कृष्णा घनश्याम जी को लेकर हवेली पहुंचता है।
हवेली के गेट के अंदर पहुचते ही जीप रुकती है उसमे से कृष्णा पहले नीचे उतरता है फिर एक आदमी घनश्याम जी के कुर्ते का कॉलर पकड़ उन्हे भी नीचे उतारता हैं ।
घनश्याम जी को देखते ही भान प्रताप का गुस्सा फुट पड़ता है।
भान प्रताप -" तुम्हरि इतनी हिम्मत कैसे हुई हमारी आज्ञा की अवहेलना करने की।"
घनश्याम जी घुटनों के बल उनसे कुछ दर बैठ हाथ जोड़ते हुये -' सरकार हमशे कौनसी गलती हो गयी।"
इसपर राजेस्वरी देवी सामने आते हुये -" काहे रे भुल गया का ,,, की का बोला गया था तुम सबको की किसीको पढना नही है और तूने अपनी लईकी को पोथी-पतरा पकडा दिया।"
भान प्रताप राजेस्वरी देवी को पीछे करते हुये -" कितनी बार बोले तुमको हम आदमियों के बीच ना आया करो।"
राजेस्वरी इसपर चुप हो जातीं है।
इधर अस्मिता अपने बाबा को ऐसे जाते कैसे देख सकती थी इसलिये वो भी बिना चप्पल ही दौड़ते दौडते हवेली पहुच जाती है गेट पर बॉडीगार्ड बहुत रोकते है लेकिन अस्मिता जबर्दस्ती अंदर घुस जाती है।
आदित्य भी इतना शोर सुन उठता है । आदित्य को पहले तो गुस्सा आता है की सुबह सुबह कौन इत्ना हल्ला मचा रहा है लेकिन जब ध्यान से सुनता है तो माजरा कुछ गड्बड़ लगा।
आदित्य मुह धुल कर जल्दी से अपने कमरे से लगे बाहर की ओर बालकनी पर आता है।
आदित्य देखता है की उसके बाऊजी किसी आदमी पर गुस्सा कर रहे है। वो आदमी कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था। तभी वहाँ अस्मिता को दौड़ते आता देख समझ जाता है की यह अस्मिता के बाबा हैं।
दुसरी ओर भान प्रताप अस्मिता को देख -" आ गयी तुम्हारी लड्ली इतना पोथी-पतरा पढवा रहे हो ना तुम्हारा इज्जत ले डुबेगी वैसे भी तुम सब दक्षिणी टोलों वालों की इज्जत ही कहाँ है।"
घनश्याम जी खूद की जान दे सकते थे लेकिन अस्मिता के खिलाफ एक लफ्ज भी नही सुन सकते थे। ऊपर आदित्य खड़ा पूरा माहोल समझने की कोशिश कर रहा था । उसने वही काम कर रहे नौकर को अपने पास बुलाया और फिर उसे समझ आया की बात क्या है।
आदित्य को खूद नही समझ आ रहा था की आज वो शहर से 8 -10 साल बाद आया था उसे पता ही नही की उसके पिता जी कितना जुल्म कर रहे है लोगो के ऊपर और उसे खूद गाँव के माहौल से दूर रखे थे ।
अस्मिता ने एक नजर ऊपर देखा तो आदित्य वही खड़ा था। अस्मिता को आदित्य पर भी गुस्सा आ रहा था की वो क्यो कुछ बोला नही रहा ।
इधर घनश्याम जी ने जब अस्मिता के लिये गलत सुना तो बोल उठे -" साहब कुछ भी कर लिजिये लेकिन हमारी अस्मिता को बीच मे मत लाईये समझे।"
उनकी ऐसी बात सुन भान प्रताप को अपनी बेज्जती महसूस होती है और गुस्से से वो अपना हाथ उठाते है उनको मारने को।
घनश्याम जी की आँखे डर से बंद हो जाती है लेकिन कुछ देर तक उन्हे गालों पर कुछ नही महसूस हुआ तो उन्होने आँखे खोलीं तो देखकर चौक जाते हैं ।
अस्मिता ने भान प्रताप का हाथ इतना जोरों से पकड़ रखा था की चाहकर भी वो अपना हाथ नही छुड़ा पा रहे थे। इतने में सभी बॉडीगार्ड अस्मिता की तरफ बढ़ते हैं लेकिन आज अस्मिता में माँ काली का रूप आ गया था।
अस्मिता जोर से चिल्लाती है -" जहाँ हो सभी वहीं रहो समझे और ,,, आप भान प्रताप जी ,,,,,, यह मत समझना की हम डरते हैं आपसे औरों की तरह और ना ही सबकी तरह आपको कोई बड़े मालिक वालिक समझते है तो यह अपना रौब हमको ना दिखाओ ,,,,,,,,,, और हाँ हमारे बाबा को मारना तो दूर अगर एक लफ्ज भी उनके खिलाफ बोला तो समझ लेना हम क्या करेंगे ,,,,,, जानतें है हमारा आप ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेंगे हमको मार सकते हैं लेकिन हम भी कायरो की तरह जीने से अच्छा शेर की तरह मारना पसंद करेंगे।"
उसकी बातें तो ऐसी थी की कोई राजपूतानी भी ना कर पाये ।
लेकिन उसकी गुस्से भारी बातों को सुन वहाँ सबको गुस्सा आ रहा था लेकिन आदित्य उसका यह रूप पहली बार देखा था ।
खूद के लिये लड़ना बहुत बड़ी बात होता है और यही तो वो चाहता था की अस्मिता कुछ बोले ? क्युकी वो उसकी ढाल बन उसको सभी मुश्किलों से बचाना नही चाहता था बल्कि उसकी हिम्मत बन उसको समाज से लड़ना सिखाना चाहता था।
अनुराग भी वही बॉडीगार्ड की वर्दी पहने हवेली मे था न जाने क्यू वो अस्मिता की बातो से बहुत प्रभावित था वो उसका जज्बा और देखना चाहता था की आखिर कितना लडती है अस्मिता और कहीं न कहीं यह भी उम्मीद थी की अस्मिता और उसके बाबा को कुछ नही होगा।
वीर अस्मिता की बात सुन तिलमिला गया था क्योकि आज तक वो ममता की तरह ही सब औरतों को समझता था जिनको जैसे चाहा वैसे इस्तमाल किया उनपर जुर्म किया। वीर गुस्से से अस्मिता के ऊपर हाथ उठा देता है अस्मिता कुछ समझ ही नही पायी की अचानक हमला कैसे हुआ लेकिन आदित्य बाबू के होते कोई कैसे अस्मिता को छू भी सकता था।
आदित्य पलक झपकते न जाने कैसे आया और वीर का हाथ पकड झटक दिया ।
आदित्य -" भईया आप ऐसे कैसे किसी औरत पर हाथ उठा सकते हैं वो भी तब जब आपका उसपर कोई अधिकार ना हो।"
अस्मिता की आंख एक बार फिर चमक गयी क्योकि उसके आदित्य बाबू जो आ गये थे।
आदित्य अस्मिता को देखता है फिर सबको देखते हुये बोलता है -" आप लोग कैसे हो बताईये आज तक हमे ही नही पता था हमारे गाव में क्या हो रहा है आप लोग ने शिक्षा जो की सबसे बड़ा हथियार है उससे आप सबको वंचित कर रहें हैं ,,,,,, बाऊ जी आप और भईया आप दोनो से ही मुझे यह उम्मीद नही थी बिल्कुल भी।"
राजेस्वरी देवी गुस्से से आदित्य के पास आती हैं क्योकि वो यह नही देख सकती थी की उनका बेटा किसी और लड़की के लिये अपने घर से बगावत करे और बोलती है -" तू अपने बाऊ जी के खिलाफ जायेगा आज सिर्फ इस लड़की के लिये।"
अब तक पूरा गाव हवेली के बाहर जमां हो गया था लेकिन दक्षिणी टोले वाले आज भी डर से खूद के घरों मे सिमटकर रह गये।
पूजा भी हवेली ही आ रही थी लेकिन यहां का माहौल देख वो भी हक्का बक्का थी।
आदित्य सभी गाव वालों को देख बोलता है -" हम ठाकुर आदित्य सिंह आज से यह घोषणा करते हैं की रामगढ़ मे हर किसीको चाहे वो लड़की हो या लड़का हो सबको पढ्ने का अधिकार फिर से है सभी पढ सकते हैं हम जानते है की कुछ सालों से हमारे ही घर के लोगों के कारण आप सब को इतनी तकलीफ़ हुई।"
उसकी बातें सुन पूरे गावँ मे खुशी की लहर दौड़ गई ।
धीरे धीरे माहौल शान्त होने लगा।
भान प्रताप एकदम अचंभित थे की यह उनके बेटे ने क्या किया । उन्होने एकदम हीन भाव से आदित्य को बोला -' शर्म आ रही है आज तुमको अपना बेटा बोलते हुये।"
गुस्से से वो हवेली के अंदर चलें जाते हैं।
इधर आदित्य को भी बहुत गुस्सा आ रहा था अपने बाऊ जी के बातों से। वो एक बार अस्मिता को देखते हुये बोलता है -" आप दोनो जाईये यहां से।"
इसके बाद वो अपनी हंटर निकाल वहाँ से गुस्से से चला जाता हैं।
उसके बाद अस्मिता भी अपने बाबा के साथ निकल जाती है।
क्रमश: