आवारा हूँ - भाग(२) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आवारा हूँ - भाग(२)

जग्गू दादा के बुलाने पर आवारा उसके अड्डे पर पहुँचा.....
क्या बात है जग्गू दादा? आपने बुलवाया ,आवारा ने पूछा....
हाँ! रे! एक छोकरी को उठवाने का है,जग्गू दादा बोला।।
कौन है वो? आवारा ने पूछा...
अभी कोई नई छोकरी आई है शरबती बाई के कोठे पर,अपुन को वो पसंद आ गई है उसका नाम किरन है, और हर हाल में अपुन को वो चाहिए...जग्गू दादा बोला।।
तो शरबती बाई से उसे खरीद क्यों नहीं लेते? आवारा बोला।।
अपुन उसे खरीदकर क्या करेगा? एक रात का काम है ,उसे बीवी बनाकर थोड़े ही रखना है,जग्गू दादा बोला।।
वो तो तवायफ़ है,पैसे मिलने पर किसी के भी साथ चली जाएगी,आवारा बोला।।
वही तो बात है वो छोकरी बड़े उसूलों वाली है कहती है कि जिस्म नहीं बेचेगी,नाचने गाने के लिए तैयार है,बहुत अकड़ रही थी इसलिए उसकी अकल ठिकाने लगाने का है,जग्गू दादा बोला।
लेकिन दादा! ये तो गलत होगा ना कि किसी लड़की को उसकी मरजी के बिना यहाँ लाना,आवारा बोला।।
तुझे ये काम करने का है तो बोल ,खाली पीली मगज खाने का नई,जग्गू दादा बोला।।
ठीक है दादा!रात वो यहाँ होगी,आवारा बोला।।
ये हुई ना मर्दों वाली बात,ये ले और जा ऐश कर,जग्गू ने कुछ रूपए आवारा को देते हुए कहा....

रात हुई और आवारा शरबती बाई के अड्डे पर पहुँचा और पूछा...
शरबती बाई! किरन कहाँ है? जग्गू दादा ने उसे याद किया है।।
जब किरन ने मना किया है ना कि वो जग्गू के पास नहीं जाएगी फिर तू क्यों जबरदस्ती करता है,शरबती बाई बोली।।
मैं उसे लेने आया हूँ ,अपनी मरजी से चलेगी तो ठीक ,नहीं तो उसे उठाकर ले जाना पड़ेगा...
तब शरबती ने अपने लठैतों को आवाज दी....
रामू,भोलू ,राका,शम्भू कहाँ मर गए सब के सब यहाँ आओ....
और सब के सब लाठी लेकर टूट पड़े आवारा पर....
आवारा ने भी जोर लगाकर सबका सामना किया और एक एक को चित्त कर दिया और फिर से शरबती बाई से पूछा कि....
शरबती बाई! अब बोल कि किरन कहाँ है?लगता है तुझे जग्गू दादा की ताकत का अन्दाजा नहीं था,इसलिए इतना अकड़ रही थी...
वो बगल वाले कमरें में होगी,लेकिन वो आसानी से नहीं जाएगी,पहले उसके मुँह पर पट्टी बाँधनी होगी फिर उसके हाथ पैर भी बाँधने होगें तब तू उसे ले जा पाएगा ,रूक ये काम मैं करवा देती हूँ और बेवकूफ आवारा आ गया शरबती बाई की बातों में ,उसे नहीं पता था कि शरबती बाई उसके साथ किरन को नहीं किसी नई लड़की को भेज रही थी और बेवकूफ आवारा उस लड़की को अपनी पीठ पर बोरे की तरह लादकर ले आया जग्गू दादा के पास ,जब जग्गू दादा ने उस लड़की की शकल देखी तो बोला....
ये तो किरन नहीं है,ये तू किसे उठा लाया?
लेकिन शरबती बाई तो कह रही थी कि ये ही किरन है,आवारा बोला।।
तू पहले इसके मुँह की पट्टी खोल और हाथ पैर भी खोल दे,अपुन खुद ही पूछ लेगा कि ये कौन है? जग्गू दादा बोला।
जग्गू के कहते ही आवारा ने उसके हाथ पैर खोलें,उसकी मुँह की पट्टी हटा दी ,तब जग्गू ने पूछा ....
कौन है तू?
फिर उस लड़की ने बोलना शुरू किया....
मेरा नाम रानी है,मैं गाँव में रहती थी,मेरे पिता गाँव के प्रधान थे ,किसी ठेकेदार ने गाँव की पक्की सड़क बनाने का ठेका लिया लेकिन उसने समय पर अपना काम पूरा नहीं किया तो मेरे पिताजी ने उससे बात की,पता चला कि वो सब पैसे खा चुका है और अब सड़क नहीं बनाएगा,पिताजी जी ने उसकी शिकायत कर दी,जिससे उसके खिलाफ कार्यवाही हुई तो पता चला कि उसने और भी गाँव के ठेके लिए थे और सबका पैसा खा गया,
उसे इस गलत काम के लिए जेल हो गई और उसके खिलाफ मेरे पिताजी ने गवाही दी ,उसने पिताजी से बदला लेने की धमकी दी और जब वो कुछ महीनों बाद जेल से छूटा तो एक रात कुछ गुण्डो के साथ हमारे घर आ धमका,उस समय मैं दसवीं के इम्तिहान दे रही थी इसलिए आँगन में पढ़ाई कर रही थी,उसने मेरे पिता ,माँ और मेरे छोटे भाई को गोली मार दी लेकिन उसने मुझे गोली नहीं मारी बोला कि मुझे बेचकर उसे अच्छे दाम मिलेंगें।।
उसी रात मेरे परिवार को खतम करने के बाद वो मुझे यहाँ ले आया और शरबती बाई के पास बेंच दिया,मैं ये काम करने को राजी नहीं थी इसलिए शरबती बाई ने मुझे कमरें में बंद करके रखा कि कहीं मैं भाग ना जाऊँ और आज उसने मुझे किरन बताकर तुम्हारे पास भेज दिया,मैं शोर ना मचा पाऊँ और ये ना कह पाऊँ कि म़ै किरन नहीं रानी हूँ इसलिए उसने मेरे मुँह पर पट्टी बँधवा दी और मेरे हाथ पैर भी बँधवा दिए...
किरन ना सही तू ही सही,किरन से तो अपुन और किसी दिन निपट लेगा,आज तू ही अपुन का दिल बहला दे जानेमन! जग्गू दादा बोला।
लेकिन जग्गू दादा! ये अभी बच्ची है मुश्किल से सोलह सत्रह साल की होगी,आवारा बोला।।
तुझे बड़ी दया आ रही है इस पर,जग्गू बोला।
बेचारी हालातों की मारी है ,इसे छोड़ दो ना दादा! कल पक्का किरन तुम्हारे सामने होगी,आवारा बोला।।
लेकिन अभी तो ये सामने है तो इसी से काम चला लेते हैं,जग्गू दादा बोला।।
छोड़ दो ना दादा! आवारा फिर से बोला।।
तू बड़ी तरफदारी कर रहा है,ये मत भूल कि तू मेरे टुकड़ो पर पलता है,जग्गू दादा बोला।।
मुफ्त में रोटी नहीं देते हो,जब अपना खून बहाता हूँ तब जाकर कहीं मिलते हैं ये रोटी के टुकड़े,आवारा बोला।।
तू अपुन को हूल देता है ,जा नहीं छोड़ता छोकरी को,जो मेरा मन करेगा ,वही करूँगा इसके साथ और इतना कहकर जग्गू दादा उस लड़की पर झपटा....
तभी आवारा ने जग्गू को एक बार फिर रोका.....
रूक जाओ दादा! लड़की को हाथ मत लगाना नहीं तो मुझ से बुरा कोई ना होगा,
अपुन को आँखे दिखाता है,तेरी इतनी हिम्मत और इतना कहकर जग्गू दादा ने छुरा निकाल लिया
अब आवारा भी कहाँ पीछे हटने वाला था,दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई ,जग्गू दादा ने अवारा को छुरा भोंकने की कोशिश तो आवारा ने उसका हाथ पकड़ लिया , इसी हाथापाई में वो छुरा जग्गू दादा की पीठ पर घुस गया और वो घायल हो गया....
आवारा इसी मौके का फायदा उठाकर रानी को ले भागा,दोनों भागते रहे...भागते रहे और रेलवें स्टेशन पहुँचे और बिना टिकट एक ट्रेन में चढ़ गए,टी सी आया और आवारा ने पैसे देते हुए कहा कि दो टिकट बना दो और उस रात दोनों भागकर दूसरे शहर चले आएं......
एक जगह कन्स्ट्रक्शन का काम चल रहा था,दोनों ने वहाँ डेरा डाल लिया,रहने के लिए तो जगह मिल गई लेकिन अब खाना कहाँ से आए? रानी ने अपने गले से सोने की जंजीर उतारते हुए आवारा से कहा....
लीजिए राजा जी! ये जंजीर बेचकर कुछ तो पैसे मिल ही जाएगे।
लेकिन मेरा नाम राजा नही है और मुझे क्या इतना गया गुजरा समझ रखा है कि एक लड़की को खिला नहीं सकता,चुपचाप अपनी जंजीर पहन लो,आवारा बोला।।
अब जो भी आपका नाम हो,आज से मैं रानी और आप राजा,रानी बोली।।
ए....छोकरी दिमाग़ खराब है क्या तेरा? ये क्या बक रही है तू,आवारा बोला।।
बक नहीं रही हूँ सच कह रही हूँ,आपने मेरी जान और इज्जत दोनों बचाई है इसलिए आप मेरे लिए राजा से कम नहीं हैं,रानी बोली।।
पागल है तू,आवारा बोला।।
पागल ही सही,अब तो आपको जिन्द़गी भर इसी पागल के साथ ही रहना पड़ेगा क्योंकि मेरे तो माँ बाप भी नहीं रहें,रानी बोली।।
ए....सिर पर मत चढ़ औकात में रह,वो तो मुझे तुझ पर दया आ गई इसलिए बचा लिया,आवारा बोला।।
अब कुछ भी हो,आप ही मेरे सब कुछ हैं,रानी बोली।।
ठीक है...ठीक है...ये बिना सिर पैर की बातें मत कर ,तू यही रूक मैं खाने का बंदोबस्त करके आता हूँ,आवारा बोला।।
सुनिए ना राजा जी! ये जंजीर ले लीजिए,बाद में पैसे आ जाए तो नई दिलवा देना,रानी बोली।
फिर राजा जी! अगर दोबारा राजा जी बोला तो मुँह तोड़ दूँगा,आवारा बोला।।
ठीक है तो इसे बेच दीजिए खाने का इंतज़ाम हो जाएगा और एक कमरा भी किराएं पर ले लेते हैं,रानी बोली।।
ठीक है ये तेरा उधार रहा मुझ पर ,पैसे हाथ में आते ही चुकता कर दूँगा और यहाँ तुझे मैं अकेले छोड़ भी नहीं सकता,चल मेरे साथ चल और उस जंजीर को बेचकर उन्होंने खाने का सामान खरीदा उस दिन दोनों ने एक कमरा भी किराए पर ले लिया,रानी ने एक जोड़ी कपड़े भी लिए,रानी के जिद करने पर आवारा को भी कपड़े लेने पड़े और मकान मालिक को दोनों ने ये बताया कि वो पति पत्नी हैं।।
एक दो दिन की मेहनत के बाद आवारा को एक गैराज पर काम भी मिल गया,अब आवारा ने शराब पीना बिल्कुल से छोड़ दिया था,उसने अब अपनी जिम्मेदारी समझना भी शुरू कर दिया था,
दोनों का गुजारा होने लगा,आवारा कम बोलने वाला था और रानी ज्यादा बोलने वाली,आवारा रानी से जितना दूर भागता,रानी उतना ही उसके नजदीक आने की कोशिश करती,रानी सच में आवारा को चाहने लगी थी,वो उसका ख्याल पति की तरह ही रखती थी उसके कपड़े धोना,खाना बनाना,उस के हर छोटे मोटे काम भी वो दिल लगा कर किया करती।।
और एक रात वो आवारा के पास आकर बोली...
कुछ कहूँ,अगर बुरा ना माने तो,
हाँ...बोल,आवारा बोला।।
मैं आपको चाहने लगी हूँ,रानी बोली।।
तो मैं क्या करूँ? आवारा बोला।।
तो मुझसे शादी कर लीजिए,रानी बोली।।
अपनी उम्र और मेरी उम्र देखी है तू मुझसे उम्र में काफी छोटी है,आवारा बोला।।
तो मैं मुझसे शादी करने को कह रही हूँ,अपनी उम्र से थोड़े ही,रानी बोली।।
ये सुनकर आवारा मुस्कुराते हुए बोला...
तू तो नहीं मानेंगी,मुझसे शादी करके ही रहेंगी।।
अब हम दोनों सबकी नज़रों में पति पत्नी ही हैं,शादी का नाम ही तो देना है,रानी बोली।।
तो फिर कल शाम तैयार रहना,हम कल मंदिर में शादी करेंगें,आवारा बोला।।
सच्ची! और इतना कहकर रानी अपने राजा के गले लग गई.....
हाँ,सच्ची मेरी प्यारी रानी,आवारा बोला।।
और रानी सारी रात मारें खुशी के सो नहीं सकी....
दूसरे दिन आवारा सुबह से कहीं निकल गया क्योंकि आज तो गैराज की भी छुट्टी थी,इसलिए रानी ने सोचा कि गैराज नहीं गए तो आखिर कहाँ गए होगें लेकिन आवारा दोपहर तक कुछ सामान लेकर लौटा और रानी से बोला....
ये रही तेरे लिए लाल साड़ी,लाल चूड़ियाँ और लाल सिन्दूर,इन्हें पहनकर शाम को तैयार रहना....
और इस थैली में क्या हैं?
रानी ने उत्साहित होकर पूछा....
अरे,पगली! इस थैली में कुछ फूल हैं,सुहाग सेज सजाने के लिए....
धत्त...और इतना कहकर रानी शरमा गई.....
फिर आवारा बोला.....
मैं पंडित जी को बोलकर आता हूँ कि शाम को तैयार रहें....
रानी बोली,ठीक है।।
और शाम को रानी ने दुल्हन का वेष धरा,शाम को आवारा लौटा तो बोला.....
तुम इतनी खूबसूरत हो ये आज पता चला......
शाम को दोनों मंदिर पहुँचे,दोनों ने भगवान को साक्षी मानकर फेरे लिए और पंडितजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया,कुछ देर मंदिर में बैठे रहें ,कुछ अँधेरा सा छाने लगा तो दोनों ने घर लौटने का सोचा....
लेकिन रास्तें में उन्हें कुछ गुण्डो के साथ उन्हें जग्गू दादा मिल गया और उसने आवारा से कहा....
तूने क्या सोचा कि अपुन मर चुका है,उस दिन का बाकी हिसाब किताब आज चुकता होगा...
और जग्गू ने पिस्तौल निकाली लेकिन आवारा ने फुर्ती से उस पर हाथ मार उसे गिरा दिया,तब जग्गू के गुण्डे आवारा पर टूट पड़े...
काफी देर हाथापाई होने के बाद पिस्तौल जग्गू के हाथ में फिर से आ गई और उसने आवारा पर गोली चलाई लेकिन तभी बीच में रानी आ गई और गोली उसके सीने में जा लगी ,अब आवारा अपना गुस्सा रोक ना पाया,उसने जग्गू के हाथों से पिस्तौल छीनी ,फिर जग्गू और उसके तीनों गुण्डो को गोली मारकर वहीं ढ़ेर कर दिया....
और अन्तिम साँसें लेती हुई रानी के पास आ बैठा,
रानी की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे और उसे देखकर लग रहा था कि जैसे वो भी अपने राजा को छोड़कर नहीं जाना चाहती.....
आवारा उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बोला....
मत जाओ रानी! अपने राजा को छोड़कर,मैं तुम्हारे बिन कैसे जिऊँगा?
और रानी ने राजा कि बात नहीं सुनी,आखिर वो अपने राजा को छोड़कर चली ही गई.....
और उसका राजा बेबस होकर केवल उसका नाम लेकर चीख ही पाया.....
नहीं.....रानीं.....नहीं.....!!

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....