रौनक सारंगी और पन्कुडी को आपने जीप मे लेकर रामगढ़ के बगल वाले गाँव सुर्यपुर ले जाता है । क्योंकि सुर्यपुर गाँव उनके यहां से नजदीक ही था इसलिये तीनो जल्द ही पहुँच जाते हैं।
रौनक सीधे वहाँ के ठाकुर साहब के हवेली के सामने अपनी जीप रोकता है। पन्कुडी हवेली की सुंदरता देखकर एकदम मंत्र मुग्ध हो जाती है।
पन्कुडी बाहर देखकर -" वाह सारंगी यह हवेली तो बहुत सुंदर है ,,,,, चाचा के हवेली से भी ज्यादा मुझे पसंद आया यह तो।
इधर सारंगी हवेली को देख रही थी तो कभी गुस्से से रौनक को।
रौनक -" क्या हुआ ऐसे क्यू देख रही हो जैसे खा जाओगी अभी।"
सारंगी -" तुम्हे ना खाने का ही मन करता है ऐसे काम के लिये।"
रौनक -" अब मैंने क्या किया ,,, हंन्न।"
सारंगी -" ठाकुर साहब की हवेली पर लाने को नहीं बोल रही थी इमली के बागीचे मे ले जाने को बोला था । यहां खूद को पकडवाने आये हो क्या।"
पन्कुडी बीच -" हाँ बात तो सही है ,,,, वैसे जल्दी चलो नही तो कोई हमें देख लेगा।"
रौनक सारंगी से -" तुमने एक बार भी रास्ता बताया की कहाँ जाना है।"
सारंगी -" अब बता रही हुं ना तो चलो जल्दी।"
सारंगी के बताये रास्ते पर रौनक जीप चलाते हुये जल्द ही हवेली से थोडी ही दूर इमली के बागीचे के पास आ जता है। तीनो जीप से बाहर निकलते हैं।
रौनक -" मैं अंदर नही आऊंगां तुम लोग ही जाओ जो करना हैं।"
सारंगी पन्कुडी का हाथ पकड़ते हुये -" चलो हम लोग चलतेहैं ,,,यह डरपोक इंसान को यहीं रहने दो।
दोनों जाने लगतीं है तो पीछे से रौनक चिल्लाता है - " भगवान करे तुम दोनो को हवेली के गार्ड्स पकड कर ले जाये।"
सारंगी जाते जाते ही चिल्लाते हुये -" जहरीले काले नाग ,,,,,, जब उगलोगे जहर ही।"
रौनक वहीं बाहर खड़ा रहता है और वो दोनो अंदर आ जाती हैं।
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इधर अस्मिता तालाब की तरफ जा रही थी तभी रास्ते मे वीणा मिल जाती है जो की उसकी यहां की सहेली थी।
वीणा अस्मिता से तालाब पर जाते हुये -" अस्मिता वैसे कुछ भी बोलो जीजू हैं एकदम राजकुमार की तरह। ऐसे बकरे को कहाँ से फंसाया तुमने और तुमने शादी भी कैसे कर ली ,,,, तुम्हे तो शादी से नफरत थी ना।"
अस्मिता -" तुम अब मुझे ना छेडो ,,, पहले ही उन्होने परेशान कर रखा है।"
इतना बोल उसे अभी कुछ देर आदित्य के साथ बिताये गये लम्हे याद आने लगते है जिससे उसके गालों पर शर्म की लाली छा जाती है।।
वीणा उसके आगे आते हुये उसका चेहरा छूकर -" यह अस्मिता ही हैं ना।"
अस्मिता -" क्या हुआ अब तुम ऐसे क्यू बर्ताव कर रही हो।"
वीणा -" मतलब तुम कब से शर्माने लगी ,,,, हाय यो रब्बा।"
अस्मिता उसे सामने से हटाते हुये -" बक्क पगाल हटो सामने से।"
अस्मिता और वीणा जल्दी ही तालाब पर पहुँच जाती है । वहाँ पहले से ही बहुत सारी औरतें नहा और पानी भर रहीं थी।
कुछ देर मे अस्मिता और वीणा भी नहा कर और पानी भर अपने अपने घर आ जाती हैं।
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इधर सारंगी और पन्कुडी जल्दी से बागीचे के रखवालों से बच कर अंदर घुस जाती हैं।
पन्कुडी एक पेड़ के नीचे आकर ऊपर देखते हुये सारंगी से -" यह देखो इसपर बहुत इमलियां हैं वो भी पकी पकी । खा कर मजा आ जाएगा एकदम।"
सारंगी के मुंह मे भी पानी आ जाता है। दोनो छोटे छोटे पत्थर उठाकर मारने लगती हैं।
पूरा झोले भर इमली लेने के बाद सारंगी-" जल्दी चलो अब ,,,,,,,नहीं तो कोई आ जायेगा।"
पन्कुडी एक इमली की फली पर निशाना लगाते हुये -" बस यह अंतिम वाला।"
वो जैसे ही पत्थर मारती है पत्थर सीधे जाकर वहाँ के एक रखवाले को लगता है जो की अभी सो रहा था।
वो जल्दी से उठकर इधर उधर देखने लगता है तभी उसकी नजर पन्कुडी और सारंगी पर पड़ती है। वो चिल्लाते हुये और भी लोगो को बुलाता है -" वो देखो दो लड़कियाँ इमलियां तोड रहीं हैं।"
इधर जैसे ही सारंगी और पन्कुडी सुनती हैं दोनो इमली लेकर भागने लगती हैं। सारंगी हमेशा भागने कूदने मे माहिर आहे आगे भाग जाती है ।
सारंगी के पीछे पन्कुडी और उसके पीछे बागीचे वाले।
सारंगी किसी तरह दीवार के उस पार चढ़ कर कुद जाती है और इधर पन्कुडी पीछे ही थी।
पन्कुडी देखती है की रखवाले नजदीक आ गये हैं तो वो जल्दी से एकाएक रुक कर तीनों रखवालों से बोलती है
वो देखो तुम्हारे पैर के नीचे सांप।
तीनों नीचे देखने लगते हैं तभी पन्कुडी अपना दोंनो चप्पल निकल खिंच कर दो के तकले पर मारती है।
फिर और तेजी से भागने लगती है। लेकिन चप्पल से भला कितनी चोट लगती। तीनों आदमी उसके पीछे पीछे ही दौड रहे थे। अचानक से पन्कुडी के पैर मे ठोकर लग जाती है और अंगूठे से खून निकलने लगता है।
पन्कुडी मन मे अपने हाथ मे इमली का थैला लिये हुये -" इस इमली के लिये चोट भी लगा लिया मैंने । अब जान भी चली जायेगी तो भी इसको मै बचा कर ही रहूंगी मेरी मेहनत की कमाई है।"
इधर तीनों आदमी में से एक बोलता है -" मैं बाहर जा रहा हूँ एक भाग गयी है उसको भी पकडना है।
सारंगी इधर दिवार के इस पार रौनक के साथ खड़ी थी।
रौनक सारंगी से -" भाग चलो नहीं तो हम दोनो भी पकड़े जायेंगे।"
तभी सारंगी को लगता है पन्कुडी दिवार के पास आ गयी है। सारंगी तेजी से चिल्लाते हुये -" पन्कुडी जल्दी आओ अभी मै हुं।"
पन्कुडी जल्दी से इमली का थैला इस तरफ फेंक देती है जिसे सारंगी पकड़ कर देखने लगती है कि 3 - 4 आदमियों के साथ तीसरा रखवाला भी आ रहा था।
रौनक उसका हाथ पकडते हुये खिच कर जल्दी से गाड़ी मे बैठा गाड़ी चालू कर निकल जाता है जिसे दिवार के आधा ऊपर से पन्कुडी देख रही थी। वो ऊपर कोशिश कर रही थी लेकिन इस पार नही आ पाती है और रखवाले पकड लेते हैं ।
रखवाले उसका दोनो हाथ पकड हवेली ले जा रहे थे और इधर पन्कुडी मन ही मन रौनक को गालियाँ बक रही थी।
पन्कुडी मन मे -" रौनक भाई यह ठीक नही किया मुझे यहां फंसा कर भाग गये और सारंगी को साथ ले गये कम से कम उसे तो छोड देते मेरा साथ देने के लिये और यह सारे असुरों की तरह है और मुझ जैसी प्यारी कन्या को पकड अपने राक्षस राज ठाकुर साहब के पास ले जा रहें हैं।
कुछ ही देर में तीनो रखवाले अपने 3 -4 आदमियों के साथ हवेली मे पहुचते हैं ।
हवेली के बाहर कोई दिख नही रहा था बस एक लड़का पैंट और बनियाइन पहने कसरत कर रहा था।
अब तक धुप भी थोडी थोडी हो गयी थी जिससे पसीने से उसका शरीर चमक रहा था।
पन्कुडी उसे पीछे से देखकर मन मे -" हाय वो रब्बा ,,,, यह कौन है ।"
तभी एक रखवाला बोलता है -" मालिक यह लड़की आपके बाबा वाले इमली के बागीचे मे इमली तोड रही थी।
उस लड़के को बहुत गुस्सा आता है क्योकि यह उसके बाबा की आखिरी निशानी थी और इस में की एक भी इमली पक्षी तक नही खा पाते थे फिर इन्सान की क्या मजाल।
वो गुस्से में पन्कुडी की तरफ घूमता है लेकिन पन्कुडी को देखते ही उसका गुस्सा शान्त होने लगता है। वो ठंडे लहजे मे बोलता है -" पन्कुडी ।"
पन्कुडी तो भई अब पगाल ही हो गयी क्योकि एक ही मुलाकात और बातो बातो मे ही उसने बोला था -" पगाल लड़की नही पन्कुडी नाम है मेरा।"
यह उसके सार्थक बाबू को अभी तक याद था।
हवेली में उस समय महेश सिंह राठौड़ जो की हवेली के मालिक और सार्थक के भाई थे वो नही थे किसी पत्रकारिता के सिलसिले में उसके दुसरे भाई लखन संग शहर गये थे और उनकी माँ भी पूजा कर रही थी और दोनो भाभियाँ अंदर थीं।
इधर सार्थक ध्यान से देखता है की रखवाले पन्कुडी के दोनो हाथो को कस के पकड़े हुये थे। वो उनको पहले घुर कर देखता है फिर एकटक पन्कुडी के हाथ को देख रहा था जहाँ उसको दोनो रखवालों ने पकड रखा था।
उसके एक जगह जी देखने से रखवाले घबरा कर हाथ छोड पीछे हो जाते हैं।
पन्कुडी उसको देख कर चहकते हुये -" अरे श्री मान गुस्सैल जी यह आपकी हवेली है ,,,, कितनी सुंदर है मन करता है यही बैठ इसको देखती रहूँ।"
इतना बोल पन्कुडी वही सार्थक के झूले पर जा बैठती है जिसपर सार्थक के सिवा कोई नही बैठता था।"
सार्थक उसे बैठता देख गुस्से से उसको घुरने लगता है ।
पन्कुडी हाथ हिलाते हुये -" क्या है ,,,, आपको भी बैठना है आओ बैठ जाओ बगल मे ,,, ।" इतना बोल वो थोडा एक तरफ हो जाती है।
सार्थक गुस्से से -" उठो ।"
उसका गुस्सा देख पन्कुडी उठ जाती है।
पन्कुडी मुँह बनाकर -" क्या,,मै तुम्हारे घर आई ,,, तुम्हे मेहमान का स्वागत करना चाहिये और तुम बैठने भी नही दे रहे ।"
सार्थक गुस्से से - " तुम पगाल थी यह तो पहले ही पता था लेकिन चोरनी भी हो यह नही पता था।"
इधर सभी रखवाले और गार्ड्स सोच रहे थे की अब तक सार्थक किसी और को कितनी सजा दे चुका होता लेकिन यहां तो कुछ नही हुआ ।
सार्थक पन्कुडी से -" कान पकड कर एक पैर पर खड़ी हो जाओ।"
पन्कुडी -" क्या।"
सार्थक थोडा टेढी मुस्कान के साथ -" हाँ "",,,, तभी उसका ध्यान जाता है की गार्ड्स और रखवाले यही है वो फिर बेरुखी आवाज में -" तुम सभी अभी यही हो।"
इतना सुनते ही सभी वहाँ से भाग जाते है।
इधर सार्थक पन्कुडी की तरफ मुड़ कर -" तुमने अभी अपनी सजा शुरु नहीं की।"
पन्कुडी -" नही करूंगी,,,, नही करूंगी थोडा सा इमली ले लिया तो तुम्हारी जान जाने लगी कितने ,,,,, मक्खीचुस हो।"
सार्थक आंख फाड़ कर -" मक्खीचुस ,,,,,।"
पन्कुडी -" हाँ ,,, मक्खीचुस जो लोग हद से ज्यादा कंजूस होते हैं ना उन्हे मक्खीचुस बोलते हैं।"
सार्थक वही झूले पर बैठ -" और यह तुमसे किसने बोला।"
पन्कुडी -" तुम्हे यह सत्यता पर अधारित घटना नही पता ,,,, एक बार एक कंजूस चाय पी रहा था ,,, कंजूस ने जैसे ही चाय पिया उसका मुह जल गया ,,, तो उसने चाय ठंडी होने के लिये रख दिया ,,,, लेकिन तभी एक मक्खी आकर उसके चाय मे गिर गयी।"
सार्थक को पन्कुडी के बातो मे उसकी मासूमियत झलक रही थी उसने मुस्कुराते हुये बोला -" फिर क्या हुआ।"
पन्कुडी जल्दी जल्दी बोलते हुये -" फिर क्या ,,,,, उस कंजूस ने मक्खी को निकाला और बोला - इस मक्खी ने मेरी इतनी महंगी चाय पी लिया अब मै इसको नही छोडूंगा ,,, इसके बाद,,, फिर क्या था उस कंजूस ने उस मक्खी को चुस चुस कर अपना बदला लिया ,,, और तभी से उसके जैसे कंजूसो का नाम पडा मक्खीचुस।"
उसकी बातो से सार्थक किसी तरह अपनी हसीं दबा कर बैठा था। सार्थक झूले से खड़ा होते हुये -" इसका मतलब मै मक्खीचुस हू ।"
पन्कुडी मासूमियत से सिर हिलाते हुये -" हाँ।"
सार्थक उसके करीब आकर उसके कमर मे हाथ डाल अपनी तरफ खींचते हुये -" फिर यह मक्खीचुस तुम जैसी मक्खी को खा जायेगा सीधे ,,,, इसलिये सजा पूरी करो।"
इतना बोल वो पन्कुडी को छोड देता है।
और बेचारी मुँह बनाए एक पैर पर खड़ी हो जाती है।
लगभग आधे घण्टे बाद उसके जिस पैर मे चोट लगी थी वो दर्द के साथ बहुत खून भी रीसने लगता है।
पन्कुडी एकदम रोनी सुरत के साथ सार्थक से जो की वही झूले पर बैठ अखबार पढ रहा था -" अब प्लीज ना मेरी सजा पूरी कर दो बहुत दर्द हो रहा है।"
सार्थक उसके चेहरे को नही देख रहा था और ना ही पन्कुडी क्युकी बिच मे तो अखबार था। सार्थक अखबार पढते हुये -' नही अभी नही पूरी हुई सजा।"
पन्कुडी मुँह बना खड़ी रहती है लेकिन पाँच मिनट बाद तक उसकी हिम्मत भी जवाब दे देती है और वो वही बैठ अपने पैर को देखने लगती है । पन्कुडी जैसे ही खून देखती है वो रोने लगती है।
उसकी रोने की आवाज सुन कर सार्थक जल्दी से अखबार रख उठकर उसके पास आता है । सार्थक घबराते हुये उसके सामने बैठ कर -" क्या हुआ ।"
सार्थक उसके पैरों से बहते खून को देखकर -" तुम्हे चोट लगी थी तो पहले क्यूँ नही बताया और इतनी देर खड़े होने की क्या जरुरत थी।
पन्कुडी गुस्से से रोते हुये -" हेंहेंहें ,,,,, गुस्सैल , मक्खीचुस इन्सान तब से खड़ी थी तो किसने बोला था खड़े होने को ,,,, तुमने ही ना सजा दी थी ।"
सार्थक एक नौकर से कहते हुये -" जाओ दवा लाओ।"
वो नौकर जल्दी से अंदर जाता है।
सार्थक पन्कुडी का पैर पकडता है लेकिन अब हमारी पन्कुडी क्यू ना गुस्सा हो भला। पन्कुडी गुस्से से उसका हाथ झटकते हुये खड़ी होती है और रोते हुये आँखो के आंशु पोछ वहाँ से दौड कर निकल जाती है।
सार्थक उसे ऐसे जता देख घबराते हुये -" पन्कुडी रुको।"
और वो भी उसके पीछे भाग चला जता है।
आज का दृश्य सभी नौकरो के लिये अलग था क्योकि जिस सार्थक को गुस्से और मारने पिटने के सिवा कुछ नही आता था वो किसी के लिये परवाह कर रहा था।
यह दृश्य और भी कोई था जो उत्सुकता से देख रहा था ।
और वो थी सार्थक की दोनो भाभियाँ - "मीरा और राधा "
मीरा महेश की पत्नी थी तो वहीं राधा लखन की।
दोनों छत के बालकनी पर खड़ी सार्थक और पन्कुडी को आधे घण्टे से देख रही थीं।
राधा - " कुछ चल रहा है देवर जी और उस हुस्नपरी के बिच क्या लगता है,,,, बडकी।
मीरा -" सही बोली ,,, छुट्की पता लगाना पड़ेगा।"
राधा -" वैसे अगर यह हुस्नपरी हमारी देवरानी बन गयी तो हमारी टीम की एक सदस्य बढ जायेगी ,,, क्यू बडकी।"
मीरा -" और तुझको भी एक छुट्की मिल जायेगी ,,, मेरी छुट्की।"
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क्रमश:
प्लीज रेतिंग्स और समिक्षा दे दिया करो मेरे प्यारे प्यारे रीडर्स नही तो अपने ,,सॉरी,, सॉरी ,,,,, अस्मिता के आदित्य बाबू से बता देंगे ,,,, हाँ 🙄🙄