Gyarah Amavas - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 12



(12)


दिनेश का गांव बसरपुर के पास ही था। अगले दिन सुबह गुरुनूर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के साथ उससे मिलने गई थी। घर के बाहर चारपाई पर गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे पैर लटका कर बैठे थे। दिनेश सामने दूसरी चारपाई पर पालथी मारकर बैठा था। उसने गुरुनूर से कहा,
"चाय मंगवाऊँ मैडम..."
"नहीं हम आपसे कुछ पूछताछ करने आए हैं।"
यह कहकर गुरुनूर ने उसके चेहरे पर अपनी नज़रें टिका दीं। दिनेश ने कहा,
"हम तो पहले ही सबकुछ बता चुके हैं। फिर भी आप जो पूछना चाहें पूछ लें।"
गुरुनूर ने कहा,
"आपने उस हादसे के कुछ दिनों के बाद ही रिटायरमेंट ले लिया।"
"मैडम वह तो पहले से ही तय था। हालांकि अभी दो साल थे। लेकिन बहुत साल से नौकरी कर रहे थे। मन करने लगा था कि अब रिटायर होकर अपने गांव में आराम के दिन बिताएं। इसलिए स्कूल वालों को पहले ही बता दिया था। अपनी जगह नया गार्ड भी लगवा दिया था।"
दिनेश ने बड़ी शांति से उतना ही जवाब दिया जितना ज़रूरी था। गुरुनूर ने पूछा,
"जिस दिन अमन गायब हुआ था उस दिन कुछ ऐसा देखा था जो आप हमें बताना चाहें।"
दिनेश ने एकबार फिर बड़े इत्मीनान के साथ जवाब दिया,
"पुलिस पहले ही इस बारे में पूछताछ कर चुकी है। हम बता भी चुके हैं कि उस दिन हमने कोई खास चीज़ नहीं देखी।"
अपनी बात कहकर वह चुप हो गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"हम खास बात की बात नहीं कर रहे हैं। उस दिन जो भी हुआ वह बताइए। आपने अमन को स्कूल के गेट से निकलते देखा होगा। वह किधर गया था कुछ तो याद होगा।"
"हमने उसे गेट से निकलते देखा था। लेकिन किधर गया हमें नहीं मालूम। उस समय बहुत से बच्चे निकल रहे थे। रोज़ ऐसा ही होता था। बच्चे मेरे सामने से गेट के बाहर निकलते थे। उसके बाद कहाँ गए मैं नहीं देख पाता था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने आगे पूछा,
"उस दिन अमन से आपकी कोई बात हुई थी।"
"हम बता चुके हैं कि हमने अमन को रोज़ की तरह गेट के बाहर निकलते देखा था। लेकिन ना तो हमने उसे कहीं जाते देखा और ना ही उससे कोई बात हुई।"
गुरुनूर ने कहा,
"स्कूल के सामने छुट्टी के वक्त रामेश्वर नाम का एक भेलपुरी वाला खड़ा होता है। उसके बयान के अनुसार उसने आपको अमन से बात करते देखा था।"
गुरुनूर की निगाहें दिनेश के चेहरे पर थीं। दिनेश ने अपने भावों को चेहरे पर आने से रोकने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन गुरुनूर की अनुभवी आंँखों ने हल्की सी परेशानी महसूस कर ली थी। दिनेश ने जवाब दिया,
"स्कूल के सामने वाली पट्टी में छुट्टी के समय ठेले और खोमचे वाले आकर खड़े हो जाते हैं। मैं किसी रामेश्वर को नहीं जानता। उस दिन जो हुआ मैंने सच सच बता दिया है। अब यह रामेश्वर कौन है ? उसने क्या देखा ? क्या समझा ? हमें नहीं पता है। सच यही है कि उस दिन हमने अमन को स्कूल के गेट के बाहर निकलते देखा था। उसके बाद वह कहांँ गया ? किसके साथ किधर गया ? हमको नहीं पता है। हमारी उससे कोई बातचीत नहीं हुई थी।"
अपनी बात कहकर दिनेश हर बार की तरह चुप हो गया। गुरुनूर ने महसूस किया कि वह बहुत शातिर इंसान है। उसने कहा,
"हम आपके बयान पर शक नहीं कर रहे हैं। लेकिन कुछ तो ऐसा हुआ होगा कि अमन कहीं गायब हो गया। अब उसकी सरकटी लाश मिली है। हम उसे अगवा करने वाले व्यक्ति के सहारे उसके कातिल तक पहुंँच सकते हैं‌। हम सिर्फ आपसे थोड़ा सहयोग चाह रहे हैं।"
दिनेश ने फौरन जवाब दिया,
"मैडम हम थोड़ा क्या बहुत सहयोग करने को तैयार हैं। लेकिन जो हमने देखा वही तो कहेंगे। उस दिन हमने अमन को स्कूल गेट से निकलते ही देखा था। उसके बाद उसे नहीं देखा। कुछ देर बाद उसकी मम्मी ने आकर कहा कि अमन दिख नहीं रहा है। हमने उन्हें भी यही बताया था। फिर वह स्कूल के अंदर चली गईं। प्रिंसिपल जी से उनकी कुछ बातचीत हुई होगी। बाहर निकल कर वह चली गईं। अमन गायब हो गया है यह खबर तो हमको अगले दिन मिली।"
गुरुनूर जानती थी कि रामेश्वर की बात के आधार पर उसे घेरना मुश्किल है। जबकी उसे इस बात का पूरा विश्वास हो गया था कि दिनेश बहुत कुछ छुपा रहा है। उसने अपनी तरीके से पता करने का निश्चय किया। उठते हुए वह बोली,
"दिनेश जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अब हम चलते हैं।"
दिनेश भी खड़े होकर बोला,
"धन्यवाद की क्या ज़रूरत है मैडम। अगर इससे ज्यादा कुछ मदद कर पाते तो खुशी से करते।"
यह कहकर उसने हाथ जोड़ दिए। गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे वहाँ से चले गए। जब गुरुनूर चलने के लिए खड़ी हुई थी तो उसने दिनेश के घर के बगल से किसी को झांकते देखा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि वह उन लोगों पर नज़र रखे हुए था। जीप में बैठते हुए गुरुनूर ने यह बात सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को बताई। उसने कहा,
"मैडम ऐसा था तो हम उसे वहीं दबोच लेते।"
"नहीं आकाश उसका कोई लाभ ना होता। वह कुछ भी कहकर बच सकता था। मैंने सोचा है कि इस दिनेश पर नज़र रखवाई जाए।"
"मैडम आप कहें तो मैं यहीं रुक जाऊँ।"
"तुम नहीं। तुम मेरे साथ गए थे। दिनेश तुम्हें पहचान गया है। किसी को सादे कपड़ों में भेजना होगा। थाने चलकर सोचते हैं क्या करना है।"
जीप बसरपुर पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ गई।


कल गगन बहुत देर तक परेशान सा बस अड्डे के आसपास की गलियों में बाइक दौड़ाता रहा। वह सोच रहा था कि शायद उन तीनों की कोई झलक मिल जाए। उस बच्ची को देखने के बाद उसके मन में एक उम्मीद जागी थी कि वह अपने आराध्य ज़ेबूल और उसकी सहचरी हब्बाली की सेवा कर सकेगा। लेकिन जगत ने बहुत गलत समय पर आकर उसका ध्यान भटका दिया था। कुछ सेकेंड्स में ही उसके हाथ से इतना अच्छा मौका चला गया था। हारकर वह अपने कमरे में वापस चला गया था।
वह देर तक अपनी नाकामी पर अफसोस करता रहा था। उसने अपनी तरफ से तो एकदम सही कदम उठाया था। उसका प्लान था कि निशांत कहाँ ठहरा है इसका पता चलने पर वह संजीव को साथ लेकर उसकी बेटी को अगवा करने की कोशिश करेगा। लेकिन सब गड़बड़ हो गया था।
उसे पूरा विश्वास था कि वह उस लड़की को अगवा करने में सफल हो जाता। इस विश्वास का कारण था कि स्कूल के पास से उस लड़के अमन को अगवा करते समय उसे कोई मुश्किल नहीं हुई थी। उसे सही समय पर खबर मिल गई थी कि लड़का गली में आने वाला है। उसने लड़के को आते देखा तो अपनी बाइक स्टार्ट कर ली थी। लड़का आकर बाइक पर बैठ गया था और वह चुपचाप उसे वहाँ से लेकर निकल गया था।
जब वह उसे दूसरे रास्ते पर ले गया था तो अमन ने कहा था कि यह कोई दूसरा रास्ता है। गगन ने उसे समझाते हुए कहा था,
"मालूम है... बस मुझे अपने दोस्त को एक सामान देना है। वह दे दूँ फिर तुम्हें तुम्हारे घर उतार दूंँगा। आगे जाकर एक मोड़ है जो उसी रास्ते पर मिल जाता है जहाँ से तुम्हारे घर जाना है। गार्ड दिनेश हमारे मामा हैं। उन्होंने कहा कि तुम्हारी वैन नहीं आ रही है तो हम तुम्हें छोड़ने को तैयार हो गए।"
अमन ने कुछ सोचकर कहा था,
"वैन वाले अंकल के साथी गार्ड अंकल को खबर दे गए थे कि वैन खराब है। मैंने तो सोचा था कि आपके साथ जल्दी पहुंँचकर मम्मी को सरप्राइज़ दूंँगा। अब ऐसा ना हो की मम्मी मुझे लेने घर से निकल पड़ें।"
"बस भइया सामने वाला घर है। सामान उसको देकर निकल लेना है।"
गगन ने उस मकान में व्यवस्था कर रखी थी। उसने बाइक रोकी। अंदर से उसका साथी आ गया। उसने बड़ी फुर्ती के साथ अमन की नाक पर क्लोरोफॉर्म वाला रुमाल रख दिया। फिर गगन और उसके साथी बेहोश अमन को अंदर ले गए। सब काम बहुत तेज़ी से हुआ। उस सुनसान गली में कोई कुछ नहीं देख पाया था।
गगन का साथी कोई और नहीं दिनेश का बेटा भानुप्रताप था। वह भी गगन के साथ ब्लैक नाइट ग्रुप का सदस्य था। दिनेश जानता था कि उसका बेटा किन लोगों के साथ है। लेकिन उसे लालच था कि एक दिन जब उसका बेटा शैतानी शक्तियों का स्वामी बनेगा तो उसके भी वारे न्यारे हो जाएंगे। भानुप्रताप ने अपने पिता से कहा था कि ज़ेबूल को भेंट चढ़ाने के लिए एक किशोर लड़के की ज़रूरत है। अपनी वैन का इंतज़ार करते हुए अक्सर अमन दिनेश से बातें किया करता था। दिनेश को वह एक अच्छा शिकार समझ आया। वैन वाले के एक साथी ने देखा था कि वैन गराज में ठीक हो रही है। छुट्टी से कुछ समय पहले उसने यह बात दिनेश को बताई थी। जब अमन बाहर आया तो दिनेश ने कहा कि आज वैन नहीं आएगी। अगर वह चाहे तो आपने भांजे के साथ घर भिजवा सकता है। अमन कुछ सोचकर मान गया।
उस समय गगन और भानुप्रताप दिनेश के मकान में थे जहाँ वह रहता था। उसने अमन के बाहर आने से पहले फोन पर सारी बात बता दी थी। प्लान के हिसाब से गगन स्कूल के पास वाली गली में बाइक लेकर खड़ा था। वह उसे दिनेश के मकान में ले गया था। देर रात एक गाड़ी से गगन और भानुप्रताप उसे खंडहर में पहुँचा आए थे।
उस समय दिनेश ने उन लोगों की भरपूर मदद की थी। लेकिन इस बार जगत ने उसका प्लान बिगाड़ दिया था। वह सोच रहा था कि जब वह शक्ति का स्वामी हो जाएगा तब जगत को इसकी सज़ा देगा।


कांस्टेबल उद्धव सादे कपड़ों में दिनेश के गांव में पहुँचा था। उसने गांव के मंदिर में यह कहकर शरण ली थी कि मुसाफिर है। कुछ समय रहकर चला जाएगा। वह मंदिर दिनेश के घर के पास ही था। वह पुजारी के साथ उसकी कोठरी में था। पुजारी के खर्राटों की आवाज़ आने लगी तो वह बिना आहट किए चुपचाप उठा। आहिस्ता से दरवाज़े की कुंडी खोली और बाहर निकल गया। वह दिनेश के घर के पास पहुँचा तो वह किसी गाड़ी में बैठकर कहीं जा रहा था।
कांस्टेबल उद्धव सोच रहा था कि क्या करे तभी किसी ने पीछे से उसके सर पर वार किया। वह बेहोश होकर गिर गया।

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