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जलती हुई मशालों की रौशनी में वह जगह आदिम युग की किसी गुफा की तरह दिख रही थी। अंधेरे और उजाले के मिले जुले प्रभाव में तहखाने का माहौल बहुत ही रहस्यमई लग रहा था। मशाल की रौशनी जांबूर के मुखौटे पर पड़ रही थी। उसके पीछे से झांकती उसकी आँखों में शैतानी चमक साफ देखी जा सकती थी। सभी नौजवान जांबूर की तरफ टकटकी लगाए बैठे थे। जांबूर ने अपने दोनों हाथों को उठाकर कहा,
"ज़ेबूल जो समस्त शैतानी शक्तियों का स्वामी है उसको हमारा अभिवादन।"
सभी नौजवानों ने जांबूर की तरह अपने हाथों को उठाकर कहा,
"शैतानी शक्तियों के स्वामी ज़ेबूल का अभिवादन। वह हम पर अपनी कृपा बनाए रखें।"
सबके अभिवादन के बाद जांबूर ने कहा,
"हम सभी काली रातों के उपासक हैं। काली रातें जब शैतानी शक्तियां सबसे अधिक सक्रिय होती हैं। क्योंकी हम शैतान के पुजारी हैं। हमारा आराध्य है ज़ेबूल। सबसे काली रात होती है अमावस की रात। उस रात ज़ेबूल की उपासना का सबसे अधिक लाभ होता है। उस रात शैतानी शक्तियां सबसे अधिक प्रभावी होती हैं। शैतानी शक्तियों के स्वामी ज़ेबूल को प्रसन्न करने के लिए हमने एक अनुष्ठान आरंभ किया है। इसमें हम हर अमावस को एक बलि देते हैं। यह बलि एक किशोर लड़के की होती हैं। अब तक हम पाँच भेंटें ज़ेबूल को चढ़ा चुके हैं। ज़ेबूल ने उन्हें स्वीकार भी कर लिया है। उन सभी के सर यहाँ पर रखे हैं।"
यह कहकर जांबूर ने अपने बाईं तरफ इशारा किया। वहाँ पाँच नर मुंड रखे थे। उनके ऊपर खाल और मांस नहीं थे। सिर्फ नर मुंड थे। ये नर मुंड किसी भी व्यक्ति के दिल में सिहरन पैदा कर सकते थे। पर वहाँ उपस्थित लोग उन्हें इस तरह देख रहे थे जैसे वे नर मुंड उनकी जीत की निशानियां हैं। जांबूर ने आगे कहा,
"हमारा अनुष्ठान ग्यारह अमावस का है। पाँच अमावस निकल चुकी हैं। आने वाली अमावस छठी अमावस है। यह मध्य अमावस है। इसके बाद पाँच और अमावस पड़ेंगी। मध्य में पड़ने के कारण छठी अमावस का विशेष महत्व है।"
यह कहकर जांबूर ने सम्मोहन की अवस्था में बैठे नौजवानों पर एक नज़र डाली। एक बार फिर अपने हाथ ऊपर उठाकर कहा,
"ज़ेबूल हम पर प्रसन्न हों..."
बाकी सबने उसका अनुसरण किया। जांबूर ने कहा,
"हमारे आका ज़ेबूल की सहचरी है हब्बाली। ज़ेबूल और हब्बाली का मिलन कुछ खास मौकों पर होता है। मुझे पता चला है कि आनेवाली अमावस महत्वपूर्ण है क्योंकी इस रात ज़ेबूल अपनी सहचरी हब्बाली के साथ रमण करेंगे। हमारा सौभाग्य है कि यह हमारे अनुष्ठान का मध्य भी होगा। इस तरह से छठी अमावस और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। ज़ेबूल और हब्बाली के रमण की प्रक्रिया के दौरान नई शैतानी शक्तियों का जन्म होगा। इस अमावस को हमें ज़ेबूल के साथ साथ उनकी सहचरी हब्बाली को भी प्रसन्न करना है। इस बार हमें एक नहीं दो बलि देनी होंगी। एक किशोर लड़के और दूसरी किशोरी लड़की की। इसलिए तुम सबको यहाँ बुलाया है। इस बार की बलि के लिए किशोरी कन्या की भी तलाश करनी है। अब सिर्फ कुछ ही दिन बचे हैं। इसलिए अपने काम पर लग जाओ। देखते हैं कि कौन विशेष बलि की व्यवस्था कर पाता है।"
यह कहकर जांबूर चुप हो गया। कुछ क्षणों के बाद बोला,
"हमारे अनुष्ठान को बाधित करने के लिए काम हो रहा है। बलि चढ़ाए जाने वाले चार लोगों की लाशें मिलने के कारण एक पुलिस अधिकारी भेजी गई है। वह इस खंडहर तक आ गई थी। इसलिए हमें और अधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी। अपना महत्वपूर्ण अनुष्ठान करने के लिए मैंने एक नई जगह तलाश कर ली है। उत्तर के पहाड़ वाले जंगल में एक पुराना टूटा हुआ मकान है। जंगल में बहुत अधिक अंदर होने के कारण वहाँ कोई नहीं जाता है। इस बार हम वहीं अनुष्ठान करेंगे।"
जांबूर ने आगे की बात बताने के लिए काबूर की तरफ इशारा किया। काबूर ने कहा,
"हमारे लिए सावधान रहना आवश्यक है। इसलिए पाँचवीं लाश को मैंने इसी खंडहर में दफन कर दिया है। मैं तुम सभी को अनुष्ठान से दो दिन पहले उस मकान में ले चलूँगा। अधिक सावधानी बरतने के लिए अनुष्ठान के दिन मकान में प्रवेश के समय सभी की बाईं बाज़ू में बना शैतान का टैटू चेक किया जाएगा। अब तुम सब एक एक करके सावधानी से प्रस्थान करो।"
सब सावधानी बरतते हुए वहाँ से निकल गए। गगन भी खंडहर से निकल कर अपनी बाइक की तरफ बढ़ गया। झाड़ियों के पास पहुँच कर उसने अपनी बाइक निकाली और वहाँ से चला गया। बसरपुर में उसका घर था। जो बंद रहता था। जब कभी ब्लैक नाइट ग्रुप में संदेश आता था वह पालमगढ़ से यहाँ आ जाता था। उस दौरान अपने घर में रहता था।
अपने घर पहुँच कर उसने बाइक बाहर बरामदे में खड़ी कर दी। ताला खोलकर अंदर गया। पिछली अमावस के बाद वह अब अपने घर आया था। इतने दिनों से बंद घर में अजीब सी महक भरी हुई थी। ठंडी हवा चल रही थी फिर भी उसने कुछ देर दरवाज़ा खुला रखा। कुछ देर में जब महक कम हुई तो उसने दरवाज़ा बंद किया। अपने बैग से निकाल कर कपड़े बदले। उसे अब भूख लग रही थी। उसने रेस्टोरेंट से निकलते समय कुछ खाना पैक कर लिया था। उसने बैग से वह पैकट निकाला। खाना ठंडा हो जाने के कारण अच्छा नहीं लग रहा था। पर उसको गर्म करने का कोई साधन नहीं था। भूख मिटाने के लिए उसने बेमन से वही खाना खाया। उसने लकड़ी के संदूक में रखी रज़ाई निकाली और ओढ़कर लेट गया।
पिछले तीन साल से वह एकदम अकेला था। जबसे उर्मी उसे छोड़कर चली गई थी। जाते हुए एक कागज़ पर कुछ लाइनें लिख गई थी। उन लाइनों ने उसके आत्मविश्वास को बुरी तरह कुचल दिया था। रोज़ रात में जब वह बिस्तर पर लेटता था तो उर्मी की वह लाइनें उसके ज़ख्मों को कुरेदती थीं।
'तुम्हारे साथ ज़िंदगी एक सज़ा है। कुछ और दिन मैं तुम्हारे साथ रही तो मेरा दम घुट जाएगा। इसलिए उसके साथ जा रही हूँ जो मुझे खुश रख सकता है।'
उसने अपनी तरफ से उर्मी को खुश रखने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन वह जो भी करता था वह उर्मी को समझ नहीं आता था। उसकी हर कोशिश की वह बड़ी बेदर्दी से बेकद्री कर देती थी। एक बार वह बहुत मन से उसके लिए एक सूट लेकर आया था। उसने कहा कि वह उसे पहन कर दिखाए। उर्मी ने सूट को इस तरह देखा जैसे कि कोई बहुत बेकार की चीज़ हो। उसके बाद बिना कुछ बोले सूट को एक तरफ रख दिया। उसने कभी वह सूट नहीं पहना।
जब उसकी और उर्मी की शादी हुई थी तो उनकी जोड़ी के लिए लोग मज़ाक में कहते थे कि ऐसी है जैसे किसी हूर के साथ कोई लंगूर खड़ा हो। वह जानता था कि उसका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं है। मझोला कद, दबा हुआ रंग और साधारण सी शक्ल। जबकी उर्मी लंबी छरहरी बहुत खूबसूरत थी। गगन अपनी कमी के बदले उसके शौक पूरे करने की कोशिश करता था। उसके लिए कठिन था फिर भी वह कोशिश करता था कि उसे खुश रख सके।
गगन देखने में तो साधारण था ही पर बहुत दब्बू भी था। बचपन से ही उसके साथ के लड़के उसे चिढ़ाते थे। वह उसके साथ गलत व्यवहार करते थे पर वह कुछ बोल नहीं पाता था। शुरुआत में तो जब उसके साथ कुछ गलत होता था तो वह रोते हुए घर आता था। उस पर उसकी मांँ सांत्वना देने की जगह ताना मारते हुए कहती थीं कि मैं विधवा औरत होकर दुनिया का सामना करती हूँ और तुम अपने साथ के लड़कों का सामना नहीं कर पाते हो। तुमसे मैं क्या उम्मीद रखूँ। लगता है जीवन भर तुम्हें संभालना होगा। तुमसे तो कोई उम्मीद नहीं कर सकती। अपनी माँ के इस व्यवहार के कारण गगन घर आने से पहले चुपचाप आंसू बहा लेता था। लेकिन अपनी माँ से कुछ नहीं कहता था।
वह अपनी लाचारी से उपजे गुस्से को अपने मन में दबा लेता था। लेकिन यह गुस्सा उसकी ताकत नहीं कमज़ोरी बन रहा था। मन में दबा हुआ गुस्सा उसे और दब्बू बना रहा था। उसे ऐसा लगने लगा था कि वह बस मज़ाक उड़ाए जाने लायक है। ऐसे में जब उसकी माँ ने उसके लिए उर्मी जैसी खुबसूरत लड़की का रिश्ता ढूंढ़ा तो वह यह सोचकर खुश हो गया कि पहली बार उसके पास ऐसा कुछ होगा जो दूसरों को उसकी किस्मत पर रश्क करने का मौका देगा। पर लोगों ने इस बार भी उसका मज़ाक ही बनाया। उसने इस गुस्से को भी अपने सीने में दफन कर दिया।
उसने सोचा था कि वह अपने प्यार से उर्मी का दिल जीत लेगा। जितना वह उर्मी के नज़दीक आने की कोशिश करता था उतना ही वह उससे उतना ही दूर भागती थी। वह ताना देती थी कि उसके साथ शादी करना उसकी मजबूरी थी। उसके चाचा ने हमेशा उसे बोझ समझा था। अपना बोझ उन्होंने उस जैसे इंसान के साथ उसकी शादी करके उतार दिया। पर वह उसके साथ खुश नहीं रह सकती है। वह हर तरह से उसका अपमान करती थी। उसकी माँ ताना देती थी कि पत्नी को भी नहीं संभाल सकता है। कुछ महीनों में माँ चल बसी। उर्मी ने नए रंग दिखाने शुरू किए। उसके मायके में उसका एक आशिक था। वह उसके साथ मिलने जुलने लगी। एक दिन चिठ्ठी लिखकर उसके साथ भाग गई।
उर्मी का इस तरह भाग जाना उसके लिए बहुत बड़ा अपमान था। लोगों ने खूब मखौल बनाया। इस सबको भी उसने अपने मन में दबा लिया। पहले वह बसरपुर में ही काम करता था। लेकिन अब उसका यहाँ रहना मुश्किल हो गया था। वह पालमगढ़ चला गया।
अपने मन में दबे गुस्से को वह निकाल नहीं पाता था। अंदर ही अंदर वह नासूर बन रहा था। जिसके कारण दुनिया के लिए उसके मन में एक नफरत पैदा हो गई थी। जब भी वह किसी को खुश देखता था तो उसका मन करता था कि उसकी खुशियों को आग लगा दे। पर सीधे सीधे कुछ कर सकने की हिम्मत उसमें थी नहीं।
ऐसे में ही एक दिन रेस्टोरेंट में आए एक ग्राहक महिपाल से उसकी मुलाकात हुई। उसे अपनी नफरत शांत करने के लिए एक साधन मिल गया।