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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-15) - क्या अस्मिता ही साहिबा है














आदित्य अस्मिता को अपने दोनों हाथों मे लिये तालाब के बाहर आया । जैसे ही सारंगी और रौनक ने इन्हे देखा दोनो दौड़ते दौड़ते आयें।

आदित्य अस्मिता को बाहर घास पर लिटा देता हैं।

सारंगी हाँफते हुये -" क्या हुआ अस्मिता को?"

आदित्य -" अरे शान्त रहिये ,,,, इनका पैर फिसल गया था तो तालाब में गिर गयीं थी अब ठीक हैं।"

सारंगी -" यह पागल लड़की इतना पानी से डरती है कि हमेशा कुछ न कुछ हो जाता है।

आदित्य को यह बात सहन नही हो रही थी की अस्मिता को पानी से क्यू डर लगता है लेकिन उसने अपने सिर झटका और फिर अस्मिता के ऊपर ध्यान देने लगा।

सारंगी घबराते हुये उसका हाथ अपने हाथों से रगड़ रही थी -" यह तो होश में नही आ रही।"

रौनक -" ओए पगाल इंसान धीरे धीरे आयेंगी तुम्हारी तरह तबाही तो हैं नही जो एकाएक आ जायेगा होश।"

सारंगी गुस्से से उसे घुरते हुये -" चुप बिल्कुल ,,,, तुम तो बोलना ही मत जब मै बोला करू ।"

आदित्य उन दोनो की लड़ाई देख अपने सर पर हाथ रख लेता है फिर अस्मिता के पैर के पास आकर उसके पैरों को एकदम धीरे धीरे रगड़ने लगता है मानो कोई फूल की कली हो थोडा से जोर लगेगा तो टूट जायेगी।

उसे ऐसे परेशान होके अस्मिता का पैर रगड़ते देख रौनक सिर नीचे कर मुह पर हाथ रख हस देता है।

सारंगी उसे हसते देख मन में -" पता नही इसकी अम्मा ने का खा के इसको पैदा किया है जो ऐसे समय पर भी हस रहा है और यहां एक आदित्य बाबू है जो,,,,,,,।"

इतना मन में ही बोल वो आदित्य की तरफ देखती है जो अस्मिता के पैर को अपने हाथों से रगड़ रहा था जिसे देख उसके भी चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है ।

सारंगी मन में -" का बात है भोलेनाथ इधर आग तो दोनो तरफ लगी है हम तो सोचे थे की खाकी हमरी अस्मिता ही परेशान होती है अपने आदित्य बाबू के लिये।"

वो यही सब सोच मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी और इधर कोई उसकी मुस्कान को ध्यान से देख रहा था और वो थे हमारे रौनक जी।

रौनक को जैसे ही ध्यान आता है की वो क्या कर रहा है वह अपना सिर झटक कर -" यह चुडैल कितनी प्यारी लग रही थी मुसकुराते हुये लेकिन हमेशा भूत पिसाच की तरह लडती रहती है भूतनी।"

इधर अस्मिता के पैरों को आदित्य जितना छू रहा था उसके शरीर मे अजीब सा करेंट दौड़ रहा था ।
धीरे धीरे अस्मिता को भी होश आ जाता है।
अस्मिता होश में आते ही सारंगी के गले लग जाती है ।

अस्मिता -" हमें फिर वही सब महसूस हुआ।"

सारंगी -" कोई नही अस्मिता यह सब वहम है।"

आदित्य को कुछ समझ नही आ रहा था।
कुछ समय बाद अस्मिता ठीक हो जाती है लेकिन इन सब की गतिविधियों पर कोई था जो नजरें गडाये हुये दूर झाडियों मे छिपा था।

वो इन्सान जल्दी से दौड़ते हुये जाता है कुछ ही दूर पर उसकी जीप थी जिसमे वो बैठ कर निकल जाता है।
वो आदमी अपनी जीप एक बहुत बड़ी सी हवेली के सामने रुकता है।

हवेली की भव्यता देखने लयाक थी । बड़े बड़े बगीचों के बिच मे वो हवेली थी चारो तरफ सिर्फ गुलाब के फूल थे। लगभग 50 -60 बॉडीगार्ड अपनी ड्यूटी कर रहे थे।

नौकर चाकर अपने काम कर रहें थे। माली फूल की छटाई कर रहा था । तितलियाँ और भौरें फूलों पर मंडरा रहे थे।
एक नीम का पेड भी था जिसके नीचे एक खुबसूरत सा कुआं था ।

बागीचें के सामने से बीच मे एक फव्वारा था। सूरज की रौशनी फव्वारे से निकलते पानी को चीरते हुये एक औरत के चेहरे पर पड रही थी जो की कबूतरों को दाना खिला रही थी। उस औरत की उम्र लगभग 50 -52 साल रही होगी। देखने मे एकदम युवा लगती थी उम्र का अंदाजा ही न लगाया जा सके अगर उसको देखा जाये तो। सफेद रंग की साडी गलें मे सफेद मोतियों की माला । कान मे दो चमकते कर्णफूल और चेहरे पर राजपूतानी नूर।

वही कुछ दुरी पर बैठा था एक शक्स जो अपने बन्दूक मे गोलियां भर रहा था । आँखों में ही गुस्सा था एक नौकर जो की वही खड़ा था डर के मारे उसकी हालत खराब थी।
दुसरी तरफ एक झूले पर बैठा था एक 30 -32 साल का आदमी जो की अकबार पढ रहा था और साथ ही चाय भी पी रहा था। चेहरे पर एकदम शान्त भाव और स्वभाव से सुलझा व्यक्ति था।

वो आदमी जो अभी जीप से आया था वो सबके पास आता है।

जो अकबार पढ रहा था वो इन्सान -" क्या खबर है रामू।"
रामू डरते हुये -" मालिक वो वो ,,,, साहिबा ,,,,, ।"

उसके इतना बोलते ही वो आदमी जो अभी बन्दूक मे गोलियां भर रहा था वो उसके सामने आता है और बोलता है -" क्या हुआ साहिबा को।"

रामू डरते हुये -" वो साहिबा अभी भान प्रताप के छोटे बेटे के साथ थीं।"

बन्दूक वाला आदमी गुस्से से कांपने लगता है -" आज इसको मै मार के ही दम लुंग यह साहिबा के पास कैसे पहुचा।"

अखबार वाला आदमी -" अरे शान्त हो जाओ सार्थक ।"
सार्थक -" नही महेश भईया आज नही।"

वो औरत जो की कबूतरों को दाना दे रही थी वो आकर सार्थक के कंधे पर हाथ रखती है और बोलती है -" बेटा नही इतना आसानी से नही ।"

सार्थक अपनी माँ की बात सुन गुस्से में रामू को कुछ इशारा कर चला जाता है।

सार्थक मन में जाते हुये -" ठाकुर आदित्य सिंह आज तुम गये क्योकि आज यह सार्थक सिंह राठौड़ तुम्हे छोड़ेगा नहीं।"

इधर अस्मिता और सारंगी रौनक और आदित्य के बार बार मानने के बाद भी खूद पैदल जाने का ही मन बना लिया था। दोनो ने जैसे ही अपनी-अपनी बाल्टी और घडा उठाया वैसे ही एक गोली सारंगी के सर पर रखे घडे पर लगी।

चटाक की आवाज के साथ घडा वही टूट गया और सारंगी तो बूत बनी वहीं खड़ी थी।
इधर रौनक को न जाने क्यू गुस्सा आ रहा था की उन लोगों ने सारंगी के ऊपर कैसे गोली चला दी।

एक गोली आदित्य के ओर आ रही थी लेकिन जब तक उसको लगती अस्मिता ने उसे अपनी तरफ खिंच लिया।

अब रौनक और आदित्य को भी गुस्सा आ रहा था।
आदित्य ने अपनी लोअर के जेब से एक बन्दूक निकाला और रौनक ने भी फिर क्या दोनो शुरु हो गये सभी लोगों पर जो गोलियां चला रहें थे।

अस्मिता और सारंगी भी डंडे , चप्पल , पत्थर जो भी मिलता सबको पिटने लगी। कुछ ही देर में सभी हमलावर दुम दबा पर भाग गयें।

अस्मिता सारंगी आदित्य और रौनक चारों अपने अपने घर के लिये निकल गयें।


क्रमश :