Vaishya ka bhai - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

वेश्या का भाई - भाग(१४)

बहु-बेग़म झरोखे पर अपने बीते हुए कल को याद करने लगी,उसके अब्बाहुजूर निहायती गरीब थे,उसकी अम्मी कैसे एक एक चीजों की बजत किया करती थी,अब्बा किसी जमींदार के यहाँ मुलाजिम थे,उसके खेतों में काम किया करते थे,बस दो वक्त की रोटी जुट जाती थी नसीब से,
उस वक्त हमने जाना था कि ग़रीबी क्या होती है? जब पेट के लिए रोटी ना हो और बदन पर कपड़े ना हो तो वो ग़रीबी कहलाती है,सर्दियों में झोपड़े में आते ठण्डी हवा के झोंकें हड्डियाँ तक कँपा जाते थे और गर्मियों में गर्म हवा के थपेड़े बदन झुलसाने का काम करते थे,बारिश के दिनों में छप्पर वाली झोपड़ी से चूता पानी और नीचे लिबलिबी गीली मिट्टी,ना उस पर बैठ सकते थे और ना सो सकते थे,
उस पर हम तीन बहनें और दो भाई ,हम सबसे बड़े थे हमारा नाम सल्तनत था ,अम्मी हम लोगों के लिए चावल उबालकर उसमें नमक मिलाकर दे देती थी,बाद उन्हें मिलती थी खाली हाण्डी और उसकी सतह में चिपके चावल ,जिन्हें वें खरोंच कर मुँह में डाल लेती थी और ऊपर से लोटा भर पानी गटक जातीं थीं,कई बार तो ऐसे दिन आएं कि दो दिन तक रोटी नहीं मिली पानी पीकर काम चलाया,तब मैनें अम्मी को कई बार किसी के साथ खेतों से निकलते हुए देखा,पूछने पर वें नज़रें नहीं मिलाती थीं लेकिन उस रात घर में आलू का सालन भी बनता,रोटी भी बनती और चावल भी बनते,हम भरपेट खाना खाते।।
अब्बाहुजूर अम्मी से पूछते तो कि आज राशन कहाँ से आया तो वें कहतीं बनिए से उधार लिया है,क्या करती बच्चे भूख से मर रहें थे मुझसे नहीं देखा जाता?अब्बा को सब पता था लेकिन वें भी क्या कहते भूख तो उनको भी लगती थी? हम सभी की भूख मिटाने के लिए अम्मी किसी के हवस की भूख मिटाकर हम सबके लिए खाना लाती थी,हमारी अम्मी बहुत खूबसूरत थी,एक बार तो जमींदार का कोई रिश्तेदार भी उन पर रीझ गया था,मजबूरी में अम्मी को उस रात हवेली में जाना पड़ा,सुबह हमने पूछा कि कहाँ गई थीं,तो वें कुछ ना बोलीं और मुँह में अपना दुपट्टा दबाकर बहुत देर तक रोतीं रहीं थीं।।
हमें जवान होता देख अम्मी और अब्बू को खौफ़ सताने लगा,तब हम चौदह के ही हुए थे इसलिए उन्होंने हमारा निक़ाह़ एक बशीर नाम के बीस साल के लकड़हारे के साथ कर दिया,बशीर हमें बहुत चाहता था,हमारा ख्याल रखता था और लकड़ियाँ बेंचकर इतना तो कमा ही लेता था कि दो वक्त की रोटी का इन्तजाम हो जाता था,फिर एक दिन नवाबसाहब की नज़र हम पर पड़ी और उन्होंने बशीर को रूपयों का लालच देकर हमें खरीद लिया,तब उनकी पहली बेग़म का बच्चा जन्मते समय इन्तक़ाल हो चुका था और तब उनकी रातें कोठों पर कटती थीं।।
हमसे उन्होंने निक़ाह़ कर तो लिया लेकिन हमारे दिल में वें कभी भी जग़ह नहीं बना पाएं,हमे उनसे बिल्कुल भी मौहब्बत नहीं थीं,नफ़रत करते थे हम उनसे और नवाबसाहब से ज्यादा नफ़रत हम अपने पहले शौह़र से करने लगें थें,उन्होंने चंद रूपयों की ख़ातिर हमें बेंच दिया था....छी...घिन आती है हमें उस आदमी से,जिसे हमने अपना दिल और बदन सब दे दिया उन्होंने हमारे साथ ऐसा किया।।
पहली रात को नवाबसाहब ने हमारे साथ दरिन्दगी के साथ पेश आएं,हम इनकार करते रहें लेकिन उन्होंने हमें अपना बनाने की जिद़ जो कर ली थी,दूसरे दिन हमारे पूरे बदन पर खरोचों के निशान थे,लेकिन हमें उन खरोचों पर दर्द महसूस नहीं हो रहा था क्योकिं दर्द तो दिल में हो रहा था,दर्द हमारी रूह को हो रहा था,वो हमें बार बार लानत भेज रही थी कि तू जिन्दा क्यों है,मर क्यों नहीं जाती।।
लेकिन फिर पहले शौहर बशीर के लिए जो हमारी नफरत थी उसने हमें नवाबसाहब के करीब ला दिया क्योकिं बशीर यही तो चाहता था जो नवाबसाहब हमारे साथ कर रहे थें,तो नवाबसाहब को अपना बनाने में ही हमने अपनी भलाई समझी फिर एक रोज़ पता चला कि हमारी मँझली बहन से बशीर का निकाह़ हो गया है,ये बात सुनकर हम भीतर से टूट से गए और बड़ी मुश्किल से खुद को सम्भाला।।
यही हस्र बाद में हमारी सबसे छोटी बहन का भी हुआ ,नवाबसाहब ने उससे जबरदस्ती निकाह़ कर लिया,लेकिन उसे सम्भालने के लिए हम थे और हमें सम्भालने के लिए कोई नहीं था तब।।
बहु-बेग़म यूँ ही झरोखे में खड़ी अपनी बदनसीबी को कोसते हुए आँसू बहा रहीं थीं,वें सोच रहीं थी कि क्या सभी औरतें ऐसी हालातों की सताई होतीं हैं ?क्या ऐसे ही अपने परिवार वालों के सामने मजबूर हो जातीं हैं कि कोई भी हम औरतों का सौदा कर देता है और कोई भी खरीद लेता है,ये हुस्न ये जवानी जब तक रहती हैं तो हमारा भरपूर इस्तेमाल किया जाता है ,
इसके बाद हम बन जाते हैं एक जिन्दा लाश़,जिसके ना तो कोई जज्बात रहते हैं और ना कोई ख्वाहिशें,क्योकिं गुजारिश़े करने लायक हमारा वजूद ही नहीं बचता,इतना सताया और तड़पाया जाता है हमें कि हमारी रूह भी काँप उठती है,फिर मिल जाती है एक लम्बी सज़ा,एक लम्बी ख़ामोशी ,इसी सज़ा और ख़ामोशी के साथ या तो हमें तबूत में दफ्न कर दिया जाता है या फिर चिता में जला दिया जाता है, ख़ाक में मिलने के बाद भी हमें तब भी सुकून मिलता भी या नहीं ये तो अल्लाह ही जानता होगा,
याह....अल्लाह...लेकिन तू केशर की मदद जुरूर करना,उसे उस कोठे से जल्दी से निजात दिलवा,रहम कर उस पर,परवरदिगार दुआँ कुबूल कर,तुझसे तेरी बंदी सल्तनत यही माँगती है,
और फिर सल्तनत काफ़ी देर तक अल्लाह से दुआँ माँगती रही.....

और उधर नवाबसाहब फौरन बाहर आएं और बग्घी में बैठकर गुलनार के कोठे पर जा पहुँचे फिर गुलनार से बोले.....
हमें अभी इसी वक्त केशरबाई से मुलाकात करनी है।।
ऐसे भी क्या बेसब्र हुए जातें हैं हुजूर! इत्मीनान रखिए,दो चार बातें हमसे भी कीजिए,कहाँ भागी जाती है केशरबाई?गुलनार बोली।।
मज़ाक मत कीजिए,हमारा मिज़ाज अच्छा नहीं हैं,आप फौरन ही केशरबाई से मिलने का इन्तजाम करें,नवाबसाहब बोलें।।
ऐसे कौन से ओले पड़ने वाले हैं जो आपको इतनी जल्दी मची है,गुलनार बोली।।
हमने कहा ना ! हमेँ फ़ौरन केशर से मुलाकात करनी है,आपको समझ नहीं आता,नवाबसाहब का रूख़ जरा सख्त था।।
जी! हुजूर! गुस्ताख़ी माफ़ ,अभी बुलवाए देते हैं केशर को ,गुलनार बोली।।
जी हाँ! जल्दी करें,हमें उनसे अकेले में कुछ गुफ़्तगू करनी है,नवाबसाहब बोले।।
जी! आप उनके कमरें में ही क्यों नहीं चले जाते? गुलनार बोली।।
कहाँ है उनका कमरा? नवाबसाहब ने पूछा।।
जी!इन सीढ़ियों से जाते ही दूसरा कमरा उनका ही है,गुलनार ने सीढ़ियों की तरफ इशारा करते हुए कहा...
और फिर नवाबसाहब केशरबाई के कमरें में पहुँचे,वहाँ शकीला भी मौजूद थी,नवाबसाहब को देखते ही शकीला बोली....
अरे! नवाबसाहब आप!और यहाँ इस वक्त।।
जी! हाँ! हमें केशरबाई से अकेले में कुछ गुफ़्तगू करनी है,नवाबसाहब बोले।।
ठीक है तो मैं यहाँ से जाती हूँ और इतना कहकर शकीला कमरें से बाहर चली गई.....
तब केशरबाई ,नवाबसाहब से बोली.....
जी! कहिए !क्या जुरूरी बात करनी है मुझसे,
हमें आपसे कुछ पूछना है,नवाबसाहब बोले।।
जी! पूछिए! केशर बोली,
सब सच-सच कहिएगा,नवाबसाहब बोले।।
जी!मैं भला आपसे झूठ क्यों बोलने लगी? केशर बोली।।
अपना सच छुपाने के लिए,नवाबसाहब बोले।।
जी! मैं कुछ समझीं नहीं,केशर बोली।।
यही सच कि मंगल आपका बड़ा भाई है,नवाबसाहब बोले।।
तो आपको भी ख़बर हो गई,लगता है मंगल भइया ने आपको सब बता दिया,केशर ने पूछा।।
मंगल ने नहीं बताया,नवाबसाहब बोले।।
तो फिर किसने बताया आपको?केशर ने पूछा।।
बहु-बेग़म ने बताया हमें,नवाबसाहब बोले।।
लेकिन उन तक ये बात कैसे पहुँची? केशर ने पूछा।।
तुम्हारा भाई मंगल उनसे मदद माँगने गया था,तो उन्होंने हमसे कहा कि हम आपको कोठे से निज़ात दिलाएं,नवाबसाहब बोले।।
जो कि कभी नहीं हो सकता,हम तो आपके दिल बहलाने का सामान है,भला आप हमें कोठे से निजात क्यों दिलवाने लगें,केशर बोली।।
वही तो हमने बहु-बेग़म से कहा कि आप इस पचड़े में ना पड़े तो अच्छा होगा,नवाबसाहब बोले।।
तो वें क्या बोलीं? केशर ने पूछा।।
उल्टा हम पर ही भड़क उठीं,नवाबसाहब बोले।।
तो आपने क्या किया?केशर ने पूछा।।
हमने उन्हें समझाने की बहुत कोश़िश की ,जब वें नहीं समझीं तो हम आपके पास आ पहुँचे कि आप क्या चाहतीं हैं?नवाबसाहब ने पूछा।।
मैं तो एक तवायफ़ हूँ,मेरा चाहना कोई मायने नहीं रखता नवाबसाहब ! केशर बोली।।
तो क्या आप ये ऐशोआराम भरी जिन्द़गी छोड़कर दर-दर की ठोकरें खाना चाहतीं हैं?नवाबसाहब ने पूछा।।इसे आप ऐशोआराम की जिन्द़गी कहते हैं,हर रात अपने जिस्म की नुमाइश करना,अपनी अदाओं से पराए मर्दो का दिल बहलाना और उनके साथ हमबिस्तर होना,अगर ये जिन्द़गी है तो ऐसी जिन्द़गी पर तो मैं लानत भेजती हूँ,केशरबाई बोली।।
तो क्या आपको समाज की गालियाँ मंजूर हैं,गरीबी मंजूर है,भूखे रहना मंजूर है?इज्जत की जिन्द़गी यूँ ही नहीं मिल जाती मोहतरमा!नवाबसाहब बोले।।
तौ कैसे मिलती है इज्जत की जिन्द़गी,ज़रा आप ही बताएं,केशर भड़की....
इज्जत की जिन्द़गी बसर करने के लिए दौलत की जरूरत होती है जो कि हमारे पास है,गरीबों की जिन्द़गी कोई जिन्द़गी है भला,नवाबसाहब बोले।।
ओह....तो आप इज्जत की जिन्द़गी बसर कर रहें हैं,मतलब अपने लिए कई बीवियाँ रखना,कोठें पर शराब पीकर हम तवायफ़ो के साथ हमबिस्तर होना और गरीबों का फायदा उठाना,ये आपके लिए इज्जत की जिन्द़गी है,केशर बोली।।
आप हमारी तौहीन कर रहीं हैं केशरबाई!नवाबसाहब बोले।।
हाँ! मैं आपकी तौहीन ही कर रही हूँ ,कहिए क्या करिएगा? केशर गुस्से से बोली।।
हम आपका कोठा बंद करवा सकते हैं,इतनी ताकत है हम में,नवाबसाहब बोले।।
और आप जैसे दलालों से उम्मीद ही क्या की जा सकती है?केशर बोली...
क्या.....आपने हमने दलाल...कहा,नवाबसाहब बोले।।
हाँ!दलाल के साथ साथ आप नामर्द भी हैं तभी तो ऐसी बातें करते हैं,केशरबाई बोली।।
आप खुद को समझतीं क्या है?नवाबसाहब गुर्राए।।
तवायफ़ हूँ....तो तवायफ़ ही समझती हूँ,कहिए क्या करेगें आप?केशर बोली।।
हम आपका जीना हराम कर देगें,औकात क्या है आपकी?नवाबसाहब बोले।।
हाँ....हाँ....जाइए....जाइए....आपके जैसे हमारे बिस्तर पर कई पड़े रहते हैं बिना कपड़ो के,ये है आपकी औकात,मुझे मेरी औकात मत बताइए,केशर बोली।।
अभी तो हम यहाँ से जा रहे हैं लेकिन ये बेइज्जती याद रखेंगें,नवाबसाहब जाते हुए बोले...
हाँ....हाँ....किसी का डर नहीं मुझे,केशर बोली.....
नवाबसाहब तो चले गए लेकिन तब तक केशर के कमरें के पास और भी लोंग आ गए और गुलनार को भी कुछ समझ ना आया.....कि क्या हुआ है?

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....


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