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अनजान रीश्ता - 86

अविनाश घर पहुंचते ही पारुल को जगाए बिना अंदर चला जाता है। वह अपने रूम में इंतजार करता है की कब पारुल अंदर आए । करीब १०-१५ मिनिट बाद जब पारुल रुम में अंदर नहीं आई तो वह बालकनी में से पार्किंग लॉन की ओर देखता है। पारुल अभी भी कार में ही थी। अविनाश ना चाहते हुए मजबूरी में अपने एक बॉडीगार्ड को इशारे से कार का दरवाजा खटखटाने की लिए कहता है। अचानक आवाज की वजह से पारुल हड़बड़ी में उठ जाती है । जिस वजह से पारुल का सिर सामने टकरा जाता है। वह सिर को सहलाते हुए कार के बाहर देखती है तो बॉडीगार्ड खड़ा था । वह दरवाजा खोलते हुए बाहर आती है । और बिना कुछ कहें घर के अंदर चली जाती है। पारुल ऊपर कमरे में नहीं जाना चाहती थी। जो कुछ भी आज हुआ है उसके बाद तो वह उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी। दिन ब दिन अविनाश का एक बुरा रूप पारुल के सामने आ रहा था। जिस वजह जो भी अच्छी याद हैं बचपन की वह धीरे धीरे मिट रही थी। और बुरी यादें जुड़ रही थी। पारुल हॉल में सोफे पर बैठे बैठे यहीं बाते सोच ही रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या करे!? क्या करे! जिससे इस परिस्थिति में से बाहर निकले!? । उसका दिमाग अब थक चुका था। उसका दिमाग मानों सुन्न पड़ गया था । मानो जैसे उसके सोचने समझने की ताकत खत्म हो गई थी। वह अपने बालों पर हाथ फेरते हुए उसके पीछे की ओर कर रहीं थी। तभी जिस तरह से अविनाश ने उसके बाल पकड़ के व्यवहार किया था सारी बात फिर से याद आ जाती है। वह अपने हाथो में मुंह को ठकते हुए वह सब कुछ भूलने कोशिश करती है। वह ऐसे ही अपनी सोच में डूबी थी की उसे पता नहीं चला की सामने सोफे पर कोई आकर बैठा हुआ है। जब वह आंखे खोल कर देखती है तो सामने अविनाश बैठा था । अचानक अविनाश को सामने देखकर उसकी चीख निकल जाती है । वह खुद को संभालते हुए अपना चेहरा दूसरी ओर फेर लेती है।

अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) आई लाइक इट.... खैर! मेरा अभी डराने का कोई इरादा नहीं था । तो में मै सीधा पॉइंट पर आता हूं! अब बहुत हुई ये चूहे बिल्ली का खेल! अब थोड़ा सीरियस हो जाए ।
पारुल: ( मुंह पर विचित्र भाव से उसकी ओर एक क्षण देखती है फिर से मुंह फेर लेती है। ) ( मन में: अब और बाकी क्या रखा है तुमने!? जिंदगी के वह पहलू दिखा चुका है जिसके बारे में मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। उसके चहेरे पर एक अतरंगी भाव आ जाते है । ) ।
अविनाश: ( जानता था पारुल उसे कोस रही है । वह खुद को मुस्कुराने से रोकते हुए ... । ) आज से मेरे सारे काम... इस पूरे मेनशन की जिम्मेदारी भी तुम ही उठाओगी। मेरे साथ रोज शूट पर आना मेरे काम करना ! सारी जिम्मेदारी अब तुम्हारी है माय डीयरेस्ट वाईफी।
पारुल: ( आंखे जपकाते हुए अविनाश की ओर ही देखे जा रही थी की कहीं वो पागल तो नहीं हो गया। सामान्य काम तक तो ठीक है लेकिन पूरा मेनशन... वह अकेली... क्या मार डालना चाहता है। ) ।
अविनाश: ( श्यातानी मुस्कुराहट के साथ ) चलो फिर.... अगर कोई सवाल नहीं है तो ( घड़ी में देखते हुए ) तुम्हारे घर से तो हमें भूखे पेट ही लौटना पड़ा... तुम खाना बनाओ... तब तक में फ्रेश आकार आता हूं! और हां गलती से भी मुझे पता चला कि किसीने तुम्हारी मदद की है तो तुम्हारे लिए तो बुरा होगा पर उनके लिए भी जिन्होंने तुम्हारी मदद की होगी! तो सोच समझकर! ।

इतना कहते हुए वह सीढ़िया चढ़ते हुए कमरे की ओर आगे बढ़ जाता है । पारुल गुस्से में मुठ्ठी बंद करते हुए खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। वह गुस्से में पांव पटकते हुए किचन में पहुंचती है। उसकी आंखो में गुस्सा साफ साफ जलक रहा था । पारुल को देखकर सारी मेड चौंक जाती है । तभी माई उसे कहती है ।

माई: बेटा कुछ चाहिए!? हमे बुला लिया होता !? ।
पारुल: नहीं! वो आज का खाना मैं बनाऊंगी! तो आप लोग जा सकते! है!।
माई: पर बेटा! तुम अकेली इतना सारा खाना कैसे बनाओगी!? ।
पारुल: इतना सारा!? हम दोनों ही तो है! कुछ आसान सा बना लूंगी! ।
माई: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) नहीं बेटा! यहां पर हर काम बाबा के हिसाब से होता है । आज का मेन्यू भी उन्होंने डिसाइड किया है ।
पारुल: क्या!?।
माई: देखो! टेबलेट में दिखाते हुए! आज कुल मिलाके २५ तरह की चीजे बनेगी! ।
पारुल: ( माई के हाथ में से टेबलेट लेते हुए देखती है तो अविनाश ने सारी लिस्ट भेजी थी। गुस्से से पारुल का पारा और भी चढ़ रहा था । वह पूरा पानी का ग्लास एक घूंट में पी जाती है । ग्लास रखते हुए कहती है। ) कोई नहीं में मैनेज कर लूंगी! ।
माई: पर... बेटा!?। ( तभी आवाज आती है । ) ।
अविनाश: माई! जब मेरी वाइफी कह रही है वह बना लेगी! तो उसे मौका तो दे। वैसे भी अब मुझे अपनी वाइफ के हाथ का बना खाना खाने की आदत भी तो करनी है। है ना वाईफी!।
माई: पर...! ।
अविनाश: ( हाथ के इशारे से माई को रोकते हुए ) माई में हूं यहां बीवी के साथ आप लोग जाए! आज अपने घर पे लंच करके आए! आज मैं और वाइफी खाना पकाएगे! क्योंकि आज हमारी पहली लंच डेट है । ( मुस्कुराते हुए )।

सारी मेड प्यार भरी नजरो से अविनाश और पारुल की ओर देख रही थी । सोच रही थी की कितना रोमांटिक है अविनाश! । पारुल दूसरी और गुस्से में लाल पीली हुए जा रही थी । तभी अविनाश एप्रेन लेकर पारुल को पहनाते हुए बांध रहा था । जिसे देखकर कोई भी इंसान धोका खा सकता है। अविनाश सभी को जाने का इशारा करता है। मेड और माई किचन में से चले जाते है। जैसे ही वह लोग दरवाजे के बहार कदम रखा अविनाश पारुल से दूर जाते हुए... सामने टेबल पर बैठ जाता है। वह प्लेटफॉर्म पर सिर रखकर मुस्कुराते हुए पारुल से कहता है। " चलो वाइफी शुरू हो जाओ! जल्दी से मेरे लिए खाना बनाओ! बड़ी तेज भूख लगी है। मुझे सारी डिश डेढ़ घंटे में टेबल पर चाहिए! तो हो जाओ शुरू मेरी जान! । " इतना कहते ही वह हॉल की ओर चला जाता है ।

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