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सूनी आंखे (अंतिम भाग)

शादी हो जाने के बाद बरात को विदा करने की तैयारी की जाने लगी।बस के ऊपर दहेज का सामान रखा जाने लगा।बाबुल का घर छोड़ने से पहले सरला कितना रोयी थी।बेटी को विदा करते समय उसके मां बाप का भी रो रोकर बुरा हाल था।
बस में सबसे पीछे की सीट पर दूल्हा दुल्हन रमेश और सरला बैठे थे।आगे की सीट पर रमेश की बहन और जीजा थे।बाकी लोग भी थे।
और बस चल पड़ी थी।बुजुर्ग और अधेड़ लोग बातो में मसगूल थे।जवान युवक और युवतियां हंसी मजाक और नाच गानों में खोये थे।
कश्मीर एक लंबे अरसे तक आतंकवाद से ग्रस्त रहा था।केंद्रीय बलो की कारवाई से हालत सामान्य होने के बाद चुनी हुई सरकार सत्ता में आयी थी।जनता द्वारा चुनी सरकार के सत्ता में आने पर हालत में और सुधार हुआ था।आतंकवाद पर लगाम लगाने में सरकार काफी हद तक सफल रही थी।इसी का नतीजा था कि जन जीवन सामान्य होने लगा था।
वर्षी से बंद पड़े स्कूल और कॉलेज खुल गए थे।बन्द पड़े बाजार खुल गए थे जिससे बाजारों में रौनक फिर से लौट आयी थी।कश्मीर का मुख्य व्यापार था पर्यटन।आतंकवाद की वजह से सैलानियों ने कश्मीर आना छोड़ दिया था।फिर से कश्मीर घाटी का रुख करने लगे थे।
इसका मतलब यह कतई नही था कि आतंकवादी घटनाएं पूरी तरह से बंद हो गयी थी।पड़ोसी मुल्क और दूसरी बाहरी ताकतों के इशारे पर आतंकवादी जब तब वारदात करने से बाज नही आ रहे थे।
बस पहाड़ी टेढ़े मेढे रास्तो से मंजिल की तरफ बढ़ी जा रही थी।तभी रमेश बोला,"बस रोको।"
"क्या हुआ?"ड्राइवर बस रोकते हुए बोला।
"काफी देर हो गयी बैठे हुए।सब लोग चाय नास्ता कर लेंगे"।सड़क के किनारे दो दुकाने थी।बस उनके सामने खड़ी हो गयी।लोग बस से उतरकर चहल कदमी करने लगे।चाय नष्ट होने लगा।तभी एक जीप आकर वहां रुकी थी।उसमें से पांच हथियार बन्द नकाबपोश उतरे थे।उन लोगो को देखते ही बारातियो में दहशत फैल गयी।वे समझ गए ये आतंकवादी है।उन पांचों में से एक बोला,"सब लोग इधर आओ।"और उसने बारातियो की तरफ बन्दूक तान दी थी।हुक्म मिलते ही इधर उधर चहल कदमी कर रहे बराती आ गए थे।उस आदमी ने देखा कोई रह तो नही गया।फिर वह बोला,"अब दो लाइन बना लो।एक लाइन में मर्द और दूसरी लाइन में औरते और बच्चे लग जाये।'
और डरते डरते वे अलग अलग लाइन में लग गए।
"अब तुम सब मर्द मरने को तैयार हो जाओ"
"हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है"
लेकिन उन्होंने किसी की कोई बात नही सुनी और एक एक करके सब मर्दो को गोली मार दी।

"क्या?"सरला की बात सुनकर रमन चोंका और आश्चर्य से बोला,"और रमेश तुम्हारा पति?क्या उसे भी दरिंदो ने नही छोड़ा?"
"हां।रमेश ने मेरी मांग में सिंदूर तो भर दिया था।लेकिन ससुराल की दहलीज पर पहुंचने से पहले ही मैं विधवा हो गयी।
"ओ हो-- सांत्वना देने के लिये रमन ने अपना हाथ सरला के कंधे पर रख दिया।
उसी दिन मैने कसम खा ली थी।पुलिस में भर्ती होकर आतंकियों को मारकर पति की मौत का बदला लूंगी।
"ऐसा तो तुम मुझ से शादी करके भी कर सकती हो?"
"नही अब मैं शादी नही करूंगी।अगर दाम्पत्य सुख भाग्य मे होता तो विधवा ही क्यो होती।अब मेरे जीने का एक ही उद्देश्य है।स्वर्ग जैसी मातृभूमि से आतंकवादियों का सफाया।"
"अब तुम अकेली नही हो।मैं तुम्हारे साथ हूँ
"

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