ग्यारह अमावस - 16 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 16



(16)

गुरुनूर को भी लग रहा था कि कांस्टेबल उद्धव को दिनकर ने कोई नुक्सान नहीं पहुँचाया है। दिनकर ने कहा था कि दिनेश अक्सर एक गाड़ी में कहीं जाता था। उसे लगा कि ऐसा हो सकता है कि कांस्टेबल उद्धव कल रात दिनेश का पीछा करते हुए गया हो। तब दिनेश या उसके साथियों ने ही कुछ किया हो। उसने दिनकर से पूछा,
"तुम कह रहे थे ‌कि दिनेश किसी गाड़ी में बैठकर कहीं गया था। तुम्हें पता है कि वह कहाँ गया था ?"
दिनकर ने कहा,
"मैडम मुझे नहीं पता। मैंने एकबार पूछा था तो उसने डांट दिया था।"
"तुमने कहा था कि वह अक्सर जाता था। माना उसने नहीं बताया था। पर तुमने भी तो कुछ ऐसा देखा होगा जिससे कुछ अंदाज़ा लग सके।"
दिनकर याद करने के लिए अपने दिमाग पर ज़ोर डालने लगा। कुछ देर बाद उसने कहा,
"एक बार मैंने गाड़ी में बैठे आदमी की हल्की सी झलक देखी थी।"
यह सुनकर गुरुनूर को उम्मीद जागी। उसने कहा,
"वह आदमी कैसा दिखता था ?"
"मैडम अंधेरे में बहुत अधिक तो नहीं देख सका। पर उसके बाल लंबे थे। वह लंबे बालों वाला आदमी था।"
गुरुनूर सोचने लगी कि वह लंबे बालों वाला आदमी कौन हो सकता है। तभी उसके दिमाग में दीपांकर दास की तस्वीर उभरी। उसे इंस्पेक्टर कैलाश जोशी की फोन पर बताई गई बात याद आई। उसने कहा था कि अहाना नाम की लड़की के माता पिता उसे दीपांकर दास के पास ले गए थे। पर उसने उन्हें यह कहकर वापस भेज दिया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता है। उसने यह भी बताया था कि उस लड़की का अपहरण हो गया है। साथ ही संभावना जताई थी कि उसका अपहरण भी उसी वजह से हो सकता है जिस वजह से अमन का अपहरण हुआ था। दिनकर भी लंबे बाल वाले आदमी की बात कर रहा था। उसका मन उलझन से भर गया। वह अपने केबिन में चली गई।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे गुरुनूर के केबिन में था। गुरुनूर ने अपने मन में आई बात उसे बताई थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे भी सोच में था। गुरुनूर ने कहा,
"एक तरफ तो मेरा दिमाग दीपांकर दास की तरफ जाता है। पर फिर मुझे लगता है कि सिर्फ लंबे बालों की वजह से तो ‌दीपांकर दास के ऊपर शक नहीं किया जा सकता है। बसरपुर में लोग उसकी इज्ज़त करते ‌हैं। प्यार से दीपू दा कहते हैं।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम फिर दीपांकर दास ने उस बच्ची के माता पिता को पहले ही समझा बुझाकर भेज दिया था। उनका निर्णय सही था। क्योंकी उस बच्ची की जो हालत थी उसमें उसकी मदद नहीं कर सकते थे।"
गुरुनूर को उसकी बात सही लगी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"एक बात और है मैडम, आज तक जितनी सरकटी लाशें मिली हैं सब किशोर उम्र के लड़कों की थीं। कातिल का जो भी मकसद है वह केवल लड़कों को ही मार रहा है। फिर उस लड़की को क्यों अगवा करेगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की यह बात विचार करने योग्य थी। गुरुनूर ने कहा,
"बात तो ठीक है। अब सोचने वाली बात यह है कि अगर दीपांकर दास को इस विषय में शामिल नहीं किया जा सकता है तो हमें उस दूसरे लंबे बालों वाले आदमी को तलाश करना होगा।"
उसने रुककर कहा,
"फिलहाल तो मुझे कांस्टेबल उद्धव की बहुत चिंता हो रही है।"
गुरुनूर अपनी कुर्सी से उठकर केबिन में टहलने लगी। वह सोच रही थी कि अमन के अपहरण का सूत्र दिनेश से जुड़ रहा था। लेकिन उसकी हत्या के बाद वह फिर एक अंधेरे मोड़ पर आकर खड़ी हो गई थी। इस मोड़ पर दुविधा और अंधेरा दोनों ही था। उसे सरकटी लाशों के केस के लिए खासतौर ‌पर भेजा गया था। लेकिन अब तक उसे कोई ठोस सफलता नहीं मिली थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने उसे परेशान देखकर कहा,
"मैडम ‌हम कोशिश कर रहे हैं। आखिर अमन के केस में कुछ सफलता तो मिली थी। इस समय कुछ समस्या है पर वह भी जल्दी सुलझ जाएगी। आप परेशान मत होइए।"
गुरुनूर अपनी जगह आकर बैठ गई। उसने कहा,

"आकाश बसरपुर के लोग जब मेरे पास आए थे तो मैंने आश्वासन दिया था कि जल्दी ही कुछ करूँगी। मैं नहीं चाहती हूँ कि उनका विश्वास मुझपर कम हो। मुझे जल्दी कुछ करना होगा।‌ इससे पहले की वो कातिल कोई नई हत्या कर दे।"
वह कुछ देर शांत रही। फिर बोली,
"दिनकर ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है। विलायत खान से कहो कि उसके खिलाफ चार्जशीट तैयार करे।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे वहाँ से चला गया। गुरुनूर फिर कांस्टेबल उद्धव के बारे ‌में सोचने लगी।

शांति कुटीर के ध्यान कक्ष में पूरी तरह शांति थी। वहाँ मौजूद लोग अब दूसरी अवस्था को प्राप्त करने के लिए ध्यान लगा रहे थे। कुछ लोगों के कान में हेडफोन थे। वो अपनी आँखें बंद किए बैठे थे। कुछ लोग अपनी आँखें बंद करके मन ही मन किसी मंत्र का जाप कर रहे। कुछ अपने सामने जल रहे दीपक की लौ को देखते हुए ध्यान लगा रहे थे। सब अपने अपने तरीके से ध्यान में एकाग्रता पाने की कोशिश कर रहे थे। दीपांकर दास अपने आसन पर बैठा सबको देख रहा था। वह शांत था पर उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वह अपने मन के भीतर अतीत की गलियों में विचरण कर रहा था।

एक खूबसूरत सा घर था। दीपांकर दास उसके लॉन में बैठा अखबार पढ़ रहा था। अखबार में एक तस्वीर को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ गई। अोडिसी नृत्य की पोशाक पहने एक लड़की हाथ में ट्रॉफी लिए मुस्कुरा रही थी। हेडलाइन थी,
'तेरह साल की कुमुदिनी दास के नृत्य ने दिग्गजों को किया प्रभावित'
दीपांकर दास के चेहरे पर गर्व था। वह अखबार लेकर अंदर गया। वह खुशी से चिल्ला रहा था,
"लिपा देखो अखबार में फोटो आई है...."
उसकी पत्नी सुनंदा ने उसे रोकते हुए कहा,
"दीपू शोर मत करो। अभी सोई हुई है। रात में बुखार था।"
दीपांकर दास की खुशी चिंता में बदल गई। वह बोला,
"रात में बुखार था तो बताया क्यों नहीं ?"
"तुम भी तो कल देर से लौटे थे। थके हुए थे। डिनर के बाद जब मैं लिपा के कमरे में गई तो उसने कहा कि तबीयत ठीक नहीं है। मैंने माथा छुआ तो गरम था। नापा तो एक सौ एक बुखार था।"
दीपांकर दास ने नाराज़गी जताई,
"मुझे बताना चाहिए था। डॉक्टर के पास ले जाता।"
वह पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। सुनंदा जानती थी कि अपनी बेटी को लेकर वह बहुत संवेदनशील है। उसने समझाया,
"घबराओ मत.... मैंने दवा दी थी। कुछ देर में बुखार उतर गया था। अभी आराम से सो रही है।"
दीपांकर दास अभी भी परेशान था। तभी उसे लिपा की आवाज़ सुनाई पड़ी,
"गुड मॉर्निंग बाबा...."
वह आकर उससे लिपट गई। दीपांकर दास का हाथ उसके माथे पर गया। उसे छूकर बोला,
"अब तबीयत कैसी है ?"
"एकदम ठीक है बाबा।"
दीपांकर दास ने पूछा,
"बुखार कैसे आ गया ?"
"पता नहीं बाबा। आपके साथ डिनर किया था तब तक ठीक था। अपने कमरे में गई तो तबीयत कुछ ठीक नहीं लगी। माँ ने देखा तो बुखार था। पर अब एकदम ठीक हूँ।"
कहकर उसने दीपांकर दास को गले लगा लिया। उसे अच्छा लगा। अब उसका ध्यान अखबार की तरफ गया। उसने अखबार दिखाते हुए कहा,
"तुम्हारी खबर छप गई अखबार में। खूब तारीफ लिखी है।"
दीपांकर दास ने अखबार लिपा को दिखाते हुए पढ़ा,
'कुमुदिनी दास के नृत्य से जानी मानी ओडिसी नृत्यांगना आर्या पाणिग्रही बहुत अधिक प्रभावित हुईं। उन्होंने कहा कि कुमुदिनी दास इस नृत्य शैली का उभरता हुआ सितारा है जो एक शुभ संकेत है।'
लिपा ने अखबार अपने हाथ में ले लिया। एकबार फिर उस हिस्से को पढ़ा। वह खुशी से नाच उठी। पास खड़ी अपनी माँ के पैर छू लिए। सुनंदा ने कहा,
"पहले बाबा के पैर छूने चाहिए थे। मुझसे अधिक तो उनका सहयोग है।"
दीपांकर दास ने कहा,
"गुरु को पहले प्रणाम। बाकी सब बाद में। उसकी गुरु तो तुम ही हो।"
लिपा ने दीपांकर दास के पैर छूकर कहा,
"माँ गुरु हैं और आप प्रेरणा। आप ही तो मुझे ऐसे कार्यक्रमों में ले जाते हैं जहांँ लोग मेरा नृत्य समझ सकें।"
उसकी बात सुनकर दीपांकर दास का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उसने कहा,
"देखा सुनंदा कितनी बड़ी बड़ी बातें करने लगी है।"
लिपा ने कहा,
"बाबा जाकर तैयार होती हूंँ। स्कूल जाना है।"
दीपांकर दास ने कहा,
"तबीयत ठीक ना हो तो रहने दो।"
लिपा ने कहा,
"यह खबर पढ़कर तो और भी ठीक हो गई हूंँ। स्कूल में जाकर सबको बताऊंँगी कि मेरी तारीफ आर्या पाणिग्रही मैम ने की है।"
सुनंदा ने दीपांकर दास की तरफ देखा। उसकी आँखों में खुशी के आंसू थे।

ध्यान कक्ष में सब याद करते हुए दीपांकर दास की आँखें नम थीं। शुबेंदु ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने उसकी तरफ देखा। उसके बाद बोला,
"आज का सेशन समाप्त हुआ।"
जिन लोगों ने हेडफोन पहन रखा था उन्हें शुबेंदु ने ध्यान से बाहर आने को कहा। कक्ष में सभी ध्यान से बाहर निकल चुके थे। दीपांकर दास ने कहा,
"आप लोगों को आज का सेशन कैसा लगा ?"
सबने एक स्वर में कहा,
"बहुत अच्छा लगा।"
दीपांकर दास ने कहा,
"जब भी आपको समय मिले घर पर भी इस तरह ध्यान लगाया कीजिए। जितना अपने मन को एकाग्र कर पाएंगे अच्छा होगा। अब आप लोग जा सकते हैं।"
सब लोग धीरे धीरे कक्ष से निकल गए। दीपांकर दास ने शुबेंदु की तरफ देखा। उसने आँखों ही आँखों में उसे तसल्ली दी। दीपांकर दास के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वह उठकर कक्ष से बाहर निकल गया।

सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने इंस्पेक्टर कैलाश जोशी के केबिन में प्रवेश किया। वह अहाना के केस में तफ्तीश कर रहा था। उसने आकर कहा,
"सर पालमगढ़ से रानीगंज जाते हुए एक टोल पड़ता है। वहाँ से एक सीसीटीवी फुटेज मिली है। वह शायद काम की हो सकती है।"
इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ने खुश होकर कहा,
"बहुत अच्छा नंदकिशोर....दिखाओ वह फुटेज।"
"सर मेरी पेनड्राइव में वह फुटेज है। आप अपने लैपटॉप पर देख सकते हैं।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने पेनड्राइव लैपटॉप पर लगाई। इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ध्यान में फुटेज देखने लगा। टोल बूथ पर एक गाड़ी आकर रुकी। गाड़ी वाले ने कैश में टोल जमा किया। गाड़ी आगे बढ़ गई। सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने फुटेज को फ्रीज़ करते हुए कहा,
"सर गाड़ी कैश लेन में थी। टोल कैश में दिया गया। इसका मतलब है कि फास्टैग नहीं था। अब मैं फुटेज को फिर से चलाऊँगा। आप पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति को ध्यान से देखिएगा।"
सब इंस्पेक्टर नंदकिशोर ने फुटेज चलाई। इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ध्यान से देख रहा था। गाड़ी आगे बढ़ी तो एक आदमी की झलक दिखाई पड़ी। इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ने फुटेज को वहीं रोका। ध्यान से देखा उस आदमी का हुलिया राजेंद्र के हुलिए से मेल खा रहा था।