तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-8) - सारंगी - अस्मिता चली Priya Maurya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-8) - सारंगी - अस्मिता चली

अस्मिता का घर

अस्मिता घर आकर यही सोच रही थी की आखिर आदित्य क्यू आया था और आया तो बिना कुछ बोले बस मुस्कुराता रहा और फिर चला गया।
उसके दिल से भी बस यही आवाज निकल रही थी '

तेरी खामोशी भी अजीब सी सितम करती है

तेरा बस यूं मुस्कुरा कर चले जाना भी

मेरे दिल को बेचैन हर पल करती है ....

अस्मिता अपने छोटे से कमरे के बैड पर लेटी कुछ पढ्ने की कोशिश कर रही थी लेकिन दिमाग था की बस आदित्य पर आकर रुक जाता ।
लगभग आधी रात हो चुकी थी लेकिन ना आंख मे नींद थी न दिल मे सुकून।
कुछ दिनो मे उसका B A का परिणाम भी आना था इसलिये और भी ज्यादा दिल दिमाग मे हलचल थी।

आदित्य की हवेली -

यहां यह जनाब किसीकी नींद उड़ा कर आराम से सो रहे थे । सोते सोते मुस्कुरा भी लेते। लग तो रहा था की भगवान से मन्नत मांगे हैं ---

ऐ खुदा काश ऐसा हो जाये

मेरा जिक्र भी उनकी नींद चुरा जाये

लेकिन मेरी नींद में जब भी वों आयें

तो मेरे इन लबों पर मुस्कुराहट तैर जाये।

वही हवेली के पीछे गौसाले मे जम के पार्टी चल रही थी।
वीर और उसके दोस्त मोहन, रमेश, राजू और भी लोग थे ।
विलायती दारु की बोतले खाली हो रही थी।

मोहन वीर से -" भईया जी ऊ का हम बोल रहे थे ऊ लखनवा के लोग आये अगर पैसा मांगने तो क्या करेंगे।"

वीर -" चुप रहो सालों पहले जी भर के पी लो ।"

रमेश -" लेकिन भईया कोई हमको ईहाँ गऊसला मे ऐसे पीते देख लिया तो का करेंगे।"

वीर एक तमाचा मारते हुये -" चुप कौन हमारा कुछ बिगाडेगा बोल बाबा खूद पिए होंगे और वो आदित्य ही बड़ा भगवान बनता फिरता है वो कुछ नही बिगाड़ पायेगा हमारा।'

राजू -" भईया जी ऊ सब छोडिए यह बताईये उस लखन का का करना है अगर किसी भी तरह से आपके बाबा तक यह बात पहुची न तो वो आपको भी लपडिया देंगे।"

वीर मुँह बना कर उठते हुये अपना चप्पल निकल उसको मार कर -" उससे पहले हम तुमको ना लपडिया दें।"

वो बडबडाते हुये-" पूरा मूड़ का भरता बना रखे हैं सब।"

वीर फिर हवेली के पीछे से खूद कर अपने कमरे मे आ बैड के नीचे ही गिर जाता है और वहीं बैड पर ममता सो रही थी।

आदित्य का कमरा--

आदित्य का हाथ पकड़े अस्मिता -" हम भी आपसे बहुत बहुत प्यार करते हैं।"
आदित्य -" ओह सच्ची पर हम कैसे विश्वास कर लें।"
अस्मिता -" आजमा के देख लिजिये ।"
आदित्य-" तुमने ही बोला है अब अपनी बात से मुकरना नही।"
अस्मिता -" किस चीज से नही मुकरना है हमें।"
आदित्य उसकी तरफ बढ़ते हुए -" आजमाने के लिये।"
अस्मिता उसकी बात समझ उसे धक्का देते हुये -" कितने गंदे हैं आप ।"
आदित्य भी मुस्करा कर अपने बालों मे हाथ फेर लेता है।

तभी उसे लगता है कोई उसके कंधे को पकड कर उठा रहा रहे - " कुवँर ए कुवँर उठो बच्चा अभी तक सोये हो आऊर ई का सोते सोते मुस्कुरा रहे हो।"

आदित्य की नींद खुलती है तो सामने अपने अम्मा का चेहरा देखता है उनको देख ही वो उठकर बैठ जाता है।

आदित्य-" अरे अम्मा आज आप आई हैं हमको उठाने क्या हूआ कुछ बात है क्या।"

राजेस्वरी -" इतना जल्दी भुल गये आयं आज काली माता के मंदिर जाना है पूरे परिवार को।"
फिर वो चिल्लाकर बोलते हुये बाहर चली आती है -" ए किरिसनावा सब तैयारी हो गयी है का ऊ माता रानी के लिये टोकरी का फूल भी ले लेना और ऊ ठाकुर रत्न साहब (पूजा के बाबा ) को और उनके परिवार वालन को बुलवाये हो ना।

जल्दी ही भान प्रताप , आदित्य , वीर , ममता , राजेस्वरी जी सभी अपने नौकरो के साथ शाही तरीके से बन्दूक लिये हुये ढेर सारे बॉडीगॉर्ड जिनमे अनुराग भी था सबके साथ दो गाड़ियों में निकलते हैं । अनुराग भान प्रताप के यहां काम करता था और पूजा से आदित्य की हवेली पर ही इसकी मुलाकात हुई थी।

दुसरी तरफ पूजा और उसकी माँ ईश्वरी देवी अपने पिता ठाकुर रत्न सिंह के साथ अपने काफिले के साथ निकलते हैं।

काली माता मंदिर -

सभी लोग जल्दी ही मंदिर पहुँच जाते है । मंदिर के सामने भान प्रताप का काफिला रुकता है और धीरे से राजेस्वरी देवी और भान प्रताप गाड़ी से उतरते है। आस पास के सभी लोग जो अभी तक एक दुसरे से खुसर फुसुर कर रहे थें एकदम शान्त हो जाते हैं और अपना सिर झुका एक तरफ खड़े हो गयें।

भान प्रताप और राजेस्वरी देवी के पीछे ही आदित्य ,वीर, और ममता भी आये । लगभग 30 सीढिय़ां चढने के बाद सभी लोग ऊपर मंदिर में पहुंचे जहाँ पर पूजा का परिवार और भी कुछ बड़े जाने माने बड़े ठाकुरों का परिवार उपस्थित था ।

पूजा आदित्य को देख मुस्कुरा देती है। जिसे राजेस्वरी जी देख लेती है और वो भी मुस्कुरा देतीं हैं।

पूजा भी शुरु हो जाती है और सभी लोग आँखे बंद किये थे लेकिन पूजा और अनुराग एक दुसरे के आँखो मे गुम थे उन्हे ऐसे नैन मट्का करते देख आदित्य भी मुस्कुरा रहा था।

अस्मिता का घर --

अस्मिता अपने कमरे में बैठ किसीका चित्र बना रही थी।
तभी सारंगी पूरा चहकते हुये आती है।
सारंगी -" यार तुम भी न नही पता हमेशा पोथी-पतरा ले कर बैठ जाती हो।
अस्मिता उसे देख अपना बनाया चित्र जल्दी से मोड लेती है।

सारंगी -" ओहह हो का बना रही थी वैसे ... मतलब किसको बना रही थी थोड़ा हमें भी दिखाओ तो।"

इतना बोल सारंगी उसके हाथ से चित्र खिच लेतीं है । अस्मिता खीझते हुये -" अरे कुछ नही है हमे दो हमारा चित्र।"

सारंगी चित्र खोलते हुये -" हम खा रहे हैं का तुम्हारा चित्र बस देख ही तो रहें ......।"

इतना बोलते बोलते उसकी आवाज धीमें हो जाती है।
चित्र मे सिर्फ बाल मस्तक और आँखे ही बनी थी और नीचे का चेहरा अभी बाकी था।

सारंगी -" वैसे यह है कौन जो एकदम राजकुमार की तरह लग रहा है।"

अस्मिता उसे चित्र न पहचान जाने के पर मन ही मन सोचती है -" हे प्रभू लगता है चलो अच्छा हूअ यह महरानी आदित्य जी की तस्वीर नही पहचान पायीं नही तो ....।"

तभी उसे सारंगी की आवाज आती है -" ज्यादा प्रभू को याद न करो हं जान रहे है यह छोटे मालिक की तस्वीर है।"

अस्मिता की एकदम चकित होकर उसकी तरफ देखती है तो वो मुस्कराकर चित्र मोड रही थी।
सारंगी -" ऐसे का देख रही हो हम सब समझ रहें है।"
उसकी बात सुन अस्मिता इधर उधर देखने लगती है।

अस्मिता -" क ..क.. क ..क्या समझ.. झ ती हो तुम।"

सारंगी हसते हुये -" बेटा तू इतना हडबड़ा काहे रही हो वैसे हमको सब समझ आ रहा है की तू उन्हे पसंद करती है।"

उसकी बात सुन अस्मिता बात पलटने की कोशिश करते हुये -" अच्छा सुन सारंगी वो जो काली माता का मंदिर है वहाँ जो चुरमुरा बेचता है ना बहुत गजब का होता है क्या बोलूं मै उसके बारे में।"

सरंगी -" वैसे बात बदलने मे माहिर हो तुम लेकिन का करे चूरमूरा के आगे तो हंम घुटने तक देते ही है।

अस्मिता -" तो का बोलती हो चलें वहाँ।"

सारंगी -" ना बाबा ना हम नही जाने वाले ऊहाँ क्यू की हम लोग को देखते ही ऊ सब हम लोग को मार न डाले हम दक्षिणी टोले वाले ऊ ठाकुरो के क्षेत्र मे नही जा सकतें।

अस्मिता -" कुछ नही होगा और वो सब हमारा कुछ नही बिगाड़ पायेंगे क्या कर लेंगे हमारा वो ,,,,,, बताओ हम भी एक इट मार के भाग जाएंगे वहाँ से जब तक उन्हे होश आयेगा तब तक कोई वैद्य , हकीम के पास होंगे.... अब चलो भी मुह बाँध लो कोई नही जान पायेगा।"

सारंगी -" ठीक है तुम कह रही हो तो चल रहें है लेकिन कुछ होगा तो तुम ही सम्हालना।

अस्मिता -" तुम सब कुछ हमपर छोड दो।

दोनो मुँह बांधे निकल जातीं है फिर से कोई नया खुरापात करने।

क्रमश: