fruit of honesty - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

ईमानदारी का फल - 4

अब मनोहर पर दुकान का और ज्यादा बोझ बढ़ गया क्योंकि सेठ जी ने एक और दुकान खोल दी। और उसे भी मनोहर के हवाले कर दिया क्योंकि सेठ को मनोहर पर पूरा भरोसा था।

इससे मनोहर की आमदनी भी बढ़ने लगीं क्योंकि पहले मनोहर पहले एक दुकान संभालता था अब दो। अब मनोहर के घर के हालात भी पहले से और अच्छे हो गए थे। उसके बच्चे भी अब अच्छे से पढ़ रहे थे।

एक दिन अचानक से सेठ जी बीमार पड़ जाते हैं। तब उनको देखने वाला कोई भी नही होता उनके बच्चे भी उन्हे छोड़ के चले जाते हैं। जैसे ही मनोहर को ये पता चलता है तो वो भागा भागा सेठ जी के पास जाता है। और उन्हे अपने घर ले आता है। और अपनी बीवी से कहता है की आज से सेठ जी यही रहेंगे और तुम्हे इनकी देखभाल करनी है। तब मनोहर की बीवी कहती हैं की ठीक है में इनकी पूरी देख भाल करूंगी।

अब मनोहर और उसकी बीवी दोनों मन लगाकर सेठ जी की सेवा करते है वो जो खाते हैं। उन्हे भी खिलाते हैं। वो पूरी ईमानदारी से उनकी सेवा करते हैं । अब धीरे धीरे सेठ जी ठीक होने लगते हैं।

उन्हे ये देख कर बहुत खुशी होती है की मेरे खुद के बच्चे मुझे छोड़ कर चले गए और ये लोग मेरे कोई ना होकर भी मेरा कितना ख्याल रख रहे हैं। अब सेठ बिलकुल ठीक हो गया था मगर फिर भी वो मनोहर के घर के ही रह रहा था।

तभी अचानक एक दिन सेठ का बेटा आता है और वो उनसे कुछ पैसे मांगता है तो सेठ उस पर चिल्लाता है की तुझे शर्म नही आती है जब मेरी तबियत खराब हो गई थी तब मुझे तुम सब अकेला छोड़ के चले गए थे तब तुम्हें ये शर्म नही आई थी की मुझ बेचारे लाचार को कोन देखेगा। ओर अब जब पैसे की जरूरत आई है तो मेरे से पैसे मांगने आया है। जा में तुझे एक फूटी कोड़ी भी नही देने वाला। य बोल कर सेठ अपने देते को भगा देता है।

रात होती है तब मनोहर घर आता है और फिर उसकी बीवी उसे सारी बात बताती है की आज सेठ जी का छोटा बेटा आया था पैसे मांगने मगर सेठ जी उसे डांट कर भगा देते हैं। तब फिर मनोहर सेठ के पास जाता है और बोलता है की सेठ जी आज आपका छोटा बेटा आया था और आपने उसे डांट के क्यू भगा दिया ।

तब सेठ कहता है कि मनोहर मेरा बेटा मुझसे मिलने या मेरा हालचाल पूछने नही आया था। वो तो मेरे से पैसे लेने आया था। मेरे बच्चों को मेरी फिक्र नही है वो तो बस मुझ से पैसे लेने आते हैं और फिर चले जाते हैं। उन्हें ये भी फिक्र नही है की मै अकेला हु मुझे सहारे की जरूरत है।

तब मनोहर चुप चाप उनकी बातें सुन कर चला जाता है। अब सेठ जी के मन में तीर्थ यात्रा की बात आती है। वो सोचते है की अब तो मैने अपने सारे कर्तव्य पूरे कर लिए है बच्चो को पढ़ाना लिखाना और उन्हे उनके पैरो पर खड़ा करना। और फिर उनकी शादी भी कर दी है अब मेरे ऊपर कोई भी जिम्मेदारी भी नही है।

अब में आराम से तीर्थ यात्रा पर जा सकता हु। मगर मुझे इससे पहले भी एक जरूरी काम है जिसे मुझे पूरा करना है। फिर अगली सुबह सेठ जी मनोहर को बुलाते है और कहते हैं की आज मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है...........
क्रमशे........

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED