अनजान रीश्ता - 85 Heena katariya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनजान रीश्ता - 85

पारुल खुद को संभालते हुए कार में बैठ जाती है ।अविनाश कार को स्टार्ट करते हुए खुद को काबू में करने की कोशिश कर रहा था। आज पहली बार उसने पारुल से इस तरह बात की थी। उसके दिमाग को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी पर उसके दिल में कहीं ना कहीं कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मानो जैसे दिल के किसी कोने में खालीपन सा हो। जैसे उसने कोई बहुत बड़ा अपराध किया हो। वह अब अपने दिल की नहीं सुनना चाहता था । क्योंकि जब जब वह दिल की सुनता है..। हर बार उसे सिवाय रुसवाई के कुछ नहीं मिलता । उसने एक बार भी पारुल की ओर नहीं देखा था क्योंकि वह जानता था अगर वह देखेगा तो वह कमजोर पड़ जाएगा। वह आज जो हुआ उसके बाद तो बिलकुल भी वैसा नहीं चाहता था। आज पहली बार किसीने उसको सबके सामने थप्पड़ मारी है... शायद वह बात भी अविनाश हजम कर लेता लेकिन तब जब उसकी गलती नहीं थी... वह पारुल को डिफेंड कर रहा था तो वह फिर ऐसा कैसे कर सकती है। बस यहीं बात उसके दिमाग में चल रही थी... उसका मन चाहता तो था की वह भी पारूल को थप्पड़ का जवाब थप्पड़ से ही दे । लेकिन फिर उसका दिल और दिमाग ने इज्जत ही नहीं दी। और चाह कर भी वह पारुल को नहीं मार सकता था.. । उसमे इतनी हिम्मत ही नहीं है की पारुल को हाथ लगाए। तब भी जब अविनाश को पता चला था की उसकी मां की कातिल पारुल है... उस दिन भी अविनाश ने हाथ तो उठाया था पर वह पारुल को मार नहीं सका... । शायद ये उसकी कमजोरी थी या ताकत... या फिर उसकी मां के मर्जी की उसने मना किया था कभी भी किसी भी लड़की पर हाथ उठाने से... गलत हो तब भी। और पारुल उसको तो वैसे भी वह चौंट पहुंचा भी दे लेकिन.... पर उसका दिल हर बार उसे परेशान करता रहेगा की उसने गलत किया! । जैसे अभी कर रहा है! जैसे दिल के एक हिस्से को अविनाश ने अपने हाथ से ही कांटा हो। अविनाश बस ऐसे ही सोच में डूबा था की तभी उसकी आंख पर से कुछ टपक रहा था... जब वह छू कर देखता है तो खून था। वह गुस्सा होते हुए कहता है।

अविनाश: फ**क अब इसकी ही कमी थी। जिंदगी है या मूवी.... ( कार को साइड में रोकते हुए... फर्स्ट एड बॉक्स में से दवाई निकालकर कार के आगे के शीशे में देखकर मरहम पट्टी कर रहा था । तभी उसका ध्यान पारुल की ओर जाता है। वह बस अपने ही ख्यालों में बैठी थी । बिल्कुल बेजान पुतले की तरह...। अविनाश आंखे बंद करकर खुद को कोसते हुए गुस्से को काबू में करने कोशिश करता है। अविनाश जब अपनी मरहम पट्टी करके फिर से कार स्टार्ट करता है तभी उसे पारुल का ख्याल आता है की कहीं उसे कोई चौंट तो नहीं लगी। वह एक नजर पारुल की करते हुए सिर से पांव तक देखता है। उसे वह ठीक है लग रही थी लेकिन अविनाश का दिल उसे चैन से रहने वाला थोड़ी ही था । वह हार कर पूछ ही लेता है । ) तू... तुम्हे... कहीं चौंट तो नहीं आई!? ।
पारुल: ( अविनाश की आवाज सुनकर मानो उसे और भी घुटन सी होने लगी थी। वह अविनाश के सवाल पर उसकी ओर नहीं मुड़ती और शीशे में बाहर की ओर देखते हुए आंखे बंद कर लेती है । ) ।
अविनाश: ( एक और बार पारुल को देखता है की वह सच में ठीक तो है। वह एक गहरी सांस छोड़ते हुए कार चलाने में व्यस्त हो जाता है । ) ।

अविनाश घर से थोड़े ही दूर था की तभी एक कार उसकी कार को ओवरटेक करते हुए सामने रुक जाती है । जिस वजह से अविनाश कार को ब्रेक मारता है । अविनाश देखता है तो सेम कार में से बाहर आता है। जिस वजह से अविनाश भी अपना सीट बेल्ट खोलते हुए कार से बाहर आता है । सेम अविनाश के पास आकर कहता है ।

सेम: मुझे आपसे बात करनी है।
अविनाश: बोलो!? ।
सेम: ( अविनाश की कार में पारुल की ओर देखते हुए ) आप.. घर मत जाईए... मैं नहीं चाहता घर पर कोई अशांति हो। डेड वैसे ही नाराज है और अगर उन्हें पता चला कि क्या हुआ है तो बात और बिगड़ जाएगी । साथ में मॉम का दिल भी टूट जाएगा... तो मैं नहीं चाहता वैसा कुछ हो ।
अविनाश: तुम्हें लगता है मुझे कोई फर्क पड़ता है... की मिस्टर.. एंड मिसेस.. रायचंद मेरे बारे में क्या सोचते है!? आई डोंट केयर... । मैं बस फॉर्मेलिटी पूरी कर रहा हूं! और कुछ नहीं।
सेम: ( अविनाश की ओर देखते हुए ) जानता हूं! आपको फर्क नहीं पड़ता पर.. पा.. र.. ओ... मेरा मतलब है की पारुल को फर्क पड़ेगा... मॉम डैड उसे काफी पसंद करते है । मैं नहीं चाहता और कोई तमाशा हो! इतना तमाशा काफी है! अब और तमाशा सहने की हिम्मत नहीं है तो रिक्वेस्ट है... आप अपने घर चले जाए! ।
अविनाश: ठीक है! फाईन। लेकिन सिर्फ तुम्हारी खातिर... वर्ना मैं अपनी कहीं गई बातो से पीछे नहीं हटता..! ।
सेम: ( सिर्फ सिर को हां में हिलाते हुए जवाब देता है । )।

दोनो ऐसे ही चुपचाप खड़े थे। दोनो में से कोई भी बात नहीं करना चाह रहा था। क्योंकि दोनों ही जानते थे की अगर बात की शुरुआत की तो फिर पता नहीं क्या अंत आएगा! । तभी थोड़ी देर बाद सेम कहता है ।

सेम: ठीक है फिर मैं चलता हूं ! ख्याल रखिएगा अपना और.... ( आगे बोल नहीं पाता और मुड़ जाता है। ) ।
अविनाश: सेम.... सॉरी.....यार... । हो सके तो.... मा...फ कर देना...।
सेम: ( बिना मुड़े ) हाहाहाहा.... अभी वह बात रहने दे भाई.... अभी में रेडी नहीं हूं सुनने के लिए। आप बस मेरे लिए इतना कीजिए पारुल का ख्याल रखिएगा! प्लीज... उसे कोई भी परेशानी या तकलीफ उसके पास भी नहीं आनी चाहिए! अगर उसे कुछ हुआ तो मैं नहीं जानता हमारा रीश्ता कहां पर आकर रुकेगा या फिर शायद हमारा रीश्ता ही नहीं रहेगा. । ध्यान रखिएगा ... ।

सेम जाते जाते पारुल को एक नजर भर के देखना चाहता था। पता नहीं फिर कब मिल पाए! या फिर ना मिले!? । लेकिन वह खुद को पीछे मोड़ नहीं पाया। क्योंकि अगर मुड़ता तो वह शायद ही जा पाता। वह खुद को चाहकर भी दूर नहीं ले जा पाता। वह पारुल को साथ तो ले जाना चाहता था लेकिन कैसे! किस हक से!? सारे सवाल उसके मन में उठ रहे थे!। उसके आंख से एक आंसू गिरता है । जिससे वह पोंछते हुए सेम कार लेकर चला जाता है।

अविनाश वहीं खड़े खड़े सेम की कार की ओर देखे जा रहा था। थोड़ी देर बाद वह कार में बैठते हुए कार अपने घर की ओर मोड़ लेता है। उसके दिमाग में सेम की बातें घूम रही थी। वह एक बार पारुल की ओर अपनी नजर घुमाता है। वह दरवाजे के शीशे के सहारे सिर रखकर सोई हुई थी। पवन की वजह से उसके बाल बिखरे हुए थे । अविनाश फिर से रास्ते की ओर नजर घुमा लेता है... । लाखों सवाल घूम रहे थे उसके दिमाग में! । लेकिन जवाब मिल हीं नहीं रहे थे।

पारुल आंखे बंद करते हुए सेम के बारे ने जो अविनाश को कहां उसके बारे में सोच रही थी। वह भाग के सेम के पास जाना चाहती थी। उससे गिड़गिड़ाते हुए मांफी मांगना चाहती थी । लेकिन शायद पारुल में इतनी हिम्मत नहीं थी । वह किस मुंह से सेम के सामने जाएं!? । जो दर्द उसने सेम को दिया है...वह तो कोई दुश्मन को भी नहीं देता। कैसे वह अपनी इस हरकत को उचित ठहराए! जब की उसने उस इंसान का दिल तोडा है जो उससे बेपनाह मोहब्बत करता है ।

तीनों की जिंदगी एक ऐसे मोड़ पर आ गई है। जहां पर तीनों में से किसी को भी इस उलझन में से कैसे निकले समझ ही नहीं आ रहा था । तीनों एक ऐसे मोड़ पर आ गए थे जहां से ना ही पीछे जाने का रास्ता नजर आ रहा था और ना ही आगे जाने का। बस किसी तरह तीनों खुद को संभालने की कोशिश कर रहे थे.... ।