कायरा एक्साइटिड होके अपनी सारे गिफ्ट्स और शॉपिंग दिखा रही थी....उसने मायरा के शॉपिंग और गिफ्ट्स भी दिखाए। ऐसा नहीं था की मायरा में कोई उत्साह नही था या वोह खुश नही थी जबकि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था।
असल में मायरा जल्द से जल्द अपनी पढ़ाई खतम करके नौकरी करना चाहती थी और अपने घर में सपोर्ट करना चाहती थी। उसके पापा एक नामी बैंक में ब्रांच मैनेजर थे पर और कोई भी फाइनेंशियल प्रॉब्लम नहीं थी उनके घर अच्छे से चलता था पर फिर भी मायरा की इच्छा थी की वोह घर में सपोर्ट करे। इसलिए उसका सारा ध्यान अपनी इंटर्नशिप पे था।
बेटा आपको तो पता ही है कुछ महीनो से हमारी इंडिया वाली कंपनी में कुछ ना कुछ परेशानी चल रही है। आए दिन कोई ना कोई समस्या आती ही रहती है। कभी वर्कर्स स्ट्राइक कर देते है कभी कोई प्रोजेक्ट हाथ से निकल जाता है। मुझे लगता है कोई है जो हमारा नाम खराब करना चाहता है। एसआरएस प्राइवेट लिमिटेड (SRS pvt. Limited) तुम्हारे दादा जी का सपना था। "शिव राज शिखावत" उन्होंने ये कंपनी अपनी मेहनत से शुरू की थी। उनकी अमानत है ये हमारे पास और अब कोई है जो उनका नाम खराब कर रहा है और में ये होने नही दे सकता। महेश जी ने साफ शब्दों में अपनी बात कही।
हां डैड पता है मुझे....अब तक तो गुप्ता जी सब अच्छे से संभाल रहे थे पर अब लगता है उनके हाथ से भी बात निकल गई है। विराज ने उनकी बात का जवाब दिया।
महेश जी ने अपनी मां सुनंदा जी और अपनी पत्नी रूपाली की तरफ देख कर कहा में चाहता हूं की विराज इंडिया जाए और पर्सनली सब हैंडल करे।
महेश जी की बात सुन के रूपाली जी और सुनंदा जी गहरी सोच में पढ़ गए वहीं विराज ने ये सुनके कहा "डैड में....??"
में कैसे डैड? में कभी इंडिया नही गया। और...
देखो बेटा में चला जाता अगर डॉक्टर ने मुझे ट्रैवल करने को मना नहीं किया होता। जैसे ही....
"डैड......कैसी बात कर रहे हैं आप। मेरा वोह मतलब नही था"। फिर कुछ पल रुक कर विराज ने कहा में जाऊंगा और सब सही कर दूंगा। आपके डैड का सपना पूरा करना मेरे डैड का सपना है और में वो पूरा करूंगा। हमारी इंडिया वाली कंपनी कभी कोई आंच नहीं आयेगी।
अब में जाता हूं डैड एक इंपोर्टेंट मीटिंग है। में आपसे ऑफिस में बात करता हूं। विराज ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा और उठ के चला गया।
कोयल तो कबकी फोन पे बात करते करते अंदर चली गई थी।
क्या इंडिया जाए बिना ये काम नहीं हो सकता? रूपाली जी ने रुआसी आवाज़ में कहा।
सुनंदा जी ने रूपाली को समझाते हुए कहा "एक दिन तो वापिस इंडिया जाना ही है। हम कब तक यहां परदेस में रहेंगे हमारे अपने तो वहीं हैं और रही बात दुश्मनों की तो क्या इनके काम की वजह से दुश्मन यहां कम है।
हां मां में समझती हूं।
मुझे इसी बात का डर था विराज के इंडिया जाने वाली बात से आपकी गंगा जमना बहेगी फिर चुप कराना बड़ा मुश्किल होता है। महेश जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा।
रूपाली ने रोते हुए ही घूर के देखा....महेशजी चुप हो गए।
अब वक्त आ गया है की उस वादे को निभाया जाए और उम्मीद करती हूं की अब कुछ बुरा नही होगा। अपनी बहु की तरफ देखते हुए उन्होंने पलके झपका कर उसे आश्वस्त किया।
महेश जी ऑफिस जाने से पहले अपना कुछ सामान लेने वापिस अपने कमरे में आए,,,,,रूपाली जी को कमरे में बेड पर बैठे हुए किसी सोच में गुम देखा तो रुक गए कुछ पल ऐसे ही देखते रहने के बाद वो रूपाली जी ओर बढ़ गए।
रूपाली......! महेशजी ने पुकारा
अपना ध्यान आवाज़ की ओर करते हुए रूपालीजी ने कहा "आ...आप तैयार हो गए आप आइए में नाश्ता लगवाती हूं" कहते हुए वो उठ खड़ी हुईं और अपने कदम दरवाज़े की ओर बढ़ा दिए।
कर चुका हूं.... महेश जी ने बस इतना ही कहा।
रूपाली जी पलट गईं और उन्हें देखने लगी।
आपका ध्यान कहां है नाश्ते के वक्त भी नहीं आईं। लूसी (घर की मेड) को भेजा था आपको बुलाने पर आपने माना कर दिया। दो दिन हो गाएं हैं आप अभी भी वोही सोच रहीं हैं। आपको क्या लगता है में दुश्मन हूं उसका मुझे उससे प्यार नही में यूहीं उसे इतनी दूर नहीं भेज रहा हूं मेरा यकीन कीजिए अगर काम जरूरी नहीं होता तो में उसे ऐसे नही भेजता। मुझे पता है ये मां बेटे की जोड़ी कभी भी अलग नही हुई है और अब तो कई महीनो के लिए आपको उससे दूर रहना पड़ेगा। महेश जी ने एक गहरी सास ली और आगे कहा मेरे आंसू नहीं दिखते इसका मतलब ये नही की मुझे दर्द नहीं होता बल्कि इस दुनिया ने हमसे वोह हक छीन रखा है जिससे मर्दों को इजाजत नहीं की वोह अपनी तकलीफ अपना दुख दिखा पाए। इस दुनिया में मां को ममता की मूरत और बाप को पत्थर दिल कहा जाता है। मां तो अनमोल होती है उसकी सहनशीलता और त्याग की कोई सीमा नही पर पिता कोई बेरहम नही होते। मुझे भी मेरे बच्चे की उतनी ही चिंता है जितनी आपको है पर हमारा बच्चा बहुत होनहार है रूपाली उसके कदम मत रोकिए जाने दीजिए उसे।
महेश जी के इतना कहते ही रूपाली उनके गले लग के फफक पढ़ी थी। महेश जी ने भी रूपाली जी को अपने सीने से लगा लिया था।
आपके मन की व्यथा और चिंता में समझ सकता हूं। माता पिता का प्यार उनके बच्चों के लिए बेड़ियों के तरह नही होना चाहिए जो उसे कमज़ोर बनाए बल्कि एक मजबूत ढाल की तरह होना चाहिए जो कदम कदम पर उसकी रक्षा करे और आगे बढ़ने की प्रेरणा दे। महेश जी ने रूपाली को पकड़े हुए ही कहा।
मायरा ने एक दो जगह इंटरव्यू दिए थे पर वहां से कॉल आना बाकी था कायरा को मॉडलिंग में इंटरेस्ट था इसलिए उसने अपना फोकस उसी में रखा हुआ था और कई सारे बड़े फोटोग्राफर्स से अपना पोर्टफोलियो भी बनवाया था।
ट्रिंग...ट्रिंग...की घंटी जा रही थी पर सामने से कोई फोन नही उठा रहा था। एक लड़का अपने ऑफिस के केबिन में चहल कदमी करते हुए लगातार किसी को फोन मिला रहा था। तीन बार फोन करने पर भी जब सामने से किसी ने फोन नही उठाया तो गुस्से में अपने फोन को अपने कोर्ट की पॉकेट में रखते हुए उसने पानी से भरा हुआ ग्लास उठा लिया और एक सास में ही पूरा पानी गटक लिया। और गहरी सास लेते हुए खिड़की के पास आके खड़ा हो गया और बाहर देखने लगा।
तभी उसके रूम का दरवाज़ा किसी ने बाहर से नॉक किया उस लड़के ने पीछे मुड़ के देखा और कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था की किसी ने दरवाज़ा खोल दिया वोह शख्स अंदर आया।
उस शख्स को देखते ही उस लड़के के कदम उस ओर बढ़ गए और बोला "आपको इजाज़त लेने की जरूरत कब से पढ़ गई "।
कहानी अभी जारी है.....
धन्यवाद🙏