरे गावँ वाले देखकर हैरान थे साथ ही उनके आँखो मे डर की पट्टी भी बधी थी जिससे वो ना तो आगे आ रहे थे ना ही वाणी को बचाने की कोशिश कर रहे थे।
उत्कर्ष के बाबा गुस्से से आदित्य और अस्मिता की तरफ इशारा करते हुये अपने बॉडीगार्ड्स से बोलते हैं -" इन दोनो को पकडो पहले ज्यादा उछल रहें है।"
3 - 4 लोग आकर आदित्य और अस्मिता को पकड लेते हैं और सिर पर बन्दूके भी तान रखे थे वो लोग।
इसके बाद उत्कर्ष के बाबा उसकी तरफ मुड़ कर गुस्से से -" इससे शादी करोगे तुम ,,,, ।"
उत्कर्ष भी उनसे नजरे मिलते हुये -" हां।"
तभी बीच मे उसके निर्लज चाचा जो थप्पड खाने के बाद भी न सुधरे फिर बोल पडे -" इतनी हिम्मत तुम्हारी अपने बाप की बात काटोगे वो भी इस लड्की के लिये।"
उत्कर्ष गुर्राते हुये -" प्यार करता हुं उससे ,,, बार बार यह लड्की उस लड़की कहकर मत ही बुलायिये आप और हिम्मत देखना चाहते हैं ना अभी देखीये ,,,,।"
इतना बोल उत्कर्ष वही लगे एक गुलाब के पौधे के पास जाता है और एक बड़ा सा कांटा तोड लाया और सबके सामने आकर अपने दाहिने हाथ के अंगूठे में चुभते हुये दर्द से आँख बंद कर लेता है।
कांटा इतना तेज चुभा की ढेर सारा खून निकलने लगा।
उत्कर्ष सीधे वाणी के सामने जाकर उसके माँग मे अपने अंगूठे को रख दिया।
एक एक बूंद खून रिस रिस कर उसके माँग मे गिरते हुये माथे तक आ रहा था। वाणी की आँखे बंद थी और आँखो से आँसू गिर रहा था।
लोग हतप्रभ होकर बस यह सारा तमाशा देखे जा रहे थे। आदित्य और अस्मिता को भी कहीं से यह आभास नही था की बात इतना बढ जायेगी।
उत्कर्ष वाणी की माँग भरने के तुरंत बाद अपने कलाई में बंधे रक्षा की डोर खोल देता है । जैसे ही डोर खुल उसकी हाथोंं से अलग होती है वो उस रक्षा की डोर को वाणी के गले मे पहना देता है।
सबकी सांसे अटक गयी थी । काकी , वाणी के अम्मा - बाबा और सभी लोग अपने सामने वो देख रहे थे जो किसिने सपने मे भी नही सोचा था ।

क्रमश:

प्लीज रेटिंग और समीक्षा दे दो मेरे यारों ,,, आप लोगो के समीक्षा और रतिंग्स पर तो हमारी सांसे चलती है 😁😁