Gyarah Amavas - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 39



(39)

गुरुनूर के गायब हो जाने के बाद से ही बसरपुर में उसको लेकर कई तरह की बातें हो रही थीं। उसे नापसंद करने वाले लोग उसके बारे में तरह तरह की अफवाह उड़ा रहे थे। उनका कहना था कि नाकामयाबी की शर्म के कारण ही वह केस छोड़कर भाग गई है। इन लोगों में बंसीलाल सबसे आगे था। उसका कहना था कि अब पुलिस पर दबाव बनाया जाए कि केस के लिए किसी काबिल ऑफिसर को भेजा जाए। यह बसरपुर के निवासियों की ज़िंदगी का सवाल है। उनकी ज़िंदगियों के साथ खिलवाड़ ना किया जाए। यही बात कहने आज बसरपुर के कुछ लोग सर्वेश और बंसीलाल की अगुवाई में एसीपी मंदार पात्रा से मिलने गए थे।
इंस्पेक्टर आकाश दुबे इस स्थिति को लेकर बहुत अधिक दुखी था। अब सारी ज़िम्मेदारी अकेले उस पर आ गई थी। उसे ज़िम्मेदारी से डर नहीं लगता था। लेकिन गुरुनूर की अनुपस्थिति उसे खल रही थी। इतने दिनों से वह गुरुनूर के साथ काम कर रहा था। उसने गुरुनूर से बहुत कुछ सीखा था। केस को लेकर वह जितनी मेहनत व लगन के साथ काम कर रही थी वह उससे परिचित था। ऐसे में जब लोग उसकी काबिलियत पर सवालिया निशान लगा रहे थे तो उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।
उस दिन वह और हेड कांस्टेबल ललित जब मदद लेकर लौटे तो उन्हें संजीव के मकान में कोई नहीं मिला। उन दोनों ने इधर उधर देखा। मकान के बाहर लगे पेड़ के पास उन्हें पेड़ की एक मोटी डाल पड़ी मिली। उस पर खून लगा हुआ था। उन्होंने टॉर्च की रौशनी में देखा तो उन्हें कुछ निशान दिखाई पड़े। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को खींच कर ले जाया गया हो। निशान मकान के पिछले हिस्से तक गए थे। वहाँ किसी गाड़ी के टायर के निशान थे। ऐसा लग रहा था जैसे कि गुरुनूर को वार करने के बाद बेहोश किया गया था। उसके बाद घसीट कर पिछले हिस्से में खड़ी गाड़ी तक लाया गया। संजीव के घर के पिछले हिस्से से कुछ दूर पर ही पक्की सड़क थी‌।
एसीपी मंदार पात्रा ने केस की ज़िम्मेदारी सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को सौंप दी थी। उसके कहने पर उसे एक खास टीम गठित करके दी थी। उसने तेज़ रफ़्तार से इस केस पर काम शुरू कर दिया था। उसने पालमगगढ़ पुलिस में सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर के साथ संपर्क बनाए रखा था। दोनों मिलकर केस में हुई जांच के बारे में एक दूसरे को बताते थे। अमावस आने में अब बस एक हफ्ता बचा था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे जानता था कि अपराधी को इतने कम समय में ही एक नई बलि और उसके स्थान की ज़रूरत पड़ेगी। ऐसे में हड़बड़ी के कारण कोई ना कोई गलती अवश्य होगी। उसने अपनी टीम को दो हिस्सों में बांट दिया था। एक दल का काम किशोर उम्र के बच्चों की किडनैपिंग पर नज़र रखना था। इसके लिए उन्होंने पालमगढ़, रानीगंज और बसरपुर में स्कूल या उन स्थानों पर नज़र रखनी शुरू कर दी थी जहाँ इस उम्र के बच्चे अधिक जाते हों। दूसरा दल इन्हीं स्थानों पर ऐसे मकानों या जगहों की खोज कर रहा था जहाँ बलि की प्रक्रिया को अंजाम देना आसान हो।
नज़ीर की तबीयत ठीक थी। पर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने उसे सलाह दी थी कि वह अब इस केस में दूर रहे क्योंकी वह संजीव और गगन की नज़र में आ चुका है। राजू भी ठीक होकर अपने माँ बाप के पास चला गया था। अपने बयान में उसने सिर्फ इतना ही बताया था कि जब वह घर से किसी काम से निकला था तो उससे एक पता पूछने के बहाने गाड़ी में बिठा लिया गया था। उसके बाद उसे बेहोश कर दिया गया था। उसे तीन अलग अलग जगहों पर रखा गया। उसे एक इंजेक्शन दिया जाता था जिसके कारण वह अधिकांश समय सोता रहता था।

गगन और संजीव दोनों भानुप्रताप के साथ रह रहे थे। उन लोगों ने गुरुनूर का अपहरण कर जांबूर को खुश करने वाला काम किया था। उन्हें उम्मीद थी कि इस काम के लिए उन्हें दूसरों से अधिक लाभ मिलेगा। वैसे गुरुनूर का अपहरण करने की बात भानुप्रताप के मन में ही आई थी। गगन और संजीव इसके लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। इस समय तीनों बैठे इसी विषय पर बात कर रहे थे। भानुप्रताप ने बड़े गर्व से कहा,
"हमने उस पुलिस वाली को पकड़ कर जांबूर के हवाले कर दिया। इस बात से वह बहुत खुश था। अब हमें इसका फायदा मिलेगा। तुम लोग बेवजह डर रहे थे।"
संजीव ने कहा,
"यार डर नहीं रहे थे। बस हम सोच रहे थे कि अगर उससे बचकर भाग सकते हैं तो शांति से भाग लें।"
भानूप्रताप ने उसे घूरकर देखा। फिर बोला,
"बेकार की बातें मत करो। देख रहे हो ना कि उसके अगवा होने से कितना फायदा हुआ है। पूरा पुलिस डिपार्टमेंट हिल गया है। वो पुलिस वाली हमारे मिशन में रोड़े अटका रही थी। अब हम आराम से अपना मिशन पूरा करेंगे। पर अगर तुम दोनों की तरह मैं भी डर गया होता तो जांबूर को खुश करने का मौका हाथ ना लगता। अब फायदा तुम दोनों भी उठाओगे।"
गगन को उसका इस तरह बोलना अच्छा नहीं लगा। उसने कहा,
"संजीव सही कह रहा है। हम दोनों डरे नहीं थे। फिर नज़ीर को तो हमने ही पकड़ा था। वहीं हमें गुरुनूर मिली।"
भानुप्रताप ने कहा,
"अब अपनी पीठ मत ठोको। तुम लोगों ने केवल एक ही काम अच्छा किया था कि नज़ीर के लिए मुझसे मदद मांगी थी। बाकी जो हुआ वो मेरी हिम्मत और किस्मत थी। हम तो नज़ीर के लिए गए थे। हमें बाहर पुलिस जीप दिखाई पड़ गई। उसमें तुम्हारा पड़ोसी जगत बैठा था। हमें दाल में काला समझ आ गया। उसके बाद किस्मत ने काम दिया। नज़ीर को जीप में बैठाते हुए वह सब इंस्पेक्टर अपने साथी से कह रहा था कि जल्दी लौटकर आना होगा। मैडम यहाँ अकेली हैं। तभी मेरे मन में प्लान आ गया था। पर तुम लोगों को मनाने में थोड़ा वक्त लगा। हम नज़ीर को ठिकाने लगाने के लिए जो गाड़ी ले गए थे वो उस पुलिस वाली के काम आई।"
गगन और संजीव ने एक दूसरे की तरफ देखा। भानुप्रताप तो उन्हें कहीं भी नहीं गिन रहा था। संजीव ने कहा,
"हम दोनों ने भी तो तुम्हारी मदद की थी।"
"कौन सा बड़ा काम किया था। कुछ आहटें की थीं ताकि वह बाहर आ सके। उसका ध्यान पेड़ की तरफ खींचा था बस। अगर मैं तुम लोगों को उस पर वार करने का काम देता तो हम तीनों शर्तिया जेल में होते।"
अंतिम बात कहते हुए भानुप्रताप ज़ोर से हंस दिया। गगन और संजीव को उसका इस तरह हंसना बुरा लगा। पर दोनों ही चुप रह गए।

गुरुनूर अपने आप को यहाँ से भागने की कोशिश करने के लिए तैयार कर रही थी। उसे मालूम था कि इन लोगों की कैद से भागने के लिए ताकत चाहिए। इसलिए तीनों वक्त पूरा खाना खाती थी। कमरे में ही अपने आप को फिट रखने के लिए वर्जिश करती थी। बाकी समय खुद को इस बात का यकीन दिलाती थी कि वह उस जांबूर के हाथों मरने वाली नहीं है। उसे जांबूर को उसके किए की सज़ा दिलानी है। अपने आप को सकारात्मक रखने के लिए वह अपनी पिछली उपलब्धियों को याद करती थी। अपने डैडी की नसीहतों को याद करके वह उस कैद में भी खुद को टूटने नहीं दे रही थी।
गुरुनूर ने इतने दिनों में मन ही मन सबकुछ नोट किया था। उसके कमरे में दो लोग आते थे। एक खाना लेकर कमरे के अंदर आता था। दूसरा कमरे के दरवाज़े पर खड़ा रहता था।‌ जब भी दोनों आते थे गुरुनूर एक कोने में चुपचाप बैठी रहती थी। अपने हावभाव से दिखाती थी कि वह डरी हुई और परेशान है। उसकी इस चाल का असर हो रहा था। वो दोनों लापरवाह दिखाई पड़ने लगे थे। गुरुनूर सही समय का इंतज़ार कर रही थी।

नागेश मॉल के रेस्टोरेंट में बैठा था। उसके सामने की टेबल पर पाँच लड़के बैठे थे। सभी हमउम्र थे। उनमें से एक का आज जन्मदिन था। वह अपने साथियों को ट्रीट देने के लिए लाया था। खाना खाते हुए सभी दोस्त आपस में हंसी मज़ाक कर रहे थे। नागेश की नज़र रितेश पर थी जिसका जन्मदिन था। वह पिछले कुछ दिनों से उस पर नज़र रखे हुए था।
उस दिन नागेश सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के चंगुल से बचकर जांबूर के पास गया था। जांबूर बहुत गुस्सा हुआ था कि वह अपने साथी को पुलिस की गिरफ्त में छोड़ आया है। अब वह पुलिस को उनकी साधना के बारे में बता देगा। नागेश ने अपनी गलती के लिए माफी मांगी। इस पर जांबूर ने कहा कि राजेंद्र को वह संभाल लेगा। अब उसकी ज़िम्मेदारी है कि अनुष्ठान के लिए नई बलि का इंतज़ाम करे। तबसे नागेश इस कोशिश में जुट गया था। उसने रितेश को चुना था।
आज उसे सफलता की उम्मीद थी। वह जानता था कि रितेश की एक गर्लफ्रेंड है। पर उसने अपने दोस्तों को नहीं बताया है। अपने दोस्तों को ट्रीट देने के बाद वह उससे मिलने जाने वाला था। दोनों मॉल से कुछ दूर एक दूसरे रेस्टोरेंट में मिलने वाले थे। वहाँ तक रितेश को पैदल जाना था। शार्टकट के लिए वह एक गली से पैदल जाने वाला था। नागेश के लिए यही एक मौका था। उसने अपने साथी को तैयार रहने के लिए कहा था।









































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