Pyar ke Indradhanush - 37 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार के इन्द्रधुनष - 37

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हरलाल का स्वास्थ्य पिछले काफ़ी समय से ठीक नहीं चल रहा था, इसलिए डॉ. वर्मा को जब भी समय मिलता, वह गाँव चली जाती थी। जब जाती थी तो एक रात अवश्य वहाँ रुकती थी। पिछले रविवार को जब वह गई तो उसने परमेश्वरी को कहा - ‘माँ, आप पापा को समझाओ और मेरे साथ चलो। वहाँ पापा की देखभाल अच्छे से हो सकेगी। खेत और फसल के बारे में मामन से फ़ोन पर पूछ लिया करेंगे।’

‘तेरी बात तो ठीक है, किन्तु तेरे पापा इसलिए शहर नहीं जाना चाहते, क्योंकि वहाँ लगातार रहने में इन्हें घुटन महसूस होती है। इसलिए हम यहीं ठीक हैं। वैसे भी तू हफ़्ते में एक बार आकर सँभाल तो लेती ही है।’

डॉ. वर्मा ने फिर आग्रह नहीं किया और प्रतिदिन कम-से-कम एक बार फ़ोन पर हाल-चाल पूछ लेती थी। उसे गाँव से आए हुए दो दिन ही हुए थे। उसने फ़ोन किया तो माँ की आवाज़ थोड़ी बुझी-बुझी सी लगी। उसने चिंता जताई तो परमेश्वरी ने यह सोचकर कि अभी दो दिन पहले तो आई थी, अब फिर काम छोड़कर आना पड़ेगा, उसे आश्वस्त करते हुए कहा - ‘तू चिंता ना कर बेटा। तेरे पापा ठीक हैं।’

डॉ. वर्मा को माँ की बातों से तसल्ली नहीं हुई। उसने गाँव जाने का मन बनाया। रात गहराने लगी थी, इसलिए उसने विमल को फ़ोन करके स्थिति से अवगत कराया और कहा - ‘भइया, मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ गाँव चलो। पापा को अब और अकेले गाँव में नहीं छोड़ सकती।’

‘दीदी, आप चिंता न करो। पन्द्रह मिनटों में मैं आपके पास पहुँचता हूँ।’

विमल ने अपने पापा से डॉ. वर्मा के पापा की सेहत का ज़िक्र किया तो उन्होंने भी उसे डॉ. वर्मा के साथ जाने की इजाज़त दे दी।

साढ़े दस बजे डॉ. वर्मा विमल को लेकर गाँव पहुँची तो गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था। हाँ, कुछ-कुछ देर में कुत्ते के भौंकना ज़रूर सन्नाटे को तोड़ देता था। इक्का-दुक्का घरों में रोशनी का आभास हो रहा था वरना चहुँओर अंधकार फैला हुआ था। घर पहुँचकर उन्होंने देखा कि हरलाल की हालत काफ़ी नाज़ुक थी। हरलाल को अपनी बेटी और विमल को पहचानने में भी कठिनाई हो रही थी। डॉ. वर्मा को पापा की बीमारी का पता था, इसलिए वह आपातकाल में दी जाने वाली कुछ दवाइयाँ लेकर आई थी। उसने अपने बैग में से एक इंजेक्शन निकाला और विमल की सहायता से पापा को लगाया। थोड़ी देर में हरलाल जो अब तक चारपाई पर लेटा बेचैनी की हालत में बार-बार करवटें बदल रहा था, शान्त होकर सो गया। तब तक परमेश्वरी उनके लिए दूध बनाकर ले आई थी। उन्हें दूध देने के पश्चात् उसने कहा - ‘वृंदा, विमल के लिए बिस्तर दूसरे कमरे मे लगा दिया है। तुम मेरे कमरे में सो जाना, मैं तेरे पापा के पास रहूँगी।’

इस पर विमल ने कहा - ‘माँ जी, आप और दीदी आराम से सो जाओ। पापा जी के पास मैं रहूँगा।’

‘विमल, पापा अब सुबह तक नहीं उठेंगे। तुम आराम से दूसरे कमरे में सोओ। रात को किसी समय मैं पापा को देख लूँगी।’

विमल ने डॉ. वर्मा की बात नहीं मानी। दूसरे कमरे से बिस्तर उठा लाया और हरलाल के पास ही बिस्तर लगा लिया।

मुँह-अँधेरे डॉ. वर्मा हरलाल के कमरे में आई। देखा, विमल जाग रहा था। पूछा - ‘भइया, लगता है, नींद ठीक से नहीं आई!’

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। अभी थोड़ी देर पहले ही आँख खुली थी। जैसा आपने कहा था, पापा जी तो बिल्कुल भी नहीं हिले-डुले।’

‘तुम फ़ारिग हो लो, मैं चाय बनाकर लाती हूँ। फिर तुम चाहोगे तो तुम्हें अपने खेत दिखा लाऊँगी।’

‘गाँव में आया हूँ तो खेत तो ज़रूर देखूँगा।’

विमल को सारे खेत विशेषकर सब्ज़ियों वाले हिस्से में डॉ. वर्मा ले गई। वहाँ उसने माली को ताज़ा सब्ज़ियाँ घर छोड़ने के लिए कहा - कुछ सब्ज़ियाँ विमल के लिए, कुछ रेनु के लिए तथा कुछ अपने साथ ले जाने के लिए। विमल ने उसे कहा - ‘दीदी, यह तो बहुत बढ़िया जगह है। पापा जी ठीक हो जाएँ, फिर किसी दिन रेनु भाभी और अनिता को भी यहाँ लाकर पिकनिक मनाएँगे।’

‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं! स्पन्दन तो बहुत खुश होगी यहाँ आकर।’

जब वे घर वापस आए तो हरलाल जाग चुके थे। डॉ. वर्मा और विमल ने उनसे बातचीत की और समझाया कि अब उन्हें कम-से-कम कुछ दिनों के लिए गाँव का मोह छोड़ देना चाहिए। अन्तत: हरलाल को बेटी का आग्रह मानना पड़ा।

.......

डॉ. वर्मा अपने माता-पिता व विमल के संग जब गाँव से चली थी तो धूप पूरी तरह चमक रही थी, लेकिन रास्ते में एकाएक बादलों का रेला-सा आया और कुछ ही क्षणों में सूर्य को ढक लिया। आरम्भ में जहाँ कहीं बादलों की परत पतली होती थी तो सूर्य अपना अस्तित्व दिखाने का प्रयास करता। थोड़ी देर तक यह आँख-मिचौली चली। फिर बादलों की गर्जना शुरू हो गई और साथ ही बूँदें पड़ने लगीं, जिन्होंने शीघ्र ही मूसलाधार वर्षा का रूप इख़्तियार कर लिया। दिन में रात जैसा अँधेरा छा गया। डॉ. वर्मा लगातार वाइपर चलाती हुई आहिस्ता-आहिस्ता कार चलाकर जैसे-तैसे घर पहुँची। हरलाल को बेडरूम में लिटाकर विमल जाने लगा तो डॉ. वर्मा ने उसे रोकते हुए कहा - ‘विमल, वर्षा रुक लेने दो, फिर जाना। अभी चाय पीते हैं’, और साथ ही उसने वासु को चाय बनाने के लिए कह दिया।

वर्षा रुकने के बाद विमल ने जाने की आज्ञा लेते हुए कहा - ‘दीदी, अनिता तो अस्पताल में ही होगी, मैं शाम को आऊँगा।’

विमल के जाने के बाद डॉ. वर्मा वासु की सहायता से हरलाल को अस्पताल ले गई। आवश्यक टेस्ट करवाने के बाद तथा अपने साथी डॉक्टर की सलाह के अनुसार उसने हरलाल को अस्पताल में भर्ती करवा दिया।

अनिता ने रेनु को फ़ोन करके बताया कि डॉ. दीदी के पापा आज अस्पताल में भर्ती हुए हैं। उनकी तबीयत ठीक नहीं। यह समाचार सुनकर रेनु ने शाम को अस्पताल जाने का निश्चय किया। शाम को जब वह अस्पताल पहुँची तो डॉ. वर्मा तो क्वार्टर पर गई हुई थी, लेकिन विमल और अनिता परमेश्वरी के साथ हरलाल की देखभाल में जुटे हुए थे। रेनु को देखते ही अनिता ने नन्हे को अपनी गोद में ले लिया और रेनु ने हरलाल के चरणस्पर्श किए तो उन्होंने हाथ उठाकर दूर से उसे आशीर्वाद दिया, क्योंकि वे उठने की स्थिति में नहीं थे। फिर जब वह परमेश्वरी के चरणस्पर्श करने लगी तो उसने आशीर्वाद देने के साथ कहा - ‘रेनु, तुझे इतनी ठंड में छोटे बच्चे को लेकर नहीं आना चाहिए था।’

‘आंटी जी, अनिता से सारी बातें सुनकर मन नहीं टिका।’

‘बेटे, वो तो ठीक है, लेकिन पहली सर्दी में बच्चे की ओर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत रहती है। ला, इसे मैं अपनी बुक्कल में ले लेती हूँ।’

तत्पश्चात् रेनु ने स्पन्दन को कहा - ‘गुड्डू बेटे, चाचा-चाची को नमस्ते करो।’

रेनु की बात कमरे में प्रवेश करती डॉ. वर्मा के कानों में भी पड़ गई। इससे पहले कि स्पन्दन अपनी मम्मी की आज्ञा का पालन करती, डॉ. वर्मा ने टोका - ‘अरे रेनु, विमल और अनिता स्पन्दन के मामा-मामी हैं, चाचा-चाची नहीं।’

रेनु ने उत्तर दिया - ‘दीदी, विमल भाई साहब ‘इनके’ दोस्त हैं, उस नाते से मैंने तो कहा था।’

‘रेनु, तुम भूल रही हो। विमल और अनिता मेरे भाई और भाभी हैं, और स्पन्दन मेरी बेटी। इस नाते वे इसके मामा-मामी हैं। .... नन्हा जब बड़ा हो जाएगा, वह इन्हें चाचा-चाची बुला लिया करेगा।’

‘और आपको..?’ रेनु ने अपनी जान से तुरुप की चाल चली, लेकिन डॉ. वर्मा भी जवाब देने में पीछे नहीं रही - ‘मौसी, क्योंकि तुम मेरी छोटी बहन हो।’

विमल - ‘दीदी, स्पन्दन अभी बहुत छोटी है, उसे रिश्तों के भूलभुलैया में ना उलझाओ। बड़ी होने पर सब समझ जाएगी।’

इनकी बातों का रस ले रही परमेश्वरी ने दख़ल देते हुए कहा - ‘विमल, जब स्पन्दन को वृंदा ने गोद ले लिया है तो यह रेनु के पास उसकी अमानत है, जब तक वह स्कूल जाने लायक़ नहीं होती। इसलिए रेनु इसे वही समझेगी तो उसके लिए भी ठीक रहेगा।’

परमेश्वरी के इस कथन के बाद इस प्रसंग का पटाक्षेप हो गया।

दिनभर के उपचार फलस्वरूप हरलाल की स्थिति में संतोषजनक सुधार लग रहा था। जब डॉ. वर्मा ने दवाई की आख़िरी डोज़ दी तो परमेश्वरी ने कहा - ‘तुम सब अब घर जाकर आराम करो।’

डॉ. रवि ने रेनु से पूछा - ‘तुम कैसे आई थी?’

‘दीदी, मैं तो ऑटो करके आई थी।’

‘चलो, तुम्हें मैं छोड़ आती हूँ। इस समय ऑटो में जाना ठीक नहीं। नन्हा छोटा है, उसे ठंड लग जाएगी।’

रेनु को पता था, डॉ. वर्मा से ऐसे मुद्दों पर बहस व्यर्थ है। अत: उसने चुपचाप उसकी बात मान ली।

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