कम नहीं है वो shivani singh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कम नहीं है वो

।नौजन अपने खेत से काम करके आ रहा था । जून माह की भीषण गर्मी ऊपर से उसके पास पहनने को सही कपड़े भी न थे । सूरज की तपती आग मानो उसकी देह को जला रही हो लेकिन उसके मुख पर एक मुस्कान थी । उसे आशा थी कि इस बार उसकी फसल अच्छी हो जाएगी । तो वह अपनी बेटी
का विवाह एक अच्छे घर मे कर सकेगा , वह यह विचार करते हुए अपने घर आ रहा था । वह जब घर आया तो उसने देखा कि उसकी बेटी कांति अपनी माँ के साथ काम मे उसका हाथ बटा रही थी । वह यह सब देख कर प्रसन्न होते हुए अपनी पत्नी रमा से कह रहा की अब हमारी कांति बड़ी हो गयी अब तो उसकी आठवी कक्षा तक पढ़ाई भी पूरी हो गई। सुन रमिया अब कांति के लिए एक अच्छा सा घर ढूंढ के उसका व्याह कर देंगे। कांति यह सब सुन रही थी उसने झट से मना कर दिया बोलती है कि बाबा तू मुझको इतनी जल्दी अपने घर से निकाल देना चाहता है, नहीं नहीं कांति यह तो संसार की रीत है , बेटी का व्याह करना , उसका कन्यादान करना यह तो
एक बाप के लिए सौभाग्य की बात होती है, कांति अपनी रोनी सूरत अपने गालो को फुलाये हुए एक कोने में जाकर बैठ कर अपनी किताबों को निहारने लगती है , नौजन उससे कहता है कांति अब तू ये पढ़ना लिखना छोड़ दे और अपनी अम्मा के साथ कुछ काम सीख कांति झल्लाती हुई कहती है बाबा मुझे न ब्याह करना में आगे पढ़ना चाहती हूँ, और आपका और अम्मा का नाम रोशन करूँगी। इतना कहते ही इधर से कुल्लू पहलबान आ गया जो उस गांव का सबसे लंपट किस्म का इंसान था । उसका कुछ काम धंधा तो होता नहीं बारह बी फेल था । गांव के एक बुजुर्ग को पीटने के बाद उसने अपने आप को पहलबान की उपाधि दे दी।
वह कांति से कहता है पढ़ लिख कर का करेगी कांतिया करेंगी तो तू घर के काम धाम , मेरी बात मानो नौजन तुम अपनी लड़की का व्याह इसी बर्ष कर दो। सब निकल जायेगा पढबे - लिखबे का भूत यह कहते हुए वो चला गया। नौजन ने अपनी बेटी और पत्नी की और देखा और वह भी खेत की और निकल गया उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे ।
यह सोचते हुए की अगर बेटी को आगे पढ़ाया और गांव में किसी ने कुछ कहा तो , यह सब सोच के उसके चेहरे पर तरह तरह के भाव आ रहे,
और वह अपने मित्र जोरा के यहाँ चला गया जोरा और उसके खेत पास में ही थे इस कारण उनमे अच्छी मित्रता हो गई ।वह जोरा के यहां पहुँचा उसने देखा कि जोरा अपनी बेटी रुकमा जो दसवीं कक्षा में हैं, उससे कह रहा था रुक्मी तू दसबी पास कर ले फिर तू आगे की पढ़ाई के लिए शहर चली जाना , तू बकील की पढ़ाई पढ़ना। और
हमारा नाम रोशन करना,इधर नोजन सब देख रहा था। जोरा ने देखा कि आज नोजन आया है तो उसने जल्दी से खाट बिछा दी और दोनों मित्र बैठ कर बाते करने लगे उसने कहा रुकमा बेटी को शहर भेज रहे हो, जोरा ने कहा हां सोच तो रहा हूँ, की दसवीं के बाद चली जाए , जोरा कहता है बेटी के पढ़ने से दो घर बनते हैं । इतनी बात सुन कर नोजन वहां से खड़ा हुआ और अपने घर चल दिया। उसके दिमाग मे जोरा की बाते घूम रही थीं , और वह सोच रहा था कि में क्यो अपनी कांति को अभी से व्याह के बंधन में बांधने की सोच रहा था। मेरी कांति भी कम नही है वो भी पढ़ेगी, में पढ़ाऊंगा उसको
घर आके देखा कांति गुमसुम बैठी थी। नोजन ने जैसे ही कहा अब तो हम भी अपनी बिटिया को बहुत पढ़ाएंगे की वो हमारा ही नही हमारे गांव का भी नाम रोशन करे। कांति यह सुन कर एक दम खुशी से नाच उठी , और वह अपने बाबा के गले लग गई और कहने लगी की बाबा में बहुत मन लगा के पढ़ूंगी और में अपने गांव का नाम भी रोशन करूँगी , बस आप हमेशा ऐसे ही मेरे साथ रहना।