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पान या खून ? - Part 1

अध्याय 1: नांव की कील

ढलता सूरज। प्रयागराज की धरती और संगम का किनारा। पुरानी सी नांव को धक्का देता गिट्टू। बड़ी मुश्किल से कुछ रुपए इकट्ठा किए थे आज। दो दिन बाद दीवाली है। मिठाई लाएगा शहर से। नए कपड़े, चमकते बर्तन और न जाने कैसे कैसे ऊंचे ऊंचे खयालात आ रहे थे दिमाग में। पुश्तैनी नांव थी, और यहीं बगल में अपनी एक पान की गुमटी। अरे कम थोड़ी थी उसकी धाक ? गिट्टू की दुकान पे मीठा पान लगवाने बड़े बड़े लोग आते थे। कभी छोटी बहन दुकान देखता तो कभी छोटा भाई। गिट्टू का ज्यादातर समय नदी और नांव पे बीतता था। नांव किनारे लगाकर, कांधे का गमछा उतारा और माथे पर पसीना पोछा। अब घर लौटते वक्त दुकान होते हुए जाएगा। देखें छुटकी और पिंटू ने कितनी कमाई की आज।
कपड़ों से रेत झाड़ी और नदी से उल्टी दिशा में चल पड़ा।
"का हो दीनू बाबा ? कैसन ?" गिट्टू ने पूछा।
"सब भल बा। " दीनानाथ जी ने उत्तर दिया।
दीनू बाबा पूजा पाठ कराते थे किनारे पर। चंदन, अगरबत्ती, रोली आदि एक थाली में सजाए, दीपक और धूप जलाए, लकड़ी के तख्त पे बैठ आने जाने वाले श्रद्धालुओं को टीका लगाते और गंगा मां का आशीर्वाद देते। जब से होश संभाला था, गिट्टू उन्हें ऐसे ही पीली धोती और पीला गमछा पहने गंगा के तट पे देखा करता था।
चलते चलते चौराहे पे पहुंचा। गुमटी दूर से ही नज़र आ रही थी। भीड़ लगी थी गुमटी पे। गाड़ियां खड़ी थीं। पर बत्ती वाली ? पुलिस की गाड़ी थी ये तो। गिट्टू की धड़कन तेज हो गई।
उसके पैरों की गति खुद बखुद तेज़ हो गई मानो वह दुकान की ओर खिंचा चला जा रहा था। धक्का मुक्की में किसी तरह आगे पहुंचा तो देखा पिंटू बेहोश सा पड़ा था गुमटी पर, बेतरतीब ढंग से। आस पास पुलिस वाले खड़े थे। गिट्टू ने दौड़ के भाई को झकझोर के जगाना चाहा तब तक एक साहब ने उसको पकड़ लिया।
"गधे हो क्या? कहां जा रहे हो ? क्राइम सीन है दिखता नहीं ?"
"स... स... साब.. म... मैं...साब मैं गिट्टू.. मेरा भाई है वो"
पुलिस वाले ने अपनी पकड़ ढीली कर दी।
"आओ। कुछ हांथ मत लगाना।" उसने इशारा किया।
पुलिस वाला गिट्टू को अपने साथ ले कर पिंटू के पास ले गया। गिट्टू ने देखा एक बड़े साहब खड़े नजदीक से पिंटू की गर्दन देख रहे थे।
"2018 के बाद आज ये नौंवा केस है।" साहब ने कहा।
"सर ये भाई है विक्टिम का।" गिट्टू के साथ खड़े सिपाही ने कहा ।
बड़े साहब ने नजरें घुमाई और गिट्टू को देखा।
"क्या नाम है ?"
"गिट्टू"
"भाई हो?"
"जी"
साहब ने गहरी सांस ली।
"तुम्हारे भाई का मर्डर हुआ है।"
गिट्टू की ज़बान जैसे सिल गई थी। सूझ ही नहीं रहा था कुछ। दुख, शोक, डर सब का पहाड़ एक साथ टूट पड़ा था। उसका शरीर ढीला पड़ गया और घुटनों के बल जमीन पर गिर पड़ा। सिर जमीन पर रखकर फूट फूटकर रोने लगा।

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अध्याय 2. ए.सी.पी. विक्रम बोस

"जय हिंद सर!" इंस्पेक्टर ने सलामी ठोंकते हुए कहा।
"जय हिंद!" विक्रम ने गहरी आवाज में उत्तर दिया।
"सर, कालरा जी आए हुए हैं।"
"कौन? बुलाओ।"
"साब?"
"क्या हुआ? कह तो रहा हूं बुलाओ।"
इंस्पेक्टर साब थोड़ा झिझक के साथ बोले, "साब बहुत बड़ा बिजनेसमैन है.. पॉलिटिकल इनफ्लुएंस बहुत है इसका... साब... वही बंदूकों की तस्करी में जिन तीन लोगों को अभी पकड़ा है... तीनों यही हैं। उन्हीं के बारे में..."
"यार, एक तो मुश्किल से कोई हाथ में आता है, फिर ये लोग मुंह उठा के चले आते हैं। बुलाओ उसको अच्छा।"
इंस्पेक्टर साब बाहर गए।
दो मिनट बाद कालरा के साथ वापस आए।
कालरा साब बड़ी तहजीब से आकर विक्रम के सामने खड़े हुए। चेहरे पे हल्की सी मुस्कान।
"बैठिए" विक्रम ने इशारा किया।
कालरा साब बैठ गए।
"ननकू, गुड्डू और आरिफ।" कालरा ने शांति से कहा।
"हम्म्म?"
"निर्दोष हैं। किसी ने इनको फंसाया है।"
"हमारे सबूत तो कुछ और कहते हैं। इन तीनों ने हमारे पांच सिपाहियों को सरेआम मार गिराया और इनके पास से कई ऑटोमैटिक राइफल्स, मशीनगंस, हैंडगंस बरामद हुई हैं।"
कालरा साहब ठहाका लगा के हंसे और बोले, " ऐसा है कि, यहां आपकी ए बी सी डी नहीं चलेगी। जो बताया वही फाइल में लिख दीजिएगा"
"नहीं तो ?"
"अरे सर नहीं तो क्या?" हम आपका क्या कर सकते हैं? आप अफसर आदमी। बस यही दिया था किसी ने हमको कि अगर आप ऐसा कुछ पूछे तो आपको दे दें।" कहते हुए कालरा ने एक लिफाफा आगे किया। उसमे शायद कोई कागज़ था।
विक्रम हंसने लगा।
"कहां का ट्रांसफर ऑर्डर बनवा के लाए हो?"
कालरा ने हल्की सी सांस ली और उसके चेहरे पर अब किसी झूठी हंसी के अवशेष नहीं दिख रहे थे।
"देखो यार, छोड़ दो तीनों को।"
"किन तीनों को?" विक्रम अब आनंदमय लहजे में बात कर रहा था।
कालरा ने दांत पीसते हुए कहा, "आरिफ, गुड्डू, ननकू"
"उन तीनों ने तो आपस में ही झगड़ा कर लिया। वो गुड्डू... उसने आरिफ को और वो तीसरा वाला क्या नाम बताया उसका ?"
"ननकू"
"हां तो उसको भी गोली मार दी फिर खुद को मार डाला।"
"ये कब हुआ ? " कालरा चौंक के खड़ा हो गया। विक्रम की मेज पर पंजे से थपकी मारी और गुस्से में कहा, "रुको अभी मैं मिनिस्टर साब को फोन मिलाता हूं।"
"मिलाओ, मिलाओ.." विक्रम ने अपनी कमर से गन निकलते हुए कहा।
"मिलाओ मैं जरा एक मिनट में आता हूं।"
उसने गन का सेफ्टी लॉक खोला और कमरे से बाहर निकल गया।
अचानक तीन फायर की आवाज आई।
विक्रम वापस आया। कालरा का चेहरा बिल्कुल सफेद हो गया था।
"हां, वो ट्रांसफर ऑर्डर मुझे दे दो अब।" विक्रम ने खुद से वो लिफाफा कालरा के हाथों से ले लिया।
कालरा के फोन से पीछे से मिनिस्टर साब की आवाज कमरे के सन्नाटे को चीर रही थी, " हैलो ? कालरा साब ? हैलो?... हैलो?..."

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