ग्यारह अमावस - 14 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 14



(14)

गुरुनूर ने एकबार फिर अपना फोन चेक किया। कांस्टेबल उद्धव का कोई मैसेज नहीं था। उसे भेजते समय गुरुनूर ने कहा था कि हर तीन घंटे के बाद तुम ठीक हो यह बताने के लिए थंब्स अप का इमोजी भेजते रहना। कल आखिरी बार कांस्टेबल उद्धव ने रात दस बजे मैसेज भेजा था। उसके बाद से कोई मैसेज नहीं आया था। रात में उसने कई बार मैसेज चेक किया था। सुबह उठकर उसे कॉल किया था। घंटी बजती रही पर फोन नहीं उठा। वह समझ गई कि कोई गड़बड़ है। इसलिए तैयार होकर पुलिस स्टेशन जा रही थी। रास्ते में एक बार फिर उसने अपनी तसल्ली के लिए चेक करके देखा था। पर कोई मैसेज नहीं था। अब उसे पक्का यकीन हो गया था कि कांस्टेबल उद्धव मुसीबत में है।
पुलिस थाने पहुँच कर गुरुनूर ने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को अपने केबिन में बुलाया। उसे परेशान देखकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"क्या बात है मैडम ?"
"आकाश.... कांस्टेबल उद्धव किसी परेशानी में है। उसने ना तो कोई मैसेज किया और ना ही मेरी कॉल उठाई।"
गुरुनूर ने उसे सारी बात बताई। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने सारी बात जानने के बाद कहा,
"आपकी बात सच है मैडम। अब हमको सीधा दिनेश को दबोचना चाहिए।"
गुरुनूर ने कहा,
"सही कह रहे हो तुम। अब दिनेश को पकड़ कर उससे ही सारा सच उगलवाना है। चलो अभी निकलते हैं।"
गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे फौरन दिनेश के गांव के लिए निकल गए।

जब गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे दिनेश के घर पहुँचे तो वहाँ का माहौल अलग था। घर के बाहर दिनेश की लाश रखी थी। उसका भाई और गांव के लोग अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहे थे। गुरुनूर ने वहाँ पहुँच कर उन्हें रोका। उसने उनसे पूछा,
"दिनेश जी की मृत्यु कैसे हुई ?"
दिनेश के भाई ने बताया कि रोज की तरह उसका भाई सुबह सुबह टहलने गया था। बहुत देर बाद भी जब लौटकर नहीं आया तो उसने जाकर उसकी तलाश की। गांव के बाहर जंगल में उसे दिनेश मृत मिला। यह सुनकर गुरुनूर ने डांटते हुए कहा,
"आप लोगों को जंगल में लाश मिली और आप लोग पुलिस को बताए बिना अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे। ये सब बंद कीजिए। लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाएगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने हेड क्वार्टर फोन करके लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने की व्यवस्था करने को कहा। दिनेश के भाई ने आपत्ति करते हुए कहा,
"एक तो मेरा भाई नहीं रहा। ऊपर से आप लोग आकर उसे अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं होने दे रहे हैं। यह ठीक नहीं है।"
उसकी बात सुनकर कुछ एक गांव वाले भी आगे आए। गुरुनूर ने सख्त लहज़े में कहा,
"गलत हम लोग नहीं कर रहे हैं। यह आपकी ज़िम्मेदारी थी कि इस स्थिति में पुलिस को खबर देते। पर आप लोग बिना पुलिस को बताए अंतिम संस्कार करने जा रहे थे। अब हमारी कार्यवाही में बाधा डालने का प्रयास मत करिए। नहीं तो आप सबके खिलाफ कार्यवाही होगी।"
सब लोग शांत हो गए। कुछ देर में पुलिस टीम दिनेश के घर पहुँच गई। उन्होंने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी। गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने लोगों से उनके बयान लेने शुरू कर दिए। पूछताछ में पता चला कि लाश को सबसे पहले दिनेश के भाई ने ही देखा था। उसके बाद उसने सबको सूचना दी कि उसे दिनेश की लाश जंगल में मिली है। सब गांव वाले बाद में उसके साथ ही लाश की जगह पहुँचे थे। पुलिस टीम उस जगह भी गई जहाँ दिनेश की लाश मिली थी। उन लोगों ने वहाँ से सबूत इकट्ठे किए। उसके बाद टीम दिनेश की लाश को लेकर चली गई।
गुरुनूर ने दिनेश और उसके परिवार के बारे में पूछताछ की। उसे पता चला कि दिनेश की पत्नी कई सालों पहले गुज़र चुकी थी। अभी वह अपने भाई के साथ रहता था। भाई भी अकेला था। दिनेश का एक बेटा था भानुप्रताप जो कुछ साल पहले घर से भाग गया था। कई सालों से उसका कोई पता नहीं था।
अपनी पूछताछ के बाद गुरुनूर गांव के मंदिर के पुजारी से मिली। कांस्टेबल उद्धव ने गुरुनूर को बताया था कि वह गांव के मंदिर के पुजारी के साथ ठहरा है। पुजारी ने उसे बताया कि कल एक मुसाफिर उसके पास ठहरा था। पर रात में ना जाने कब बिना कुछ बोले चला गया।

पुलिस थाने लौटकर आने के बाद गुरुनूर कांस्टेबल उद्धव के बारे में सोचकर परेशान थी। वह समझने का प्रयास कर रही थी कि क्या हुआ होगा। कांस्टेबल उद्धव दिनेश पर नज़र रखने के लिए गया था। दिनेश की लाश जंगल में मिली थी। इसका मतलब यह हो सकता था कि कांस्टेबल उद्धव दिनेश के पीछे गया होगा। वहाँ किसी ने दिनेश की हत्या कर दी। उसी व्यक्ति ने कांस्टेबल उद्धव की या तो हत्या कर दी होगी या उसका अपहरण कर ले गया होगा। उसके दिमाग में खयाल आया कि उसे उस जगह जाकर देखना चाहिए जहाँ दिनेश की लाश मिली थी। यह खयाल आते ही वह अकेली ही उस जगह के लिए निकल गई।

कांस्टेबल उद्धव ने अपनी आँखें खोलीं। वह किसी अंधेरी जगह में था। उसे अपने सर के पिछले हिस्से में दर्द सा महसूस हो रहा था। उसने महसूस किया उसके हाथ पैर बंधे हुए नहीं थे। वह उठकर इधर उधर देखने का प्रयास करने लगा। लेकिन अंधेरे में हाथ पैर मारने के अलावा कुछ कर नहीं पाया। हार कर वह अपनी जगह पर बैठ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ है ? यहाँ कैसे पहुँचा ? उसने याद करने की कोशिश की तो याद आया कि वह दिनेश के ऊपर नज़र रखने के लिए निकला था तब किसी ने पीछे से वार किया था। जिसके कारण वह बेहोश हो गया था। अब उसे होश आया था। वह यह नहीं जानता था कि कितनी देर हो गई है। उसे यह भी नहीं पता था कि यह दिन है या रात।
कांस्टेबल उद्धव को याद आया कि उसकी जेब में फोन था। उसने अपनी जेब में हाथ डाला। वहाँ कुछ नहीं था। उसने दूसरी जेब टटोली। वह भी खाली थी। उसने अपनी जैकेट में खोजा। फोन नहीं मिला। उसे अपनी मूर्खता पर हंसी आई। वह सोचने लगा कि उसे इस काल कोठरी में कैद करने वाला उसका मोबाइल फोन क्यों छोड़ देगा। वह चुपचाप बैठकर उस पल का इंतज़ार करने लगा जब कोई आएगा।
कुछ समय बीतने के बाद उसे किसी के सिसकने की आवाज़ सुनाई पड़ी। अंधेरे में बहुत अधिक दिखाई नहीं पड़ रहा था। पर उसने ध्यान से आवाज़ की दिशा का अंदाज़ लगाने की कोशिश की। आवाज़ उसके पीछे से आ रही थी। उसने चिल्ला कर कहा,
"कौन हो तुम ?"
उसके सवाल पूछने पर सिसकने की आवाज़ बंद हो गई। उसने फिर कहा,
"बताओ कौन हो तुम ? क्या तुम्हें भी यहाँ कैद करके रखा गया है ?"
उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिला। सिसकना बंद हो चुका था। कांस्टेबल उद्धव समझ गया था कि कोई और भी यहाँ है। वह उठा और जहाँ से आवाज़ आई थी उधर बढ़ने लगा। अंधेरे में वह संभल संभल कर आगे बढ़ रहा था।
अहाना को होश आया तो खुद को अंधेरे में पाकर वह डर गई थी। वह रोने लगी थी। तभी उसे किसी की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह और अधिक डर गई। उसने रोना बंद कर दिया। सांस रोककर चुपचाप बैठ गई। उसे सुनाई पड़ रहा था कि कोई धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रहा है। उसने डरकर अपने मुंह पर हाथ रख लिया था कि कहीं आवाज़ ना निकल जाए।
कांस्टेबल उद्धव कुछ आगे बढ़ा तो किसी चीज़ में उसका पैर फंस गया। वह आगे की तरफ गिर पड़ा। गिरने से चोट लगी थी। वह दर्द में था पर उसे आश्चर्य हुआ कि चीख किसी और मुंह से निकली। उसने सर उठाया तो एक लड़की बुरी तरह से डरी हुई थी। वह कह रही थी,
"मेरे पास मत आओ। मुझे जाने दो।"
वह बार बार यही दोहरा रही थी। अपना दर्द भूलकर कांस्टेबल उद्धव उठा और उसके पास जाकर प्यार से उसके सर पर हाथ रखकर उसे चुप कराने लगा,
"डरो नहीं बेटा.... मैं कुछ नहीं करूँगा‌। मुझे भी तुम्हारी तरह यहांँ कैद करके रखा गया है।"
अहाना कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। जैसे किसी खिलौने से लगातार एक ही आवाज़ आती है, वैसे ही वह बार बार कहती जा रही थी कि मेरे पास मत आओ। कांस्टेबल उद्धव उसे समझाने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर में अहाना डरकर फिर से बेहोश हो गई। कांस्टेबल उद्धव उसका सर अपनी गोद में लेकर वहीं बैठ गया। वह सोच रहा था कि इस बच्ची के साथ उन लोगों ने ज़रूर कुछ बहुत गलत किया है। यह बहुत डरी हुई है। उसकी बात भी सुनने को तैयार नहीं थी।
कल गुरुनूर ने उसे बताया था कि दिनेश पर एक बच्चे के अपहरण में शामिल होने का शक है। जिस बच्चे का अपहरण हुआ था उसकी सरकटी लाश दक्षिण के पहाड़ वाले जंगल में मिली थी। उसे दिनेश की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए भेजा गया था। गुरुनूर ने उसे दिनेश के घर का पता बता दिया था। दोपहर को जब वह गांव पहुँचा तो दिनेश के घर के पास वाले मंदिर में जाकर बैठ गया। उसने पुजारी से कहा कि उसे एक दो दिन वहाँ ठहरने की जगह चाहिए। पुजारी ने उससे कहा कि वह उसके साथ रह सकता है। कांस्टेबल उद्धव ने उसकी बात मान ली थी। वह शाम को टहलते हुए दिनेश के घर के पास गया था। तब वह अपने घर के बाहर बंधी गाय का दूध दुह रहा था। आसपास कुछ संदिग्ध नहीं था। उसने रात में लौटकर आने का निश्चय किया।
कांस्टेबल उद्धव अहाना का सर गोद में लिए बैठा था। तभी उसे कुछ लोगों के आने की आहट लगी। एक तरफ रौशनी दिखाई पड़ी। उधर सीढियां थीं। दो लोग उसके पास आए। अहाना को उससे अलग किया। उसके घसीट कर ले गए।
बाहर धूप खिली थी। कांस्टेबल उद्धव को दोनों लोग घसीटते हुए एक जगह ले गए। वहाँ एक आदमी खड़ा था। उसे देखते ही कांस्टेबल उद्धव की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। उस आदमी के हाथ में धारदार हथियार था। उसने कांस्टेबल उद्धव की गर्दन धड़ से अलग कर दी।