(19)
काबूर अब आहते में आकर बैठ गया था। एक मिट्टी के छोटे से घड़े से वह कुछ पी रहा था। घड़े का पूरा पेय पीने के बाद वह उठकर एक भयानक हंसी हंसते हुए नाचने लगा।
अंदर भी सभी खड़े होकर नाच रहे थे। उन सभी ने अपने चोंगे उतार दिए थे। पूर्णतया निर्वस्त्र वह सभी उन्माद से भरे नाच रहे थे। एक मिट्टी के घड़े में कोई पेय था। सभी बारी बारी से उस घड़े में से पेय पीते हुए उसे अपने साथी को पकड़ाते जा रहे थे। वह घड़ा एक हाथ से दूसरे में होता हुआ बार बार पहले वाले व्यक्ति के पास लौट आता था। सभी वह पेय पीकर और मदहोश हो गए थे।
जांबूर अपनी जगह पर खड़ा था। परंतु ना तो उसने चोंगा उतारा था और ना ही मुखौटा। उसके मुखौटे में आँखों की जगह बने छेद से झांकती उसकी दोनों आँखों में भी अजीब सा उन्माद था।
करीब पंद्रह मिनट तक वह उन्मादी नृत्य चलता रहा। उसके बाद जांबूर ने अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर तेज़ आवाज़ में कहा,
"रुको...."
उन्मत्त होकर नाचते हुए सारे लोग एकदम से रुक गए। सर झुकाकर खड़े हो गए। जांबूर ने कहा,
"आज छठी अमावस है। यानी मध्य की अमावस उसके बाद हमारे अनुष्ठान के पांँच और अमावस बचेंगे। आज की अमावस बहुत खास है। आज के दिन हम अपने आराध्य ज़ेबूल के साथ उसकी सहचरी हब्बाली की भी उपासना करेंगे। आज की बलि पाकर दोनों हमें आधी शक्तियां प्रदान कर देंगे। उसके बाद बाकी पाँच अमावस को अनुष्ठान करने के बाद हम संपूर्ण शैतानी शक्तियों को प्राप्त कर लेंगे। उसके बाद हमारे जीवन में कोई दुख तकलीफ नहीं रह जाएगी। हम हमेशा के लिए मस्ती के सागर में गोते लगाएंगे।"
सबने मिलकर ज़ोर से कहा,
"ज़ेबूल और उनकी सहचरी हब्बाली हम पर प्रसन्न हों।"
सब ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहे थे। आवाज़ सुनकर काबूर भी अंदर आ गया था। जांबूर ने उसे आदेश दिया,
"काबूर सबको नीचे ले चलो।"
काबूर ने झुककर अभिवादन किया। फिर कमरे के एक कोने में जाकर सूखी घास के ढेर हटाए। फर्श पर रखा एक पत्थर घुमाया। एक दरवाज़ा खुल गया। उसके अंदर घुसते ही एक गलियारा था। उसके अंत में नीचे जाने की सीढ़ियां थीं। काबूर के हाथ में एक मशाल थी। गलियारे में घुसते हुए वह बोला,
"आ जाओ सब लोग।"
काबूर ने गलियारे में आगे बढ़ते हुए एक एक करके दीवार पर लगी तीन मशालों को अपनी मशाल से जला दिया। सब एक एक करके उसकी रौशनी में आगे बढ़ने लगे।
नीचे तहखाने में ऊपर का भयानक शोर पहुँच रहा था। मंगलू और अहाना को आज बांधकर रखा गया था। उनके हाथ पैर के साथ-साथ मुंह भी बंधा हुआ था। दोनों डरकर एक दूसरे से सटकर बैठे थे। ऊपर से आती भयानक आवाज़ें उन्हें अपनी तरफ बढ़ती मौत का एहसास करा रही थीं। उन्हें सीढ़ियों के पास रौशनी दिखाई पड़ी। जो आदमी खाना लेकर आता था सबसे पहले वह नीचे उतरा। वह अपनी मशाल से तहखाने में अन्य मशालों को जला रहा था। अहाना और मंगलू की आँखों को रौशनी का अभ्यस्त होने में कुछ समय लगा। जब उन्हें ठीक से दिखाई पड़ने लगा तो उन्होंने चारों तरफ देखा। आज बहुत दिनों के बाद पूरा तहखाना दिखाई पड़ रहा था। काबूर के साथ बाकी सब भी नीचे आ गए थे। सब किसी शैतान की तरह दिखाई पड़ रहे थे। अहाना और मंगलू भयभीत से उन्हें देख रहे थे।
तहखाने से जुड़ा हुआ एक कमरा था। काबूर सबको उस कमरे में ले गया। सब जाकर एक दीवार के सामने खड़े हो गए। उस दीवार के पास दो मूर्तियां थीं। एक टैटू वाले शैतान ज़ेबूल की थी और दूसरी उसकी सहचरी हब्बाली की। सब अपने घुटनों के बल बैठ गए। उन्होंने अपना सर ज़मीन पर लगाकर ज़ेबूल और उसकी सहचरी हब्बाली का सम्मान किया। कुछ समय में जांबूर भी वहाँ पहुँच गया। उसने सबके साथ मिलकर कहा,
"शैतानी शक्तियों के आका ज़ेबूल अपनी सहचरी हब्बाली के साथ हमारी बलि से प्रसन्न हों। हमें शक्तियां प्रदान करें।"
यह कहकर उसने पास खड़े काबूर को इशारा किया। काबूर फौरन उस जगह गया जहाँ अहाना और मंगलू भय से कांपते हुए बैठे थे। बेबसी में उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे। दोनों उस भेड़ की तरह लग रहे थे जो कसाई के कब्जे़ में कुछ ना कर पाने की स्थिति में हों।
काबूर ने सबसे पहले मंगलू के हाथ पैर खोले। पर मुंह पर अभी भी पट्टी बंधी थी। काबूर ने मंगलू को उसकी गर्दन के पीछे से पकड़ा और उस कमरे में ले गया। उसने उसे ज़ेबूल और हब्बाली की मूर्तियों के सामने लाकर ज़मीन पर पटक दिया। मंगलू दर्द से बिलबिला उठा। लेकिन पट्टी बंधी होने के कारण उसके मुंह से कोई आवाज़ नहीं निकली।
वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखों में शैतानी चमक थी। सभी ज़ोर ज़ोर से कह रहे थे,
"ज़ेबूल इस बलि को स्वीकार करो...."
मुखौटे के पीछे से झांकती जांबूर की आँखों में हैवानियत थी। उसने पास रखे धारदार गंड़ासे को हाथ में उठा रखा था। काबूर ज़मीन पर गिरे मंगलू को उठाकर जांबूर के पास ले गया। मंगलू की आँखों से आंसू बहते जा रहे थे। काबूर ने उसे दबोच कर रखा था।
"ज़ेबूल इस बलि को स्वीकार करो...."
यह शोर पूरे वातावरण में गूंज रहा था। जांबूर आगे बढ़ा। अपने हाथ में पकड़े गंड़ासे को उठाकर ज़ोर से वार किया। खून का फव्वारा उठा। जांबूर, काबूर और आगे की पंक्ति में खड़े कुछ लोगों पर छींटे पड़े। सभी एकबार फिर खुशी से नाचने लगे। जांबूर ने सबको शांत कराते हुए कहा,
"ज़ेबूल हमारी पहली बलि से प्रसन्न है। उसने मुझे इशारा दिया है। अब उसकी सहचरी हब्बाली को खुश करने की बारी है। उसके बाद आज का अनुष्ठान सफल हो जाएगा।"
यह सुनकर सब ज़ोर ज़ोर से खुशी में चिल्लाते हुए नाचने लगे। काबूर अहाना को लाने के लिए चला गया।
अहाना सबकुछ सुन रही थी। उसे पता चल गया था कि मंगलू को इन लोगों ने बलि चढ़ा दिया है। डरकर उसके हाथ पैर सुन्न हो गए थे। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। वह बेहोश होकर गिर पड़ी।
काबूर जब अहाना के पास गया तो उसे ज़मीन पर बेहोश पाया। उसने उसके हाथ पैर खोले और उसे अपने कंधे पर उठाकर जांबूर के पास ले गया। उसने अहाना को मंगलू की लाश के पास लिटा दिया। ज़मीन पर बहते हुए खून में अपनी हथेली डुबोकर अहाना के चेहरे पर कुछ बूंदें टपकाईं। अहाना होश में आ गई। उसने इधर उधर देखा। अपने बगल में मंगलू की खून से लथपथ लाश देखकर वह थर थर कांपने लगी। जांबूर ने ज़ोर से कहा,
"हब्बाली अब इस लड़की की बलि स्वीकार करो।"
वहाँ उपस्थित सभी लोग चिल्लाने लगे,
"हब्बाली इस बलि को स्वीकार करके हम पर प्रसन्न हो।"
काबूर ने अहाना को उठाया। उसे घुटनों के बल बैठाकर उसकी गर्दन को नीचे झुका दिया। उसे उसी तरह दबोच कर बैठ गया जैसे मंगलू को दबोच रखा था। जांबूर ने गंडासा उठाया और ऊपर की तरफ ले गया। एक ज़ोरदार वार किया। सब खुशी से चिल्लाने लगे। मुखौटे के पीछे से झांकती जांबूर की आँखों में वहशियों जैसी खुशी थी। बाकी सब उन्मत्त होकर नाच रहे थे।
बाहर उस वीराने में खड़ा खंडहर बहुत ही भयानक लग रहा था।
एक आदमी रोता हुआ पुलिस स्टेशन में दाखिल हुआ। वह सीधा विलायत खान के पास गया और बोला,
"साहब हमारे साथ न्याय कीजिए। हमारा लड़का गायब हो गया है। बंसीलाल ने उसे ना जाने कहाँ भेज दिया। उसे खोज दीजिए।"
विलायत खान ने उस आदमी को बैठाते हुए कहा,
"पहले ठीक तरह से पूरी बात बताओ। तभी तो हम कुछ कर पाएंगे।"
"साहब हमारा नाम मनसुखा है। हम गरीब आदमी हैं। बसरपुर से कुछ दूर रानीगंज गांव में रहते हैं। हमारा लड़का मंगलू यहीं बंसीलाल की दुकान पर काम करता था। हमने उसका हालचाल जानने के लिए बंसीलाल को फोन किया तो उसने कहा कि चार दिन पहले ही उसे गांव भेज दिया था। पर वह घर नहीं पहुँचा था। हम भागे हुए आए। बंसीलाल से पूछा तो कहने लगा हमने तो रानीगंज की बस में बैठाया था। अब वह नहीं पहुँचा तो हम क्या करें। कर रहा है कि कहीं भाग गया होगा। साहब हमारा लड़का ऐसा नहीं है।"
जब मनसुखा अपनी बात कह रहा था उसी समय गुरुनूर थाने में आई। मंगलू और बंसीलाल का ज़िक्र सुनकर उसकी बात सुनने लगी। उसे देखकर विलायत खान खड़ा होकर बोला,
"देखा मैडम उस बंसीलाल की करतूत।"
"हाँ....सुना मैंने।"
गुरुनूर ने पास खड़े सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह से कहा,
"जाओ ज़रा इस बंसीलाल को थाने लेकर आओ। फिर उससे बात करते हैं।"
उसने मनसुखा की तरफ देखकर कहा,
"हम उससे पूछताछ करेंगे। पर आप बताइए आपने अपने बच्चे को काम करने के लिए क्यों भेजा था ?"
मनसुखा ने कहा,
"क्या करते मैडम....पढ़ा लिखा सकने की हैसियत नहीं है। घर में मुश्किल से दो वक्त खा पाते हैं। इसलिए भेजा था कि कुछ कमाना ही सीख जाएगा।"
गुरुनूर ने कुछ नहीं कहा। मनसुखा की गरीबी उसके हुलिए से स्पष्ट थी। उसने विलायत खान से कहा,
"मैं अपने केबिन में हूँ। बंसीलाल आ जाए तो मुझे खबर दीजिएगा।"
गुरुनूर अपने केबिन में चली गई। अपने केबिन में बैठकर वह सोच रही थी कि मंगलू के गायब होने का संबंध भी उस कातिल से हो सकता है। मंगलू भी किशोर उम्र का लड़का था। यह सोचते हुए उसका ध्यान अहाना पर गया। इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ने उसकी उम्र भी चौदह साल बताई थी। उसके मन में आया कि क्या उसे भी उस कातिल ने ही अगवा किया होगा।
कल रात अपने आवास पर उसे एक खयाल आया था। मिली हुई सारी लाशें किशोर उम्र के लड़कों की थीं। उनका सर धड़ से अलग कर उनकी हत्या की गई थी। वह सोच रही थी कि यह किसी तांत्रिक का काम तो नहीं है। अभी मंगलू के गायब होने की खबर मिली तो उसका दिमाग फिर उधर ही गया था।
उसे केस में एक नया ऐंगल सूझा था। वह उसके हिसाब से सोचने लगी। तभी कांस्टेबल हरीश ने सूचना दी कि बंसीलाल आ गया है। वह बंसीलाल से पूछताछ करने चली गई।