प्यार के इन्द्रधुनष - 36 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार के इन्द्रधुनष - 36

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आसमान में उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी सूरज को ढक लेते थे तो कभी सूरज बादलों की दीवार भेदकर प्रकट हो जाता था। ऐसे माहौल में कमरे में लेटना हरलाल को दुष्कर लगा तो उसने अपनी चारपाई आँगन में लगी त्रिवेणी की छाँव में डलवा ली। कई दिनों से तबीयत ठीक न रहने के कारण हरलाल खेत की ओर नहीं गया था, इसलिए उसने मामन सीरी को घर पर ही बुला लिया था। मामन उसे बता रहा था कि नरमे की बिजाई पूरी हो गई है और ट्यूबवेल की मोटर भी मैकेनिक ठीक कर गया है। दस बीघे ज़मीन में उगाई सब्ज़ियाँ इस बार अच्छी कमाई करवा सकती हैं। जब मामन ने सब्ज़ियों की बात चलाई तो हरलाल ने उसे आगाह करते हुए कहा - ‘देख मामन, भूल से भी सब्ज़ियों में रासायनिक खाद या पेस्टीसाइड नहीं डालना। केवल गोबर की खाद डालनी है और गौ-मूत्र का छिड़काव करना है। सब्ज़ियाँ कम हों, कोई बात नहीं, लेकिन मैं नहीं चाहता कि सब्ज़ियों के ज़रिए लोगों को ज़हर खिलाया जाए।’

‘चौधरी साहब, मैंने पहले से ही गोडी करने वाले मज़दूरों को इस बात की सख़्त ताकीद कर रखी है। आप निश्चिंत रहें।’

बातचीत चल रही थी कि हरलाल के ताऊ के बड़े बेटे जुगलाल ने आते हुए दूर से ही कहा - ‘राम-राम भाई हरलाल, के हाल-चाल सै?’

हरलाल ने मामन को मूढ़ा लाने के लिए कहा और उत्तर दिया - ‘राम-राम भाई जुगलाल। सब ठीकठाक है। आ बैठ और अपने घरबार की सुना।’

‘घरबार मा तो सब कुसल सै। सहर ते कद आए, कई दिन लगा आए?’

‘हाँ, अपनी वृंदा ने बेटी गोद ली है। एक छोटा-सा फ़ंक्शन किया था, उसी के लिए गए थे। दो साल की, बड़ी ही प्यारी परी-सी गुड़िया है। उसके मुँह से ‘नानू-नानू’ सुनना बड़ा अच्छा लगता है।’

‘क्यूँ भई हरलाल, या वृंदा ने के सूझी? अबी उसकी उमर ही कितनी सै, कोई आच्छे डागदर साथी के साथ ब्याह क्यूँ ना करवा लेंदी?’

‘भाई, तुमसे क्या छिपा है। हमने तो बहुत समझाया था, पर वह तो अपनी ज़िद्द पर अड़ी रही। अब ज़ोर-ज़बरदस्ती का ज़माना तो रहा नहीं। आख़िर, वृंदा की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी मान ली है।’

‘सो तो ठीक सै। वृंदा ने किसकी छोरी गोद ली सै?’

‘वृंदा का एक दोस्त है, बड़ा अफ़सर है, उसकी बेटी है।’ हरलाल जानबूझकर इस बात को ज़ुबान पर नहीं लाया कि वृंदा ने उसी लड़के की बेटी गोद ली है, जिससे वह प्रेम करती थी तथा जिससे विवाह करना चाहती थी।

‘हरलाल, जेकर वृंदा ने छोरी ही गोद लेनी थी तो आपणे गनेस की तीन छोरियों मा से किसी एक ने ले लेंदी, घर की घर मा तो रेंदी।’

‘जुगलाल भाई, तुम्हारी बात अपनी जगह ठीक है, किन्तु आजकल बच्चे अपने मन की करते हैं। ... गनेस की लड़कियाँ तो बड़ी भी हो गई हैं, उनकी पढ़ाई कैसी चल रही है?’

लड़कियों की बात चलाकर हरलाल ने जुगलाल की दुखती रग छेड़ दी। बड़ी लड़की तो मैट्रिक में फेल होकर घर बैठी है। ‘ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर’ कहावत के अनुसार उसे महाजन के लड़के के साथ आँख-मटका करते हुए घरवालों ने कई बार पकड़ा है और बुरी तरह मारपीट भी की है, किन्तु वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आती। इसलिए घरवाले जल्दी-से-जल्दी उसके हाथ पीले करने की फ़िराक़ में हैं। मँझली स्कूल तो जाती है, लेकिन पढ़ाई में वह भी कुछ कर पाएगी, ऐसे कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। छोटी तो अभी चौथी कक्षा में ही है। अत: जुगलाल ने जवाब दिया - ‘हरलाल, गनेस तो चाहवे था कि उसकी छोरी बी पढ़-लिख के वृंदा की तरेयां कुछ बन जाती, पर क़िस्मत आपणी-आपणी। इब तो उसके तईं छोरा ढूँढां सां।’

इतने में परमेश्वरी ने मामन के हाथ चाय भेज दी। चाय पीकर जुगलाल ने बुझे मन से ‘राम-राम’ कहकर घर की राह ली। जुगलाल और मामन के जाने के बाद परमेश्वरी भी हरलाल के पास आकर बैठ गई।

‘क्या कह रहे थे भाई साहब?’

‘कहीं से इनको भनक लग गई होगी, कह रहा था कि वृंदा ने गोद ही लेनी थी तो गनेस की छोरी ने गोद ले लेती। वृंदा की माँ, शरीके के लोगों का सहारा कम होता है, उलझने वे अधिक पैदा करते हैं। मुझे तो लगता है, इन लोगों की नज़र हमारी ज़मीन-जायदाद पर गड़ी है। लेकिन मुझे तसल्ली है कि वृंदा का दोस्त मनमोहन बड़ा अफ़सर बन गया है और वृंदा का धर्म-भाई विमल भी अच्छा लड़का है। इनके रहते हमारे आँखें मींच लेने के बाद भी वृंदा को किसी प्रकार की तकलीफ़ नहीं उठाना पड़ेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।’

‘आपका सोचना बिल्कुल सही है। गनेस की बहु ने मुझे भी कई बार कहा है कि चाची, पूजा को अगर वृंदा अपनी निगरानी में पढ़ाई करवाए तो वह भी कुछ ना कुछ बन सकती है। मैंने तो कह दिया भई कि जिस लड़की ने आठवीं तक पढ़ाई में मन नहीं लगाया, उसको पढ़ाई में तीसमारखां बनाने के लिए वृंदा के पास कोई जादू की छड़ी तो है नहीं।’

‘ठीक किया तुमने। लारा-लप्पा लगाने की बजाय दो-टूक जवाब दे देना ही बेहतर होता है। दूसरे, शरीके में कुछ अच्छा हो गया तो कहेंगे, हमारी क़िस्मत थी और कुछ ठीक ना हुआ तो कहेंगे कि इन्होंने जानबूझकर हमें नीचा दिखाया है। इसलिए शरीक से तो दूर से ही राम-राम भली।’

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