वह जो नहीं कहा - समीक्षा Sneh Goswami द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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वह जो नहीं कहा - समीक्षा

वह जो नहीं कहा

स्नेह गोस्वामी की लघुकथा वह जो नहीं कहा लघुकथा की दुनिया में नये प्रतिमान घङती है ।इस दृष्टि से इस लघुकथा का बङा महत्व है ।इसके कुछ पहलुओं पर चर्चा करना जरुरी है ।
1 पत्नी का एकालाप कह लें या डायरी में लिखे एक दिन का वर्णन कह लें ,घर का अपेक्षित उल्लेख इसमें इस प्रकार से आ गया है कि विषय को लेकर और कुछ कहने की संभावना नहीं लगी ।
2 यह लघुकथा बने बनाए प्रतिमानों के चुनौती देती है । इसकी शब्दसंख्या 750 – 800 है । पंचकुला के सम्मेलन में एक श्रोता ने शब्द –संख्या तय करने की बात उठायी थी । इसके आगे की बात करें । कहानी तीन चार पृष्ठों से लेकर तीस चालीस पृष्ठों तक की होती है । लघुकथा को ही घुटन की बीमारी क्यों है । ऐसी लघुकथाएँ आएँगी तो उनके आधार पर सीमा भी बढती जाएगी । मानदंड रचना में से ही निकला करते हैं ।
3- यह रचना कालदोष को भी नकारती है । एक दिन के छ समयों में घटित यह रचना एक ही उद्देश्य से जुङी हुई है , इसलिए इसमें एकतारत्ता है , एकसुरता है, तारतम्य है ।
4 – लघुकथा के थानेदारों ने इसमें पंचलाइन का होना जरुरी बताया था – यह रचना पंचलाइन की व्यर्थता को सिद्ध करती है ।
5 – इस रचना की बुनावट पर काफी परिश्रम किया गया है । यह पहले बुनी गयी , फिर गुनी गयी ,अंत में लिखी गयी ।
6 – इस लघुकथा की बाहरी और भीतरी गति एक समान है । इस कारण यह लघुकथा पाठक को अपने साथ साथ लेकर चलती है ।
7 – स्त्री पति की अनुपस्थिति में अपनी आजादी का एक दिन बिताते हुए भी घर का काम नहीं छोङती ।
8 – स्त्री की आजादी पर पुरुष का वर्चस्व किस कदर हावी है – यह अंत में मुखर हो जाता है ।
9 – नाटक की भाँति इस लघुकथा के छ दृश्य या यूँ कहें , घर की तरफ खुलने वाली छ खिङकियाँ हैं । सुबह 6 बजे से रात के ग्यारह बजे तक के पाँच दृश्यों की एक एक पंक्ति देखें । सुबह 6 बजे आज कितनी शांति है ।सुबह 10 बजे मन में संतुष्टि हो रही है । तीन बजे लगा था , जिंदगी मशीन हो गयी है । नहीं , दिल अभी धङक रहा है । शाम 7 बजे इस घर पर बहुत प्यार आया । रात 11 बजे अच्छा समय बीत गया । लेकिन रात के 2 बजे पति के दुर्व्यवहार को याद करते हुए भी अंत में कह उठती है – अब तुम घर पर रहोगे तो यह घर तुम्हारा ही होगा ,तुम ही बोलोगे ,तुन ही हुक्म दोगे। ..... यह भारतीय स्त्री की विवशता को दर्शाता है । वैसे थोङा एहसाश रखने वाले पुरुषों के लिए भी यह रतना आँखें खोलनेवाली है ।
स्नेह गोस्वामी की यह रचना जिंदगी की धङकन लिए , भरी पूरी ,पूर्ण और नये आयाम स्थापित करनेवाली रचना है ।

अशोक भाटिया
वह जो नहीं कहा