वेश्या का भाई - भाग(३) Saroj Verma द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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वेश्या का भाई - भाग(३)

केशरबाई मुज़रा करते हुए बहुत थक चुकी थी इसलिए वो रातभर बिना करवट बदले ही सोती रही,उसकी आँख सीधे सुबह जाकर ही खुली ,जब शकीला उसे जगाने आई और वो केशर को जगाते हुए बोली....
और मोहतरमा! कब तक सोतीं रहेंगीं?देखिए सूरज सिर पर चढ़ आया है.....
अरे,तू आ गई करमजली! मेरी नींद में ख़लल डालने,केशर ने अपनी आँखें मस़लते हुए कहा।।
बोल कैसा रहा कल रात का मुजरा और नवाबसाहब की मेहमानवाज़ी? रात मैं तो तेरे आने से पहले ही सो गई थी,कल कोई ख़रीदार ही नहीं आया,शकीला बोली।।
बस,ऐसी ही रहीं,कुछ ख़ास नही,केशर बोली।।
क्यों खास़ क्यों नहीं?शकीला ने पूछा।
हाँ! तुझे बताती हूँ,जिसका जिक्र मैने तुझसे कल सुबह किया था ना! वही शख्स नवाबसाहब की हवेली पर भी मौजूद था,मुझसे आकर कहने लगा कि आपका यूँ महफ़िलों में नाचना गाना ठीक नहीं,केशर बोली।।
फिर तूने क्या कहा? शकीला ने पूछा।।
मैने उसे जो डाँट पिलाई ना! केशर ब़ोली।।
मुझे तो वो भला लगता है,तूने खामखाँ में उसे क्यों डाँटा?शकीला बोली।।
फिर मुझे भी कुछ अफ़सोस सा हुआ,उसका नाम सुना तो मुझे अपना गुजरा ज़माना याद आ गया,केशर बोली।।
क्यों ?तेरे गुज़रे जम़ाने से उस शख्स के नाम का क्या ताल्लुक हैं?शकीला ने पूछा।।
बहुत ही गहरा ताल्लुक है मेरी जा़न! केशर बोली।।
मुझे नहीं बताएंगी अपने मन की बात,शकीला ने ज़ोर देकर पूछा।।
तुझे नहीं बताऊँगीं तो और किसे बताऊँगीं? तू ही तो है जिससे मैं अपना हर दुखड़ा बाँटती हूँ,केशर बोली।।
तो फिर सुना ना! मैं भी सुनना चाहती हूँ,शकीला बोली।।
ठीक है तो सुन और इतना कहकर केशर अपनी कहानी शकीला को सुनाने लगी....

बहुत समय पहले की बात है एक गाँव था जिसका नाम रूपनगर था,जहाँ एक किसान राधेश्याम अपनी पत्नी मालती के साथ रहता था उसके दो बच्चे भी थे,बेटा बड़ा था जिसका नाम मंगल था और बेटी उससे केवल पाँच साल छोटी थी जिसका नाम कुशमा था,किसान बहुत ही गरीब था,जैसे तैसे उनका गुजारा होता था,दो वक्त की रोटी बहुत ही मुश्किल से जुट पाती थी।।
वे जिस गाँव में रहते थे उस गाँव का जमींदार और भी गाँवो का मालिक था,वो बहुत ही निर्दयी था,गाँव के गरीब किसानों के घर में जो भी नई बहु ब्याह कर आती तो पहली रात उसे जमींदार के साथ ही बितानी होती थी,ऐसा ना करने पर वो उस बहु के पति को मरवा देता था,उसने अपने घर के पास बहुत बड़ा तालाब खुदवा रखा था और उसमें उसने बहुत से मगरमच्छ पाल रखें थे और उन्ही मगरमच्छों के सामने ही वो लोगों को मारने के लिए छोड़ देता था,
कोई भी उसकी शिकायत सरकार से करता तो वो भी मारा जाता क्योकिं गोरों की सरकार थी और वो उन को एक मोटी रकम रिश्वत के रूप भेंट करता था जिससे गोरे पुलिस वाले उस शिकायत करने वाले आदमी का नाम जमींदार को बता देते और वो आदमी बेमौत मारा जाता,रिश्वत खाने से सरकार का मुँह बंद हो जाता फिर किसी भी गरीब आदमी की हिम्मत ना पड़ती सरकार से शिकायत करने की।।
ऐसे ही दिन बीत रहे थे कुशमा बड़ी हो रही थी और साथ साथ मंगल भी बड़ा हो रहा था,कुशमा लगभग चौदह साल की रही होगी और मंगल तब तक उन्नीस साल का हो चुका था,तो एक दिन जमींदार का मुनीम कुछ लठैतों के साथ राधेश्याम के पास लगान वसूलने आया,
राधेश्याम के पास तो कुछ भी नहीं था मुनीम को देने के लिए उसने इस बात के लिए मुनीम से माँफी माँगी,लेकिन मुनीम कहाँ मानने वाला था उसने अपने लठैतों से राधेश्याम को पीटने को कहा,लठैत राधेश्याम को पीटने लगें,शोर सुनकर राधेश्याम की पत्नी मालती भी झोपड़ी से बाहर निकल आई और अपने पति को पिटता हुआ देखकर उनके पास जाकर बीच-बचाव करने लगी,लेकिन वें लठैत नहीं माने और साथ में मालती को भी पीटने लगें...
तभी मंगल अपनी बहन कुशमा के संग खेतों से लौटा था उसने जैसे ही वो नज़ारा देखा तो अपनी लाठी लेकर वो मुनीम पर भाँजने लगा और मुनीम से बोला कि अपने लठैतों से कहो कि मेरे माँ-बाप को छोड़ दें तभी मैं भी तुझे छोड़ूगा,अपनी जान पर आते देख मुनीम ने लठैतों को रुकने के लिए कहा,लठैत रूक गए तो मंगल ने मुनीम से कहा....
जाकर कह देना अपने जमींदार से मंगल किसी से नहीं डरता,जो उखाड़ सकता है मेरा तो उखाड़ लें,अगर मेरे माँ-बाप को आज के बाद कोई भी नुकसान पहुँचाया तो अच्छा नहीं होगा,इसके बाद मुनीम जब जमींदार के पास पहुँचा तो उसकी हालत देखकर जमींदार ने पूछा कि तुम्हारा ये हाल किसने बनाया.....
तब मुनीम ने जमींदार से मंगल की शिकायत लगा दी कि उसका ये हाल राधेश्याम के बेटे मंगल ने बनाया है और धमकी दी है कि हुजूर आपको देख लेगा,देखिए ना कल का छोकरा और इतनी हिम्मत,उसका तो आपको कोई ना कोई इलाज करना ही पड़ेगा,कहीं ऐसा ना हो कि उसके देखा देखी गाँव के और लोंग भी आपके साथ बदजुबानी करने लगें और आपका हुक्म मानना बंद कर दें....
ये सुनकर जमींदार बोला....
नहीं ! मै ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगा ,मैं मंगल की अकल ठिकाने लगाने का कोई ना कोई तरीका निकालता हूँ,
वैसे हुजूर ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मंगल के अलावा राधेश्याम की एक बेटी भी है जो निह़ायत ही खूबसूरत है,मुनीम बोला।।
उम्र क्या होगी उसकी? जमींदार ने पूछा।।
सरकार! कच्ची कली है,उसकी उम्र होगी यही कोई तेरह-चौदह साल,मुनीम बोला।।
क्या मैं उसे देख सकता हूँ?जमींदार ने पूछा..
क्योंं नहीं हूजूर! खेतों में ही तो रहती है ज्यादातर,आप कभी भी देख सकते हैं,मुनीम बोला।।
वैसे मुनीम जी! मानना पड़ेगा आपकी वज़ह से ही मेरी हवेली में इतने खूबसूरत-खूबसूरत हीरे मोतीं हैं,जमींदार बोला।।
बस,सरकार!आपका नमक खाया है,उसी का फर्ज़ अदा कर रहा हूँ,मुनीम बोला।।
मैं आपकी नमकहलाली से बहुत खुश़ हूँ,जमींदार बोला।।
जी! बस! ऐसे ही आपकी सेवा का मौका मिलता रहें और क्या चाहिए?मुनीम बोला।।
आप भी तो सेवा करने के बाद मेवा पा जाते हैं,मुनीम जी!जमींदार बोला।।
हुजूर! वो तो आपकी छोड़ी हुई जूठन होती है तो मैं भी थोड़ा मज़ा उठा लेता हूँ,मुनीम बोला।।
मुनीम जी! पैर कब्र में लटके हैं लेकिन शौक़ आपके अभी भी जवानों वालें हैं,जमींदार बोला।।
बस,हुजूर ! सब आपकी मेहरबानी है तो थोड़ी अय्याशी मैं भी कर लेता हूँ,मुनीम बोला।।
ठीक है ये सब बातें तो बाद में होती रहेंगीं,मैं कल ही उस लड़की को देखना चाहूँगा,जमींदार बोला।।
ठीक है हुजूर!कल ही दिखा देते हैं आपको लड़की,कोहिनूर है हूजूर आपको देखते ही ना पसंद आ जाएं तो मेरा नाम बदल दीजिएगा,मुनीम बोला।।
तो ठीक है,कल का कार्यक्रम तय रहा,जमींदार बोला।।
ठीक है हुजूर! मुनीम बोला।।

और फिर दूसरे दिन जमींदार ने जैसे ही कुशमा को खेतों में काम करते देखा तो उसके रूप पर रीझ गया और फौरन ही मुनीम से कहा कि आज रात को ही लड़की को उसके घर से उठवा लो,परिवार के सदस्यों को लाठियों से घायल करके फिर घर में आग लगा देना और लड़की के माँ बाप और भाई को घायल करके नदी में बहा देना ताकि वो हमारा कुछ भी ना बिगाड़ सकें और फिर जमींदार के आदेश पर यही किया गया,कुशमा को रातोंरात उठाकर हवेली लाया गया,वो चीखती रही चिल्लाती रही लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी।।
फिर दूसरी रात को कुशमा की अस्मत को ज़ार ज़ार कर दिया गया,उसमें जमींदार के साथ साथ मुनीम भी शामिल था,कुशमा रोती रही गिड़गिड़ाती रहीं,लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी,फिर कुशमा को ये बताया गया कि अब से वो इसी हवेली में रहेगी,उसके परिवार वालों को भी खतम कर दिया गया है।।
कुशमा फिर और क्या करती? वो इतनी काब़िल नहीं थी कि अपने नसीब से लड़ पाती,उसने उसे ही अपना ही नसीब मानकर कुबूल कर लिया,जमींदार ने उसे अपनी हवेली के एक कमरें में जगह देदी उसे रखैल बनाकर हवेली में रख लिया,साथ में एक दासी को भी रख दिया ,जो उसकी सेवा करती,वो जब कभी अपने कमरें की खिड़की से बाहर झाँकती तो उसे जमींदारन तुलसी चौरे की पूजा करती हुई दिख जाती,उसका बड़ा मन होता कि वो जमींदारन के पास जाकर अपना दुखड़ा सुनाएं,उनसे यहाँ से भागने के लिए मदद माँगें लेकिन कुशमा की हिम्मत ना पड़ती क्योकिं उसने उनके बारें में सुन रखा था कि वें बहुत ही सख्त स्वाभाव की हैं।।
जमींदारन इन्द्रलेखा भी अपनी जिन्दगी से खुश ना थीं,जिसका पति व्यभिचारी हो भला वो स्त्री कभी प्रसन्न कैसे रह सकती हैं?जब से ब्याहकर वो इस हवेली में आई थी उसे केवल पति का तिरस्कार ही मिला था और कुछ नहीं,दो बेटे थे जो कि वें भी अपने बाप की तरह अय्याश थे,बेहिसाब दौलत थी तो उड़ाते थे,माँ की तो उन को भी जरूरत नहीं थी,बहुएँ इसलिए उसने जल्दी बुला ली थीं कि शायद बहुओं की सोहबत में रहकर बेटे सुधर जाएं लेकिन बेटे भी ना सुधरे इसलिए उसने अपना मन पूजा-पाठ में लगा रखा था।।
उसका मन भी तड़पता था जब किसी लड़की को हवेली में लाया जाता था उसके साथ दुष्कर्म करने के लिए,लेकिन वो कुछ नहीं कर सकती थीं आखिर वो उसका पति था और उसका सुहाग भी,जिसके संग फेरे लेकर वो इस हवेली में आई थी तो भला उसका निरादर कैसे कर सकती थी,ये कैसे कह सकती थी कि ये मेरा घर है कोई तवायफों का कोठा नहीं जो तुम यहाँ अय्याशी कर रहे हों।।
उसने भी सालों से मौनव्रत धारण कर रखा था,कुछ ना बोलती ,वो केवल देखती थी अपने बेटों और पति के कुकर्म,लेकिन थी तो एक औरत ही ना ! किसी लड़की की अस्मत कों जब ज़ार ज़ार किया जाता तो उस लड़की की चीख सुनकर वो अपने कानों पर हाथ धर लेती और अपने कमरें में बंद हो जाती।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....