ईमानदारी का फल - 1 shama parveen द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ईमानदारी का फल - 1

अमीर हो या गरीब दोनो ही ईश्वर की रचना है। इस बात को झुठलाया नही जा सकता है कि ईश्वर की नजरो में सभी समान है चाहे वो अमीर हो या गरीब ,छोटा हो या बड़ा । ईश्वर हर इंसान की परीक्षा लेता है अगर इंसान उस परीक्षा में पास हो जाता है तो फिर उसको उसका फल भी मिलता है। अगर कोई इंसान उस परीक्षा में पास नही हो पाता है तो उसे उसका फल भी नही मिलता है। ईश्वर इंसान के सब्र का इम्तेहान लेता है। इस लिए इंसान को जो भी करना चाहिए पूरी ईमानदारी से करना चाहिए उसे ये सोचना चाहिए की हमे कोई देखे या ना देखे मगर ईश्वर हमे देखता है चाहे हम जो भी करे।
एक समय की बात है एक छोटा सा गांव था उस गांव में एक परिवार रहता था जिसमे एक आदमी और उसकी बीवी और उनके तीन बच्चे थे। वो आदमी बहुत ही गरीब था । उसका नाम मनोहर सिंह था और उसकी बीबी का नाम करुणा सिंह था उनके दो बेटे और एक बेटी थी बड़े बेटे का नाम अमर और दूसरे बेटे का नाम अमृत और छोटी बेटी का नाम अनामिका था। मनोहर दूसरो के खेतो में खेती करता था। और बीवी घर में रह कर घर का काम और बच्चो को संभालती थी।
आज मनोहर घर जल्दी आ गया
क्या हुआ जी आज आप इतनी जल्दी कैसे आ गए। क्या बताऊं करुणा आज सारा दिन हो गया मगर कही काम नही मिल रहा है अब मुझे कोई रखना नही चा रहा है बोल रहे है की तुम अब अच्छे से काम नही करते हो। ये क्या बोल रहे हो आप जी अगर आपको कोई काम नही देगा तो हमारा क्या होगा हमारे बच्चो का क्या होगा ।
इसी तरह कई दिन गुजर गए जो कुछ पैसे थे वो भी खत्म हो गए।
बच्चे पढ़ के आए और आते ही बोले मां बहुत जोर की भूख लगी है कुछ खाने को देदो मां बोली रुको बेटा देखो में खाना बना रही हु। देखो पतीला चूल्हे पे चढ़ा हुआ है। जाओ थोड़ा देर खेल लो जब तक खाना बन के त्यार हो जायेगा। बच्चो के जाते ही मां रोने लगी और पतीला खोल के बोलने लगी की क्या खिलाऊंगी में अपने बच्चे को मेरे पास तो कुछ भी नही है और पतीले का ढक्कन उठा कर देखती है की पानी उबल रहा है ये देख कर मां और रोने लगती है और बोलती है की मेने तो बच्चो को झूठ बोल के खेलने के लिय भेज दिया अब जब वो खेल के आयेंगे तो में उन्हे क्या दूंगी।मेरे पास तो कुछ भी नही है मेने तो उनका दिल रखने के लिय इस पतीले में पानी डाला है की उन्हे लगे की कुछ खाना बन रहा है।
उधर मनोहर काम की तलाश में घूम रहा था मगर उसे कही भी कम नही मिल रहा था तभी उसे रास्ते में एक सेठ मिला जो किसी मजदूर को ढूंढ रहा था । मनोहर को उसने आवाज दी बोला रुको क्या तुम मेरा एक काम करोगे उसके बदले। में तुम्हे पैसे दूंगा ये सुन कर मनोहर बहुत खुश हुआ।