पान या खून ? - Part 2 TUHINANSHU MISHRA द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पान या खून ? - Part 2

अध्याय 3: बैठक

न्यू यॉर्क।
एक ऊंची इमारत की 23वी मंज़ल। 10 लोगों के लिए लगी एक चमचमाती शीशे की मेज। आलीशान कमरा और सूट बूट पहने बड़े लोग। एक लंबी पीठ वाली महंगी कुर्सी पर बैठी महिला। लाल ड्रेस में। लंबे लाल नाखून। काले रेशमी बाल। महंगे कपड़े थे। उसके अगल बगल 2 हट्टे कट्टे बंदूकधारी। उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था। चेहरे और शारीरिक बनावट से युवती लगती थी पर उसको युवती कहना मानो झूठा सा लगता था। चेहरे की नक्काशी तो ऐसी थी कि अगर उसकी तारीफ करने निकले तो अल्फाज़ कम हो जायेंगे और ऊपरवाला बुरा मान बैठेगा की जो इतनी सुंदर नक्काशी की थी उसने, उसके काबिल तारीफ करने में हम असफल रहे।

फिलहाल रूप सौंदर्य के साथ बैठक में उसका महत्व भी कुछ भरी जान पड़ता था। एक कुर्सी खाली थी। महिला की नजर उस पर टिकी थी। बाकी के पुरुष कुछ सावधान, कुछ सहमे से, कुछ नजरें झुकाए और कुछ तो ठंड में भी पसीना पोंछते बैठे थे।
"सॉरी लेट हो गया मिस वान्या" एक नौजवान ने अंदर आते हुए कहा। कहते ही आकर वह खाली सीट पे बैठ गया।
"जोनाथन", वान्या ने बड़ी सभ्यता से शुरुआत की। "देर से आना बुरी बात नहीं।" वह हल्का सा मुस्कुराई भी।
"पानी पी लो, थके जान पड़ते हो।" पूरी सभा शांत थी। किसी को भरोसा नहीं हो रहा था की वान्या इस प्रकार बैठक में हुई देरी को नजरंदाज कर जोनाथन से इतनी शांति से चर्चा कर रही है।
जोनाथन ने गिलास उठाया और बिना रुके पानी पी लिया। "शुक्रिया" उसने जवाब दिया।
"हां तो आज हम सब यहां बैठे हैं, क्योंकि टर्टल (कछुआ) फिर से वापस आ गया।"
पूरी सभा में अफरातफरी मच गई इतनी सी बात सुन कर।
एक सज्जन बोले,"मेरे तो अरबों डॉलर की संपत्ति अभी भारत में हैं, टर्टल वापस आ गया ? अब सबकुछ कैसे वहां से हटाऊं ?"
"जोनाथन बताएगा।" वान्या ने कहा।
" बताओ जोनाथन, मिस्टर परमार की संपत्ति का क्या इलाज है?" जोनाथन की ओर मुंह करके वान्या ने पूछा।
यह सुन कर जोनाथन ने तुरंत उन सज्जन से कहा, "कम से कम कितने दिन लगेंगे आपको सब कुछ हटाने में वहां से ?"
"सब कुछ कैसे हटाएं? अचल संपत्तियां हैं मेरी। सब कैसे हटा दूं?"
"जानते हो मेरी साख क्यों है जुर्म की दुनिया के ज़र्रे ज़र्रे में?"
जोनाथन ने पूछा।
मिस्टर परमार चुप रहे।
"दो वजहों से। पहला मुझे ना सुनने की आदत नहीं है दूसरा मैं गोली मारते वक्त हिचकता नहीं हूं।"
"कहना क्या चाहते हो जोनाथन ?" परमार ने तनिक तेज आवाज में कहा।
"हम सब तुम्हारी बेवकूफी की वजह से अपनी जान नहीं गंवाएंगे। इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारी मूर्खता में रत्तीभर कमी नहीं आई।"
मिस वान्या मुस्कुराई और बोली, " परमार, एक हफ्ता काफी है। उसके बाद तुम्हें कोलंबिया जाना होगा। भारत भूल जाओ।"
परमार की आंखे झुक गईं और वो शांत हो गया।
"अब, जैसा की मैने जोनाथन से कहा था", वान्या बोली। "देर से आना बुरी बात नहीं।" उसने झुक कर दोनो हाथ मेज पर रखे। "लेकिन वान्या के दिए समय से देर करना बहुत बुरी बात है।" उसके एक गाल पर हंसी और दूसरे पर घृणा का भाव था।
जोनाथन घबराया।
अचानक उसका हाथ उसकी गर्दन पर गया और वो जोर जोर से हिलने लगा मानो वो कुछ बोलना चाहता था पर बोल नहीं पा रहा था। कुछ पलों बाद वह छटपटा रहा था और फिर कुर्सी से नीचे फिसलकर जमीन पर गिर गया।
"ये क्या हो गया इसको?" परमार जी चिल्ला कर बोले।
"पानी इसके मिजाज के हिसाब से थोड़ा ज्यादा मीठा था।" वान्या हंस कर बोली।
जहरीला पानी पीकर जोनाथन अब मृत्यु के समीप आ चुका था, सभा शांत और सहमी हुई थी और वान्या के चेहरे पर सिर्फ थी एक जीत के नशे में चूर, कुछ राक्षसी मुस्कान।