अनजान रीश्ता - 84 Heena katariya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनजान रीश्ता - 84

पारुल भारी कदमों से अपने घर का गेट बंद करते हुए कार की ओर आगे बढ़ती है। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। अब तो उसकी आंखे भी रो-रो कर थक चुकी थी। क्योंकि इन दिनों पारुल की आंखे से मानो आंसू का कोई गहरा नाता बन गया हो। वह कार का दरवाजा खोलकर बैठ जाती है। वह अपने ही खयालों में खोई हुई थी। अपने मॉम डैड की नाराजगी अविनाश के गुस्से से ज्यादा ही खल रही थी। वही मां बाप जो पारुल की खुशी के लिए जमीन आसमान एक कर देते थे। आज वह पारुल की शक्ल भी नहीं देखना चाहते । यह बात पारुल के दिल पर बोझ बन रही थी। पारुल यह बात हजम ही नहीं कर पा रही थीं । मानो जैसे किसीने उसके दिल पर बड़ा सा पत्थर रख दिया था। पारुल के मन में अभी सवालों की बौछार हो रही थी। वह सोच ही रही थी की काश उसने अविनाश से शादी ना की होती तो शायद...वह लोग आज पारुल के साथ होते। दूसरी और उसका ही मन उसको उतर देते हुए कहता है की अगर वह ऐसा ना करती तो वह लोग रास्ते पे आ जाते । और ना जाने अविनाश क्या करता! वह रेस्टोरेंट वाली तस्वीरें! सारे अखबार में होती। वह लोग जीते जी मर जाते । इससे अच्छा तो यही ही की मैं उनसे दूर रहूं। अगर वह लोग सही सलामत है खुश है। तो मेरा दूर रहना ही बेहतर है। चाहे वह लोग मैं मुझसे नफरत करे... नफरत ही सही मैं सह लूंगी। पर उन लोगों को कुछ नहीं होना चाहिए! । पारुल के दिमाग में यह सारी बातें घूम ही रही थी की तभी अविनाश कहता हैं।

अविनाश: तुमने आज जो भी किया वह अच्छा नहीं किया!?।
पारुल: ( रोती हुई नजरों से अविनाश की ओर सवाल भरी नजरो से देखती है। ) ।
अविनाश: ( वह रास्ते की ओर ही देख रहा था। पारुल की ओर नहीं मुड़ता! ) तुम्हे नहीं लगता...( स्टेरिंग को टाइट पकड़ते हुए ) तुम हद से ज्यादा बढ़ गई हो!?।
पारुल: किस बारे में बात कर रहे हो!? ।
अविनाश: ( गुस्से ने हंसते हुए ) हाहाहाहा....हाहहा.... किस बारे में बात कर रहा हूं में!? ( ताना मारते हुए ) ( चिल्लाकर कहता है । ) वहीं जो अभी तुमने सबके सामने किया! मेरी बेइज्जती... ।
पारुल: ( अचानक अविनाश के चिल्लाने की वजह से आंखे बंध करते हुए सीट को पकड़ लेती है। ) ।
अविनाश: आंखे खोलो.... ( चिल्लाते हुए ) ।
पारुल: ( डर के मारे बंध आंखो से सिर को ना में हिलाते हुए मना करती है । ) ।
अविनाश: पारुल... लास्ट टाइम कह रहा हूं आंखे खोलो! इसके बाद जो भी होगा उसकी जिम्मेदार तुम होगी!।
पारुल: ( फिर से सिर को ना में हिलाते जवाब देती है। )।
अविनाश: ( गुस्से में ) फाइन एस यू विश ।

यह कहते ही एक्सीलेटर पर पैर रखकर स्पीड बढ़ा देता है। अविनाश मानो जैसे पागल हो गया था। कार की गति हद से ज्यादा ही बढ़ गई थी यह बात पारुल को भी महसूस हो रही थी। क्योंकि जिस तरह से आवाज आ रही थी। मानो कार हवा से बातें कर रही थी। तभी पारुल सोचती है की क्या कोई है नहीं जो इस कार को रोके!? ट्रैफिक पुलिस कहां गई!? रास्ते पर लोग! दूसरी कार क्या सबकुछ गायब हो गया है!?.. तभी अविनाश कहता है।

अविनाश: आखिरी बार कह रहा हूं! ओपन योर आयस! वर्ना सामने एक ट्रक है और मेरा ब्रेक मारने का कोई इरादा नहीं है। मुझे तो वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता की मुझे क्या होगा! लेकिन तुम सोच लो तुम्हारे आगे पीछे तो काफी लोग है। जिससे तुम अपना कह सकती हो! तो बेबी जल्दी सोचो... ट्रक हमसे कुछ ही दूरी पर है! ३.....२.... ए....

(तभी पारुल कहती है।)

पारुल: नहीं!... ( चिल्लाते हुए अविनाश का हाथ पकड़ते हुए स्टेरिंग घुमा देती है । कार रॉड की दूसरी ओर पेड़ से टकरा जाती है। ) ।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) अरे! वाह काफी जल्दी फैसला ले लिया तुमने!? ।
पारुल: ( गुस्से में अविनाश की ओर देखती है और कार के बाहर निकल जाती है । पारुल अभी दो कदम आगे बढ़ी ही थी की तभी वह चिल्लाती है। ) आह! मेरे बाल ( अपने बाल को पकड़ते हुए ) ।
अविनाश: ( गुस्से में पारुल के बाल पकड़ते हुए अपनी और घुमाता है। ) ( बेहद पारुल के करीब जाते हुए ) जब में बात कर रहा हूं तो तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई ऐसे जाने की !? हां!? तुम क्या समझती हो!? तुम सबके सामने मुझे युंह झलिल करोगी और मैं चुपचाप बैठूंगा!?। शायद में तुम्हे अच्छी तरह से ट्रीट कर रहा हूं तो तुम खुद को सच में मेरी बीवी मान बैठी हो!? ( पारुल के बाल कसकर पकड़ते हुए और भी चेहरा करीब लाते हुए। अविनाश का गुस्सा मानो सातवे आसमान पर था! पारुल पहले भी अविनाश को गुस्से में देख चूंकि है लेकिन इतना गुस्सा उसने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखा!। )... एक बार ध्यान से सुनो.... ये जो तुम हवा में उड़ रही हो ना! भूलो मत में अविनाश खन्ना हूं! और तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मुझे थप्पड़ मारने की!?। डर नही लगा की में क्या करूंगा!? जब की तुम जानती हो की मैं कुछ भी काम बेवजह नहीं करता। वैसे अच्छा ही हुआ तुमने मुझे थप्पड़ मारा! वह क्या है ना मैं शायद अपने मकसद भूल गया था । पर... अब पारुल अविनाश खन्ना... ध्यान से देखो मुझे! इस जगह को... और वक्त को! आज इसी वक्त में अविनाश खन्ना तुम्हे वादा करता हूं की अगर मैने तुम्हे अफसोस ना करवाया की तुम मुझसे क्यों मिली!? हर एक दिन हर एक पल तुम्हे खुद पर तरस आएगा की तुम अभी तक जिंदा क्यों हो!? । हर घड़ी तुम जीने के लिए तरसोगी!? लेकिन आखिर में तुम खुद को अकेला पाओगी!? बी रेड्डी वाइफी... ( आंख मारते हुए.... वह पारुल के बाल छोड़ देता है। ) ।

पारुल वहीं जमीन पर गिर जाती है। पारुल की आंख से एक आंसू भी नहीं गिरता। वह बस जमीन पर घुटनों के बल बैठी हुई थी। मानो अभी अविनाश ने जैसे उसे सहारा देकर खड़ा रखा था। जैसे ही उसने छोड़ा पारुल का सहारा ही चला गया हो । पारुल सोच रही थी की अविनाश क्या कह रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था की लोग उसके पीछे ही क्यों पड़े है। आखिर ऐसी क्या वजह है जो सभी लोग पारुल से नफरत करने लगे है। क्या वह बुरी इंसान बन गई है....!? क्या एक इंसान उसे जानने की कोशिश नहीं कर सकता!? क्या वह इतनी बुरी इंसान है जो कोई भी उसे समझने की कोशिश नहीं कर रहा!? क्या कभी भी ऐसा कोई इंसान आएगा जो उसे समझेगा!? उसकी मजबूरी को! उसकी गलती को!?.... इन सबके बावजूद उसके साथ खड़ा रहेगा! उससे प्यार करेगा! हौसला देगा! ?। पहले मॉम डैड फिर सेम.... अब ये ... भी नफरत करने लगा है। मानो जैसे एक एक करके सभी इंसान जिसे पारुल जानती है वह उसके खिलाफ खड़े हो रहे है। जैसे वह इन लोगो को इतने साल साथ रहने के बावजूद जानती ही नहीं और ना ही वह लोग! । पारुल जमीन पर पड़े ही सोच रही थी। अब मानो धीरे धीरे उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी। इन दिनों कुछ ज्यादा ही घटनाएं घट रही है। जो पारुल की हिम्मत थोड़ा थोड़ा करके तोड़ रही है। पारुल सोच ही रही थी की तभी अविनाश कहता है। " अब तुम्हारा ड्रामा हो गया हो तो! चलो पूरा दिन नहीं है मेरे पास तुम्हारे आगे पीछे घूमने के लिए । " ।