पश्चाताप - 2 Sagar द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पश्चाताप - 2

अध्याय 1 यों तो सभी मेहनत करते हैं किंतु सोहन की मेहनत अलग ही है।कहने को तो वह एक मामूली किसान है।किंतु मेहनत करके जितनी तरक्की जिंदगी में उसने कर ली।शायद उतनी पांच एकड़ ज़मीन वाला भी न कर पाएगा।एक बड़ा और खूबसूरत मकान जिसमें तीन बड़े-बड़े कमरे और एक बैठक के साथ बरामदा।घर में सारी आधुनिक वस्तुएँ हैं।जैसे टीवी, फ्रीज, कूलर, वाशिंग-मशीन आदि।घर में किसी भी बात की कमी नहीं है।

परिवार में पत्नी वीरवती के अलावा चार बच्चे हैं। जिनमें तीन लड़कियां रूपवती 17 वर्ष की, करुणावती 14 वर्ष की और कृष्णावती अभी मात्र 10 वर्ष की हुई है और एक लड़का मोहन है जो सबसे बढ़ा है और 21 वर्ष का हो गया।

रूपवती का जैसा नाम है। वैसे ही उसमे गुण भी है अर्थात सुन्दर, सुशील और बुद्धिमान ।वहीं कृष्णा काफी तेज चंचल और शरारती है।सभी को अपनी चंचलता से परेशान करती रहती है किन्तु सबसे छोटी होने के कारण सभी की लाडली भी है।

वहीं करुणा बेचारी बिल्कुल करुणामयी ही है।उसके अंदर हमेशा करुणा का भाव ही झलकता रहता है।अगर कहीं उसे कोई जीव मुसीबत में दिख जाए तो वह खुद को उससे ज्यादा मुसीबत में समझने लगती है।

एक बार की जब वह मात्र पांच साल की ही थी।उसके घर के सामने पड़ी झोपड़ी में शाम के वक्त एक कुतिया अपने बच्चों को जन्म दे रहीं थी।तो झोपड़ी मालिक को किसी ने जाकर बता दिया। उसने आकर उसी समय कुतिया और उसके बच्चों को बाहर निकाल कर फेंक दिया।कुतिया अपने बच्चों के लिए बहुत तेजी से विलाप करने लगी थी।

कुतिया के रोने की आवाज करुणा ने सुन ली तो वह दौड़ती हुई घर से बाहर आ गयी। उसने जब नज़ारा देखा तो उसे कुतिया और उसके बच्चों पर तरस आ गया। अपने पड़ोसी पर चिल्लाने लगी-

(चिल्लाते हुए)-"तुम इंसान हो या हैवान तुम्हारे अंदर जरा भी मानवता नहीं है। इतनी ठंड में इनको बाहर निकाल फेंका। ये ठंड में मर नहीं जाएंगे। "

झोपड़ी मालिक ने रौब से कहा-"तो तुम्हीं इन्हें अपने घर में ले जाकर क्यों नहीं रख लेती हो?अगर इतना ही तरस आ रहा है। "

करुणा ने उसकी बात को सुनते ही कुतिया और उसके बच्चों को अपने हाथों से उठाकर अपने यहां जहाँ उसके गाय और भैंस बंधा करते थे ,रख देती है। आकर पुनः उस आदमी पर चिल्लाने लगती है-

अगर तुमने उन्हें देखा आकर तो खैर नहीं रहेगी।

दोनों की बहस सुनकर करुणा की माँ बाहर निकल आती है। जब उन्हें उसके कृत्य का पता चलता है तो करुणा को खूब भला बुरा कहने के साथ पीटती हैं और उसे उतनी ही रात को नहलाया जाता है।जिससे उसकी तबीयत बिगड़ जाती है।क्योंकि पूस का महीना होता है।हाड़-कंपा देने वाली ठंड पड़ रही होती है।जिस कारण उसे ठंड लग जाती है और निमोनिया हो जाता है।

काफ़ी दवा और दुआओं के बाद ही सही हो पाती है। उसके बाद उसके दादा ने ही उसे करुणावती की संज्ञा दी थी।

सोहन की तीन बेटिया हैं और तीनों की अलग अलग खूबियां हैं।कृष्णा अपनी शरारतों और छोटी होने के कारण घर की दुलारी है। क्योंकि मोहन सब में बड़ा है।उसने ग्रेजुएशन भी कर लिया।किन्तु सरकारी नौकरी नहीं मिली तो अपने पिता के साथ ही खेती-बाड़ी में ही हाथ आजमाने लगा।

दोनों की मेहनत और ईमानदारी को देखकर मोहन की शादी के लिये अच्छे अच्छे रिश्ते आने शुरू हो गए।किन्तु सोहन को तो उस रिश्ते की तलाश थी। जिसकी वह कई सालों से इंतजार कर रहा था।जैसे ही उसके पसंद का रिश्ता आया वैसे ही बेटे की शादी कर तय कर दी।

रिश्ता उससे कहीं ज्यादा गुने अमीर घर में तय होता है।क्योंकि सोहन को दहेज में नकदी मिलने का लालच जो मिल जाता है।

वो भी एक-दो नहीं पूरे पांच लाख तय होते हैं।लेकिन उसे क्या पता था।यही नगदी उसके घर की सुख-शांति सब कुछ क्षीन लेगी।

शादी तय हो जाने से जितनी खुशी सोहन को है उससे कहीं ज्यादा खुशी कृष्णा को होती है क्योंकि उसे नाचने को जो मिलेगा। जो वह बचपन से सीखती आयी थी। उसे अब अपने भाई की शादी में अपना हुनर जो दिखाने को मिलेगा।

कृष्णा को जैसे ही सुनने को मिला कि भैया की शादी हो रही है ।तो वह गा गा कर मोहल्ले में बता रही है। "ओह मेरे भाई की शादी है

वो दूल्हा बनेगा घोड़ी चढ़ेगा।

बैंड बजेगा, ढोल बजेगा,

डांस होगा , स्वांग रचेगा।।"

तभी गांव की ही एक चालीस वर्षीय महिला जो उसकी रिश्ते में चाची लगती होती है उससे पूछ लेती है - ये स्वांग क्या होता है?

कृष्णा को उस शब्द की जानकारी नहीं थी किन्तु लय में गाती हुई चली तो गयी किन्तु जैसे उन्होंने पूछा तो शर्मा कर अपनी सहेलियों के साथ भाग जाती है। जो उसकी हाँ में हाँ मिला रही थी।

घर में पहली शादी है इसलिए सभी लोग बहुत खुश हैं।किंतु मोहन इस सोंच में पड़ जाता है क्योंकि उसने हर किसी की जुबान से यही सुना है कि बराबर वालों में ही शादी करनी चाहिए नहीं तो बाद में पछताना ही पड़ता है।

शाम के समय मोहन अपनी छत पर कुर्सी डाले आकाश की ओर बैठा-बैठा सोच रहा है।वह इतना सोच में डूब जाता है कि उसे याद ही नहीं रहता है कि वह घर में हैं या शादी में।वह देखता है कि उसकी शादी हो रहीं है सब लोग एकत्रित हैं पंडित जी मंत्र pad रहे है जैसे ही मंत्र खत्म होते हैं तो पंडित जी दोनों को फेरे लेने को उठाते हैं किंतु फेरों से पहले दुल्हन उससे सवाल-जवाब करने शुरू कर देती है।

मोहन उसके सारे जबाव देता चला जाता है। किंतु एक सवाल ऐसा कर बैठती है कि वह सुनते ही एक दम से चिल्ला पड़ता है और कहता है-

"इसीलिए मैं ये शादी नहीं करना चाहता था। मुझे मालूम था कि तुम मुझे अपना नौकर बनाकर रखना चाहती हो।लेकिन मैं ये हरगिज़ नहीं होने दूँगा।"

उसके जोर से चिल्लाते ही घर के सदस्य चौंक जातें हैं।सबसे पहले उसकी माँ भागती हुई आती है और आकर पूछती हैं-

"क्या हुआ बेटा? कोई सपना देख लिया क्या? कौन तुझे नौकर बनाना चाहता है।"

मोहन तब तक सपने से बाहर आ चुका होता है। वह सबको अपने सामने पाकर घबरा जाता है और बिना कुछ बतायें नीचे चला आता है।

बाकी सब लोग वहीं एक-दूसरे की ओर इशारा कर-कर के पूछ रहे हैं कि क्या था किसी के कुछ समझ में आया।

रूपवती मुँह बनाते हुए लगता है भाई को टेंशन हो गयी शादी की। करुणा टेंशन नहीं extention।

कृष्णा extention नहीं दीदी एक्साइटमेंट होता है। करुणा सरल हृदय भाव से- हाँ हाँ ठीक है मेरी नानी एक्साइटमेंट ही सही।