कौआ हुआ अमर Makwana Mahesh Masoom" द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कौआ हुआ अमर

नमस्कार वाचकमित्रो,

आज में बात करने वाला हु एक छोटी सी और रहस्यमय कहानी के बारे में

पर उससे पहले में अपनी एक बात बोल दु। हम भाड़े के मकान में रहते है इसलिए हमें अक्सर समय समय पर अपना मकान बदलना पड़ता है ऐसे में हम एक मकान बदलकर दूसरे मकान में रहने के लिए गए थे तब नए मकानमें मैं और हमारे घर वाले घर की साफ सफाई कर रहे थे उसी वक्त एक कमरे की अलमारी में से मुझे एक छोटी सी बुक मिली बुक पर धूल जमी हुई थी।में ने वह ले ली और साफ की।

उस बुक का मुख्य पुरुष तो टूटा हुआ था ।उसके पेजिस पीले हो चुके लेखिन बहुत अच्छे थे मैंने वह पुस्तक ली तब एक जगह पर रख ली थी फिर जब मुझे याद आया तब मैंने उस पुस्तक को पढ़ा था । उस पुस्तक की कई सारी सरल दृष्टांत वाली कहानियां मुझे पसंद आ गई मेरे दिल को छू गई उसके बारे में मैं बात करता हूं।।


उस कहानी में एक राजा होता है वह राजा अपना राजपाट त्याग कर अमृत पाने के लिए निकल पड़ता है । वह वन में जाके तप करता है।वह अत्यंत कठिन तप करता है एक पैर पर खड़े रहकर भी तप करता है। उसके इस कठीन तप के कारण भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। और प्रसन्न होकर कहते हैं कि मांग बैठे मांग जो मांगेगा वह मैं तुमको दूंगा राजा कहता है," जो मांगूंगा वह दोगे" भगवान कहता है ,"अवश्य जो मांगेगा वह दूंगा "तब राजा इस घड़ी का लाभ उठाकर भगवान के पास अमृत मांगता है भगवान कहते हैं," अमृत पाने के लिए तो तुझे पश्चिम की ओर जाना होगा वहां पर जाकर तुझे दूर से एक सरोवर नजर आयेगा उस सरोवर का पानी तु पिएगा और तू अमर हो जाएगा" यह सुनकर राजा भगवान की आज्ञा लेकर उस दिशा की ओर चल देता है और भगवान गायब हो जाते।

पश्चिम दिशा की ओर दूर-दूर चलने पर एक सरोवर नजर आता है राजा वहां पर ध्यान से देखता है , वहां न वृक्ष है ,न पशु है ,न प्राणी है कुछ भी नहीं है फिर भी राजा कुछ भी सोचे बिना सारे विचार को छोड़ कर खुश होकर उस सरोवा की ओर भागता है सरोवरके किनारे जाकर सरोवर का पानी पीने के लिए सरोवर का जल अपने दोनो हाथ में लेता है और राजा जब पीने ही जाने वाला होता है तब

तभी उसके पीछे एक कौआ आता है और चिल्लाता है कौआ बोलता है," यह पानी मत पियो" राजा कहता है, क्यों? वह कौआ कहता है तुम्हारी ही तरह मैं भी इस सरोवर में अमृत पीने के लिए और अमर होनेके के लिए आया था । मैंने इस अमृत को पी लिया थोड़े दिन तो मैं बहुत खुश था जो मन हो वह करता था। जैसे मैं कहीं जगह पर घूमता फिरता सारे दिन मौज करता है खाना पीना सब कुछ मैंने कर लिया। कुछ समय तो मैं बहुत खुश था । पर जैसे जैसे समय बीतता गया मुझे इन सब से मन भर गया अब मुझे यह सब नीरस लगने लगा है।।

"मुझे अब मरना है ऐसा सोच कर मैं मरने के लिए ऊंची पहाड़ी से घिरा फिर भी मैंने मरा, मरने के लिए मैं समुंदर में जा कर डूबा फिर भी नहीं मरा,मरने के लिए मैंने खुद ही आग लगाई और उसी आग में मैं खुद पड़ा मैं फिर भी ना मरा, और फिर मैंने हार मान कर यहां इस सरोवर के पास आकर अकेला रहने लगा मैंने तय किया कि मैंने अपने जीवन को बर्बाद किया है इस अमृत को पीकर लेकिन
कोई दूसरे पशु ,प्राणी या मानव को इस अमृत पीने से रोक कर उसका जीवन बर्बाद होने से मैं रोक शकता हु। तभी से मैं यहां आकर इस सरोवर के पास रहने लगा हूं इस सरोवर में पानी पीने के लिए जो भी आता है उसे मैं रोकता हूं उसे इस सरोवर की ,इस अमृत की और मेरी कहानी मैं उनको सुनाता हूं और फिर मैं आखिरी निर्णय उन लोगों के ऊपर छोड़ देता हूं।ऐसा कर में अपना फर्ज अदा करता हु।

"हे राजा! मैंने तो अपनी बात तुम्हें बता दी है अब आखरी निर्णय तुम्हारे पर छोड़ता हूं तुम्हें अब भी यह पीना है तो तुम पी सकते हैं में तुम्हे नही रोकूंगा अब।"

यहां से कहानी पूर्ण हो जाती है।

इसमें कहा नहीं गया की राजा क्या करता है पर सब को पता चल जाता है की राजा ने क्या किया होगा।।


21-12-21
मंगलवार