हारा हुआ आदमी (भाग44) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग44)

माँ बन्नर पर हर औरत का ध्यान बच्चे पर ज्यादा रहता है।बच्चा उसके शरीर का अंश होता है। देवेन ने भी निशा में यह परिवर्तन महसूस किया था।निशा में परिवर्तन आने के बाद भी देवेन उसे पहले की तरह चाहता रहा।प्यार करता रहा।निशा से कभी शिकायत नही की।लेकिन माया ने जबरदस्ती उससे शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करके उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था।
उसने निशा से ही शारिरिक सुख पाया था।इसलिए वह उसके बारे में ही सोचा करता था।उसके साथ हमबिस्तर होने का विचार ही मन मे आता था।लेकिन माया के शरीर को भोगने के बाद वह माया और निशा से मिले शारीरिक सुख की तुलना करने लगा।
रंग रूप,यौवन,सुंदरता,शरीर सौष्ठव, उम्र के आधार पर अगर माया और निशा की तुलना की जाती तो दोनों के बीच मे कोई मुकाबला नही था।निशा एक खिलती कली थी।देवेन ने उसे कली के रूप में ही अपना बनाया था।देवेन के सम्पर्क में आकर ही वह फूल बनी थी।महकता गुलाब का ताजी फूल।निशा के यौवन की खुशबू उसकी सांसो में घुली थी।उसके दिल मे रची बसी थी।
माया साधारण नैन नक्श की बासी औरत थी।जिसका रस चूसा जा चुका था।उसके यौवन का मालिक उसका पति यानी निशा का पिता उम्र में उससे बड़ा था।जो अपने से उम्र में कम पत्नी की शरीरिक प्यास बुझा नही पाता था।पति की मौत के बाद तन की प्यास बुझाने का साधन खत्म हो गया।वासना की आग पति के रहते ही शांत नही होती थी।पति की मृत्यु के बाद चाहे अनचाहे वासना की आग दब कर रह गयी।
रात को अचानक शरीर के किसी कोने में दबी आग अचानक जाग उठी।जिसे वह काबू में नही रख पायी और देवेन के बिस्तर में जा पहुंची।उस आग से बचने का देवेन ने भरपूर प्रयास किया।लेकिन माया ने चालाकी और डरा कर देवेन को उस आग में खींच लिया।
न चाहते हुए भी देवेन को माया का समर्पण स्वीकार करना पड़ा।उस समय देवेन को यह बहुत बुरा लगा था।पर निशा के बदले व्यवहार और उसके प्रति बेरुखी ने उसे माया के साथ गुज़ारे अंतरंग क्षणों की तुलना करने को मजबूर कर दिया।निशा और माया के साथ कि तुलना करने पर उसे माया के साथ नवीन अनुभव महसूस हुआ।
आदमी का मन औरत से भी ज्यादा चंचल होता है।आदमी रोज एक सा खाना खाते हुए ऊब जाता है।इसी तरह रोज एक ही औरत के साथ हमबिस्तर होते हुए भी बोरियत महसूस करने लगता है।और पति पत्नी के रिश्ते में ठंडापन ,शिथिलता आने लगती है।
घर की मुर्गी दाल बराबर।पति अपनी पत्नी को दाल रोटी समझने लगता है।पर खाने में और पत्नी में बहुत अंतर है।रोज दाल रोटी खाते खाते आदमी ऊब जाए तो पकवान बनाकर खा सकता है।लेकिन पत्नी?पति पत्नी का तो जन्मभर का सम्बंध है।आदमी सब कुछ बदल सकता है लेकिन पत्नी को नही बदल सकता
।पत्नी बदलाव की चीज नही है।
हमारे यहां शादी को पवित्र बंधन माना जाता है।ऐसा बन्धन जो जीवन भर के लिए होता है।हमारे यहां शादी होने पर मर्द औरत जीवसं भर के लिए बन्ध जाते है।इसलिए सम्बन्धो में नीरसता, बासीपन, ठंडापन आने पर भी वे पति पत्नी बने रहते है।साथ रहते है। अलग नही होते।